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दोस्तो, औरत इज्जत की भूखी होती है, उसे इज्जत और प्यार दो और औरत की चुदाई कर लो! मेरी यह कहानी इसी बात को साबित करती है.
मेरा नाम राज शर्मा है। मेरी उम्र इस समय 35 वर्ष है। यह कहानी कुछ दिन पहले की है जब मैं चंडीगढ़ से सटे हिमाचल के एक शहर में एक ऊँचे पहाड़ पर बने हाउसिंग बोर्ड के 2 रूम फ्लैट में रहता था। यहाँ थोड़े से फ्लैट थे जिनमें अधिकतर खाली पड़े थे।
मेरा जिस्म हट्टा कट्टा है और मेरे लंड का साइज़ 8 इंच है। मैं अविवाहित हूँ और एक मल्टी नेशनल कंपनी में, घर से ही कंप्यूटर पर काम करता था। इस कहानी से पहले मैं अपना खाना ढाबे पर खाता था। मुझे किसी काम करने वाली मेड की जरूरत थी, जो मिल नहीं रही थी।
इन फ्लैट्स के पास ही कुछ प्राइवेट घर भी थे जो कुछ पक्के तथा कुछ कच्चे थे, वह 7-8 घरों का एक गाँव सा था।
एक रोज सांय 9 बजे के करीब मेरे फ्लैट की घंटी बजी। मैंने दरवाजा खोला तो एक 45-46 वर्ष की औरत खड़ी थी। उसने कहा- साहेब, मैं यहाँ इस गाँव में रहती हूँ, मेरी बेटी का 3 साल के बेटे को बहुत तेज बुखार है, आपके पास गाड़ी है तो थोड़ी हमारी मदद कर दो और बच्चे को डॉक्टर के ले चलो।
उन फ्लैट्स में एक दो गाड़ियाँ ही थीं। मैंने झटपट गाड़ी उठाई और लेडी को बैठा कर पास ही उसके घर के सामने गाड़ी रोक दी। वह एक कमरे में रहती थी। तभी एक बच्चे को उठाये एक 26-27 साल की दिखने वाली लड़की आई और बच्चे को लेकर गाड़ी में बैठ गई। वह औरत घर पर ही रह गई।
बच्चे को तेज बुखार था। जब मैंने पूछा कि किस डॉक्टर को दिखाना है तो उसने कहा- पता नहीं। उस वक्त सब क्लीनिक बंद हो चुके थे अतः मैं सीधा बच्चे को लेकर पी जी आई चंडीगढ़ के बच्चा वार्ड की इमरजेंसी में ले गया।
वहाँ जाते ही डॉक्टरों ने कुछ दवाइयाँ मंगाई जो मैं ले आया और बच्चे का इलाज शुरू हो गया। डॉक्टर्स ने कहा कि अब घबराने की कोई बात नहीं है, परन्तु बच्चे को रात भर यहीं रखना होगा।
हम दोनों वहाँ पड़े बेंच पर बैठ गए। तब मैंने उस लड़की को ध्यान से देखा। वह बला की सुन्दर, छोटे कद की एक पहाड़न लड़की थी, जिसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ, भरी हुई गांड, सारा जिस्म गजब का सेक्सी था। ऊपर से उसकी नीली आँखें और दूध जैसा गोरा मांसल बदन था। बस साधारण कपड़ों और गरीबी ने सब ढक रखा था।
उसने मुझसे दवाइयों के पैसे पूछे तो मैंने कहा- कोई बात नहीं, ये तो मेरा फर्ज था। वह रोने लगी। मैंने उसे चुप करवाया और प्यार से उसको एक हाथ से हग किया।
कुछ देर बाद मैं उसके और अपने लिए चाय और कुछ खाने का सामान ले आया। चाय पी कर हम बच्चे के पास गए। बुखार काफी कम हो गया था और बच्चा सो गया था। बच्चे को दवाई के साथ इंजेक्शन भी दिया गया था। उसने सारी बातें अपनी मम्मी को फोन पर बता दी थीं।
रात के दो बज रहे थे, हम बैंच पर बैठे थे। वह बैठे बैठे सोने लगी थी, सोते सोते उसका सिर मेरे कंधे पर टिक गया और वह काफी देर सोती रही। जब वह उठी तो उसने देखा कि वह मेरे कंधे पर सो रही है तो उसने सॉरी कहा।
मैने पूछा- तुम पढ़ी लिखी हो? तो उसने बताया कि वह प्लस टू पास है, उसका नाम डोली है, उसका पति शराबी था, जो हमेशा उसे मारता रहता था और दहेज़ के लिए तंग करता रहता था। फिर उसने पंचायत के माध्यम से उससे तलाक ले लिया और यहाँ अपनी माँ के पास पिछले छः महीने से आकर रहने लगी है। उसका बाप सरकारी नौकरी में था, जिसकी मौत हो गई थी, माँ को कुछ सरकार की तरफ से पेंशन मिलती है, और अब वह भी एक फैक्टरी में नौकरी करती है, जो सुबह 8 बजे से सांय 8 बजे तक होती है, बड़ा ही मेहनत का काम है जो उसे पसंद नहीं है।
इन्हीं बातों में सुबह के 4 बज गए। बच्चा बिलकुल ठीक हो गया था और सो रहा था। डॉक्टर्स ने कहा कि सुबह 8 बजे बच्चे की छुट्टी कर देंगे।
मैं काफी थक गया था, सामने ही पार्किंग में गाड़ी खड़ी थी, मैंने कहा- मैं थोड़ा गाड़ी में बैठ कर आराम कर लूँ, यदि तुम भी आराम करना चाहती हो तो आ जाओ। वह उठ कर मेरे पीछे पीछे चल दी।
मैंने गाड़ी खोली और पिछली सीट पर बैठ गया और उसे भी पीछे ही बैठने को कहा। गाड़ी में बैठकर उसने मुझसे कहा- आप नहीं होते तो पता नहीं क्या होता। वह बहुत अहसानमंद थी।
उसने मेरे बारे में पूछा तो मैंने अपने बारे में बता दिया। जब उसे पता लगा कि मुझे खाना बनाने की दिक्कत है तो उसने कहा कि आपका खाना मैं घर से बना कर भिजवा दिया करुँगी। मैंने मना कर दिया और उसे कहा कि यदि तुम्हें बुरा न लगे तो तुम मेरे फ्लैट पर आकर मेरा तीनों टाइम खाना बना दो, बदले में मैं तुम्हें फैक्ट्री जितनी सैलरी दे दूंगा। तुम फैक्ट्री की नौकरी छोड़ो, मेरे यहाँ सुबह 8 बजे से सांय 8 बजे तक रहो और बीच बीच में जब काम नहीं हो तो अपने घर चली जाना।
पहले तो वह झिझकी, परन्तु बाद में बोली- मैं मम्मी से बात करके बताऊँगी। मैंने कहा- ठीक है।
मुझे नींद आने लगी और मैं कार में सो गया, जब आँख खुली तो वह लगभग मेरी गोद में लेटी हुई सो रही थी। मैं हिला नहीं और उसकी चूचियों और उसके हुस्न को देखता रहा।
थोड़ी देर में उसकी आँख खुली तो वह अपने आपको मेरी गोदी में पाकर शरमा गई। मैंने धीरे से उसके बालों में हाथ फिरा दिया। उसने आँखों से कुछ प्यार जताया और उठ कर बाहर निकल गई।
हम बच्चे को डिस्चार्ज करवा कर वापिस आ गए और मैंने उसे उसके घर उतार दिया। मैं घर आकर सो गया।
लगभग 12 बजे दरवाजे की घंटी बजी, मैंने देखा डोली और उसकी माँ दरवाजे पर खड़ी थीं। वे अंदर आ गई और डोली की मम्मी कहने लगी- साहब, आपने हमारी बहुत मदद की है, आज से डोली आपके घर का सारा काम करेगी, जो देना हो दे देना, वैसे फैक्ट्री में इसे 6000 रूपये मिलते हैं। मैंने कहा- मैं इसे 7000 रूपये महीना दूंगा परन्तु घर का सारा काम करना होगा और जब चाहूँगा बुला लूँगा। उन्होंने कहा- ठीक है। डोली को छोड़ कर उसकी माँ चली गई।
डोली ने सारे घर की सफाई की, फिर किचन में जाकर खाना बनाया। बहुत ही अच्छा खाना था। उसने बताया कि उसने आज तक किसी के घर काम नहीं किया है क्योंकि वह कामवाली बाई नहीं है परन्तु मुझे न नहीं कर सकी।
डोली लगभग 3 बजे चली गई और मुझसे पूछ कर 7 बजे फिर आ गई और खाना बनाया। मैंने उससे कहा कि बचा हुआ खाना अपने घर ले जाया करे।
हर रोज डोली आने लगी। जब भी वह सफाई करते हुए झुकती तो मैं उसकी चूचियों व चूतड़ों को ही देखता रहता था। उसे भी पता लग गया था कि मैं उसे देखता हूँ, परन्तु वह मुस्करा देती थी।
एक दिन वह नहीं आई, मैंने फोन किया तो पता चला की उसके पाँव में मोच आ गई है। मैं उसे डॉक्टर को दिखाने ले गया। उससे चला नहीं जा रहा था तो मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर कार में बैठाया। डॉक्टर ने गर्म पट्टी बांध दी और मैंने फिर उसी तरह कमर में सहारा देकर कार में बैठा दिया।
अब की बार मेरा हाथ उसकी चूची को अच्छी तरह छू रहा था, वह कुछ नहीं बोली।
रास्ते में उसने कहा- पता नहीं आपका कितना अहसान लेना बाकी है। मैंने कहा- डोली! जब दिल करे तब अहसान उतार देना। उसने मेरी तरफ देखा और शरमा कर गर्दन नीचे कर ली।
दो दिन बाद वह ठीक हो गई, तब तक खाना उसकी माँ ने बना दिया।
तीसरे दिन सुबह 9 बजे जब वह आई तो बारिश हो रही थी, वह बिल्कुल भीग गई थी। उसने घंटी बजाई तो मैंने देखते ही कहा- फिर बीमार होने का इरादा है क्या? तो वह मुस्करा कर बोली- आप हैं न ठीक करवाने के लिए।
मैं समझ गया कि आज वो मस्ती के मूड में है, मैंने उससे कहा- ठीक है, बाथरूम में जाओ और कपड़े बदल लो। उसने कहा- कपड़े तो हैं नहीं! मैंने कहा- मैं देता हूँ। यह कह कर मैं उसे बाजू से पकड़ कर बाथरूम में ले गया और उससे कहा- अब भीग ही गई हो तो पहले शैम्पू से अपना सिर धो लो, फिर खुशबूदार साबुन से नहा लो।
उसे मैंने हाथ में एक सेफ्टी रेजर पकड़ाते हुए कहा कि सबसे पहले अपने ऊपर नीचे के बाल साफ़ कर लेना और नहाने के बाद पूरे बदन पर एक खुशबूदार क्रीम लगाने को दी, जो बाथरूम में ही रखी थी, और दरवाजा बंद कर दिया।
उसने कहा- कपड़े तो दो? मैंने कहा- तुम अपनी साफ सफाई करो, मैं कपड़े देता हूँ।
उसने लगभग आधे घंटे बाद थोड़ा दरवाजा खोल कर कपड़े मांगे तो मैंने मेरी एक छोटी सी आधी बाजू वाली मलमल की कुर्ती दे दी जो मैं गर्मी में कभी कभी पैंट के ऊपर पहनता था। उसने कुर्ती पहन ली और नीचे का कपड़ा मांगने लगी। मैंने उससे कहा- और कुछ नहीं है बाहर आ जाओ।
वह बाहर नहीं आ रही थी। मैंने धीरे से दरवाजा खोला तो वह दरवाजे के पीछे छिप कर खड़ी हो गई। वह बला की सुन्दर लग रही थी। कुर्ती बहुत छोटी थी जिससे उसकी चूत का नीचे का थोड़ा सा हिस्सा साफ दिखाई दे रहा था जो उसने अपने हाथों से ढक रखा था। पीछे से कुर्ती उसके आधे चूतड़ों को ढके हुए थी, आधे नंगे थे। उसकी जांघें केले के तने जैसी मुलायम थी। उसने शैम्पू से बाल धो कर खुले छोड़ रखे थे और उसके चुचे सफ़ेद पतली कुर्ती को जैसे फाड़ने को हो रहे थे। कुल मिला कर वह मन्दाकिनी हिरोइन जैसी लग रही थी।
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसका हाथ पकड़ा और बाथरूम से बाहर ले आया और झट से उसे बाहों में भर लिया। बहुत देर तक उसके होठों को और गालों को चूसता रहा और उसके चूतड़ों को सहलाता रहा। उसकी चूत पर हाथ फिराया तो लगा मानो किसी मखमल की चीज को छू लिया।
मैंने उसको पीठ की तरफ मोड़ा और लोअर में से अपना 8 इंच लम्बा लंड निकाल कर उसके आधे नंगे चूतड़ों के बीच अड़ा दिया और आगे हाथों से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर खड़ा हो गया। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की और मेरे जिस्म से चिपक गई। पीछे लंड लगाए लगाए मैं एक हाथ को उसकी चूत पर फिराने लगा, वह आनन्द से सिसकारियाँ भरने लगी।
कुछ देर मजा लेने के बाद वह मेरी तरफ घूम गई और मुझे बांहों में भर लिया। मैंने भी उसे कस कर बाँहों में जकड़ लिया और उसकी जांघों को थोड़ा चौड़ी करके अपने लंड को थोड़ा नीचे झुक कर चूत पर रख दिया। मेरे लंड का सुपारा सीधा उसकी चूत के दाने को रगड़ने लगा और वह आनन्द से सिसकारियाँ लेने लगी। उसने अपने हाथ से लंड के सुपारे को दुबारा अच्छी तरह चूत पर उसके मुताबिक सेट किया और चूत को सुपारे पर रगड़ने लगी।
मैं एक बिना आर्म वाली चेयर पर बैठ गया और उसको अपनी ओर खींच लिया। उसकी दोनों टाँगों के बीच में मेरी एक टांग आ गई। मैंने अपना दाहिना हाथ उसके चूतड़ों पर रखा और चूची को कुर्ती के ऊपर से ही मुँह में लेकर चूसने लगा। मेरा एक हाथ उसकी चूत पर जा टिका।
उसे कुर्ती के ऊपर से ज्यादा मजा नहीं आ रहा था अतः उसने कुर्ती निकाल दी। अब वह मादरजात, मेरे सामने नंगी खड़ी थी, उसकी मस्त 36 इंच की चूचियों पर मैं टूट पड़ा। मैं बार बार बदल बदल कर उसके दोनों मम्मों को चूसे जा रहा था, साथ में उसकी मखमली गांड को एक हाथ से सहला रहा था और एक हाथ से उसकी चूत में अपनी बीच वाली उंगली कर रहा था।
उसे हर तरफ से आनन्द आ रहा था। कुछ देर ओरल सेक्स के बाद उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया और वह एक बार निढाल हो कर कुर्सी पर मेरी गोदी में बैठ गई। मेरा लंड उसकी चूत के पास दोनों जाँघों के बीच से ऊपर की तरफ निकल आया था। मैं उसे तरह तरह से प्यार करता रहा।
मैं कुर्सी से उठा और अपना लंड उसके मुँह में चूसने को देने लगा। पहले तो उसने आनाकानी की, फिर मेरे कहने से ले लिया और चूसने लगी। मैं उसकी चूचियों से खेलता रहा।
कुछ देर बाद वह बोली- अब हम लेट जाते हैं और बेड पर करते हैं। मैंने उसे बेड पर लिटा दिया और उसकी टांगों को चौड़ा किया। पहली बार मैंने उसकी पूरी चूत को देखा। क्या कमाल की पिंक कलर की उभरी हुई चूत थी। जब मैंने उसकी दोनों बड़ी फांकों को अलग करके देखा तो अंदर पिंक कलर के छेद के ऊपर छोटी छोटी दो गुलाबी पत्तियां सी थी।
मुझसे रुका नहीं गया और मैंने उसकी टांगों के बीच अपने तने लंड के साथ उसको चोदने के लिए पोजीशन ली। उसकी टांगों को थोड़ा मोड़ कर ऊपर उठाया और लंड के सुपारे को उसकी नर्म और सुलगती चूत पर रख दिया। उसने आनन्द से अपनी आँखें बंद कर ली।
मैंने थोड़ा जोर लगाया तो पहले से पानी छोड़ चुकी चूत में आधा लंड प्रवेश कर गया।
क्योंकि उसे चुदे तीन साल हो गए थे अतः उसे थोड़ा दर्द हुआ, वह कहने लगी- थोड़ा धीरे धीरे डालो। मैंने उसके दोनों कंधे पकड़े और उसके होठों को अपने होठों में ले कर लंड पर ज़ोर डाला। लंड बड़े प्यार से चूत में फिसलता हुआ जड़ तक बैठ गया। उसने मजे से संतोष की सांस ली और मुझे गर्दन हिला कर इशारा किया कि अब मैं चोदना शुरू करूँ।
मैंने थोड़ी उसकी टांगों को ऊपर अपनी बाँहों में उठाया और उसकी चूत को अपने फनफनाते लंड से चोदना शुरू किया। वह मजे से चिल्लाने लगी। मैंने उसके मुँह पर हाथ रख लिया और रुक कर उसके मम्मे चूसने लगा। परन्तु उसकी हाइट छोटी होने से मुझे दिक्कत हो रही थी।
फिर मैंने उसकी टांगों को अपने कन्धों पर रखा और लौड़े को अंदर बच्चादानी तक पेलने लगा। वह मजे से उम्म्ह… अहह… हय… याह… चोदो…बस.. धीरे… हाँ…हाँ.. आदि बोले जा रही थी।
आखिरकार हम दोनों एक साथ मुकाम पर पहुँच गए। उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया और मेरे लंड ने वीर्य की पिचकारियाँ छोड़ी। दोनों के माल ने बेड की चादर को भिगो दिया। मैं उसके ऊपर लेटा रहा। मैंने उससे पूछा कि क्या वह खुश है तो उसने हाँ में सिर हिलाया, वह बोली कि जिंदगी में पहली बार किसी ने मुझे इतने प्यार और इज्जत से चोदा है।
उसने बतया कि मुझे आज सही मायने में पता लगा है कि मर्द कितनी प्यारी चीज होती है, आज आप चाहे मेरी जान भी मांग लो, मैं दे दूँगी, मैं और मेरी चूत आज से आपकी हुई। उसने बताया कि उसका पति लगभग नामर्द था और सेक्स करते वक्त गालियाँ देता था जो उसे अच्छा नहीं लगता था। उसका लंड भी 5 इंच का पतला सा था और दो तीन मिनट में झड़ जाता था।
कुछ देर हम दोनों यूँ ही लेटे रहे और प्यार करते रहे।
दोस्तो! औरत प्यार और सम्मान की भूखी होती है।
उसको नंगी पड़ी देख मेरा लंड फिर अकड़ कर खड़ा हो गया, मैंने उसकी चूत के दाने को छूना शुरू किया और वह कसमसाने लगी। फिर मैंने दाने पर अपना मुँह रखा और जीभ और होठों से उसे चूसने लगा। वह अपनी जांघों को भींचने लगी और चुदने के लिए तैयार हो गई।
उसने मुझसे पूछा- और करना है? मैंने कहा- तुम तैयार हो तो एक बार मजा और ले लेते हैं।
अब की बार मैंने उसे बेड पर घोड़ी बना लिया। उसकी पिंक, चिकनी और 38 साइज़ की गांड का नजारा ही कुछ अलग था। मैंने उसे पीछे करके बेड के कोने पर कर लिया और नीचे फर्श पर खड़े हो कर उसकी सुन्दर शेप वाली चूत को हाथ की उंगली से थोड़ा खोलकर लंड का सुपारा उसमें सेट किया और धीरे धीरे जोर लगा कर सारा लंड अंदर ठोक दिया।
वो थोड़ी असहज लग रही थी परन्तु टाँगें चौड़ी करके पूरा लंड निगल गई।
मैंने उसके दोनों कंधे पकड़े और अपनी स्पीड बढ़ा दी। पूरे कमरे में फच फच और उह.. आह.. की आवाजें आने लगी। वह कभी कहती ‘धीरे करो, अंदर लग रहा है.’ कभी कहती जोर से करो। मैं भी अपने खड़े होने की पोजीशन को बदल बदल कर उसे चोदता रहा।
कुछ देर बाद उसने कहा कि उसका होने वाला है। मैंने भी अपनी पूरी स्पीड बढ़ा दी, यहाँ तक की बेड की भी चरमराने की आवाजें आने लगी। शायद साथ वाले फ्लैट की लेडी भी बाहर आकर दरवाजे के पास खड़ी हो गई थी।
लगभग 15 मिनट की और जबरदस्त चुदाई के बाद मैंने अपने लंड से उसकी चूत वीर्य की पिचकारियों से भर दी। वह बेड पर पेट के बल पसर गई और सारे वीर्य से चादर एक जगह से और भीग गई।
दोपहर के तीन बज चुके थे। उसके कपड़े भी लगभग सूख गए थे। वह कपड़े पहन कर अपने घर चली गई और सांय 8 बजे फिर आ गई।
हम दोनों एक दूसरे के काम आते रहे और हर रोज खूब चुदाई करते रहे। कभी कभी तो वह रात को भी मेरे फ्लैट पर ही रह जाती थी और सारी रात चुदाई का दौर चलता रहता था। उसकी माँ को भी पता चल गया था परन्तु वह चुप थी कि बेटी की कामवासना भी शांत हो रही थी और नौकरी भी चल रही थी।
औरत की चुदाई की कहानी कैसी लगी, मुझे मेल करें! राज शर्मा [email protected]
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