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लेखक के विचार:- पिछले कुछ हफ़्तों से मेरे पाठकगण कुछ ढीले पड़ गए हों ऐसा मुझे लग रहा है। उनकी प्रतिक्तियाएँ बहुत ही कम हो गयीं हैं। सकारात्मक की जगह नकारात्मक वोट ज्यादा दिख रहे हैं। शायद कहानी कुछ बोर सी हो गयी है।
अगर ऐसा है तो मैं इसे ख़त्म कर देता हूँ। आपकी और मेरी हम दोनों की जान छूटेगी। अगर आपकी प्रतिक्रियाएं नहीं मिली तो मैं इसे समाप्त करना चाहता हूँ। —— अब वापस कहानी पर
गर्मी और पसीने के मारे जस्सूजी, सुनीलजी और सुनीता, तीनों की हालत खराब थी। ऊबड़खाबड़ रास्ते पर इतना लंबा सफर वह भी घोड़े पर हाथ पाँव बंधे हुए करना थकावट देने वाला था। सुनीता लगभग बेहोशी की हालत में थी।
एक तो इतना लंबा सफर उपरसे कालिया की पुरे सफर के दौरान सुनीता के बूब्स को दबाना और जाँघों पर हाथ फिराते फिराते सुनीता की चूत तक हाथ ले जाना और मौक़ा मिलने पर पैंटी उठाकर चूत के अंदर उंगली घुसाने की कोशिश करते रहना बगैरह हरकतों से सुनीता एकदम थक चुकी थी।
जस्सूजी के बारेमें सोचते हुए कई बार सुनीता उत्तेजित भी हो जाती थी और एकाध बार तो झड़ भी चुकी थी। उपर से कालिया के अजगर जैसे लम्बे और मोटे लण्ड से निकली हुई उसकी चिकनाहट ने सुनीता के पूरा हाथ को चिकनाहट से भर दिया था।
जब जस्सूजी ने कहा की उन्हें भाग निकलना चाहिए तो सुनीता को उस मुसीबत के दरम्यान भी हँसी आगयी। जस्सूजी ऐसे बात कर रहे थे जैसे बाहर निकलना बच्चों का खेल हो। बाहर कालिया भैंसे जैसा पहलवान बैठा था, जिसके हाथ में भरी हुई बंदूक थी।
उपर से कर्नल नसीम ने बात बात में उन्हें सावध कर दिया था की बाहर ही उन्होंने भयानक हाउण्ड भूखे छोड़ रखें हैं, जिनको जस्सूजी के बदन की भली भाँती पहचान थी। जाहिर है की बाहर और भी सिपाही लोग पहरा दे रहे होंगे। ऐसे में भाग निकलने का तो सवाल ही नहीं था।
कुछ ही देरमें किसीने उनका दरवाजा खटखटाया। एक चौकीदार तीन प्लेट्स और खाना लेकर आया। उसने मेज पर खाना लगा दिया। खाना सजा कर पहरेदार झुक कर चला गया। सुनीता और सुनीलजी जस्सूजी की और देख ने लगे।
जस्सूजी ने कहा, “देखो कहावत है ना की बकरे को मारने के पहले अच्छा खासा खिलाया पिलाया जाता है। चलो आज रात को तो खापी लें।
सबने मिलकर खाया।
सुनीता को कुछ आराम करने की जरुरत थी। सुनीता कमरे के साथ में ही लगे गुसलखाने (बाथरूम) में गयी। बाथरूम साफ़ सुथरा था। बाल्टी में ठंडा साफ़ पानी भी था। सुनीता का नहाने का मन किया। पर सवाल था की नहाने के बाद पोंछे किस से और कपड़ा क्या बदलें?
सुनीता ने अपने पति सुनीलजी को इशारा किया और पास बुलाया। सुनीता ने कहा, “मुझे नहाना है। साफ़ होना है। उस गंदे बदबूदार कालिये ने पुरे रास्ते में मेरी जान ही निकाल ली है। मुझे इतना गंदा सा फील हो रहा है। पर क्या करूँ? ना तो कोई तौलिया है और ना ही कोई बदलने के लिए कपड़ा।”
सुनीलजी ने कहा, “देखो, हम कोई पांच सितारा होटल में नहीं ठहरे हैं। यह जेल है। भगवान् इनका भला करे की इन्होने हमें इतनी भी सहूलियत दी है। वह सोच रहे होंगे की शायद हमें सहूलियत देने से हम उनको सारी खुफिया खबर यूँ ही दे देंगे। खैर जहां तक बात है तौलिये की और कपडे बदलने की, तो तुम नहा कर इन्हीं कपड़ों से पोंछ लेना और इन्हें सुखाने के लिए रख देना। इतनी गर्मी में यह जल्द ही सुख जाएंगे।”
सुनीता ने अपने पति की और अचम्भे से देखा और बोली, “तुम पागल हो? अरे मैंने अगर कपडे भिगोये और सुखाने के लिए रक्खे तो फिर मैं क्या पहन के सोऊंगी?”
सुनीलजी ने कहा, “रोज कौन से कपडे पहन कर सोती हो?”
सुनीता ने अपने पति की और देखा और बोली, “तुम्हारा जवाब नहीं। अरे एक ही तो पलंग है। और सोने वाले हैं हम तीन। कोई पर्दा भी नहीं है। तो क्या मैं जसस्सूजी के साथ नंगी सो जाऊं?”
सुनीलजी ने कड़ी नज़रों से सुनीता की और देखा और बोले, “वह सब तुम जानो। अगर नंगी सो भी जाओगी तो यकीन मानो जस्सूजी तुम पर चढ़ जाकर तुम्हें चोदेंगे नहीं। हम एक आपात स्थिति में हैं। यहां हम सब यह सोचकर नहीं आये।”
सुनीता ने एक गहरी साँस ली। पति के साथ बात करना बेकार था। सुनीता ने कहा, “चलो ठीक है, सबसे पहले आप लोग नहा लो या फ्रेश हो जाओ। फिर मैं सीचूंगी मुझे क्या करना है।”
सबसे पहले जस्सूजी बाथरूम में गए और नहा कर जब बाहर निकले तो उन्होंने एक छोटी सी निक्कर पहन रक्खी थी, अंदर के बाकी कपडे धो कर निचोड़ कर पलंग पर ही उन्होंने इधर उधर लटकाये। उन्होंने अपना यूनिफार्म जराभी गिला नहीं किया।
सुनीता जस्सूजी के करारे बदन को देखती ही रही। उनके बाजुओं के शशक्त माँसपेशियाँ, उनका लंबा कद, उनके घने घुंघराले बाल और छाती पर बालों का घना जंगल कोई भी स्त्री को मोहित करने वाला था। निक्कर में से उनका फनफनाते लण्ड का आकार साफ़ साफ़ दिख रहा था।
जस्सूजी की सपाट गाँड़ और चौड़े सीने के निचे सिमटा हुआ कई सिलवटदार पेट जस्सूजी की फिटनेस का गवाह था। जाहिर था की वह किसी भी औरत को चुदाई कर के पूरी तरह संतुष्ट करने में शक्षम लग रहे थे।
सुनीलजी भी नहाकर जस्सूजी की ही तरह निक्कर पहनकर आगये। सुनीलजी की निक्कर गीली होने से उनका लण्ड तो जैसे नंगा सा ही दिख रहा था। सुनीता ने उन्हें एक हल्का सा धक्का मारकर हलकी सी हंसी दे कर जस्सूजी ना सुने ऐसे कहा, “अरे तुम देखो तो, तुम्हारा यह घण्टा कैसा नंगा दिखता है।”
सुनीलजी ने भी हंसी हंसी में सुनीता के कानों में कहा, “अच्छा? तू हम दोनों के घण्टे ही देखती रहती हो क्या?” फिर वह पलंग पार जा कर लेट गए। अपने पति की बात सुनकर शर्म से लाल लाल हुई सुनीता आखिर में नहाने गयी।
सुनीता का पूरा बदन दर्द कर रहा था। उसकी कमर घुड़ सवारी से टेढ़ी सी हो गयी थी। पुरे रास्ते में कालिया का मोटा लण्ड सुनीता की गाँड़ को कुरेद रहा था।
अगर सुनीता के हाथ पीछे बंधे ना होते तो शायद वह कालिया सुनीता की पैंटी ऊपर करके अपना मोटा लण्ड सुनीता की गाँड़ में डाल ही देता।
हर बार जब कालिया सुनीता की कमर से उसका स्कर्ट ऊपर और पैंटी निचे खिसका ने की कोशिश करता, सुनीता उसका हाथ पकड़ लेती, जिससे कालिया सुनीता के चिल्लाने के डर से कुछ नहीं कर पाया था।
सुनीता ने बाथरूम में जाने के पहले कमरे की सारी बत्तियां बुझा दीं। फिर बाथरूम का दरवाजा बंद कर सारे कपडे निकाल कर पानी और साबुन रगड़ रगड़ कर अपना बदन साफ़ किया। वह कालिये की पसीने और उसके लण्ड की चिकनाहट की बदबू से निजाद पाने की कोशिश में थी।
अच्छी तरह साफ़ होने के बाद सुनीता सिर्फ अपनी पैंटी पहन कर बाहर निकली। उसने अपनी स्कर्ट और टॉप अच्छी तरह धो कर निचोड़ कर अपने साथ लेली ताकि उसे कहीं सूखा सके।
नहा कर बाहर निकलते हुए सुनीता ने जब हलके से बाथरूम का दरवाजा खोल कर देखा की कमरे में अन्धेरा था। सुनीता चुपचाप पलंग की और अपने पति के पास पहुंची।
जैसे जैसे सुनीता की आँखें अँधेरे से वाकिफ हुईं तो उसे कुछ कुछ दिखने लगा। सुनीता ने देखा की जस्सूजी सोये नहीं थे बल्कि बैठे हुए थे। ब्रा और पैंटी पहने हुए होने के कारण सुनीता को बड़ी शर्म महसूस हो रही थी। शायद जस्सूजी की आँखें बंद थीं।
सुनीता बिना आवाज किये कम्बल के अंदर अपने पति के साथ घुस गयी। उसका हाथ अपने पति की निक्कर में फ़ैल रहे लण्ड से टकराया।
जस्सूजी सुनीलजी की दूसरी तरफ बैठे हुए कुछ गहरी सोच में डूबे हुए लग रहे थे। सुनीता के पलंग में घुसते ही सुनीलजी ने सुनीता की भारी सी चूँचियों को सहलाने लगे।
इतनी ही देर में सब चौंक गए जब बाहर से कालिया की “सुनीता…. सुनीता” गुर्राने की आवाज सुनाई पड़ी।
कालिया की आवाज सुनकर सुनीता डर के मारे कम्बल में घुस गयी। तब अचानक चुटकी बजा कर जस्सूजी बोले, “मेरी बात ध्यान से सुनो। हम यहां से बाहर निकल कर भाग सकते हैं। और वह भेड़िये हाउण्ड भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे।”
जस्सूजी की बात सुनकर सुनीलजी और सुनीता अचम्भे से उन्हें सुनने के लिए तैयार हो गए। जस्सूजी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, “अगर सुनीता हमारी मदद करे तो।”
जस्सूजी की बात सुनकर सुनीलजी बोले, “हाँ सुनीता मदद क्यों नहीं करेगी? क्या रास्ता है, बताओ तो?”
जस्सूजी ने कहा, “सुनीता को कालिया के पास जाना होगा। उसे फाँसना होगा।”
जस्सूजी की बात सुनकर सुनीता अकुला कर बोली, “कभी नहीं। अगर मैं उसके थोड़ी सी भी करीब गयी तो वह राक्षस मुझे छोड़ेगा नहीं। मैं जानती हूँ पुरे रास्ते मैंने क्या भुगता है। वह वहीं का वहीं मुझ पर बलात्कार कर मुझे मार डालेगा।”
सुनीता को रस्ते की आपबीती कहाँ भूलने वाली थी? सारे रास्ते में कालिया सुनीता को यही कहता रहता था, “सुनीता, मेरी जान तू मुझे एक बार चोदने का मौक़ा देदे। मेरे इस लण्ड से मैं तुझे ऐसे चोदुँगा की इसके बाद तुझे बाकी सारे लण्ड फ़ालतू लगेंगे। उसके बाद तू सिर्फ मुझ से ही चुदवाना चाहेगी। मेरी बात मानले, आज रात को मैं चुपचाप तुझे चोदुँगा और किसीको कानो कान खबर भी नहीं होगी। बस एक बार राजी हो जा।”
यह सुनकर सुनीता के कान पक गए थे। चुदवाना या फाँसना तो दूर, सुनीता उस कालिये की शकल भी देखना नहीं चाहती थी।
जस्सूजी ने कहा, “सुनीता, मेरा प्लान १००% सफल होगा। बस तुम्हें थोड़ी हिम्मत और धीरज रखनी होगी। समझा करो। बाहर कालिया बंदूक ले कर बैठा हुआ है। गली में भेड़िये जैसे भूखे हाउण्ड हमारा इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में हम कैसे बाहर निकलेंगे? यहां से छटक ने का सिर्फ एक ही रास्ता है। कालिया तुम पर फ़िदा है। अगर तुम उसे कुछ भी समझा बुझा कर पटा लोगी तो हम निकल पाएंगे। मेरी बात मानो और कालिया को ललचाओ।”
सुनीता ने जस्सूजी की बात का कोई जवाब नहीं दिया। तब सुनीलजी बोले, “देखो डार्लिंग! या तो हम यहाँ सारी रात गुजारें और कल इन लोगों की मार खाएं। सबसे बुराहाल तो तुम्हारा होगा। एक बार यह लोग समझ गए की हम उनकी बात नहीं मानने वाले हैं तो यह लोग एक के बाद एक या तो कई लोग एक साथ तुम्हारे सुन्दर बदन को भूखे भेड़िये समान नोंच नोंच कर चींथड़े कर देंगे। बाकी तुम जानो।”
सुनीता अपने पति की बात सुनकर डर के मारे काँपने लगी। उसे अपनी आँखों के सामने अन्धेरा दिखने लगा। उसे लगा की उसके लिए तो एक और कुआं था तो दूसरीऔर खाई। अगर पति की बात मानी तो पता नहीं यह कालिया उसके साथ क्या क्या करेगा। और नहीं मानी तो क्या हुआ यह तो बता ही दिया था।
सुनीता ने अपने पति सुनील से कहा, “तुम्हें पता है, मेरे साथ पुरे रास्ते में वह कालिया ने क्या क्या किया? उसने मेरे पुरे बदन को नोंचा, मेरे पिछवाड़े को अपने आगे से खूब कुरेदा और अपने हाथों से मेरी छाती को मसल मसल कर मेरे सीने को लाल लाल कर दिया। पुरे रास्ते वह मुझे मनाता रहा की मैं उसके साथ एक रात गुजारूं।
मुझे मरना है की मैं उसके साथ एक मिनट भी गुजारूं। बापरे मेरे बंधे हाथ में उसने अपना गवर्नर पकड़ा दिया था। बापरे, कितना बड़ा और मोटा था उसका गवर्नर! पता नहीं इसकी कोई बीबी है या नहीं।
पर अगर है तो वह एक भैंस जैसी ही होगी क्यूंकि इस कालिये का लेना कोई साधारण औरत का काम नहीं है। अब उसके साथ एक पल बिताना मेरे लिए पॉसिबल नहीं है। आई एम् सॉरी।”
सुनीता का डर देखकर जस्सूजी ने कहा, “सुनीता, डरो मत। तुम्हारे साथ कुछ नहीं होगा। मेरी बात ध्यान से सुनो।” उसके बाद जस्सूजी ने सुनीता को अपना प्लान बताया। जस्सूजी की बात सुनकर सुनीता को कुछ तसल्ली हुई। सुनीता अपने पति सुनीलजी की बाँहों में कुछ देर आराम कर ने के लिए सो गयी।
हालांकि बार बार बाहर से कालिया की “सुनीता…… सुनीता……. ” की आवाज सुनाई दे रही थी। जस्सूजी वैसे ही बैठे हुए सोच में डूबे हुए सही समय का इंतजार कर रहे थे। सुनीलजी भी इस ट्रिप में क्या क्या रोमांचक और खतरनाक अनुभवों के बारे में सोचते हुए अपनी बीबी की चूँचियों को सहलाते हुए तंद्रा में पड़े रहे।
रात बीती जा रही थी। सुनीता ठाक के मारे कुछ ही मनटों में गहरी नींद सो गयी। जस्सूजी की आँख में नींद का नामो निशाँ नहीं था। सुनीलजी कभी सो जाते तो कभी जाग जाते। बाहर से काइये की “सुनीता…… सुनीता…..” की पुकार कुछ मिनटों बाद सुनाई देती रहती थी।
कुछ देर बाद सुनीता को जस्सूजी ने जगाया। सुनीता गहरी नींद में से चौंक कर जागी। काफी रात हो चुकी थी। रात के करीब बारह बजने वाले थे। जस्सूजी ने सुनीता को इशारा किया।
सुनीता दबे पाँव दरवाजे के पास गयी और उसने धीरे से अंदर का लकड़ी का दरवाजा खोला। बाहर का लोहे का दरवाजा बंद था। दरवाजे के बाहर कालिया अपनी बन्दुक हाथ में लिए बैठा था।
सुनीता ने अंदर से “छी. … छी…. ” आवाज कर के कालिया को बुलाया। कालिया ने फ़ौरन देखा तो सुनीता को लोहे के दरवाजे के अंदर देखा। सुनीता ने अपना हाथ बाहर निकल कर कालिया को नजदीक आने का इशारा किया।
कालिया कुछ देर तक सुनीता के हाथ को देखता ही रहा। वह शायद इस असमंजस में था की वह दरवाजे के नजदीक जाए या नहीं। उसे डर था की कहीं इन लोगों के पास कुछ हथियार तो नहीं जिनसे वह उसको मारने का प्लान कर रहे हों।
पर जब उसने देखा की सुनीता सिर्फ ब्रा और पैंटी पहने खड़ी थी तो उससे रहा नहीं गया और वह उठकर सुनीता के पास गया।
सुनीता ने अपने होँठों पर उंगली रखते हुए धीमे आवाज में कहा, “सुनो, बिलकुल आवाज मत करो। अंदर मेरे पति और कर्नल साहब गहरी नींद सो रहे हैं, आवाज से कहीं वह जाग ना जाएँ। मैं अभी उनको गहरी नींद सुला कर आयी हूँ।’
फिर कालिया को और करीब बुलाकर लोहे का दरवाजा खोले बिना अंदर से ही एकदम धीरे से बोली, “देखो, मुझे तुम बहुत पसंद हो। मुझे तुम्हारा गर्म बदन बहुत पसंद है। पुरे रास्ते में तुमने मुझे बहुत मजा कराया। तुम्हारा वह जो है ना? अरे वह…? वह बहुत बड़ा और लंबा है। मैंने रास्ते में हिलाया तो मुझे बहुत अच्छा लगा। क्या तुम मुझसे ….. करना चाहते हो? क्या तुम जो कहते थे की तुम मुझे खूब मजे कराओगे वह करा सकते हो? तुम्हारे बॉस नाराज तो नहीं हो जाएंगे? यहाँ और कोई पहरे दार तो नहीं की हम पकडे जाएंगे? मैं किसीसे नहीं कहूँगी। बोलो?”
कालिया सुनीता को हक्काबक्का देखता ही रह गया। उसकी समझ में नहीं आया की इतनी खूबसूरत लड़की कैसे उससे इतनी जल्दी पट गयी।
सुनीता ने उसके शक को दूर करने के लिए कहा, “देखो आज तक मुझे किसीने इतने बड़े लण्ड से सेक्स नहीं किया। मैं हमेशा बड़े लण्ड वाले से सेक्स करना चाहती थी। मेरे पति का लण्ड एकदम छोटा है। मुझे बिलकुल मजा नहीं आता। क्या तुम मुझे चोदोगे?” सुनीता ने तय किया की वह राक्षस सीधी बात ही समझेगा। सेक्स बगैरह शब्द वह शायद ना समझे।
कालिया का चेहरा यह सुन कर खिल उठा। उसका तो जीवन जैसे धन्य हो गया। आजतक उसने खूबसूरत औरतों को चोदने के सपने जरूर देखे थे। पर हकीकत में उसने कभी सपने में भी यह सोचा नहीं था की एक दिन ऐसी हसीना उसे सामने चलकर चुदवाने का न्यौता देगी।
कालिया ने लोहे के दरवाजे स मुंह लगा कर कहा, “देखो, तुम बाहर आ जाओ। मेरा घर बाजू में ही है। वहाँ कोई चौकीदार नहीं है। हम पिछले वाले दरवाजे से जाएंगे। यहां से जैसे निकालेंगे ना उसके बाद तुरंत बाएं में एक दरवाजा है। मेरे पास उसकी चाभी है। उसको खोलते ही मेरा घर है। हम वहाँ चलते हैं।”
सुनीता ने अंदर की और देख कर कहा, “नहीं। तुम अंदर आजाओ। बाहर कोई भी हमें देख सकता है। मेरे पति और कर्नल साहब गहरी नींद सो रहे हैं। तुम आ जाओ और मेरी भूख शांत करो।”
कालिया कुछ देर सोचता रहा तब सुनीता ने कहा, “ठीक है। लगता है तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है। तो मैं फिर सो जाती हूँ। अगर तुम मेरी चुदाई कर मेरी भूख शांत करना नहीं चाहते हो तो मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं। कल मैं तुम्हारे जनरल साहब को कहूँगी की तुमने मेरे साथ क्या क्या किया था।”
कालिया ने सोचा नेकी और पूछ पूछ? जब यह इतनी खूबसूरत औरत सामने चलकर चूदवाने का न्योता दे रही है और ऊपर से धमकी दे रही है की अगर उसको नहीं चोदा तो वह शिकायत कर देगी, तो फिर सोचना क्या? उसके पास बन्दुक तो थी ही, तो फिर अगर कुछ गड़बड़ हो गयी तो वह उनको गोली मार देगा।
यह सोच कालिया ने कहा, “ठीक है। तुम दरवाजा खोलो।“ सुनीता के लोहे के दरवाजा खोलते ही कालिया अपनी बन्दुक लेकर डरते डरते कमरे के अंदर दाखिल हुआ। कालिया ने सावधानी से चारों तरफ देखा। चारों तरफ एकदम शान्ति थी। कोई हलचल नहीं थी…
पलंग पर से दोनों मर्दों की खर्राटें सुनाई दे रही थी। दरवाजे के पास ही गद्दा बिछा हुआ था। उस गद्दे पर सुनीता सोइ होगी ऐसा कालिया ने मान लिया। उसे अँधेरे में कुछ ज्यादा साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था…
अंदर आते ही कालिया ने अपनी बन्दुक दरवाजे से थोड़ी अंदर की दीवार के सहारे रक्खी और सुनीता को अपनी बाहों में लेने के लिये सुनीता की और कमरे के अंदर आगे बढ़ा।
कालिया जैसे ही सुनीता के करीब पहुंचा की जस्सूजी और सुनीलजी दोनों पलंग पर रक्खे गद्दे को लेकर कालिया पर टूट पड़े। एक ही जबर दस्त झटके में दोनों ने कालिया को गिरा दिया और गद्दे में दबोच लिया जिससे उसके मुंह से कोई आवाज निकल ना सके।
सुनीता ने फ़ौरन बन्दुक अपने हाथों में ले ली। जस्सूजी ने फ़टाफ़ट गद्दा हटाया और सुनीता के हाथों से बन्दुक लेकर कालिया की कान पट्टी पर रख कर बोले, “अगर ज़रा सी भी आवाज की तो मैं तुझे भून दूंगा। मैं हिन्दुस्तानी सेना का सिपाही हूँ और दुश्मनों को मारने में मुझे बड़ी ख़ुशी होगी। तुम अगर अपनी जानकी सलामती चाहते हो तो हमें यहां से बाहर निकालो। क्या तुम हमें बाहर निकालोगे या नहीं?”
कालिया ने कर्नल साहब की और देखा। उस अँधेरे में भी उसे कर्नल साहब का विकराल चेहरा दिखाई दे रहा था। वह समझ गया की कर्नल साहब कोरी धमकी नहीं दे रहे थे। कालिया ने फ़ौरन कर्नल साहब को अपना सर हिला कर कहा, “ठीक है।”
कर्नल साहब ने कालिया की कान पट्टी पर बंदूक का तेज धक्का देकर कहा, “चलो और अपने कुत्तों को शांत करना वरना तुम्हें और उन्हें दोनों को गोली मार दूंगा।”
कालिया आगे और उसके पीछे कर्नल साहब कालिया की कान पट्टी पर बंदूक सटाये हुए और उनके पीछे सुनीलजी और सुनीता चल पड़े। वही रास्ता जो कालिया ने सुनीता को बताया था उसी रास्ते पर कालिया सबको अपने घर के पास ले गया।
अचानक दोनों हाउण्ड कर्नल साहब की गंध सूंघते ही भागते हुए वहाँ पहुंचे। कालिया ने झुक कर उन हाउण्ड का गला थपथपाया तो वह हाउण्ड वहाँ से चले गए। वह हाउण्ड कालिया को भली भाँती जानते थे।
जब कालिया ने उनका गला थपथपाया तो वह समझ गए की अब उनको कर्नल साहब की गंध के पीछे नहीं दौड़ना है। अब यह आदमी उनका दोस्त बन गया था ऐसा वह समझ गए।
हाउण्ड से निजात पाते ही कालिया उन्हें लेकर आगे की और चल पड़ा। थोड़ा चलते ही वही नदी आ गयी जिसके किनारे किनारे वह काफिला आया था।
जैसे ही सब नदी के किनारे पहुंचे, कर्नल साहब ने अचानक ही बंदूक ऊपर की और उठायी और फुर्ती से बड़े ही सटीक चौकसी से और बड़ी ताकत से कालिया को सतर्क होने का कोई मौक़ा ना देते हुए बंदूक का भारी सिरा कालिया के सर पर दे मारा।
कालिया के सर पर जैसे ही बंदूक का भारी सिरा लगा, तो कालिया चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़ा। कालिया की कानपट्टी से खून की धार निकल पड़ी। इतने जोर का वार कालिया बर्दाश्त नहीं कर पाया। एक उलटी कर कालिया वहीँ ढेर हो गया।
सुनीलजी और सुनीता ने जस्सूजी का ऐसा भयावह रूप पहले नहीं देखा था। उनके चेहरे पर हैरानगी देख कर कर्नल साहब ने कहा, “यह लड़ाई है। यहाँ जान लेना या देना आम बात है। अगर हम ने इसको नहीं मारा होता तो वह हम को मार देता। अब हमें इसकी बॉडी को ऐसे ठिकाने लगाना है जिससे वह दुश्मन के सिपाहियों को आसानी से मिल ना सके ताकि पहले दुश्मन कालिया की बॉडी ढूंढने में अपना काफी वक्त गँवाएँ। और हमें कुछ ज्यादा वक्त मिल सके।” जस्सूजी का सोचने का तरिका सुनकर सुनीता जस्सूजी की कायल हो गयी।
जस्सूजी ने कालिया की बॉडी को टांगों से नदी की और घसीटना चालु किया। सुनीलजी भी जस्सूजी की मदद करने आ गए। दोनों ने मिलकर कालिया की बॉडी को नदी के किनारे एक ऐसी जगह ले आये जहां से उन्होंने दोनों ने मिलकर उसे उछालकर निचे नदी में फेंक दिया। नदी के पानी का बहाव पुर जोश में था। देखते ही देखते, नदी के बहाव में कालिया की बॉडी गायब हो गयी।
वैसे ही चारों और काफी अन्धेरा था। आकाश में काले घने बादल छाने लगे और बूंदा बांदी शुरू हो गयी थी। आगे रास्ता साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। दिन की गर्मी की जगह अब ठंडा मौसम हो रहा था। जस्सूजी ने सुनीलजी का हाथ थामा और उनके हाथों में कालिया की बंदूक थमा दी।
जस्सूजी ने सुनीता को कहा, “सुनीता तुम सबसे आगे चलो। मैं तुम्हारे पीछे चलूँगा। आखिर में सुनीलजी चलेंगे। हम सब पेड़ के साथ साथ चलेंगे और एक दूसरे के बिच में कुछ फैसला रखेंगे ताकि यदि दुश्मन की गोली का फायरिंग हो तो छुप सकें और अगर एक को लग जाए तो दुसरा सावधान हो जाए।”
फिर जस्सूजी सुनीलजी की और घूम कर बोले, “सुनीलजी अगर हमें कुछ हो जाये तो आप इस बंदूक को इस्तेमाल करने से चूकना नहीं। अब हमें बड़ी फुर्ती से भाग निकलना है। हमारे पास ज्यादा से ज्यादा सुबह के पांच बजे तक का समय है। शायद उतना समय भी ना मिले। पर सुबह होते ही सब हमें ढूंढने में लग जाएंगे। तब तक कैसे भी हमें सरहद पार कर हमारे मुल्क की सरहद में पहुँच जाना है।”
आगे की कहानी आपको तभी पढने को मिलगे जब आप अपनी प्रतिक्रिया निचे कमेंट्स में या मुझे ईमेल में लिखेंगे, धन्यवाद!
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