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गे सेक्स स्टोरी: गांड की चुदाई के शौकीन-1
अब तक आपने मेरी इस गे सेक्स स्टोरी में पढ़ा था कि मेरा एक वकील दोस्त मिल गया था जो मेरी गांड की चुदाई करने में झिझक रहा था। अब आगे..
मैं उससे चार-पांच साल बाद मिला था.. उसका मस्त लंड मुझे आकर्षित कर रहा था। अब उसका लंड पहले से ज्यादा बड़ा लग रहा था। फिर मेरे ऑफिस वाले साहब ने भी मेरी गांड पर हाथ फेर-फेर कर मुझे उत्तेजित कर दिया था।
मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसे अपनी गांड पर रख दिया। मैं उसका लंड पकड़े हुआ था। मैंने उसके लंड पर अपने हाथ से दो-तीन जोरदार झटके दिए। अब उसका हथियार तैयार था.. वह मेरी गांड मारने के लिए मान गया। वह बोला- लेटोगे? मैंने कहा- कुछ बिछाने को है?
फिर मैंने कमरे में टेबल पर ही अपना सिर सीना और पेट रख लिया। मैं टेबल पर अधलेटा हो गया। मेरी गांड उसकी तरफ थी.. उसने लंड टिका दिया। बोला- लगाने को कुछ चिकना नहीं है। मैंने कहा- नई गांड नहीं है.. तूने कई बार मारी है, तूने कई बार मरवाई है, क्या मेरी हर बार क्रीम लगा कर मारी?
वह मेरे चूतड़ पकड़े चिंतित था। मैंने कहा- थूक लगा कर पेल दे। उसने लंड पर थूक लगाया और गांड पर टिकाया और धक्का दिया। लंड घुसते ही मेरे मुँह से निकला ‘आ.. आ.. आ..’ बहुत दिनों बाद मेरी गांड को लंड नसीब हुआ। फिर उसने एक धक्का और लगाया.. मैंने भी गांड का जोर लगाया ‘ई.. ई..’
अब वह डाल कर रूक गया था। फिर उसने धक्के शुरू किए.. अन्दर-बाहर.. अन्दर-बाहर.. अब वह मस्ती में आ गया था। ताबड़तोड़ धक्के पर धक्के ‘धच्च.. धच्च.. फच्च फच्च..’ गांड मारने की आवाज आ रही थी।
मैंने आंखें बन्द कर लीं और अपना सर टेबिल पर टिका दिया। उसके हर धक्के पर मेरे भी मुँह से आवाज निकलती। ‘आ.. आ.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… ई.. ऊह..’
मैं अपनी गांड बार-बार टाईट ढीली.. टाईट ढीली.. कर रहा था। फिर थक कर ढीली करके टांगें चौड़ी करके रह गया। उसके झटके गांड फाड़ू हो गए.. टेबिल बुरी तरह हिल रही थी। वह भी हांफने लगा था.. फिर रूक गया, मैं समझा शायद झड़ गया। मैंने पूछा- क्यों बे क्या है..? झड़ गए क्या? वह बोला- नहीं बे.. थोड़ा दम ले लूं।
दो पल बाद उसके धक्के जोरदार हो गए ‘दे दनदना दन दन धच्च धच्च फच्च फच्च..’ वह हाँफ रहा था ‘हू हूहू हू हा हा..’ उसका गरम-गरम लंड मेरी गांड में ऐसे डला हुआ था जैसे हीटर की रॉड हो। उसकी जोरदार चुदाई से गांड गरम हो गई और हल्का-हल्का दर्द होने लगा था।
पर इसमें जो मजा आ रहा था.. उसके मुकाबले दर्द भी मजा देने लगा। मैं डर गया कि बंदा झड़ न जाए, मैंने कहा- थोड़ा रूक जा। वह बोला- क्यों गांड दर्द करने लगी क्या? तुम्हीं तैयार थे.. अब बीच में रूकने को कह रहे हो.. थोड़ा सबर करो।
मेरा मन प्रसन्न हो गया कि बंदा जोश में है, मैंने मन में कहा- लगे रहो। पर वह थोड़ा रूक गया और बोला- निकाल लूं? मैंने कहा- निकालो नहीं, बस थोड़ा रूक जाओ। वह मेरे चूतड़ मसलने लगा.. बोला- यार बहुत टाईट है.. तू बहुत मजबूत हो गया है। मैंने कहा- तू.. रगड़ दे साली गांड को ढीली करके फेंक दे, लंड के लिए बहुत मचलती है। वह बोला- यह भी नहीं कर सकता, अगर तू खुद तैयार न होता तो तेरी गांड में लंड पेलना मुश्किल है। जब तू गांड सिकोड़ता है तो लगता है लंड कट जाएगा। बहुत ताकत है.. मैं मजाक नहीं कर रहा.. मुझे अन्दर करने में बहुत जोर लगाना पड़ रहा है। तेरे पुटठों में बहुत दम है.. बहुत दम है।
वह हाँफ रहा था… पसीने-पसीने था.. शायद वह भी दम ले रहा था।
इतने उसका लंड मेरी गांड में से निकल गया.. मेरे लिए यही बहुत बड़ी बात थी कि वह झड़ा नहीं था। करीब बीस मिनट से लगा था.. मेरी गांड में पेले जा रहा था.. उसने मजा बांध दिया.. मेरी गांड तृप्त हो गई। गांड कुछ गरम भी हो गई थी और चिनमिना रही थी।
फिर उसने दुबारा पेला.. दो-तीन धक्के लगाए कि उसका लंड एकदम सिकुड़ कर गांड से बाहर आ गया। वह अलग होकर एकदम बाथरूम की ओर भागा। मैं कुछ समझ नहीं पाया.. कि क्या हुआ।
तभी मैंने इधर मुड़ कर देखा तो एक जवानी की दहलीज पर कदम रखता हुआ हल्के सांवले रंग का मस्त खूबसूरत स्वस्थ नमकीन सा लड़का चाय की एलुमिनियम की केतली लिए खड़ा था। वह शायद पन्द्रह मिनट से गांड मराई की नौटंकी देखते हुए चुपचाप खड़ा था। उसे भी देखने में मजा आ रहा था। हम गांड मराई के जोश में ऑफिस के दरवाजे बंद करना भूल गए थे। वह एक गन्दा सा लोअर पहने था व वैसी ही एक टी-शर्ट पहने था। मैं सीधा खड़ा हो गया मेरा लंड अभी बाहर लटक रहा था। लड़का उसे देखने लगा तो मैं मुस्कुरा दिया। वह भी मुस्कुरा दिया तो मैंने देखा लोअर में से उसका भी लंड खड़ा था।
मैंने उससे कहा- चाय टेबल पर रख दो। उसने रख दी। फिर मैंने उसकी बांह पकड़ कर अपने पास खींचा और उसके लोअर के ऊपर से उसका लंड सहला दिया।
वह मुस्कुरा दिया तो मैंने उसका लोअर नीचे कर दिया। फिर उसका लंड पकड़ के हिलाया और घुटने के बल बैठ कर उसका लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगा.. वह खुश हो गया था। मैं खड़े होकर उसका मुँह चूमने लगा और थूक से भीगी उंगली उसकी गांड में डाल दी। लौंडा थोड़ा उछला.. पर मैंने उसे अपने से चिपका लिया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए।
अब वकील साहब बाथरूम में से झांके.. वे बुरी तरह पसीना-पसीना थे। मैंने कहा- महाराज.. बाहर आ जाओ और किवाड़ लगा आओ। उन्होंने मेरा अनुरोध माना और किवाड़ लगा दिए.. फिर मैंने इधर-उधर देखा।
बड़े वकील साहब की मेनचेयर पर एक मोटा कवर पड़ा था। मैंने उसे उतार कर फर्श पर बिछा कर.. उस पर लड़के को लिटा दिया। वह वकील साहब को देख कर नानुकर करने लगा।
मैंने कहा- घबड़ा मत, वे नहीं मारेंगे, न तेरे से कुछ कहेंगे। वह उस बिछावन पर लेट गया। फिर मैंने वकील से कहा- कुछ चिकनाई देखो वरना सब काम बिगड़ जाएगा.. तुम तो निपट लिए मेरा ख्याल करो।
वकील साहब को कुछ याद आया उन्होंने टेबिल की ड्रावर खोली.. उसमें एक वैसलीन की शीशी निकाली। उसमें थोड़ी सी वैसलीन थी.. मैंने वह शीशी ली। अब लौंडे को जो करवट से था उसे औंधा लिटाया। मैं उसकी जांघों पर घुटनों के बल बैठा पहली बार उसके चूतड़ देखे.. वे मस्त गोल-गोल और गुदगुदे थे। मैंने दोनों हाथों से चूतड़ फैलाए.. तब उसकी गुलाबी गांड दिखी। उसके चारों ओर हल्के-हल्के मुलायम रेशमी बाल थे।
मैंने दोनों चूतड़ जोर से मसले फिर उसकी वह गांड देख कर रूक न पाया और मैंने अपने होंठ लगा दिए व जीभ बढ़ाकर गांड चाट ली। फिर मैंने ढेर सारा थूक लगाया.. अपनी उंगली में वैसलीन लेकर उसकी गांड के चारों तरफ लगाई और चिकनी उंगली गांड में घुसा दी। इसके बाद दो उंगली डालीं.. तो लौंडा थोड़ा चमका.. चूतड़ सिकोड़े तब तक उंगलियां अन्दर हो चुकी थीं। मैंने कही- ढीली रख.. अब नहीं लगेगी।
मैं उंगलियां घुमाता रहा.. फिर निकाल कर लंड पर खूब सारी वैसलीन मली और थूक लपेट दिया। अब मैंने अपना लंड उसकी गांड पर टिकाया। लंड टिकाया ही था कि वह गांड ढीला-कसती करने लगा। मैंने कहा- थोड़ी देर ठहर.. अन्दर तो जाने दे, अभी ढीली कर।
फिर मैंने लंड टिकाया और धक्का दिया। एक ही झटके में सुपाड़ा अन्दर था.. उसने फिर गांड सिकोड़ी। मैंने कहा- ठहर घुसने तो दे.. लगेगी नहीं थोड़ी देर ढीली। गांड की चुदाई की यह हिंदी गे सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
तो रख उसने थोड़ी ढीली की तो पेल दिया। अब आधा ही अन्दर घुसा था कि वह ‘आ… आ…’ करने लगा, दर्द के चलते वो गांड सिकोड़ रहा था.. पर अब लंड अन्दर था सो मैंने तेज धक्का दे दिया। मेरा पूरा लंड अन्दर हो गया। वह चिल्लाया- बस बस.. सर बहुत बड़ा है.. गांड फट जाएगी। मैं रुक गया.. उसकी बगल से बांहें डाल कर चिपक गया। उसके कान के पास अपना मुँह ले जाकर बोला- अरे यार गांड मराने के पहले थोड़ी लगती है, फिर मजा आता है।
मैंने उसका एक चुम्बन लिया.. जब तुम कहोगे तभी शुरू करूंगा.. ठीक है! अब तो नहीं लग रही.. थोड़ी टांगें चौड़ी कर लो। उसने टांगें फैला दीं। ‘बस थोड़ी गांड ढीली करो.. हाँ बस अब लेटे रहो।’
इसके बाद मैंने हल्के से धक्के से बचा हुआ लंड और पेल दिया। उसका फिर एक चुम्बन लिया और कहा- अब मुस्कुराओ। उसके दांत निकल आए.. मैंने उसके सर पर हाथ फेरा फिर कान में धीरे से कहा- शुरू करें..?
बिना उसका उत्तर सुने.. मैंने दो-तीन हल्के-हल्के धक्के दे दिए। अब वह प्रसन्न था और उसने अपने धक्के तेज कर दिए। वह टांगें चौड़ाए मस्त लेटा था, मैं बड़े धीरे से आधा लंड निकाल कर बार-बार डाल रहा था। तभी वो बोला- सर जल्दी कर लें.. वरना दुकान वाले बाबा आवाज देने लगेंगे।
मैंने थोड़ी तेज चुदाई शुरू की। वह बोला- सर आपका बहुत बड़ा है मस्त है। मैंने कहा- लग तो नहीं रही? वह बोला- आप धीरे कर रहे हो थोड़ी थोड़ी लग रही है.. पर जल्दी कर लें। ‘अबे ले तो रहा हूँ।’ वह फिर बोला- जल्दी करें।
मैं धकापेल शुरू हो गया.. फिर भी उसका ध्यान रख रहा था.. उसे भी मस्ती छा रही थी।
पर सही बात है, धीरे-धीरे करने से रूक-रूक कर करने से देर तो लगती है। मैं पूरा मजा लेना चाहता था, साथ ही ये भी चाहता था कि ये लड़का भी परेशान न हो। तभी वकील साहब की गांड फटने लगी- यार जल्दी करो.. आधा घंटा हो गया। मैंने कहा- यार दो-तीन झटके जोर के लगा लूं.. तुमने तो मेरी कसके रगड़ी.. मन भर के चोदा.. और मुझे जल्दी करने को कह रहे हो.. कम से कम एक वकील साहब कि हैसियत से मेरे साथ तो इंसाफ करो।
वकील साहब के दांत बाहर आ गए।
वह लड़का मस्त बोला- हां सर कर लें। मैंने कुछ तेज झटके लगाए, फिर मैं झड़ गया… बहुत मजा आया। मैंने उसका एक जोरदार चूमा लिया और हम अलग हुए। वह जाने लगा तो मैंने उसे सौ रूपए दिए- अपने लिए कपड़े ले लेना। वह बोला- इतने कोई नहीं देता, सर! आपको नमस्ते!
लड़का गांड मरा कर चला गया।
वकील साहब बोले- आपने उसे ज्यादा रूपए दे दिए, आदत बिगाड़ रहे हो।
मैंने कहा- वह चाय पिलाने के रेट थोड़े ही बिगाड़े, उसने बहुत मजे भी तो दिए। यह रिर्टन भी कम है।
तब तक ग्यारह बज गए थे, मैं वर्कशॉप चला गया।
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