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ज्योतिजी और सुनीलजी झरने में कूद पड़े और तैरते हुए वाटर फॉल के निचे पहुँच कर उंचाइसे गिरते हुए पानी की बौछारों को अपने बदन पर गिरकर बिखरते हुए अनुभव करने का आनंद ले रहे थे।
हालांकि वह काफी दूर थे और साफ़ साफ़ दिख नहीं रहा था पर सुनीता ने देखा की ज्योतिजी एक बार तो पानी की भारी धार के कारण लड़खड़ाकर गिर पड़ी और कुछ देर तक पानी में कहीं दिखाई नहीं दीं। उस जगह पानी शायद थोड़ा गहरा होगा।
क्यूंकि इतने दूर से भी सुनीलजी के चेहरे पर एक अजीब परेशानी और भय का भाव सुनीता को दिखाई दिया। सुनीता स्वयं परेशान हो गयी की कहीं ज्योतिजी डूबने तो नहीं लगीं।
पर कुछ ही पलों में सुनीता ने चैन की साँस तब ली जब जोर से इठलाते हँसते हुए ज्योतिजी ने पानी के अंदर से अचानक ही बाहर आकर सुनीलजी का हाथ पकड़ा और कुछ देर तक दोनों पानी में गायब हो गए। सुनीता यह जानती थी की ज्योतिजी एक दक्ष तैराक थीं। यह शिक्षा उन्हें अपने पति जस्सूजी से मिली थी।
सुनीता ने सूना था की जस्सूजी तैराकी में अव्वल थे। उन्होंने कई आंतरराष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में इनाम भी पाए थे। सुनीता ने जस्सूजी की तस्वीर कई अखबाओमें और सेना और आंतरराष्ट्रीय खेलकूद की पत्रिकाओं में देखि थी।
उस समय सुनीता गर्व अनुभव कर रही थी की उस दिन उसे ऐसे पारंगत तैराक से तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ सिखने को मिलेंगे। सुनीता को क्या पता था की कभी भविष्य में उसे यह शिक्षा बड़ी काम आएगी।
फिलहाल सुनीता की आँखें अपने पति और ज्योतिजी की जल क्रीड़ा पर टिकी हुई थीं। उनदोनों के चालढाल को देखते हुए सुनीता को यकीन तो नहीं था पर शक जरूर हुआ की उस दोपहर को अगर उन्हें मौक़ा मिला तो उसके पति सुनीलजी उस वाटर फॉल के निचे ही ज्योतिजी की चुदाई कर सकते हैं।
यह सोचकर सुनीता का बदन रोमांचित हो उठा। यह रोमांच उत्तेजना या फिर स्त्री सहज इर्षा के कारण था यह कहना मुश्किल था।
सुनीता के पुरे बदन में सिहरन सी दौड़ गयी। सुनीता भलीभांति जानती थी की उसके पति अच्छे खासे चुदक्कड़ थे। सुनीलजी को चोदने में महारथ हासिल था।
किसी भी औरत को चोदते समय, वह अपनी औरत को इतना सम्मान और आनंद देते थे की वह औरत एक बार चुदने के बाद उनसे बार बार चुदवाने के लिए बेताब रहती थी।
जब सुनीता के पति सुनीलजी अपनी पत्नी सुनीता को चोदते थे तो उनसे चुदवाने में सुनीता को गझब का मजा आता था।
सुनीता ने कई बार दफ्तर की पार्टियों में लड़कियों को और चंद शादी शुदा औरतों को भी एक दूसरी के कानों में सुनीलजी की चुदाई की तारीफ़ करते हुए सूना था। उस समय उन लड़कियों और औरतों को पता नहीं था की उनके बगल में खड़ीं सुनीता सुनीलजी की बीबी थी।
शायद आज उसके पति सुनीलजी उसी जोरदार जस्बे से ज्योतिजी की भी चुदाई कर सकते हैं, यह सोच कर सुनीता के मन में इर्षा, उत्तेजना, रोमांच, उन्माद जैसे कई अजीब से भाव हुए।
सुनीता की चूत तो पुरे वक्त झरने की तरह अपना रस बूँद बूँद बहा ही रही थी। अपनी दोनों जाँघों को एक दूसरे से कस के जोड़कर सुनीता उसे छिपाने की कोशिश कर रही थी ताकि जस्सूजी को इसका पता ना चले।
सुनीता झरने के किनारे पहुँचते ही एक बेंच पर जा कर अपनी दोनों टाँगे कस कर एक साथ जोड़ कर बैठ गयी। जस्सूजी ने जब सुनीता को नहाने के लिए पानी में जाने से हिचकिचाते हुए देखा तो बोले, “क्या बात है? वहाँ क्यों बैठी हो? पानीमें आ जाओ।”
सुनीता ने लजाते हुए कहा,” जस्सूजी, मुझे आपके सामने इस छोटी सी ड्रेस में आते हुए शर्म आती है। और फिर मुझे पानी से भी डर लगता है। मुझे तैरना नहीं आता।”
जस्सूजी ने हँसते हुए कहा, “मुझसे शर्म आती है? इतना कुछ होने के बाद अब भी क्या तुम मुझे अपना नहीं समझती?”
जब सुनीता ने जस्सूजी की बात का जवाब नहीं दिया तो जस्सूजी का चेहरा गंभीर हो गया। वह उठ खड़े हुए और पानी के बाहर आ गए।
बेंच पर से तौलिया उठा कर अपना बदन पोंछते हुए कैंप की और जाने के लिए तैयार होते हुए बोले, “सुनीता देखिये, मैं आपकी बड़ी इज्जत करता हूँ। अगर आप को मेरे सामने आने में और मेरे साथ नहाने में हिचकिचाहट होती है क्यूंकि आप मुझे अपना करीबी नहीं समझतीं तो मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप आराम से ज्योति और सुनीलजी के साथ नहाइये और वापस कैंप में आ जाइये। मैं आप सब का वहाँ ही इंतजार करूंगा।”
यह कह कर जब जस्सूजी खड़े हो कर कैंप की और चलने लगे तब सुनीता भाग कर जस्सूजी के पास पहुंची। सुनीता ने जस्सूजी को अपनी बाहों में ले लिया और वह खुद उनकी बाँहों में लिपट गयी। सुनीता की आँखों से आंसू बहने लगे।
सुनीता ने कहा, “जस्सूजी, ऐसे शब्द आगे से अपनी ज़बान से कभी मत निकालिये। मैं आपको अपने आप से भी ज्यादा चाहती हूँ। मैं आपकी इतनी इज्जत करती हूँ की आपके मन में मेरे लिये थोड़ा सा भी हीनता का भाव आये यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। सच कहूं तो मैं यह सोच रही थी की कहीं मुझे इस कॉस्च्यूम में देख कर आप मुझे हल्कट या चीप तो नहीं समझ रहे?”
जस्सूजी ने सुनीता को अपनी बाहों में कस के दबाते हुए बड़ी गंभीरता से कहा, “अरे सुनीता! कमाल है! तुम इस कॉस्च्यूम में कोई भी अप्सरा से कम नहीं लग रही हो..!
इस कॉस्च्यूम में तो तुम्हारा पूरा सौंदर्य निखर उभर कर बाहर आ रहा है। भगवान ने वैसे ही स्त्रियों को गजब की सुंदरता दी है और उनमें भी तुम तो कोहिनूर हीरे की तरह भगवान की बेजोड़ रचना हो…
अगर तुम मेरे सामने निर्वस्त्र भी खड़ी हो जाओ तो भी मैं तुम्हें चीप या हलकट नहीं सोच सकता। ऐसा सोचना भी मेरे लिए पाप के समान है। क्यूंकि तुम जितनी बदन से सुन्दर हो उससे कहीं ज्यादा मन से खूबसूरत हो…
हाँ, मैं यह नहीं नकारूँगा की मेरे मन में तुम्हें देख कर कामुकता के भाव जरूर आते हैं। मैं तुम्हें मन से तो अपनी मानता ही हूँ, पर मैं तुम्हें तन से भी पूरी तरह अपनी बनाना तहे दिल से चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ की हम दोनों के बदन एक हो जाएँ।
पर मैं तब तक तुम पर ज़रा सा भी दबाव नहीं डालूंगा जब तक की तुम खुद सामने चलकर अपने आप मेरे सामने घुटने टेक कर अपना सर्वस्व मुझे समर्पण नहीं करोगी…
अगर तुम मानिनी हो तो मैं भी कोई कम नहीं हूँ। तुम मुझे ना सिर्फ बहुत प्यारी हो, मैं तुम्हारी बहुत बहुत इज्जत करता हूँ। और वह इज्जत तुम्हारे कपड़ों की वजह से नहीं है।”
जस्सूजी के अपने बारे में ऐसे विचार सुनकर सुनीता की आँखों में से गंगा जमुना बहने लगी।
सुनीता ने जस्सूजी के मुंह पर हाथ रख कर कहा, “जस्सूजी, आप से कोई जित नहीं सकता। आप ने चंद पलों में ही मेरी सारी उधेङबुन ख़त्म कर दी। अब मेरी सारी लज्जा और शर्म आप पर कुर्बान है…
मैं शायद तन से पूरी तरह आपकी हो ना सकूँ, पर मेरा मन आपने जित लिया है। मैं पूरी तरह आपकी हूँ। मुझे अब आपके सामने कैसे भी आने में कोई शर्म ना होगी। अगर आप कहो तो मैं इस कॉस्च्यूम को भी निकाल फैंक सकती हूँ।”
जस्सूजी ने मुस्कुराते हुए सुनीता से कहा, “खबरदार! ऐसा बिलकुल ना करना। मेरी धीरज का इतना ज्यादा इम्तेहान भी ना लेना। आखिर मैं भी तो कच्ची मिटटी का बना हुआ इंसान ही हूँ। कहीं मेरा ईमान जवाब ना दे दे और तुम्हारा माँ को दिया हुआ वचन टूट ना जाए!”
सुनीता अब पूरी तरह आश्वस्त हो गयी की उसे जस्सूजी से किसी भी तरह का पर्दा, लाज या शर्म रखने की आवश्यकता नहीं थी। जब तक सुनीता नहीं चाहेगी, जस्सूजी उसे छुएंगे भी नहीं। और फिर आखिर जस्सूजी से छुआ ने में तो सुनीता को कोई परहेज रखने की जरुरत ही नहीं थी।
सुनीता ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, “जस्सूजी, मुझे तैरना नहीं आता। इस लिए मुझे पानी से डर लगता है। मैं आपके साथ पानी में आती हूँ। अब आप मेरे साथ जो चाहे करो। चाहो तो मुझे बचाओ या डूबा दो। मैं आपकी शरण में हूँ। अगर आप मुझे थोड़ा सा तैरना सीखा दोगे तो मैं तैरने की कोशिश करुँगी।”
जस्सूजी ने हाथमें रखा तौलिया फेंक कर पानी में उतर कर मुस्कुराते हुए अपनी बाँहें फैला कर कहा, “फिर आ जाओ, मेरी बाँहों में।”
दूर वाटर फॉल के निचे नहा रहे ज्योति और सुनीलजी ने जस्सूजी और सुनीता के बिच का वार्तालाप तो नहीं सूना पर देखा की सुनीता बेझिझक सीमेंट की बनी किनार से छलांग लगा कर जस्सूजी की खुली बाहों में कूद पड़ी। ज्योति ने फ़ौरन सुनील को कहा, “देखा, सुनीलजी, आपकी बीबी मेरे पति की बाँहों में कैसे चलि गयी? लगता है वह तो गयी!”
सुनीलजी ने ज्योतिजी की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। दोनों वाटर फॉल के निचे कुछ देर नहा कर पानी में चलते चलते वाटर फॉल की दूसरी और पहुंचे। वह दोनों सुनीता और जस्सूजी से काफी दूर जा चुके थे और उन्हें सुनीता और जस्सूजी नहीं दिखाई दे रहे थे।
वाटर फॉल के दूसरी और पहुँचते ही सुनीलजी ने ज्योतिजी से पूछा, “क्या बात है? आप अपना मूड़ क्यों बिगाड़ कर बैठी हैं?”
ज्योतिजी ने कुछ गुस्से में कहा, “अब एक बात मेरी समझ में आ गयी है की मुझमे कोई आकर्षण रहा नहीं है।”
सुनीलजी ने ज्योतिजी की बाँहें थाम कर पूछा, “पर हुआ क्या यह तो बताइये ना? आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं?”
ज्योति ने कहा, “भाई घर की मुर्गी दाल बराबर यह कहावत मुझ पर तो जरूर लागू होती है पर सुनीता पर नहीं होती।”
सुनीलजी: “पर ऐसा आप क्यों कहते हो यह तो बताओ?”
ज्योतिजी: “और नहीं तो क्या? अपनी बीबी से घर में भी पेट नहीं भरा तो आप ट्रैन में भी उसको छोड़ते नहीं हो, तो फिर में और क्या कहूं? हम ने तय किया था इस यात्रा दरम्यान आप और मैं और जस्सूजी और सुनीता की जोड़ी रहेगी। पर आप तो रात को अपनी बीबी के बिस्तरेमें ही घुस गए। क्या आपको मैं नजर नहीं आयी?”
ज्योतिजी फिर जैसे अपने आप को ही उलाहना देती हुई बोली, “हाँ भाई, मैं क्यों नजर आउंगी? मेरा मुकाबला सुनीता से थोड़े ही हो सकता है? कहाँ सुनीता, युवा, खूबसूरत, जवान, सेक्सी और कहाँ मैं, बूढी, बदसूरत, मोटी और नीरस।”
सुनीलजी का यह सुनकर पसीना छूट गया। तो आखिर ज्योतिजी ने उन्हें अपनी बीबी के बिस्तर में जाते हुए देख ही लिया था। अब जब चोरी पकड़ी ही गयी है तो छुपाने से क्या फायदा?
सुनीलजी ने ज्योतिजी के करीब जाकर उनकी ठुड्डी (चिबुक/दाढ़ी) अपनी उँगलियों में पकड़ी और उसे अपनी और घुमाते हुए बोले, “ज्योतिजी, सच सच बताइये, अगर मैं आपके बिस्तर में आता और जैसे आपने मुझे पकड़ लिया वैसे कोई और देख लेता, तो हम क्या जवाब देते..?
वैसे मैं आपके बिस्तर के पास खड़ा काफी मिनटों तक इस उधेड़बुन में रहा की मैं क्या करूँ? आपके बिस्तर में आऊं या नहीं? आखिर में मैंने यही फैसला किया की बेहतर होगा की हम अपनी प्रेम गाथा बंद दीवारों में कैद रखें। क्या मैंने गलत किया?”
ज्योतिजी ने सुनील की और देखा और उन्हें अपने करीब खिंच कर गाल पर चुम्मी करते हुए बोली, “मेरे प्यारे! आप बड़े चालु हो। अपनी गलती को भी आप ऐसे अच्छाई में परिवर्तित कर देते हो की मैं क्या कोई भी कुछ बोल नहीं पायेगा। शायद इसी लिए आप इतने बड़े पत्रकार हो। कोई बात नहीं। आप ने ठीक किया…
पर अब ध्यान रहे की मैं अपनी उपेक्षा बर्दास्त नहीं कर सकती। मैं बड़ी मानिनी हूँ और मैं मानती हूँ की आप मुझे बहुत प्यार करते हैं और मेरी बड़ी इज्जत करते हैं। आप की उपेक्षा मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। वचन दो की मुझे आगे चलकर ऐसी शिकायत का मौक़ा नहीं दोगे?”
सुनीलजी ने ज्योति को अपनी बाँहों में भर कर कहा, “ज्योति जी मैं आगे से आपको ऐसी शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा। पर मैं भी आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।”
ज्योति जी ने प्रश्नात्मक दृष्टि से देख कर कहा, “क्या?”
सुनीलजी ने कहा, “आप मेरे साथ बड़ी गंभीरता से पेश आते हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता। जिंदगी में वैसे ही बहुत उलझन, ग़म और परेशानियाँ हैं। जब हम दोनों अकेले में मिलते हैं तब मैं चाहता हूँ की कुछ अठखेलियाँ हो, कुछ शरारत हो, कुछ मसालेदार बातें हों। यह सच है की मैं आपकी गंभीरता, बुद्धिमत्ता और ज्ञान से बहुत प्रभावित हूँ…
पर वह बातें हम तब करें जब हम एक दूसरे से औपचारिक रूप से मिलें। जब हम इतने करीब आ गए हैं और उसमें भी जब हम मज़े करने के लिए मिलते हैं तो फिर भाड़ में जाए औपचारिकता..!
हम एक दूसरे को क्यों “आप” कह कर और एक दूसरे के नाम के साथ “जी” जोड़ कर निरर्थक खोखला सम्मान देने का प्रयास करते हैं? ज्योति तुम्हारा जो खुल्लमखुल्ला बात करने का तरिका है ना, वह मुझे खूब भाता है। उसके साथ अगर थोड़ी शरारत और नटखटता हो तो क्या बात है!”
ज्योति सुनील की बातें सुन थोड़ी सोच में पड़ गयीं। उन्होंने नज़रें उठाकर सुनीलजी की और देखा और पूछा, ” सुनील तुम सुनीता से बहोत प्यार करते हो। है ना?”
सुनील ज्योति की बात सुनकर कुछ झेंप से गए। उन दोनों के बिच सुनीता कहाँ से आ गयी? सुनील के चेहरे पर हवाइयां उड़ती हुई देख कर ज्योति ने कहा, “जो तुम ने कहा वह सुनीता का स्वभाव है। मैं ज्योति हूँ सुनीता नहीं। तुम क्या मुझमें सुनीता ढूँढ रहे हो?”
यह सुनकर सुनील को बड़ा झटका लगा। सुनील सोचने लगे, बात कहाँ से कहाँ पहुँच गयी? उन्होंने अपने आपको सम्हालते हुए ज्योति के करीब जाकर कहा, “हाँ यह सच है की मैं सुनीता को बहुत प्यार करता हूँ। तुम भी तो जस्सूजी को बहुत प्यार करती हो। बात वह नहीं है…
बात यह है की जब हम दोनों अकेले हैं और जब हमें यह डर नहीं की कोई हमें देख ना ले या हमारी बातें सुन ना लें तो फिर क्यों ना हम अपने नकली मिजाज का मुखौटा निकाल फेंके, और असली रूप में आ जायें? क्यों ना हम कुछ पागलपन वाला काम करें?”
“अच्छा? तो मियाँ चाहते हैं, की मैं यह जो बिकिनी या एक छोटासा कपडे का टुकड़ा पहन कर तुम्हारे सामने मेरे जिस्म की नुमाइश कर रही हूँ, उससे भी जनाब का पेट नहीं भरा? अब तुम मुझे पूरी नंगी देखना चाहते हो क्या?”
शरारत भरी मुस्कान से ज्योति सुनीलजी की और देखा तो पाया की सुनील ज्योति की इतनी सीधी और धड़ल्ले से कही बात सुनकर खिसियानी सी शक्ल से उनकी और देख रहे थे।
ज्योति कुछ नहीं बोली और सिर्फ सुनील की और देखते ही रहीं। सुनील ने ज्योति के पीछे आकर ज्योति को अपनी बाहों में ले लिया और ज्योति के पीछे अपना लण्ड ज्योति की गाँड़ से सटा कर बोले, “ऐसे माहौल में मैं ज्योतिजी नहीं ज्योति चाहता हूँ।”
ज्योति ने आगे झुक कर सुनील को अपने लण्ड को ज्योति की गाँड़ की दरार में सटा ने का पूरा मौक़ा देते हुए सुनीलजी की और पीछे गर्दन घुमाकर देखा…
और बोली, “मैं भी तो ऐसे माहौल में इतने बड़े पत्रकार और बुद्धिजीवी सुनीलजी नहीं सिर्फ सुनील को ही चाहती हूँ। मैं महसूस करना चाहती हूँ की इतने बड़े सम्मानित व्यक्ति एक औरत की और आकर्षित होते हैं तो उसके सामने कैसे एक पागल आशिक की तरह पेश आते हैं।”
सुनील ने कहा, “और हाँ यह सच है की मैं यह जो कपडे का छोटासा टुकड़ा तुमने पहन रखा है, वह भी तुम्हारे तन पर देखना नहीं चाहता। मैं सिर्फ और सिर्फ, भगवान ने असलियत में जैसा बनाया है वैसी ही ज्योति को देखना चाहता हूँ। और दूसरी बात! मैं यहां कोई विख्यात सम्पादक या पत्रकार नहीं एक आशिक के रूप में ही तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ।”
पर ज्योति तो आखिरमें ज्योति ही थी ना? उसने पट से कहा, “यह साफ़ साफ़ कहो ना की तुम मुझे चोदना चाहते हो?”
सुनील ज्योति की अक्खड़ बात सुनकर कुछ झेंप से गए पर फिर बोले, “ज्योति, ऐसी बात नहीं है। अगर चुदाई प्यार की ही एक अभिव्यक्ति हो, मतलब प्यार का ही एक परिणाम हो तो उसमें गज़ब की मिठास और आस्वादन होता है…
पर अगर चुदाई मात्र तन की आग बुझाने का ही एक मात्र जरिया हो तो वह एक तरफ़ा स्वार्थी ना भी हो तो भी उसमें एक दूसरे की हवस मिटाने के अलावा कोई मिठास नहीं होती।”
सुनील की बात सुन ज्योति मुस्कुरायी। उसने सुनील के हाथों को प्यार से अपने स्तनोँ को सहलाते हुए अनुभव किया।
पढ़ते रहिएगा, क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी।
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