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आप सब कैसे हो दोस्तो.. कहानी कैसी लग रही है.. अब तक आपने सैम से स्वाति का बिछड़ना, रेशमा का सुधीर से बिछड़ना फिर सुधीर और स्वाति की दोस्ती होना पढ़ा। इसी बीच स्वाति और सुधीर को एक दूसरे से सच्चा प्यार हो गया पर इजहार नहीं हो सका।
मैं (स्वाति) तैयार होकर सुधीर से मिलने जाने ही वाली थी कि सुधीर मेरे घर पर ही आ गया, मैं स्तब्ध रह गई, फ़िर मैंने सुधीर को मारना चालू कर दिया। सुधीर ने मेरे हाथों को पकड़ लिया और खुद को मारते हुए कहने लगा- और मारो स्वाति, मैं इसी लायक हूँ!
तब मैं रुक गई और उसको सीने से लगा लिया, सच में ये सुकून आज से पहले कभी नहीं मिला था.. सुधीर ने भी मुझे बाहों में जकड़ लिया और ‘आई लव यू स्वाति… आई लव यू स्वाति…’ की रट लगा दी और मेरे मस्तक गालों और होंठों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। हम दोनों बदहवास से थे.. दोनों ही रो रहे थे..
सिसकते हुए सुधीर ने कहा- स्वाति मैंने तुम्हें बहुत रुलाया है, मुझे और मारो.. मैंने कहा- हाँ सुधीर, रुलाया तो है पर तुम्हें मारुंगी तो चोट मुझे लगेगी.. इसलिए तुम्हारी सजा यह है कि अब तुम मुझे छोड़ कर कहीं मत जाना.. तो उसने हाँ कहते हुये मुझे और जोरो से जकड़ लिया।
ऐसे ही खड़े खड़े बहुत देर हो गई, तभी हवा चलने से दरवाजा तेजी से हिला और टकराया तब मुझे दरवाजा खुला होने का अहसास हुआ, और मैं उसे बंद कर आई, फिर सुधीर का हाथ पकड़ के अपने कमरे की ओर बढ़ी और कहा- आओ सुधीर अंदर बैठते हैं, अभी घर पर कोई नहीं है..
सुधीर ने कहा- मैं जानता हूँ! मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरे घर के बारे में इसे कैसे पता.. मेरा मुंह आश्चर्य से खुला रहा। तब उसने कहा- स्वाति, मैंने अपने दोस्तों से तुम्हारी खबर रखने को कहा था, जब मैं यहाँ आने वाला था, तब मैंने पहले ही सारी जानकारी ले ली थी, उन्हीं लोगों से मुझे यह भी पता चला था कि तुम भी मुझे चाहती हो, तब मुझे यहाँ से जाने का बहुत अफसोस हुआ पर मैं बार-बार स्कूल नहीं बदल सकता था, मुझे बाद में अहसास हुआ कि मैंने तुमसे दूर जाकर खुद को भी तकलीफ दी और तुम्हें भी। लेकिन तुमने मुझसे फोन पर बात क्यों नहीं की, तुम्हें तो मेरा नम्बर कहीं भी मिल जाता।
मैंने उसकी बात सुनकर कहा- नम्बर तो मिल जाता पर मैं चाहती थी कि हम दोनों दूर ही रहें ताकि वक्त के साथ एक दूसरे के प्रति प्यार की तड़प कम है या ज्यादा… यह जान सकें! सुधीर मैं तुमसे जीवन भर का साथ चाहती हूँ! कहते हुए मैं फिर सुधीर से लिपट गई.. सुधीर ने अपने होंठों से ‘मैं भी…’ शब्द निकाले और मेरे वाटर कलर लिपस्टिक लगे गुलाबी होंठों से सटा दिया.. मैं भी उसका प्रतिउत्तर देने लगी।
माहौल कामुक होने लगा, उसकी छुअन से मुझे कंपकपी होने लगी.. इतने दिनों से प्यासे बदन की हवस जाग उठी, शरीर से पसीना बहने लगा.. मैंने दो पल उससे दूर होकर पंखा चालू किया, अपना दुपट्टा उतार कर कुर्सी पर रख दिया और बालों से पिन निकाल कर बाल को झटक कर बिखरा दिया।
शायद सुधीर बिना कहे ही इशारा समझ चुका था तभी तो उसने भी अपनी शर्ट निकाल कर बेड पर रख दिया, 5’5″ हाईट वाले सुधीर का चौड़ा सीना खूबसूरत चेहरा और आँखों में प्यार देख कर मेरी पेंटी गीली होने लगी, मैं अपने जगह पर ही नजरें झुकाए खड़ी रही। सुधीर चलकर मेरे पास आया और मेरे कान में मुंह टिकाकर फ़ुसफ़ुसा कर बोला- चलो न, अब और नहीं सहा जाता.. देखो तो तुम्हारा गुलाम कैसे फड़फड़ा रहा है! कहते हुए उसने अपने लिंग पर मेरा हाथ पकड़ कर रख दिया… मैंने लिंग को दबा दिया पर तुरंत छोड़ भी दिया और शरमा कर अपने हाथों से चेहरा ढक लिया।
फिर कुछ पल मुझे किसी के भी पास ना होने का अहसास हुआ.. तो मैंने आँखें खोली तो देखा की सुधीर अपनी पैंट निकाल रहा है और वह पैंट निकाल कर बिस्तर पर पीछे हाथ टिका कर बैठ गया।
ऐसे में उसका तना हुआ लिंग उसकी चड्डी के ऊपर से स्पष्ट नजर आ रहा था.. मेरा तो मन था कि पल में उसे अपनी योनि में घुसेड़ लूं, लेकिन सुधीर के साथ पहली बार था और मैं उसे चाहती भी थी इसलिए मैं शरमा गई।
तब सुधीर ने कहा- देखो जानेमन, हम जबरदस्ती तो करेंगे नहीं, अगर आप खुद कपड़े उतार के हमारे पास नहीं आई तो हम अपने हाथों से अपना लिंग हिलायेंगे और यहाँ से चुपचाप चले जायेंगे।
मैं कशमकश में थी.. मैंने कहा- देखो सुधीर, मैं एक लड़की हूँ यार… मैं खुद कैसे कपड़े उतार के पास आऊँ? तुम कुछ तो समझो लड़की हूँ तो शर्म तो आयेगी ही ना! तो सुधीर ने कहा- तुम्हारा मतलब है कि लड़के बेशर्म होते हैं, या ये सब काम लड़कों का ही ठेका है, तुम सब लड़कियाँ ये सब काम लड़कों से जानबूझ कर करवाती हो ताकि बाद में कह सको कि लड़के ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की या मेरी मर्जी नहीं थी, तुमने ही जिद की, मैं ये सब बाद में नहीं सुनना चाहता इसलिए अपने कपड़े उतारो और मेरे पास आकर सैक्स में साथ दो।
बात तो उसकी सही भी थी, फिर मैं शर्माते हुए अपने कपड़े उतारने लगी, मैं उसकी ओर नहीं देखने का नौटंकी कर रही थी पर मैं छुपी नजरों से उसे देख रही थी.. वो अपना फनफनाता लिंग चड्डी की इलास्टिक के ऊपर से आधा बाहर निकाल के बैठा था और मेरे उतरते कपड़ों के साथ मेरी तारीफ करके मेरी वासना को परवान चढ़ा रहा था।
जैसे ही मैंने अपनी कुरती को नीचे से पकड़ के उठाया, उसने कहा- हाय… हाय हाय हाय… मर गया रे… इतनी चिकनी कमर.. पेट और नाभि… मैंने तो इतनी खूबसूरती की कल्पना भी नहीं की थी।
मैं मुस्कुरा रही थी पर मेरा चेहरा कुरती से ढका था इसलिए वो मुझे नहीं देख सकता था। फिर जब कुरती मेरे स्तनों से पार हुई तो उसने कहा- क्या बात है स्वाति.. तुम तो सच में कमाल हो यार.. काली कुरती के अंदर पीले रंग की ब्रा व्हाट ए ग्रेट कांबीनेशन!
शायद उसने व्यंग्य कसा होगा! और कुरती के निकलते ही मेरे मम्मों में कम्पन हुई.. और मेरे मम्मों का बड़ा हिस्सा ब्रा के ऊपर से भी झांक रहा था। इधर मैंने कुरती को खुद से अलग किया तब तक सुधीर मेरे सामने घुटनों पर आ गया था।
जी हाँ साहब, कोई कितना भी अकड़ू हो, चूत के सामने घुटने टेक ही देता है। सुधीर भी अब दूर नहीं रह पाया और आकर सीधे मेरी नाभि को किस करने लगा, मेरी पतली गोरी चिकनी कमर को सहलाने लगा।
मेरे हाथ उसके बालों को सहलाने खींचने लगे… अब मुझसे भी नहीं रहा जा रहा था.. तो मैंने अपनी लैंगिंग्स खुद उतारनी चाही, सुधीर ने उसे उतारने में मेरी मदद की और लैंगिंग्स आधी ही उतरी थी कि सुधीर पागल सा हो गया क्योंकि मैंने पेंटी भी पीले रंग की ही पहनी थी।
मैंने अपना जेब खर्च बचाकर दो हजार रूपये में दो सेट ऊंची वाली ब्रा पेंटी खरीदी थी ताकि मैं सुधीर को खुश कर सकूं.. और सच में मैं उन ब्रा पेंटी में गजब की निखर रही थी, मैं बिखरे बाल और पीली ब्रा पेंटी में अपसरा सी लगने लगी… मेरी चिकनी टांगों को सुधीर अपनी जीभ और गालों से सहला रहा था.. और एक बार उसने मेरी योनि को पेंटी के ऊपर से काटा।
मैं तड़प उठी… मैं पेंटी को उतार फेंकना चाहती थी पर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.. और पेंटी के गीले भाग को चूसने लगा.. फिर वह खड़ा हुआ और मेरे पीछे सट गया, उसका लिंग मुझे अपने चूतड़ों पर महसूस हो रहा था।
वह अपने दोनों हाथ सामने लाकर मेरे पेट को सहलाते हुए ऊपर की ओर ले गया और मेरे उरोजों पर ले जाकर रोक दिए.. और फिर मेरे कान में फ़ुसफ़ुसा कर कहा- मेनका, रंभा जैसी अप्सरायें भी तुम्हारे आगे कुछ नहीं है! स्वाति देखो ये तुम्हारे स्तन कितने सुडौल हैं, पेट कितना चिकना सपाट, कंधों का चिकनापन… आय हाय, तुम तो गजब की कामुक औरत हो चुकी हो!
ये सब उसने उत्तेजना में कह डाला., वास्तव में मैं इतनी भी सुंदर या कामुक नहीं हूँ कि अप्सराओं का मुकाबला करूँ, लेकिन इतना तो है कि उस वक्त वो मेरे लिए साक्षात कामदेव और मैं उसके लिए अप्सरा बन गई थी।
उसने मेरे ब्रा का हुक नहीं खोला… बल्कि कंधे की पट्टी को बाहों में सरका दिया जिससे मैं बंधी सी हो गई और वो मेरे कंधे, गले, गालों, लबों को चूमता चाटता रहा.. मैं व्याकुल थी कि कब वो मेरी पेंटी उतारे और मेरी योनि चाटे.. पर सुधीर ने अपने आप को कैसे रोके रखा यह तो वही जाने!
अचानक उसने मुझे बाहों में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया और खुद की चड्डी और बनियान उतारी, तब तक मैंने अपनी ब्रा पेंटी उतार दी थी.. अब वह मेरी योनि को सूंघने चाटने लगा.. इस बार वह बोल कुछ नहीं रहा था बस मेरी मखमली खेली खाई चूत का आनन्द ले रहा था। वो मेरे और सैम के बारे में सब कुछ जानता था.. इसलिए मुझे किसी बात की चिंता नहीं थी। यह हिंदी चुदाई की कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
मैंने उसके पैर को खींच कर उसे लिंग मुंह में देने का इशारा किया, उसने भी इशारा समझ कर मेरे मुंह में लिंग दे दिया.. मुझे लिंग चूसने की जल्दी थी इसलिए मैंने उसे बिना पौंछे ही मुंह में डाल लिया और लिंग मुंह में जाते ही मैंने वीर्य का स्वाद पहचान लिया। मतलब सुधीर ने भी उत्तेजना में वीर्य टपका दिया था।
अब सही में मेरी चुदाई का वक्त आया, मैं सांस रोके उसके हमले और लिंग के अहसास का इंतजार कर रही थी, पर सुधीर मेरे ऊपर झुक कर रुका रहा। मैंने पूछा- क्या हुआ? अब डालो ना, अब और नहीं सहा जाता!
तो उसने कहा- मेरे से सही जगह नहीं जाता, तुम डालो.. मैंने कहा- तुमने तो रेशमा के साथ किया हुआ है, फिर भी कैसे नहीं आता? तो उसने कहा- सैम ने रेशमा को सिखाया और रेशमा खुद मेरा लिंग पकड़ कर डालती थी इसलिए मैं नहीं सीख पाया..
मैंने ओह गॉड कहा.. और उसका खड़ा तना सीधा लगभग सात इंच का लिंग पकड़ कर अपनी योनि द्वार पर रगड़ा, उसके गोरे लिंग का लाल मुंड मेरी योनि की दरार में फंसा हुआ था, मुंड काफी आकर्षक चिकना और बड़ा था, मेरी योनि उसके स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार थी। तभी सुधीर ने जोर लगाना शुरू किया और एक ही झटके में लिंग जड़ तक पहुंचा दिया।
लिंग के घुसते ही मैं दर्द और मस्ती भरे मिले जुले स्वर में कराह उठी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ और हमारी घमासान चुदाई शुरु हो गई। सुधीर मेरे उरोजों को मसल रहा था.. मेरा हाथ सुधीर की पीठ पर, बालों पर लगातार चल रहा था। मैं इतने दिनों बाद अपनी योनि में लिंग लेकर अति प्रसन्न हो रही थी.. योनि की दिवारें लिंग के स्वागत में रस बहा रही थी।
सुधीर भी पागलों की भांति मेरे ऊपर टूट पड़ रहा था.. गति बहुत तेज और तेज.. और तेज होती गई और फिर जल्दी ही उंहह आंहहह आआहहह की आवाजों के साथ हम दोनों ही लगभग एक साथ चरम सुख को पा गये.. उसने लिंग बाहर निकाल कर मेरे पेट के ऊपर हाथों से दो चार झटके दिया और पेट पर ही अपना वीर्य गिराया और मेरे ऊपर ही लेट गया।
हम वीर्य से सने ऐसे ही पड़े रहे।
आधे घंटे बाद दूसरा राऊंड हुआ, फिर शाम को पापा के आने के पहले तीसरा राऊंड की चुदाई पूरी करके वह चल गया।
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