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यह कहानी मैं अपने मित्र श्री वरिन्द्र सिंह जी के प्रोत्साहन को पाकर लिख रहा हूँ। यह कहानी है कि कैसे मैंने पहली बार जीवन में, 25 साल की उम्र में सम्भोग किया अपने से बड़ी उम्र के एक पुरुष के साथ…
मेरा बचपन बहुत ख़ुशी और प्रेम से भरपूर था। मेरे पिता बनारस में नामी आर्किटेक्ट और पोलिटिकल वर्कर थे, अब रिटायर्ड हैं और अब भी उनका बड़ा नाम है। माँ सोशल वर्कर थीं। मैं और मेरी दो बड़ी बहनें, एक अप्पर मिडल क्लास जॉइंट फॅमिली में पले बढ़े, दादा दादी की निगरानी में संरक्षित बचपन गुज़रा।
मैं एक बहुत शर्मीला बालक था और मुझे बचपन से ही बड़ों को खुश करना बहुत पसंद था। पढ़ाई में तेज़ होने के कारण मैं सबकी आँखों का तारा रहा, चाहे वो टीचर हों या रिश्तेदार! स्कूल के बाद दिल्ली के एक बेहतरीन इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिल हो गया। दिल्ली में मैं अपनी एक बुआ के घर पर ही रहा। कभी हॉस्टल में नहीं गया इसलिए वहाँ भी शेलटरड लाइफ ही थी। मेरे ज़्यादा लड़के दोस्त नहीं थे, और न ही मेरी उनसे बात करने में ज़्यादा रूचि थी।
डिग्री पूरी करने के बाद जल्द ही एक बहुत अच्छी मल्टीनेशनल कंपनी में मेरी नौकरी लग गई, दिल्ली में ही। बुआ अब अपने बेटे के पास अमेरिका जाना चाहती थी, तो मैं उनके घर पर अकेला था, एक-आध नौकर के अलावा।
इस दौरान मेरी कई लेडी फ्रेंड्स भी बनी, कुछ के साथ दोस्ती काफी घनिष्ठ भी हो गई, उनमें से कुछ ने मुझसे पूछा भी, शादी का क्या ख्याल है? इरादा है भी या फिर सिर्फ घूमने फिरने का प्लान है?
दिल्ली में लड़कियाँ वक़्त नहीं ज़ाया करती, और ठीक भी है उनके नज़रिये से।
पर सच बोलूं तो मुझे अंदर से पता था कि मैं उन्हें नहीं ढून्ढ रहा, और न ही उन्हें खुश रख पाऊँगा। वो मेरे अच्छे स्वभाव, मेरे रूप, और मेरी अच्छी ज़िन्दगी से आकर्षित होती थीं, पर मैं उनके प्रति शारीरिक तौर पर बिल्कुल भी इंटरेस्टेड नहीं होता था… मुझे तो मेरे अधेड़ और बूढ़े प्रोफेसर और नौकरी में सीनियर्स और बॉसेस के पास ही वक़्त बिताना पसंद था…
सेक्स के मामले में अनुभवहीन था, अपनी सेक्स इच्छाओं को दबा के रखा हुआ था, कोशिश करता था कि जो आकर्षण मुझे आदमियों की तरफ होता है उसे भूल जाऊं।
ऐसे ही देखते देखते मैं 25 साल का हो गया। आप अचरज कर रहे होंगे कि यह कैसे हो सकता है कि पच्चीस की उम्र तक मैं अपनी सेक्सुअलिटी के बारे मैं कन्फ्यूज्ड था… पर यही सच है।
बाद में मैंने पढ़ा कि इसे ‘सेल्फ डिनायल’ कहते हैं, यानि खुद से ही मुकर जाना…
मैं मुठ ज़रूर मारता था पर उन में मेरे ख्याली पुलाव ऐसे होते कि कोई बड़ी उम्र का बलिष्ठ पुरुष अपने से छोटी लेडी या आदमी के साथ यौनाचार कर रहा है। और मैं या तो उन्हें देख रहा हूँ, या उनके पास जाकर उनके गुप्तांगों को सहला रहा हूँ।
मुझे साउथ इंडियन और गांव वाले देसी आदमी ना जाने क्यों बहुत पसंद थे (और अब भी हैं), तो अक्सर मेरे सपनों में वो आदमी सांवले रंग के होते, छाती पर बाल, चेहरे पे बड़ी बड़ी मूछें और कमर पर लुंगी पहने हुए…
सच बताऊँ तो मुझे अपने विचारों पर काफी शर्म आती थी और मैं किसी को भी यह बताने में अपने को असमर्थ समझता था… मुझे लगता था कि दुनिया में मैं बिल्कुल अकेला और अनोखा हूँ और मेरे जैसी गन्दी और विकृत सोच किसी की नहीं होगी।
ऐसे ही चलता गया।
एक दिन मेरे एक ऑफिस के नौजवान मित्र ने मुझे कहा- आजकल ऑनलाइन सेक्स बहुत आसानी से मिलने लग गया है। न सिर्फ औरतें, बल्कि सिर्फ चुसवाने के लिए लौंडे भी… हालाँकि वह तो मज़ाक में अपने खुद के लंड चुसवाने के एंगल से बात कर रहा था, पर मेरे मन में एक विचार तीर की तरह दौड़ गया..
मेरे जीवन का अगला चरण अब शुरू हुआ जब अपने सहकर्मी के कहने अनुसार में ऑनलाइन गया। उस ज़माने में याहू चैटरूम्स का ज़ोर था। वहाँ पहुँच कर मुझे लगा कि मुझे किसी ने साक्षात् स्वर्ग में ही पहुंचा दिया हो।
हर जगह सेक्स, चुदाई, चुसाई, चटवाई और अलग अलग प्रकार की सम्भोग क्रियाओं को करने के चर्चे में लोग मगन थे। कुछ अपनी मनोकामनाओं की घोषणा कर रहे थे और कुछ उनके चाहने वाले उनसे मिलने का प्लान बना रहे थे।
शुरुआत में तो मैं सन्न रह गया था और सिर्फ औरों की बातचीत पढ़ता रहा पर धीरे धीरे मुझमें हिम्मत आई, मैंने भी लिखा- क्या कोई एक पतले दुबले 25 साल के सांवले नवयुवक से मिलना चाहेगा? मैं सिर्फ एक अच्छा दोस्त ढून्ढ रहा हूँ!
कई उत्तर आये, और उन में से एक उत्तर उस इंसान का भी था जो अबसे कुछ ही दिनों में मुझे गे सेक्स का, एक अनुभवी लंड के माध्यम से परिचय करने वाले थे। उनका नाम यहाँ मैं सिर्फ जोशी जी ही बताऊँगा।
उनका पहला मैसेज जो आया वो था ‘मेचयोर लंड चूसोगे?’ मैंने एकदम से जवाब नहीं दिया क्योंकि और भी बहुत सन्देश थे, और उस समय मैं ये भी शायद अच्छे से नहीं जानता था कि मेचयोर शब्द का अर्थ इस जगह पर मानसिक परिपक्वता न होकर बड़ी उम्र का होना होता है।
दो दिन बाद जब मैं फिर याहू चैटरूम में था तो जोशी जी का फिर मैसेज आया ‘चूस भी लो यार; यहाँ लुंगी में तंबू बन गया है।’ यह सुनने की देर थी कि जैसे मेरे शरीर में करंट लग गया। यहाँ याहू पर मेरा लुंगी वाले मर्दों को ढूंढने का शौक़ भी तो पूरा किया जा सकता है!
मैंने डरते डरते उन्हें लिखा- क्या आप सच में लुंगी पहनते हो? जवाब तुरंत आया ‘और क्या!’ मैंने कांपते हाथों से लिखा- आपके प्रोफाइल नाम से तो नहीं लगता है कि आप साउथ इंडियन हो? इस बार कोई जवाब नहीं आया।
दो मिनट के बाद मैंने फिर लिखा ‘बताइये न प्लीज?’ कोई जवाब नहीं… थोड़ी देर रुकने के बाद मुझसे रहा नहीं गया और मैंने फिर मैसेज भेज ‘आप मेरी पसंद के हो, प्लीज सच सच बताइये न, आप क्या पहनते हो रात को बैडरूम में?
उस रात जोशी जी ने कोई जवाब नहीं दिया, मुझे लगा शायद मज़ाक किया होगा; और मेरा उतावलापन देख के पीछे हो गए होंगे… मैंने उस दिन किसी और से बात नहीं की और थोड़ा शर्मिंदा सा महसूस करते हुए रात के 11 बजे सो गया।
अगले दिन नेट खोल के बैठा तो देखा, उनका जवाब आया था, रात के दो बजे ‘अरे यार, सिर्फ मद्रासी लोग ही लुंगी नहीं पहनते, यू पी में भी बहुत सारे लोग पहनते हैं… तुम बताओ, चूसते हो शौक से? मुझे चुसवाईया गांडू चाहिए!’ उस समय उत्तराखंड यू पी का हिस्सा था।
मैंने तुरंत जवाब टाइप किया- सर, मुझे ठीक से आता तो नहीं, पर आप की शागिर्दी में आना चाहता हूँ। फिर आप जो मर्ज़ी सिखा दें…
ऐसे ही फिर धीरे धीरे मुझे जोशी जी (मैं उन्हें जोशी सर बुलाता था) रोज़ ऑनलाइन मिलने लगे। मेरा मन उनसे बात करने का, उन्हें बेहतर जानने का और उनसे मिल कर दोस्ती करने का करता था। हालाँकि उनकी तरफ से साफ़ था कि वो सिर्फ लंड चुसवाने के लिए नौजवान ढून्ढ रहे हैं।
उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वो शादीशुदा और स्ट्रेट पुरुष हैं, जिनकी सेक्स ड्राइव इतनी तीव्र है कि शादी की शुरुआत से ही उनकी बेचारी पत्नी संभाल ही नहीं पाती थी। शुरू में तो जोशी जी दिन में उन्हें चार चार बार पेलते थे, जब भी मौका मिला, उनकी साड़ी और अपनी लुंगी उठाई और शुरू हो गए धक्के लगाने…
परंतु अब कुछ दस सालों से श्रीमती जोशी ने उन्हें साफ़ कह दिया था कि उनकी इस तरह जानवरों जैसे लगातार सम्भोग करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, उनका मन पूजा पाठ की तरफ लगने लगा था। उन्होंने बिना बोले कह दिया कि जोशी जी अपना इंतज़ाम चाहें तो बाहर से कर सकते हैं, बशर्ते की वो ऐसा चुपचाप ही करें।
उनकी बीवी उनको प्यार तो करती थे पर उनकी जिस्मानी ज़रूरतों की उन्हें परवाह नहीं थी… यही शायद मेरी खुशकिस्मती थी!
जोशी सर की उम्र 52 साल थी, और वो एक सरकारी कार्यालय में सुपरिन्टेन्डेन्ट थे। उनके दो बेटे थे, जो कॉलेज में पढ़ते थे। मूल रूप से हल्द्वानी के निवासी थे, पर अब कई दशकों से नौकरी के कारण परिवार समेत दिल्ली ही शिफ्ट हो गए थे। सरकारी आवास में परिवार समेत रहते थे। और सच में घर पर वो गर्मियों में लुंगियाँ या तहमद ही बांधना पसंद करते थे।
हमने फोटो एक दूसरे को भेजे, पहले मैंने, फिर उन्होंने अपना फेस का और एक और बिना चेहरे के ऊपरी शरीर का फोटो भेज दिया।देखने में वो साधारण उत्तर भारतीय पुरुष जैसे लगते थे, पतले, गोरे, पतली काली सफ़ेद मूछें, करीब 5’5″ कद, पेट बिल्कुल बाहर नहीं! सर पर बाल थे, जो अब करीब 50-60% सफ़ेद थे। मुझे वो, उनकी फोटो देखने के बाद बिल्कुल अपने मुनाफ़िक़ लगे। मुझे ऐसे ही मर्दाने लगने वाले पर साधारण पुरुष की तलाश थी, जो ऊपर से नार्मल हों, और अंदर से ठरकी ताऊ, सेक्स के दीवाने। फिर चाहे वो सेक्स लड़के से मिले या फिर लड़की से…
अरे माफ़ कीजिये… मैंने अपने बारे में तो आपको बताया ही नहीं, मेरी हाइट 5’8″ है, रंग सांवला, चेहरे पर मूछें, छाती पर बाल! मैं भी पतला हूँ, पर शहर के कसरत न करने वाले लड़कों जैसा पतला। जोशी जी का बदन मुझे मेहनत करने की वजह से जैसा कसा हुआ और पतला होता है, वैसे लगा। देखने में मैं भी बुरा नहीं था (मेरी नारी मित्र कहती थीं कि मैं हैंडसम हूँ)। परंतु जब मैंने जोशी जी को फोटो भेजे तो उन्होंने सिर्फ यह कहा- तुम्हारे होंठ अच्छे हैं, रसीले, लंड पे लिपटे हुए पूरा मजा देना, ठीक है?
धीरे धीरे मेरे मन की प्यास ने मेरी स्वाभाविक झिझक पर विजय पा ही ली। जोशी जी के पास तो मिलने की जगह का सवाल था ही नहीं, मैं भी दिल्ली में बुआ के घर पर एक रूममेट के साथ शेयर करता था। मेरा रूम का साथी अजमेर से था, त्योहारों में हम दोनों घर जाते थे।
एक बार एक लंबे वीकेंड पर वो तो घर गया और मैं रुक गया कि इस बार जोशी सर से मिल कर ही रहूँगा…
पहले मैंने उनसे कहा कि कहीं बाहर मिलते हैं। पर उन्होंने समझाया कि जब चुसवाई के लिए ही मिलना है तो समय क्यों बर्बाद करना। घर पर ही बात कर लेना और परख लेना। फोटो तो तुम देख ही चुके हो!
मैंने कहा- और मैं अगर आपको पसंद नहीं आया तो? उनका जवाब सीधा सरल था- पसंद क्यों नहीं आओगे? तुम्हारे पास मुंह और गांड नहीं है क्या? मुझे तो सिर्फ गेम बजाने और बीज गिराने से मतलब है।
मैं थोड़ा सकपकाया, ‘यह गांड कहाँ से बीच में आ गई सर?’ मैंने पूछा। वो हँस कर बोले- अरे यार, तुम बहुत भोले हो, मिलो तो, सब विस्तार से बिस्तर पर ही समझा दूंगा। मैंने कहा- आप लुंगी पहन के ही चुसवाओगे न? वो हँस कर फिर बोले- तुम बोलो तो लुंगी पहन के ही गाड़ी चला कर आ जाऊंगा। चिंता मत कर, तुम्हें पूरी सैटिस्फैक्शन भी दूंगा, और फुल ट्रेंड भी कर जाऊँगा।
मुझे थोड़ा अजीब लगता था कि उनकी बातों में कहीं प्यार, संबंधों, रिश्तों की बातें नहीं हैं। सिर्फ चुदाई, चाटन, बजाना-बजवाना, पेलना, मारना, ऐसे ही शब्द थे… पर मैं भी अपने प्यासे मन की तड़प से परेशान, उनकी इन्हीं बातों में बहता चला गया।
फिर आखिर वो दिन आ ही गया। हमने रविवार सुबह दस बजे का टाइम पक्का किया क्योंकि हमारी नौकरानी तब तक चली जाती थी। उन्होंने भी घर पर कह दिया कि आज ऑफिस में काम है, संडे को जाना पड़ेगा और आते आते शाम हो जाएगी।
उस दिन मैं खूब अच्छे से नहाया धोया, झांटों के बाल साफ़ किये। उनका ख्याल आते ही लंड खड़ा हो जाता और नई दुल्हन की तरह शर्म भी आ जाती। अभी तक सिर्फ पिक्चर ही देखी थी उनकी, आज दर्शन होने वाले थे और वो मेरा भोग लगाने वाले थे… मन में कैसे कैसे अरमान थे…
जोशी सर मेरी कॉलोनी में पहुँच कर फ़ोन करने वाले थे पर देखते ही देखते दस बज गए, फिर साढ़े दस… उनकी कोई खबर नहीं थी… मैं मायूस सा बैठ गया, समझ नहीं आ रहा था कि फ़ोन करूं, कहीं वह ड्राइव तो नहीं कर रहे होंगे?
करीब ग्यारह बजे फ़ोन बजा, मेरे दिल ने कलाबाज़ी खाई, वही थे- हाँ भाई, मैं आ गया गेट पर, कहाँ आऊं? मैंने उन्हें नंबर बताया और बाहर पहुँच गया।
गाड़ी पार्क कर के वो बाहर निकले, मेरा दिल धक धक कर रहा था। वो काफी स्लिम एंड ट्रिम थे और कड़क लगने वाले पुरुष थे, देखने में आकर्षक! मुझे देख कर मुस्कुराये, बोले- चलो आज मिलना भी हो गया, तुम तो काफी शर्मीले हो यार!
हम घर की तरफ चलने लगे ही थे कि वो बोले- अरे कुछ गाड़ी में रह गया। रिमोट चाबी से कार खोली और मुझे बोले- पीछे वाली सीट पे एक पैकेट है, ले आ! मैं बिन समझे गाड़ी तक गया और एक प्लास्टिक बैग उठाया। अंदर ऐसे लगा जैसे कुछ कपड़ा है तह किया हुआ!
मैं लाकर उनको देने लगा, तो वो बोले- ये तो तेरे लिए है जानेमन…
मुझे समझ नहीं आया पर पड़ोसियों से बचने के लिए जल्दी से उन्हें घर ले आया और दरवाज़ा बंद किया। वो सोफे पे बैठे और मैंने पानी लाकर दिया। अब उन्हें अच्छे से देखा, आधी बाजू की सफ़ेद कमीज और सलेटी रंग की पैंट में, चश्मा लगाए, वो एक अध्यापक जैसे दिख रहे थे, सुन्दर चेहरे पर सफ़ेद मूछें… उन्हें देख के मेरी पैंट में फुरफुरी होने लगी। वो भी पानी पीते हुए मुझे देख रहे थे।
फिर मुस्कुरा कर बोले- तू तो काफी मस्त है यार! आज मज़ा लूँगा पूरा… आ पास आ के बैठ!मैंने खुश होते हुए धीरे से कहा- आप भी बहुत अच्छे हैं सर! वो बोले- सच? तो फिर जो मैं बोलूंगा वो करेगा? मैंने हाँ में सर हिलाया।
पांच दस मिनट बैठने के बाद वो उठे और बोले- बाथरूम कहाँ है? मैं उन्हें ले गया तो उन्होंने वो पैकेट उठा लिया। मुझे लगा कि उसमें क्या होगा पर पूछना ठीक नहीं समझा कि शायद जब उनका मन होगा तो दे देंगे।
जब मैं उनके आगे चल रहा था तो मुझे लगा कि जोशी सर की नज़र मेरे नितंबों और कूल्हों पर लगी है। मैंने उन्हें बैडरूम से लगा हुआ बाथरूम दिखाया तो वो अंदर चले गए। मैं बाहर इंतज़ार करता हुआ बिस्तर को सलीके से लगाने लगा, परदे को बंद कर दिया और लाइट जला दी।
पहले बाथरूम में से उनके पेशाब करने की आवाज़ आई, फिर फ्लश चलने की। फिर करीब 5 मिनट तक वो अंदर रहे तो मैंने सोचा, क्या कर रहे हैं? तभी दरवाज़ा खुला और वो बाहर आये।
उन्हें देख कर मेरी सांस रुक गई, उन्होंने थोड़े कपड़े बदल लिए थे, ऊपर वही सफ़ेद शर्ट थी, पर अब नीचे पैंट की जगह एक लाल, हरी और पीली रंग की चेकदार लुंगी बाँध रखी थी। मेरे लंड का आकार ऐसा हो गया मानो फट जाएगा।
वो सहजता से मेरे पास आये और बोले- कैसा लगा मैं? मेरे होठों से धीरे से निकल गया- आप तो सेक्स के देवता लग रहे हैं।
वो ज़ोर ज़ोर से हँसे और आकर बिस्तर पर बैठे, फिर बोले- तो मेरी पूजा कब शुरू करेगा साले? चल आज अभी से काम पे लग जा! मैं उनकी इस भाषा से और उत्तेजित होता हुआ उनके पास पहुंच कर साथ में बैठ गया, समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं।
उन्होंने ही पहल करी- अबे नीचे बैठ, और सुन, पहले नंगा हो जा, मैं देखूँ तो ठीक से कैसा है तू!
मैं शर्म से पानी पानी हुआ जा रहा था पर और कोई चारा नहीं था, उनके सामने पहले मैंने अपनी निकर उतारी, फिर टी शर्ट, आधे मिनट के अंदर मैं उनके सामने निर्वस्त्र खड़ा था।
‘ह्म्म्म… बढ़िया… मुझे पतले लड़के ही पसंद हैं, चल अब आ जा, शुरू कर!’ उन्होंने हवस व कसक भरे भाव से कहा। चेहरे पर उनके अब मुस्कुराहट नहीं थी।
मैं उनके आगे जाकर फर्श पर नंगा बैठ गया, वो भी उचक कर बिस्तर के छोर पर आ गए, धीरे से बोले- चल ना, निकाल और काम पर लग!
मैं समझ गया, हाथ बढ़ा कर हल्के से लुंगी की तरफ बढ़ाये, उन्होंने मेरे हाथ पकड़े और अपनी गोद में रख कर दबा दिए। वो लुंगी बड़ी नर्म और मुलायम थी, उसके अंदर मुझे उनका सख्त लंड महसूस हुआ। वो अंडरवियर पहने थे।
खुद ही जोशी जी मेरे हाथ लुंगी के ऊपर से ही लंड पर रगड़ने लगे। मैं उनके आगोश मैं खोता जा रहा था, उनके बदन से शेविंग क्रीम और साबुन की सुगंध आ रही थी जैसे अभी नहाये हों।
थोड़ी देर के बाद उन्होंने लुंगी थोड़ी सी खोली और मेरे हाथ अपने आप अंदर चले गए। अंदर उनकी सफ़ेद फ्रेंची अंडरवियर थी। उन्होंने कमर उठा कर इशारा किया तो मैंने फ्रेंची जाँघों तक नीचे करी और फिर उन्होंने खुद थोड़े खड़े होकर पैरों से निकाल दी।
लुंगी अब थोड़ी ढीली हो गई थी।
जोशी जी फिर बैठ गए, उनका करीब 5.5 इंच का तना हुआ लंड मेरे सामने आ गया, ऊपर घने काले सफ़ेद बालों से वो सख्त डंडा सीधा बाहर आ रहा था, चमड़ी आगे तक थी, ऊपर से गोरी, पर आगे जहाँ वो एक गुच्छे में थी वहाँ सांवली। लंड के अंत की इकट्ठी हुई चमड़ी से कुछ बूँदें वीर्य की अभी से धागा बनाती हुई टपक रही थी।
पूरे लंड में से एक अजीब सी महक आ रही थी, जैसे इस्तेमाल करे हुए तौलिये या अंडरवियर से आती है भीनी भीनी!
अचानक उन्होंने एक हाथ मेरे सर पे लगाया और मुझे आगे झुकाया। यही वो पल था, जब मैं पहली बार उन्हें चखने वाला था। मुझे अचानक बड़ी घिन आई और मैंने सर पीछे किया, अपने दोनों हाथों से मैंने उस सुन्दर लंड को पकड़ा और चमड़ी ऊपर नीचे करने लगा। उन्होंने अचानक मेरा कान पकड़ा और बोले- मादरचोद, हाथ से नहीं, मुंह से निकाल!
फिर से उन्होंने मेरा सर अपने लंड की तरफ धकेल दिया। इस बार मेरे होंठ उस गर्म दंड को छू गए। मैंने फिर एक गहरी सांस ली और अपनी मन की बात के आगे समर्पण कर दिया, पहले पूरे लंड को नीचे के बालों से लेकर ऊपर के छेद तक चुम्बन लिया, छेद से गीला गीला वीर्य मेरे होंठों को छुआ।
दो तीन बार चूमने के बाद उन्होंने फिर सर को धक्का दिया, इस बार विरोध त्यागते हुए मैंने मुंह खोल कर उस लंड को अंदर ग्रहण किया। बिना मुझे सोचने का मौका देते हुए उन्होंने अपना औज़ार पूरा का पूरा मेरे गले में उतार दिया।
चूंकि वो सिर्फ 5-6 इंच का था, मैं भी उसे पूरा निगल गया। एक बारी मन में विचार तो आया कि अभी 5 मिनट पहले ही इन्होंने इसी में से पेशाब निकाला है। पर उस विचार को मैंने दबा दिया और अपने सर को उनके लंड पर ऊपर नीचे करने लगा, जीभ फिराई, होठों और गालों से घर्षण दिया, सब कुछ जैसे मैंने इसे पढ़ा या देखा था।
5 मिनट बाद मेरी गर्दन दुखने लगी तो जोशी सर ने मुझे मुंह हटाने दिया, वो उठे और आराम से बिस्तर पर लेट गए। टांगें चौड़ी कर लीं, लुंगी दोनों तरफ खुल गई। अब मैं भी उनके मन की बात समझने लगा था, आराम से उनकी हल्के हल्के बालों वाली जाँघों के बीच जा कर बैठ गया और फिर शुरू हो गया। यह हिंदी सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
अब उनकी चमड़ी थोड़ी पीछे हो गई थी, सुर्ख लाल रंग का उनका सुपारा बाहर झांक रहा था, वीर्य की बूँद टपकने को तैयार थी, मैंने अपनी जीभ से उस बूँद को चाट लिया। नमकीन स्वाद से मेरे पेट ने एक मरोड़ा लिया, पर किस्मत से मैंने नाश्ता हल्का लिया था, वरना शायद बाहर आ जाता।
मैंने फिर हिम्मत कर के लंड को मुंह में भरा और जीभ और होठों से उनके सुपारे को उभारने लगा। मन में ब्लू फिल्मों को याद करके जोशी सर के गुप्तांगों को तन्मयता से चाटने लगा। मुझे सच में लगा कि मुझे जिस काम के लिए भगवान् ने बनाया है वो मैं अच्छे से कर रहा हूँ।
ऐसे ही चुसाई करते करते अचानक जोशी जी ने अपनी कमर को झटके देने शुरू किये ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ अनुभवहीन होने के कारण मैं समझ नहीं पाया कि वो अब अपना झरना बहाने वाले हैं, उनके मुंह से भी हल्की हल्की गुर्राने जैसे आवाज़ें आने लगीं। एकदम से जब उनके लंड का सुपारा थोड़ा फूला और नमकीन खीर जैसे पहला उनका बहाव मेरे तालु से टकराया तो मुझे सुध आई, मैं एकदम से पीछे हुआ, पर तब तक दो और शॉट्स मेरे होठों और गालों पर गिर गए।
मैं झेंपता हुआ बाथरूम भागा और उनके वीर्य को थूकने लगा, फिर कुल्ला और गार्गल करने लगा। दो चार मिनट बाद जब मैं मुड़ा तो देखा सर लुंगी बांधे, दरवाज़े पर कन्धा टिकाये मुझे प्यार से देख कर मुस्कुरा रहे हैं, बोले- बहुत अच्छे हो तुम यार, मुझे बहुत अच्छा लगा, धीरे धीरे मेरे पानी को पीना भी सिखा दूंगा।
मेरे मन में भी मेरे पहले चोदू के लिए प्रेम उमड़ आया, मैं आकर उनसे लिपट गया।
उस दिन फिर उन्होंने दो और बारी मेरे से मुख मैथुन कराया, मैं खुद एक बार भी नहीं झड़ा। शाम के करीब 3 बजे हम थक कर हल्का खाना खा कर एक दूसरे से लिपट कर सो गए… 5 बजे हम उठे, और वो हाथ मुंह धोकर, कपड़े पहन कर अपने घर चले गए। लुंगीमेरे यहाँ ही छोड़ गए ‘धुलवा के रखना, अगली बार के लिए…’
तो यह थी मेरी पहली प्रेम-मिलाप की कहानी। पसंद आये, या न भी आये तो कमेंट्स में बताना। या फिर [email protected] पर मुझे लिख कर बताना।
आजकल मैं चंडीगढ़ में पोस्टेड हूँ, परिवार अभी भी बनारस में है। अब मेरी उम्र 35 वर्ष है। कोई जोशी जी जैसे देसी पुरुष मुझसे मिलना चाहें तो अवश्य लिखें। पर याद रखें मैं लड़कियों जैसा नहीं हूँ। सादर नमस्कार! राजेन्द्र भारद्वाज
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