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नमस्कार दोस्तो, मैं संदीप साहू आपकी सेवा में एक बार फिर से हाजिर हूँ। आपने मेरी पिछली कहानी गर्लफ्रेंड ने खुद आकर चूत चुदवा ली पढ़ी।
अब आपके सामने जो कहानी है वह तो उससे भी ज्यादा कामुक है, आप इसे पढ़ कर मचल उठेंगे, लड़कियों, भाभियों, आंटियों को खुद पर काबू रख पाना कठिन होगा और लड़कों का स्खलन तो बिना हिलाये ही हो जायेगा। यह मेरी पहली कहानी से बहुत अलग है, कहानी लंबी है पर हर शब्द कहानी में आवश्यक है। आप कहानी को अच्छे से समझने के लिए सभी पात्रों और उनकी भूमिका को भी समझियेगा, कड़ी दर कड़ी आपका रोमांच बढ़ता जायेगा। या यूं कहें कि आप एक उपन्यास पढ़ रहे हैं, जिसमें खुले शब्द और समाज की बेड़ियों से परे विचार नजर आयेंगे।
आप तो मेरे बारे में जानते ही होंगे, मेरा नाम संदीप साहू है, मैं 5’7″ का हैंडसम सा लड़का हूँ.. ऐसा मैं नहीं कह रहा… बल्कि मुझे चाहने वाले कहते हैं। मेरा रंग गोरा है, आँखें भूरी और सीना चौड़ा है। जो मेरे पुरुषार्थ की निशानी है वह 7 इंच का मोटा, हल्के भूरे रंग का है और थोड़ा सा मुड़ा हुआ भी है जो सहवास के वक्त मजा बढ़ा देता है।
यह कहानी तब की है जब मैं 25 साल का था।
एक दिन जब मैं बिलासपुर जाने के लिए बस में चढ़ा तो मुझे चढ़ते ही मेरा एक बचपन का मित्र रवि दिखाई दिया, वह बस में खिड़की की तरफ उदास बैठा था और खिड़की से बाहर टकटकी लगाये देख रहा था, शायद वो किसी सोच में डूबा था। ‘हाय रवि, कैसे हो?’ इतना सुनकर ही वह चौंक गया और हकलाते हुए ‘हाँ हह-हाँ हह मैं ठीक हूँ!’ बहुत लड़खड़ाती सी आवाज में जवाब दिया।
अब मैं बिना कुछ कहे उसके बगल वाली सीट पर बैठ गया, मुझे लगा कि शायद वह मुझे पहचान नहीं पा रहा है, इसलिए मैंने फिर से कहा- शायद तुमने मुझे पहचाना नहीं? तो उसने कहा- तुम मेरे बचपन के यार संदीप हो, मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ? इतना कह कर उसने फिर अपना मुंह खिड़की की तरफ कर लिया।
मैंने कहा- क्या हुआ यार, कुछ सोच रहे हो क्या? तो उसने मेरी ओर नजर घुमाई, मेरी आँखों में आँखें डाल कर देखा और रोने लगा, फिर उसने खिड़की की तरफ मुंह कर लिया। मैंने उसे और कुछ कहना उचित नहीं समझा और अपनी सीट पर सर टिका कर आँखें बंद कर ली और अपनी पुरानी यादों में खो गया। असल में रवि और उसके परिवार को गांव छोड़े दस साल बीत चुके थे। इन दस सालों में बहुत कुछ बदल गया था।
रवि के पिता बिजली विभाग के अधिकारी थे, उनका तबादला हो गया और वो कंवर्धा आ गये थे, रवि जब गांव में था तो वह मेरा बहुत करीबी दोस्त हुआ करता था, हम दोनों साथ में बहुत बदमाशी करते थे, पढ़ाई करते थे और एक दूसरे के घर आना जाना लगा ही रहता था।
रवि के माता पिता भी मुझे अपने बेटे की तरह ही समझते थे, रवि की बहनें भी मुझे बहुत इज्जत देतीं थी, रवि की एक बहन उससे पांच साल छोटी थी और एक बहन चार साल बड़ी थी। रवि के माता पिता ने बच्चा पैदा करते वक्त बच्चों के बीच अंतर का बिल्कुल ख्याल रखा था।
रवि की बड़ी बहन कुसुम का शरीर बहुत भारी था, 5’3″ की हाईट, रंग काला, रुखी त्वचा थी शायद वह बहुत आलसी भी थी। वहीं उसकी छोटी बहन स्वाति गोरी और सांवली के बीच के रंग में थी, छरहरी सी चंचल लड़की पढ़ाई में बहुत तेज थी, हम सब साथ में कैरम, लूडो, लुका छुपी का खेल खेला करते थे, कोई भी चीज बांट कर खाया करते थे, बड़े अच्छे दिन थे।
मैं ये सब सोच ही रहा था कि हमारी बस सिमगा पहुँच गई, बस के रुकते ही मेरी आँखें खुल गई। मैंने अपनी बाजू वाली सीट को देखा, वहाँ मैंने रवि को नहीं पाया, मैंने उसे ढूंढने नजर दौड़ाई तो मुझे रवि चना फल्ली लेते नजर आया, वो चना फल्ली का पैकेट लेकर मेरे पास आया, मुझे एक पैकेट पकड़ाया और अपनी सीट में बैठते हुए कहा- यार, बेरुखी के लिए माफी चाहता हूँ, पर मैं अभी बहुत ज्यादा परेशान हूँ। मैंने कहा- कोई बात नहीं यार, मैं समझ सकता हूँ, पर तुम परेशान क्यूं हो?
तो उसने गहरी सांस लेते हुए बोलना शुरु किया- यार, मेरी बड़ी दीदी कुसुम की शादी हो गई थी, और अब तलाक भी हो गया और दीदी ने दो बार आत्महत्या की कोशिश भी की है, अब तू ही बता मुझे परेशान होना चाहिए या नहीं? मैंने कहा- हाँ यार, बात तो परेशानी की ही है, पर तू मुझे जरा विस्तार से बतायेगा तभी तो मैं कुछ समझ सकूँगा।
रवि ने कहा- यार, तू तो जानता ही है कि मेरी दीदी शुरु से ही सांवली और भद्दी है। इसलिए उसके रिश्ते के वक्त बहुत परेशानी हुई, हमने बहुत ज्यादा दहेज दिया तब जाकर एक लड़का मिला था। फिर पता नहीं शादी के दो साल बाद ही तलाक हो गया।
मुझे पूरा मामला समझ नहीं आया, मैंने कहा- और आत्महत्या की कोशिश कब की थी? तो उसने कहा- एक बार पहले और कर चुकी थी, और अभी हाल ही में फिर से कोशिश की है, मैं अभी वहीं जा रहा हूँ।
मैं अभी भी अधूरी बात ही समझ पाया था लेकिन ज्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा, मैंने कुछ सोच कर कहा- चल मैं भी तेरे साथ चलता हूँ। और हम बस से उतर कर एक कालोनी की तरफ चल पड़े जहाँ उसकी बहन रहती थी।
रास्ते में रवि ने मुझे बताया कि कुसुम तलाक के बाद एक टेलीकॉम कम्पनी में काल अटेंडर का काम कर रही है, और साथ ही पी. एस. सी. की तैयारी भी कर रही है, वैसे तो उनके घर इतना पैसा है कि उसे काम करने की जरूरत नहीं है पर वो अपना मन बहलाने के लिए जॉब कर रही थी, घर वाले उसे बार बार दूसरी शादी के लिए कहते थे, इसीलिए वो बिलासपुर आ कर अकेली रह रही थी, उसने पहली बार जहर खा लिया था, और सही समय पर हास्पिटल ले जाने से जान बच गई थी। और इस बार उसने अपनी नस काट ली थी इस बार भी उसे समय पर हास्पिटल ले जाया गया, आज ही हास्पिटल से घर लाये हैं। उसने कोशिश तीन दिन पहले की थी, उसके मम्मी पापा तुरंत ही कुसुम के पास आ गये थे, पर रवि बाहर गया हुआ था इसलिए आज जा रहा था।
हम दोनों कुसुम के घर पहुँचे, उसका घर अकेले रहने के लिए बहुत बड़ा था, दो बेडरुम एक बड़ा सा हाल एक गेस्टरुम और एक किचन था। रवि ने बाद में बताया कि यह घर उनका खुद का है। जिसे उन लोगों ने किश्त स्कीम में खरीदा था।
सभी हाल में ही बैठे थे, कुसुम वहाँ नहीं थी, सभी बहुत उदास लग रहे थे, मैंने सबके पैर छुये, दस साल बाद भी आंटी अंकल ने मुझे पहचान लिया। एक दूसरे से खैरियत जानने के बाद मैं और रवि कुसुम के रूम में गये, वहाँ रवि की छोटी बहन स्वाति भी बैठी थी।
हमारे अंदर आते ही वो जाने लगी तो रवि ने उसे रोका और अपनी दोनों बहनों का परिचय कराया, कुसुम ने कहा- हाँ, मैं इसे पहचानती हूँ… और मुझसे कहा ‘पट्ठा पूरा जवान हो गया है रे तू तो?’
मैंने मुस्कुरा कर कहा- हाँ दीदी! और फिर स्वाति की तरफ इशारा करके ‘ये भी तो पट्ठी जवान हो गई है।’इससे पहले स्वाति मुझे आश्चर्य से घूर रही थी पर अब मेरी बातों पर शरमा गई।
यहाँ पर आपको स्वाति का हुलिया बताना जरूरी है, स्वाति को मैंने दस साल पहले देखा था, तब वह केवल दस साल की मरियल सी पतली दुबली लड़की थी, अब वह बीस साल की हो चुकी है, मतलब जवानी का रंग उस पे चढ़ चुका है, 5’5″ हाईट, बेमिसाल खूबसूरती और रंग पहले से भी गोरा एकदम साफ हो गया है। बिना बाजू वाली टाप में उसके हाथ का एक छोटा सा तिल भी बहुत तेज चमक रहा था, चेहरा लंबा, बाल कुछ कुछ चेहरे पर आ रहे थे, होंठ गुलाबी रंगत के लिये हुए, पतले मगर थोड़े निकले हुए, लगता था किसी ने खींच कर लंबे किये हों। मम्मे बहुत भरे हुए पर सुडौल थे, टॉप के ऊपर से भी बिल्कुल तने हुए थे, मम्मे नीचे की ओर न होकर ऊपर की ओर मुंह किये हुए थे, पिछाड़ी बता रही थी कि कोई भी गाड़ी चल सकती है। मगर पेट बिल्कुल अंदर था, कुल मिला कर कहूँ तो कयामत की सुंदरी लग रही थी, श्रुति हसन की छोटी बहन कह दूं या देवलोक की अप्सरा तो कुछ गलत नहीं होगा मेरा मन तो उसे देखते ही हिलौर मारने लगा था।
लेकिन अभी हालात कुछ अलग थे, अभी कुसुम कैसे दिखती है, मैं नहीं बता पाऊंगा, क्योंकि उसने चादर ओढ़ रखी थी, चेहरे में उदासी थी झूठी हंसी की परतों में उसने अपने बेइंतहा दर्द को छुपा रखा था।
अचानक ही मेरे दिमाग में एक बात आई और मैंने रवि और स्वाति को कमरे से बाहर जाने को कहा और उनके जाते ही मैंने दीदी से कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि दीदी ने कहा- अब तुम भी लेक्चर मत देना। मैंने कहा- नहीं दीदी, मैं तो उस मैटर पर बात भी नहीं करुंगा, जो आपके जख्मों को कुरेदने का काम करे। बल्कि मैं तो बस यह कह रहा हूँ कि जो हुआ सो हुआ, अब उठो, मम्मी पापा से बातें करो मुझसे बातें करो। अपने हाथों से सबको चाय बना कर पिलाओ, सबको अच्छा लगेगा, ऐसे बैठे रहने से क्या होने वाला है।
उसके आँखों से आंसू की धारा बह निकली। उसने अपने ही हाथों से आंसू पोंछे और कहा- तुम ठीक कह रहे हो। और बिस्तर से उठते हुए कहा- सबकी चिंता छोड़ो, यह बताओ तुम क्या पियोगे चाय या कॉफी? तो मैंने कहा- जो आप पिला दो!
और जैसे ही वह कमरे से बाहर आई, सब चौंक गये और उसे आराम करने को कहने लगे। कुसुम ने कहा- मैं ठीक हूँ! तभी मैंने पीछे से सबको शांत रहने का इशारा कर दिया।
फिर कुसुम ने सबको चाय पिलाई और सबके सामने ही आकर कुर्सी पर बैठ गई। कुसुम को बातें करता देख सब बहुत खुश हुये और सबके साथ मुझे भी खुश देख कुसुम की उदासी थोड़ी कम हुई। मैं बिलासपुर अपने काम से गया था, इसलिए मैंने कहा.. अब मैं चलता हूँ, मुझे बहुत काम है। आप सब भी हमारे घर जरूर आइयेगा, कहते हुए कुर्सी से उठ गया।
फिर सबने कहा- तुम भी आते रहना, और अगर बिलासपुर में ठहरना हुआ तो यहीं आ जाना, कहीं और ठहरा तो तेरी खैर नहीं! मैंने ‘जी बिल्कुल!’ कहा और निकल गया।
तभी कुसुम दीदी की आवाज आई- जरा रुक तो! मैं रुका। वो मेरे पास आई.. और हाथ आगे बढ़ा के हेंडशेक करते हुये धन्यवाद दिया। इस समय उसकी आँखों में खुशी, आभार मानने के भाव और मेरे लिये स्नेह भी झलक रहा था। मैं जिस काम से गया था, मैंने अपना वह काम पूरा किया और समय पर घर वापसी के लिए निकल गया।
जब मैं बस पर बैठा आधा रास्ता तय कर चुका था.. तब कुसुम दीदी का फोन आया- संदीप तुम आज रुक रहे हो क्या? यहीं आ जाओ। मैंने कहा- नहीं दीदी, मैं तो निकल चुका हूँ। दीदी ने कहा- यहीं रुक जाना था ना..! अब कभी आओगे तो मेरे पास जरूर आना और रुक कर ही जाना। मैंने हाँ कहा और ऐसे ही कुछ और बातें हुई, फिर हमने फोन रख दिया।
कुछ दिन बितने के बाद मेरे पास एक चिट्ठी आई। दरअसल मैं बिलासपुर में एक प्राईवेट टेलीकॉम कंपनी की नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गया था और उस चिठ्ठी में मुझे आफिस ज्वाइन करने के लिए बुलाया गया था।
मैं एक हफ्ते बाद वहाँ रहने की तैयारी करके पहुँच गया और सबसे पहले मैं कुसुम दीदी के पास गया क्योंकि इत्तेफाकन वो भी उसी लाईन के जॉब में थी। जैसे ही दीदी ने मुझे देखा वो खुशी से उछल पड़ी, मुझे अजीब लगा पर मैंने सोचा कि अकेली रहती है तो अपने जान पहचान वालों को देख कर खुश होती होगी।
खैर मैं अंदर बैठा, फिर फ्रेश होकर हम दोनों ने चाय पी, तभी दीदी को मैंने नौकरी की बात बताई। दीदी फिर से बहुत खुश हो गई, दीदी ने मुझसे कहा- ज्वाइन कब कर रहे हो? मैंने कहा- आज ही करना है दीदी! तो उसने ‘हम्म्म…’ कहते हुए कुछ सोचने की मुद्रा में अपना सर हिलाया और कहा- तू दो मिनट रुक, मैं अभी आती हूँ। और वो अपने रूम में चली गई।
जब बाहर आई तो मैं उसे देखते ही रह गया क्योंकि उसने बड़ी ही सैक्सी ड्रेस पहन रखी थी, लाईट ब्लू कलर की डीप नेक टॉप और ब्लैक कलर की जींस, बाल खुले हुए थे। हालांकि बेचारी सांवली और मोटी होने की वजह से ज्यादा खूबसूरत नहीं लग रही थी फिर भी जितना मैं सोचता था, उतनी बुरी भी नहीं थी। दरअसल शहर में रहने वाली लड़कियाँ अपने कपड़ों और फैशन से अपनी कमजोरियाँ छुपा लेती है।
उसके हाथ में स्कूटी की चाबी और स्कार्फ थी, उसने स्कार्फ बांधते हुए ही कहा- अब चल! मैंने पूछा- कहाँ दीदी? तो उसने कहा- पहली बात तो तू मुझे दीदी कह के मत पुकारा कर! और अब मैं तुझे तेरे आफिस ले जा रही हूँ, वहाँ बहुत से लोग मेरी पहचान के हैं। मैंने कहा- हाँ, यह तो ठीक है, आप भी चलो मेरे साथ, पर मैं आपको दीदी न कहूं तो और क्या कहूं? तो उसने कहा- देख, मुझे सब किमी कहते हैं.. तू भी मुझे किमी कहा कर! मैंने हाँ में सर हिलाया और दोनों स्कूटी से ऑफिस की ओर निकल गये।
रास्ते में बहुत सी बातें हुई, गाड़ी किमी चला रही थी, बातों के दौरान मैंने दीदी को किमी कहना शुरु कर दिया, दो चार बार अटपटा लगा फिर आदत हो गई। आफिस पहुँचते ही वो सबको ऐसे हाय हलो कर रही थी जैसे वो रोज ही यहाँ आती हो। मैं उसके पीछे-पीछे चला जा रहा था, उसने कैबिन के सामने पहुँच कर नॉक किया और ‘मे आई कम इन सर!’ कहते हुए अंदर घुस गई।
सर ने ‘अरे आओ किमी, बैठो! कहो कैसे आना हुआ?’ कहकर हमारा स्वागत किया। वो कंपनी के मैनेजर थे।
किमी ने खुद बैठते हुए मुझे भी बैठने का इशारा किया और उसने मेरी तरफ इशारा करते हुए सर से कहा- यह मेरे शहर से आया है। मेरे भाई का दोस्त है, आप लोगों ने इसे अपनी कंपनी में जॉब के लिए सलेक्ट कर लिया है, आज ज्वाइन करने आया है।
मैंने सर को हैलो कहा और अपना बायोडाटा और वो लैटर दिया। सर ने उसे जल्दी से देखा और साईड में रखते हुए कहा- शुरुआत में 10000/- मिलेगा, बाद में तुम्हारे काम के हिसाब से बढ़ जायेगा। और रहने के लिए… किमी ने सर को इतने में ही रोक दिया- नहीं सर, यह तो मेरे साथ ही मेरे घर पर रहेगा।
मैंने कुछ कहने की कोशिश की.. लेकिन उसने फिर रोक दिया- तू चुप कर, तू कुछ नहीं जानता।
सर ने एक गहरी सांस ली और ओके कहते हुए मुझसे हाथ मिला कर बधाई दी। किमी ने भी हाथ मिलाया और ‘ठीक है सर… तो आप इसे काम समझा दो, मैं चलती हूँ। मैं इसे छुट्टी के टाइम वापस ले जाऊंगी।
मैंने स्माइल दी, तो किमी ने कहा- एक मिनट बाहर आना! मैं किमी के साथ बाहर तक गया, किमी ने बाहर निकल कर आफिस की दाईं ओर इशारा करके दिखाया- वो देख मेरा आफिस! हम दोनों के आफिस का टाइम लगभग सेम है, मेरी शिफ्ट टाइम 09.45 से 04.30 है और तुम्हारे ऑफिस का 10 से 5 लेकिन अगर अभी तुम्हें नाइट सिफ्ट भी कहें तो मना मत करना, हम बाद में सैटिंग कर लेंगे।
फिर वो चली गई, मैं अंदर आ गया। अमित नाम के एक लड़के ने मुझे काम समझाया, वो सेम पोस्ट में था।
शाम को किमी मेरे आफिस में आ गई और हम वापसी के लिए स्कूटी में निकल गये। किमी ने रास्ते में एक चौपाटी में गाड़ी रोक दी और फिर हम चौपाटी से गपशप करते हुए एक घंटे लेट घर पहुँचे।
कहानी जारी रहेगी… पूरा मजा आये इसलिए विस्तार से लिख रहा हूँ, मेरा मानना है कि सेक्स के साथ ही कहानी का भी भरपूर आनन्द लेना चाहिए। कहानी कैसी लगी इस पते पर अपनी राय दें.. [email protected]
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