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अब तक आपने पढ़ा.. रात को भाभी की चूत की चुदाई की लालसा में मैंने भाभी की चूत चूस कर उन्हें पूरा आनन्द दिया, अब सुबह घर में मैं और भाभी ही अकेले थे। अब आगे..
पहले तो रेखा भाभी ने उस चारपाई को बाहर निकाल दिया.. जिस पर मैं सोया हुआ था। चारपाई बाहर निकालने के बाद उन्होंने एक बार फिर से लैटरीन की तरफ देखा और फिर कमरे की सफाई करने के लिए जल्दी से आँगन में पड़ी झाडू उठाकर उस कमरे में चली गईं।
मेरी तरकीब कामयाब हो गई थी, भाभी के कमरे में जाते ही मैं भी धीरे से बिना कोई आवाज किए लैटरीन से बाहर आ गया और उस कमरे में घुस गया। मुझे देखते ही भाभी बुरी तरह घबरा गईं, वो जल्दी से बाहर जाना चाहती थीं.. मगर मैंने उन्हें दरवाजे पर ही पकड़ लिया और वहीं उन्हें दीवार से सटाकर उनके गालों को चूमने लगा।
डर के मारे रेखा भाभी के हाथ-पैर काँप रहे थे, जिसके कारण वो ठीक से कुछ बोल भी नहीं पा रही थीं, मुझसे छूटने का प्रयास करते हुए भाभी कंपकपाती आवाज में ही कहने लगीं- छ..छोओ..ड़ोओ…. म्म..मुउ…झेए.. नन…हींईई..ई.. छ..छोड़ओ.. उम्म्म… मैं.. श्श्शो..र.. म्मम..चाआआ.. ददूँगीईई…
मगर ऐसे मैं कहाँ छोड़ने वाला था, मैंने भाभी की पीठ के पीछे से अपने दोनों हाथों को डालकर उन्हें बांहों में भर लिया और फिर खींचकर बिस्तर पर गिरा लिया। बिस्तर पर गिरने के बाद तो रेखा भाभी मुझसे छुड़ाने के लिए अपने हाथ पैर और भी अधिक जोरों से चलाने लगीं।
भाभी को शान्त करने के लिए मैं उनके ऊपर लेट गया और अपने हाथों से रेखा भाभी के दोनों हाथों को पकड़ कर उनकी गर्दन व गालों को चूमने लगा। भाभी के दोनों हाथों को मैंने फैलाकर पकड़ रखा था.. इसलिए वो अपने हाथों को तो नहीं हिला पा रही थीं मगर अब भी भाभी पैरों को हिलाकर छटपटा रही थीं और कंपकंपाती आवाज में यही दोहरा रही थी कि मुझे छोड़ दो.. नहीं तो मैं शोर मचा दूँगी।
मगर मैं ये कहाँ सुन रहा था, मैं तो भाभी गालों को चूमते-चाटते हुए उनके रस भरे होंठों की तरफ बढ़ने लगा मगर भाभी अपनी गर्दन को हिलाकर मेरे चुम्बन से बचने का प्रयास करने लगीं। मैं जैसे ही उनके होंठों पर अपने होंठ रखता.. तो रेखा भाभी अपनी गर्दन को कभी दाएं तो कभी बाएं घुमा लेतीं।
ऐसा कुछ देर तक तो चलता रहा.. फिर तँग आकर मैंने भाभी के हाथों को छोड़ दिया और एक हाथ से उनके सर के बालों को पकड़ लिया, जिससे कि वो अपनी गर्दन ना हिला सकें और मैंने उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
अब रेखा भाभी अपनी गर्दन नहीं हिला सकती थीं.. वो बेबस सी हो गई थीं, मैं उनके दोनों होंठों को चूसने लगा। भाभी के होंठों को चूसते हुए ही मैं दूसरे हाथ से उनकी गोलाइयों को भी सहलाने लगा.. जिससे भाभी छटपटाने लगीं।
उनके दोनों हाथ अब आजाद थे.. इसलिए वो दोनों हाथों से धक्के और मुक्के मारकर मुझे अपने ऊपर से उतारने का प्रयास करने लगीं।
मैं कहाँ रूकने वाला था.. मैं रेखा भाभी के धक्के-मुक्के सहकर भी उनके होंठों के रस को पीता रहा और साथ ही दूसरे हाथ से उनके ब्लाउज व ब्रा को ऊपर खिसका कर उनके दोनों उरोजों को निर्वस्त्र भी कर लिया।
अब रेखा भाभी के नंगे नर्म, मुलायम और भरे हुए उरोज मेरे हाथ में थे.. जिन्हें मैं मसलने लगा। कुछ देर तो रेखा भाभी मेरा विरोध करती रहीं.. मगर फिर धीरे-धीरे उन्का विरोध कुछ हल्का पड़ने लगा।
रेखा भाभी के धक्के मुक्के अब कुछ हल्के व कम होने लगे.. शायद वो थक गई थीं। इसलिए मैं उनके सर के बालों को छोड़कर अपना दूसरा हाथ भी उनकी गोलाइयों पर ले आया और दोनों हाथों से उनके उरोजों को सहलाने व दबाने लगा।
जबकि अभी तक मैं उनके होंठों को भी चूस रहा था। कुछ देर तक तो ऐसे ही रेखा भाभी मेरा विरोध करती रहीं और मैं उन्हें मसलता और चूसता रहा।
मगर फिर धीरे-धीरे रेखा भाभी की साँसें भी गर्म व तेज होने लगीं, अब उन पर भी धीरे धीरे वासना की खुमारी चढ़ने लगी थी इसलिए अब उनका विरोध कुछ कम हो गया था।
अब भाभी विरोध करने की बजाए बस कसमसा ही रही थीं और मुझे छोड़ देने के लिए कह रही थीं। रेखा भाभी के होंठों का अच्छी तरह से रसपान करने के बाद मैंने उन्हें छोड़ दिया और थोड़ा सा नीचे खिसक कर उनके उरोजों पर आ गया।
रेखा भाभी के दूधिया उरोज ज्यादा बड़े नहीं थे.. बस औसत आकार के ही थे। मगर काफी सख्त थे और उन पर हल्के गुलाबी रंग के चूचुक थे.. जो कि अब तन कर सख्त हो गए थे, ऐसा लग रहा था मानो उनमें लहू भर गया हो।
भाभी के उरोजों को देखने के बाद मुझसे रहा नहीं गया.. इसलिए मैंने एक चूचुक को मुँह में भर लिया और किसी छोटे बच्चे की तरह उसे निचोड़-निचोड़ उसका रस चूसने लगा। मैं भाभी के चूचुक को कभी चूसता.. तो कभी उसके चारों ओर अपनी जीभ गोल-गोल घुमा देता। मैं कभी-कभी भाभी के चूचुक को दाँत से हल्का सा काट भी लेता था.. जिससे भाभी कराह पड़तीं ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
मगर अब वो मुझे हटाने की कोशिश नहीं कर रही थीं.. बस कराहते हुए दबी जुबान से यही कहे जा रही थीं कि छोड़ दो मुझे!
भाभी के उरोजों को चूसते हुए ही मैंने धीरे-धीरे अपना एक हाथ उनकी जाँघों के बीच नीचे के गुप्त खजाने की तरफ भी बढ़ा दिया और उसे कपड़ों के ऊपर से ही सहलाने लगा।
रेखा भाभी ने नीचे पेंटी नहीं पहन रखी थी क्योंकि उन्होंने रात वाले कपड़े ही पहन रखे थे और उनकी पेंटी तो मैंने रात में ही उतार कर बिस्तर के नीचे कहीं गिरा दी थी। शायद वो अब भी वहीं पड़ी होगी, इसलिए मेरे हाथों को उनकी योनि का आभास उनकी साड़ी व पेटीकोट के ऊपर से ही महसूस होने लगा।
अब तो रेखा भाभी से भी नहीं रहा गया और ना चाहते हुए भी उनके मुँह से हल्की-हल्की सिसकियाँ फूटने लगीं।
मैं रेखा भाभी की योनि को सहलाते हुए ही धीरे-धीरे उंगलियों से उनकी साड़ी व पेटीकोट को भी ऊपर की तरफ खींचने लगा।
मुझसे छूटने की कोशिश में उनकी साड़ी व पेटीकोट पहले ही घुटनों तक हो चुके थे और बाकी का काम मैंने कर दिया, नीचे पेंटी नहीं होने के कारण उनकी साड़ी व पेटीकोट के ऊपर होते ही अबकी बार मेरे हाथ ने सीधा उनकी नंगी योनि को स्पर्श किया.. जो कि मुझे गीली लग रही थी।
रेखा भाभी की नंगी योनि पर मेरे हाथ का स्पर्श होते ही वो और अधिक कसमसाने लगीं और मेरे हाथ को अपनी योनि पर से हटाकर अपनी साड़ी व पेटीकोट को सही से करने लगीं।
मगर तभी मैंने उनके उरोजों को छोड़ दिया और उनके मखमली व दूधिया सफेद गोरे पेट को चूमता हुआ धीरे से खिसक कर नीचे आ गया।
भाभी अपनी साड़ी व पेटीकोट को सही करें.. उससे पहले ही मैंने उनके हाथ को पकड़ लिया और साड़ी व पेटीकोट को फिर से उनके पेट तक उलटकर उनकी माँसल गोरी जाँघों व दोनों जाँघों के बीच उनके गुप्त खजाने को ध्यान से देखने लगा।
रेखा भाभी की दूधिया सफेद गोरी व मासंल भरी हुई जाँघें और दोनों जाँघों के बीच गहरे काले व घुँघराले बाल भरे हुए थे.. जो कि उनकी योनि को छुपाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे। भाभी की योनि पर इतने गहरे, घने बाल थे और उन्होंने लम्बाई के कारण योनि पर ही गोल-गोल घेरा बनाकर उनकी पूरी योनि को छुपा लिया था।
उनकी योनि के बालों को देख कर लग रहा था जैसे कि वो उनकी योनि के पहरेदार हों। मगर योनि की लाईन के पास वाले बाल योनि रस से भीग कर योनि से चिपके गए थे.. इसलिए योनि की गुलाबी फाँकें और दोनों फांकों के बीच का हल्का सिन्दूरी रंग इतने गहरे बालों के बीच अलग ही नजर आ रहा था।
रेखा भाभी की योनि को देखने के बाद मुझसे रहा नहीं गया और अपने आप ही मेरा सर उनकी जाँघों के बीच झुकता चला गया।
सबसे पहले तो मैंने उनकी दूधिया गोरी, माँसल व भरी हुई जाँघों को बड़े जोरों से चूम लिया.. जिससे रेखा भाभी के मुँह से एक हल्की ‘आह..’ सी निकल गई। भाभी ने मुझे हटाकर दोनों हाथों से अपनी योनि को छुपा लिया और वो अब भी यही दोहरा रही थीं कि मुझे छोड़ दो।
मुझे पता चल गया था कि रेखा भाभी अब उत्तेजित होने लगी हैं और दिखावे के लिए ही ऐसा बोल रही हैं इसलिए मैंने उनके हाथों को पकड़ कर अलग कर दिया और फिर से उनकी योनि पर अपने प्यासे होंठों को रख दिया। यह हिंदी चुदाई की कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
इस बार तो भाभी के मुँह से सिसकी निकल गई और अपने आप ही उनकी जाँघें थोड़ा सा फैल गईं।
मैंने रेखा भाभी की जाँघों को थोड़ा सा और अधिक फैला दिया और फिर अपने दोनों हाथों से उनके योनि की फांकों को फैलाकर अपनी जीभ को उनकी योनि की लाईन में घिसने लगा जिससे भाभी के मुँह से हल्की-हल्की सिसकारियां फूटने लगीं।
भाभी का विरोध अब काफूर हो गया था, मगर जब कभी मेरी जीभ उनकी योनि के अनारदाने को छू जाती.. तो वो सिहर उठतीं और मेरे बालों को पकड़ कर मुझे वहाँ से हटाने लगतीं। रेखा भाभी अब उत्तेजना के वश में थीं.. जिसका मैं पूर्णतः फायदा उठा रहा था।
कुछ देर तक मैं ऐसे ही अपनी जीभ को रेखा भाभी की योनि पर घिसता रहा और फिर थोड़ा सा नीचे उनके प्रेम द्वार पर आ गया। उनकी योनि पूरी तरह गीली हो गई थी।
मैं अपनी जीभ को रेखा भाभी के योनिद्वार के अन्दर डालने की बजाए उस पर गोल-गोल घुमाने लगा, जिससे रेखा भाभी की सिसकारियां तेज हो गईं। वो मेरी जीभ के साथ-साथ ही अपने नितम्बों को बिस्तर पर रगड़ने लगीं।
अब भाभी की योनि का खेल शुरू होने वाला ही है। यदि आप लोग चाहें तो एक बार अपने अपने सामान को हिला कर खाली कर लें। साथ ही मुझे एक ईमेल भी लिख दें। बस जल्द ही हाजिर होता हूँ। [email protected] भाभी सेक्स स्टोरी जारी रहेगी।
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