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मुझे सवेरे जल्दी उठना था क्योंकि घरेलू काम निपटाने के बाद ही मैं दफ़्तर जा सकता था तो मैंने सोना ही उचित समझा। सुबह मैं समय से ही उठ गया और लुंगी पहने हुए रसोई में अपने लिये चाय बनाने पहुंचा।
रात में मुझे बिल्कुल नंगे सोने की आदत है इसलिये मैं लुंगी में था और बन्डी मैंने नहीं पहनी हुई थी, क्योंकि मैं यह समझ रहा था कि रात में देर तक उन दोनों ने मजे लिये होंगे सो इतनी जल्दी सुबह तो उठेंगे नहीं।
मैं रसोई पहुंचा तो यह क्या… नीलू रसोई में थी और वो सब्जी काट रही थी। वो साड़ी में ही थी, उसने मुझे देखा और हल्के से मुस्कुराते हुए अपनी नजर झुका कर बोली, चाय बना दूं जीजा जी? मैंने भी हाँ बोल दिया।
वो चाय बनाने लगी, मैंने पूछा- तुम बड़ी जल्दी उठ गई? मुकेश अभी सो रहा है कि वो भी जाग चुका है? ‘नहीं, वो अभी सो रहे हैं।’ ‘तो तुम जल्दी क्यों उठ गई और ये सब क्यों कर रही हो?’ ‘अरे कुछ नहीं जीजा जी, जब तक मैं हूँ कम से कम आप आराम कर लो। जो मेरे बस में होगा वो सब में आपके लिये करूंगी। जीजी की बीमारी के कारण आप पर घर का कितना बोझ हो गया है।’
‘अरे कोई बात नही, अब दो दिन के लिये आई हो तो क्या मैं इन दो दिनो में अपनी सेवा करवा लूं। ‘तो क्या हुआ अगर मैं आपकी सेवा कर दूंगी तो?’ ‘ठीक है फिर सेवा करो, लेकिन कल को यह मत बोलना कि जीजा मैं ये नहीं करूंगी।’ मैंने दोहरी मतलब वाली बात की।
तब तक चाय बन चुकी थी, हम दोनों पोर्च में आकर चाय पीने लगे।
इधर चाय पीने के बाद मैं अपने कमरे में नहाने धोने के लिये आ गया और नीलू रसोई में सब्जी छोंकने के लिये आ गई। करीब आधे घंटे के बाद जब मैं नहाकर रसोई की तरफ एक बार फिर चाय पीने के लिये चाय बनाने के लिये नीलू को बोलने के लिये बढ़ा तो देखा नीलू वहाँ नहीं थी। हाँ, नीलू के कमरे का दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था।
मैं यह सोचकर कि नीलू को चाय बनाने के लिये बोल दूं, मैंने दरवाजा को धीरे से और खोल दिया और झांककर देखने लगा कि नीलू दिख जाये, पर नीलू दिखाई नहीं पड़ी, बल्कि मुकेश सो रहा था और बाथरूम से पानी के गिरने की आवाज आ रही थी।
मेरे दिमाग का शैतान जाग गया था, मैं वहीं दरवाजे के पास चिपककर अन्दर झांकने की कोशिश इस उम्मीद से कर रहा था कि कम से कम नीलू को एक बार फिर नंगी देख लूं।
ऊपर वाला भी मेरे ऊपर मेहरबान था, थोड़े ही देर बाद पानी की आवाज बंद हुई और नीलू तौलिया लपेटे हुए बाहर आई। बाहर आकर उसने अपने ऊपर से तौलिया हटाया और अपने सर को एक तरफ झुकाकर बाल पौंछने लगी।
मेरे सामने उसका पूरा नंगा जिस्म था, क्या लग रहा था… उसकी चूत बालों से ढकी हुई थी। अपने बाल पौंछने के बाद नीलू ने अपने एक पैर को उठाकर पलंग पर टिकाया और अपनी चूत को रगड़ कर साफ करने लगी और फिर अपने पूरे जिस्म को पौंछने के बाद सफेद रंग की पेंटी और ब्रा पहन लिया और फिर एक-एक करके अपने सारे कपड़े पहन लिये।
मैं देखने के बाद वहाँ से हट कर अपने कमरे में आ गया और एक बार फिर से वापस गुनगुनाते हुए रसोई की तरफ बढ़ने लगा। नीलू तैयार होकर बाहर आई और मुझे देखते हुए बोली- अरे जीजाजी, आप तैयार हो गये? ‘हाँ रोज की आदत जो है! तुम भी नहा धो ली हो।’ ‘हाँ।’ वो बस इतना ही बोली थी।
‘चाय चाहिये।’ ‘हाँ!’ वो चाय बनाने लगी।
कल रात से जब से उसके खुले जिस्म को देखा है मेरा नजरिया उसके प्रति बदल गया था, मैं रसोई में केवल उसके जिस्म को निहारने गया था। नहाने के बाद गीले खुले बाल, माथे पर एक छोटी नीली बिन्दी और उसी कलर की साड़ी वो पहने हुए थे, आंखों में काजल और गुलाबी लिपस्टिक, उसके अधरों को रसीला बनाये हुए थे।
उसकी चूची की माप शायद 34 की थी और कमर 30 के आसपास थी और हिप भी शायद 32 का था।
वो चाय बना रही थी और मैं उसको निहारने में लगा था, उसने मुझे कई बार पाया कि मैं एक टक उसको ही देख रहा हूँ लेकिन वो कुछ बोली नहीं और चाय बनाने में लगी रही। उसने हम सभी के लिये चाय बना ली थी क्योंकि सात बज चुके थे, सभी मेरे कमरे में आकर चाय पीने लगे।
थोड़ी देर बातचीत होने के बाद नीलू नाश्ता तैयार करने चली गई, मैं भी पीछे-पीछे उसके गया और बोला- देखो, तुम दो दिन रूकोगी और मेरी आदत बिगाड़ दोगी इसलिये मुझे मेरा काम करने दो। ‘अरे ये क्या बात हुई, मेरे होते हुए आप करेंगे?’
इतनी बात हुई थी हमारे बीच और फिर मैं नाश्ता लेकर ऑफिस निकल गया।
दोपहर करीब बारह बजे उन दोनों को अपने ऑफिस बुला लिया और पास के थियेटर पर एक पिक्चर लगी हुई थी, उसका टिकट देते हुए दोनों को वो पिक्चर एन्जॉय करने के लिये कहा। मुझे ऑफिस के काम से छुट्टी नहीं मिल रही थी और मिलती भी तो अपनी वाईफ को छोड़कर कहीं नहीं जा सकता था।
खैर शाम को जब मैं वापस घर आया तो देखा कि नीलू मेरी वाईफ की एक मैक्सी पहनी हुई है, बहुत गजब की लग रही थी उस मैक्सी में… मैक्सी में उसके गोले साफ-साफ दिखाई पड़ रहे थे। उसके मम्मे मुझे ऐसा लगा कि काफी तने हुए थे, मैं अपने अनुभव से बता सकता हूँ कि वो सेक्स के बारे मैं ही सोच रही होगी, और उस सोच की वजह से जो उत्तेजना बढ़ रही थी उसी के वजह से उसके उरोज तने हुए थे।
मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया और हम सभी बैठकर गपशप मारने लगे। पर मेरी नजर बीच-बीच में रह रहकर उसके उरोजों की ही तरफ जा रही थी, मेरी नजर को नजर अंदाज करना उसके लिये भी मुश्किल हो रहा था, इसलिये उसने अपने एक हाथ से मैक्सी के कालर को पकड़ा और उसे आपस में मिला दिया ताकि मेरी नजर पड़े भी तो उसे अजीब सा न लगे।
मैं उसकी इस अदा पर मुस्कुरा पड़ा, जवाब में वो भी मुस्कुरा दी। उसके आने से काम की कोई टेनशन नहीं थी, सो हंसी मजाक चल रहा था। हंसी मजाक में कितना टाईम बीत गया पता ही नहीं चला, लेकिन अचानक नीलू की नजर घड़ी पर पड़ी तो उछल पड़ी और बोली- अरे अभी खाना तो बना नहीं और टाईम कितना हो गया।
इतना कहकर वो उठी और रसोई की तरफ भागी, पर उसकी गांड की दरार में मैक्सी फंसी हुई थी। मेरी नजर के साथ-साथ मुकेश की भी नजर नीलू के दरार पर गई, मुकेश उसके पीछे-पीछे रसोई में गया।
मैं कमरे से बैठ कर रसोई की तरफ देख रहा था तो मुकेश उसके पीछे खड़े होकर उसकी मैक्सी को खींचा और साथ में वो कुछ बोला भी था। फिर पीछे से वो नीलू के चिपक गया, नीलू ने अपनी कोहनी मारकर अपने से अलग किया। जब तक नीलू खाना बना रही थी, तब तक मुकेश भी उसके साथ था।
खाना खाने के बाद थोड़ी देर एक बार फिर सभी मेरे कमरे में बैठे और फिर हल्की बातचीत और हंसी मजाक करते रहे। फिर वाईफ के कहने पर दोनों अपने कमरे में चले गये। मैं भी उठा और अपने कपड़े उतार कर तहमत पहन लिया और कमरे से बाहर आने लगा, तो वाईफ ने टोका, मैंने उसे नींद नहीं आने का हवाला दिया और बोला- थोड़ी देर टहल कर आता हूँ।
इतना कहकर मैं बाहर आ गया और नीलू के कमरे की तरफ चल दिया।
सभी कमरों की लाईट ऑफ थी, बस नीलू के कमरे की लाईट जल रही थी। मैंने की-होल से झांक कर देखा तो पाया कि नीलू मुकेश के छाती पर अपने सिर को रखे हुए है और दोनों ही बड़े मग्न से मोबाईल पर कुछ देख रहे हैं। शायद ब्लू मूवी देख रहे होंगे।
नीलू अभी भी उसी मैक्सी में थी, जबकि मुकेश के जिस्म में चड्ढी के अलावा कुछ नहीं था। नीलू का एक पैर मुकेश की जांघ पर था। करीब पांच मिनट बाद मुकेश ने मोबाईल एक किनारे रखा और नीलू के गालों को अपने हाथों में लेकर उसके होंठों को चूसने लगा। लेकिन नीलू ने अपने को छुड़ाते हुए मुकेश की तरफ देखने लगी।
मुकेश बोला- क्या हुआ? तो नीलू बोली- कुछ नहीं! ‘तो फिर आओ।’
नीलू मुकेश की बात काटते हुए बोली- मेरे दिमाग में एक बात है। मुकेश बोला- हाँ-हाँ बोलो? ‘जिज्जी के बीमार पड़ने से जीजाजी बिल्कुल अकेले हो गये हैं, सब काम अकेले करना पड़ता है। कुछ दिन और रूक जायें तो?’
मुकेश थोड़ा गम्भीर होकर बोला- देखो, मैं तो नहीं रूक सकता और दूसरे रूकने का मतलब है कि उनके ऊपर बोझ बनना, क्योंकि रूकने से हमारा खर्चा उन पर अतिरिक्त पड़ेगा। ‘हाँ, बात तो सही है, लेकिन॰॰॰!’ लेकिन कहकर नीलू चुप हो गई।
पर शायद मुकेश उसकी बात को समझ गया और बोला- देखो मैं तो नहीं रूक पाऊँगा। हाँ, अगर तुमको रूकने के लिये दोनों में कोई कहता है तो तुम रूक जाना, नहीं तो कल शाम को हम लोग चल चलेंगे। ‘ओह डार्लिंग, तुम कितने अच्छे हो!’ कहते हुए नीलू मुकेश के होंठों को चूमने लगी।
मुकेश बोला- चलो, मैं अच्छा बन गया, अब तुम भी अच्छी बन जाओ। ‘बोलो क्या करना है?’ नीलू बोली। ‘कुछ नहीं, जैसा मूवी में देखा है, वैसा ही करो।’
‘लंड का पानी नहीं पियूंगी!’ नीलू बोली। ‘ठीक है बाबा, बाकी तो सब करो।’
मुकेश के इतना कहने के साथ ही नीलू खड़ी हुई और अपनी मैक्सी को उतार कर एक किनारे फेंक दी। मुकेश नीलू के मैक्सी उतारने के साथ ही उठकर बैठ गया और उसकी जांघों को पकड़ कर चूमते हुए बोला- ओ जान तुम सफेद रंग की पेंटी और ब्रा में कितनी सेक्सी लग रही हो।
उसके हाथ धीरे धीरे नीलू के चूतड़ की तरफ बढ़ने लगे और फिर चूतड़ को मुकेश ने कस कर पकड़ लिया और नीलू की पेंटी के ऊपर से ही अपनी जीभ चलाने लगा। नीलू तब तक अपने ब्रा उतार चुकी थी। मुकेश इस बीच उसकी चूत को पेंटी के ऊपर से ही चाटे जा रहा था और मुकेश के थूक के निशान धीरे-धीरे नीलू के पेंटी के ऊपर दिखते जा रहे थे।
पेंटी काफी गीली हो चुकी थी, फिर मुकेश ने ही उसकी पेंटी उतार कर उसको नंगी कर दिया और उसकी बुर को और मस्ती से चाटने लगा।
नीलू बस यही कही जा रही थी- जितनी कसर है निकाल लो, और चाटो। उम्म्ह… अहह… हय… याह… बहुत मजा आ रहा है। तभी मुकेश रूक गया और नीलू से चूत की फांकों को खुद ही चौड़ा करने को बोला, नीलू के हाथ उसकी चूत के फांकों के ऊपर चलने लगे और फिर उसने अपनी फांकों को फैला दिया और खुद ही अपने को हिलाने डुलाने लगी और अपनी चूत को वो खुद ही चटवाने लगी।
फिर मुकेश ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपनी गोद के ऊपर बैठा लिया और उसकी चूचियों को बारी-बारी चूसने लगा, नीलू भी उसका खूब साथ दे रही थी।
थोड़ी देर चूची पीने का दौर चला, फिर उसके बाद मुकेश खड़ा हो गया, नीलू के मुंह में अपना लंड दे दिया और उसके मुंह को चोदने लगा। यह हिंदी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
नीलू के दोनों हाथ मुकेश की जांघ में थे और वो अपना मुंह चुदवा रही थी। उसके बाद दोनों पलंग से उतरे और नीलू घोड़ी स्टाईल में खड़ी हो गई, मुकेश उसके पीछे आकर अपना लंड उसकी चूत में डालने लगा, लेकिन शायद मुकेश पहली बार नीलू को पीछे से चोदने की कोशिश कर रहा था।
उसने अपने थूक को अपनी हथेली में लिया और लंड के चारों ओर लगाया और एक बार फिर डालने की कोशिश की, लेकिन इस बार भी लंड फिसल कर बाहर आ गया, तब नीलू ने उसके लंड को पकड़ा और अपनी चूत पर सेट करके हल्का सा पीछे हुई और लंड सड़ाक से चूत के अन्दर था।
मुकेश ने नीलू की कमर पकड़ी और धक्के पर धक्का देना शुरू किया।
कुछ देर तक तो दोनों के मुंह से आह ओह की आवाज आती रही लेकिन कुछ ही देर के बाद फच-फच की आवाज उन दोनों की आवाज पर भारी पड़ने लगी। कुछ और धक्के मारने के बाद मुकेश ने अपना लंड निकाला और नीलू पलंग पर सीधी लेट गई, मुकेश उसकी टांगों के बीच आ गया और उसके दोनों पैरों को उठाकर अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया और एक बार दोनों के बीच चुदाई का कार्यक्रम फिर शुरू हो गया। हाँ, इस बार कभी वो नीलू की टांगों को फैला देता तो कभी आपस में सिकोड़ देता। मुझे लगा कि जो ब्लू फिल्म देखी थी, उसी की नकल दोनों कर रहे थे।
खैर दोनों की चुदाई का कार्यक्रम ज्यादा देर तक नहीं चला और दोनों झड़ने की स्थिति में पहुंच गये थे! और फिर वही हुआ जो होना था, मुकेश नीलू के ऊपर धड़ाम हो गया, नीलू ने उसे कसकर जकड़ लिया।
मेरा काम खत्म हो चुका था और कभी भी मेरी वाईफ की आवाज भी आ सकती थी, मैं तुरन्त ही आकर सो गया। कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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