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इस स्टोरी ऑफ़ सेक्स इन रिलेशनशिप में पढ़ें कि कैसे मैं अपनी चाची को चोदना चाहता था और चाची भी मेरे लंड का मजा लेना चाहती थी. लेकिन बात बन नहीं रही थी.
स्टोरी ऑफ़ सेक्स इन रिलेशनशिप के पिछले भाग माँ समान औरत ने मेरी वासना जगायी में आपने पढ़ा कि एक रात चाची ने मुझे अपने बिस्तर पर बुलाकर अपनी चूची चुसवायी, फिर मेरा लंड पकड़ने लगी.
कुछ ही देर में चाची का नर्म हाथ मेरे खड़े लौड़े पर पहुँच गया. चाची ने जैसे ही लौड़े को पकड़ा तो एकदम उनके मुँह से निकल गया- राज, तुम्हारा हथियार तो चाचा से डबल है, तुम अब छोटे नहीं हो. यह कह कर चाची ने लौड़े को दो तीन बार जोर से भींच दिया.
मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा वीर्य उसी वक्त निकल जायेगा.
अब आगे स्टोरी ऑफ़ सेक्स इन रिलेशनशिप:
लौड़े पर चाची का हाथ पहुँचते ही मैंने भी नाईट गाउन से बाहर आई चाची की जांघ पर अपना हाथ रख दिया.
कुछ ही देर में चाची ने मेरे लोअर के इलास्टिक में हाथ अंदर डालकर मेरे लौड़े को पकड़ा और ऊपर नीचे करने लगी. मैं भी चाची के चिकने और रसीले होंठों पर टूट पड़ा और उन्हें चूसने लगा.
हम दोनों एक दूसरे में समाने की कोशिश करने लगे.
चाची ने नाईट गाउन की डोर खोल दी. अब चाची के शरीर पर केवल एक छोटी सी पैंटी रह गई थी. उनका पूरा नँगा शरीर मेरे शरीर से टकराने लगा.
चाची ने अपनी एक टांग को मेरे ऊपर चढ़ा लिया और लगभग मुझे अपने शरीर के नीचे दबा लिया. मैं भी बेहताशा चाची के शरीर पर जगह जगह हाथ चलाने लगा.
चाची ने मेरे और अपने शरीर को चादर से ढक लिया था. चादर के अंदर जो जवान और वासना के प्यासे शरीर आपस में एक दूसरे के अंदर जाने को उतावले थे.
चाची मेरे कान में फुसफुसाई- राज, फुद्दी मारेगा? मैं- क्या? चाची- बर्थडे गिफ्ट लेगा? मैं- क्या दोगी? चाची- चूत लेगा? मैं- दे दो.
चाची- तो फिर नीचे हाथ लगा न! मैंने तुरंत चाची की चूत को पैंटी के ऊपर से हाथ की मुट्ठी में भींच लिया. जैसे ही मैंने चूत को भींचा; चाची ने एकदम आ..आ.. आ..आ करते हुए आवाज निकाली. ठीक उसी वक्त मोंटू उठ गया और रोने लगा.
चाची ने थोड़ा घूमकर उसे चुप कराने की कोशिश की लेकिन वह जोर जोर से रोने लगा. हम अलग हो गए.
चाची ने करवट बदल ली. उसी वक्त चाचा भी उठे और बिना पीछे देखे उठकर बाथरूम चले गए.
चाची ने एकदम मुझे पीछे धकाते हुए अपने फोल्डिंग बेड पर जाने का इशारा किया. मैं एकदम नीचे ही नीचे होता हुआ अपने बेड पर लेट गया.
चाची ने मोंटू के मुँह में अपना दूध दे दिया और वह चुप हो गया.
चाचा बाहर आये और चाची की ओर करवट लेकर लेट गए. मैं घबराहट के कारण दुबक कर सो गया.
सुबह जब उठा तो कमरे में कोई नहीं था. चाचा अपने ऑफिस जाने को तैयार थे और चाची रसोई में काम कर रही थी.
मैं उठकर बाथरूम जाकर किचन में गया और चाची के पास जाकर खड़ा हो गया.
चाची ने मुझे देख लिया परंतु अनदेखा कर दिया.
कुछ देर बाद चाची बोली- राज, रात को तो बाल बाल बच गए. अब मैंने ऐसा कोई काम नहीं करना है, तुम जाओ यहाँ से! मैं- और मेरा बर्थडे गिफ्ट? चाची धीरे से बोली- कोई गिफ्ट विफ़ट नहीं है, छोड़ो ये चक्कर … तुम तो छोटे हो, सारा इल्जाम तो मुझ पर ही आ जायेगा.
मैं निराश होकर बाहर निकल गया. चाची ने मुड़कर मुझे वहाँ से जाते हुए देखा.
मेरा मूड खराब हो गया था अतः मैं घर से ही बाहर चला गया और वहाँ जाकर क्रिकेट खेलने लगा.
मुझे काफी देर हो गई थी और मैंने ब्रेकफास्ट भी नहीं किया था.
लगभग दो घंटे बाद मम्मी मुझे बुलाने ग्राउंड में आई और मुझे ले गई.
चाची ने पूछा- कहाँ गए थे, नाश्ता भी नहीं किया? मैंने चाची की ओर नजरें नहीं मिलाई.
जब भी चाची कुछ बोलती या पूछती तो मैं नजरें नीची करके जवाब देता रहा. चाची अपने कमरे में चली गई.
उन्होंने मुझे अंदर बुलाया और फिर वही बातें दोहराई. मैं- चाची, फिर आपने मेरे साथ ये सब क्यों किया? चाची- उस रात मैं बहक गई थी. मैं- क्या मतलब?
चाची- क्योंकि तुमने बाथरूम में जाकर मेरे पेटिकोट में अपना माल डिस्चार्ज कर दिया था, तो मेरा भी दिल कर गया था, मैंने समझा था कि चलो लड़के का दिल खुश कर देती हूँ, लेकिन वो गलत था.
मुझे ध्यान आया कि रात को मेरे बाथरूम जाने के बाद चाची गई थी और उन्होंने अपना गीला पेटिकोट देख लिया था.
चाची ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- राज, तुम अपना ध्यान पढ़ाई में लगाओ. मैं- अब क्या खाक मेरा ध्यान पढ़ाई में लगेगा? और यह कहते हुए निराश हो कर मैं बाहर जाने लगा.
चाची मेरे सामने खड़े हो कर मुझे रोकने लगी, उन्होंने अपनी बाँहें फैला कर मेरे सामने अपनी चूचियाँ अड़ा दी. लेकिन मैं बाहर निकल गया. परन्तु जाते जाते मुझे सुनाई दिया- चलो मैं देखती हूँ.
चाची की ‘चलो मैं देखती हूँ’ की बात से फिर आशा जाग गई. लेकिन मेरे और चाची के बीच बातें न के बराबर रह गईं.
उसी दिन दादी भी चली गई तो ज़ाहिर था मुझे अलग कमरे में सोना था.
दो तीन दिन ऐसे ही हाँ.. हूँ.. में निकल गए और मुझे व चाची को ज्यादा बात करने का न ही कोई मौका मिला और न ही मैंने कोशिश की.
लेकिन उस रात को मेरे और चाची के बीच जो कुछ हुआ वह भूलने वाली बात नहीं थी. हर वक्त मुझे चाची के गुदाज़, गर्म शरीर का स्पर्श याद आ रहा था, चाची के मस्त बूब्स, चाची की फूली हुई चूत का स्पर्श… इन सबकी याद दिमाग से निकल ही नहीं रही थी.
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरी चूत की लॉटरी निकाल कर देने से मना कर दिया. मैं वही मन्जर याद करके कितनी ही बार मुठ मार चुका था.
दो दिन बाद लगभग साँय 4.00 बजे खेलते हुए मुझे ग्राउंड से बुलाया गया. मैंने देखा चाची बाहर बरामदे में एक बड़ा सा बैग ले कर मम्मी के पास बैठी थी. मुझे लगा कि चाची कहीं जा रही है और यह देखकर मेरी तो जैसे जान ही निकल गई.
मेरी मम्मी ने मुझे बैठाया और बोली- राज, तुम्हारे नाना नानी अर्थात रश्मि के मम्मी पापा तीन चार दिन के लिए किसी जरूरी काम से आज बाहर गए हैं. जाते हुए वे मुझे बोलकर गए हैं कि पीछे से उनका डॉगी अकेला रहेगा और वैसे भी उस एरिया में चोरियां होती हैं तो रश्मि को वहाँ दो तीन दिन के लिए भेज दिया जाए. यह सुन कर मेरा दिल बैठ गया.
मम्मी आगे बोली- अब तुम्हारे चाचा भी आज टूर पर चले गए हैं. रश्मि कह रही है कि वह अकेली कैसे वहाँ रहेगी, उसे डर लगेगा और जाने से मना कर रही है, रश्मि कह रही है कि यदि आप राजू को मेरे साथ भेज दो तो मैं चली जाती हूँ, वह अपनी बुक्स ले चलेगा और अलग कमरे में सो जाएगा और वहीं पढ़ लेगा.
जब मम्मी ये सब कह रही थी तो चाची का चेहरा इस डर से उतरा हुआ था कि कहीं मैं जाने से मना न कर दूँ. मम्मी चाची से कुछ आगे बैठी थी इसलिए जब मैंने चाची की ओर देखा तो चाची ने धीरे से अपनी आँख दबा कर इशारा किया तो मैंने मम्मी से कहा- कोई बात नहीं, जैसा आप कहती हो वैसा ही कर लेता हूँ.
सारी बात समझते ही मैं इतना खुश हुआ कि कुछ बोलने ही वाला था कि चाची ने उंगल होंठों पर रखकर चुप रहने का इशारा कर दिया.
दरअसल चाची नहीं चाहती थी कि मैं अत्यधिक खुशी जाहिर कर दूँ और मम्मी को शक हो जाये.
मम्मी- ठीक है, तेरी चाची ने तेरे कुछ कपड़े अपने बैग में रख लिए हैं. तुम लोग अभी निकल जाओ. चाची थोड़ा सीरियस हो कर बोली- और हाँ, अपनी बुक्स भी रख लेना, वहाँ पर पढ़ाई करनी है. मैं चुपचाप अन्दर गया और अपनी दो बुक्स ले ली.
चाची का मायका लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे शहर में था. वहाँ एक लोकेलिटी में उनकी अच्छी कोठी थी.
हम तीनों चाची के शहर साँय 6 बजे पहुँच गए.
लेकिन जैसे ही हम बस से उतरे हल्की बारिश शुरू हो गई थी और मौसम बहुत ही दिलकश हो गया था.
रास्ते में मेरी और चाची की कोई ज्यादा बात नहीं हुई, हम दोनों बस एक दूसरे को देखकर मन ही मन खुश हो रहे थे.
हमने एक ऑटो किया और चाची के घर पहुंच गए. बारिश जोर से होने लगी थी.
घर की चाबी पड़ोस में थी. मोंटू को मेरी गोद में देकर चाची चाबी ले आई.
मेन बॉउंड्री गेट का ताला खोल कर चाची ने अंदर से ताला लगा दिया और फिर अंदर का ताला खोल कर हम घर के अन्दर पहुँचे.
हम तीनों बुरी तरह से भीग गए थे. चाची ने फटाफट मोंटू के कपड़े बदले और उसे बेड पर लिटा दिया.
चाची- चलो, तुम भी कपड़े बदल लो. मैं- आप भी बदल लो.
चाची ने अपनी साड़ी उतार दी, मैं भी अपने कपड़े खोलने लगा.
साड़ी उतरते ही मैंने देखा चाची का पेटिकोट उनकी जांघों और चूतड़ों में चिपक कर घुसा हुआ था. उसे देखते ही मेरा लण्ड खड़ा होने लगा. चाची- चलो, ये पैंट भी उतार दो.
मैंने जैसे ही अपनी पैंट नीचे की तो चाची मेरे अंडरवियर में उठे उभार को देखकर मुस्कराने लगी और बोली- ये क्यों तना हुआ है? मैं चुप रहा और टॉवल लेकर लपेट लिया और अंडरवियर भी निकाल दिया.
चाची अपने ब्लॉउज के हुक खोलने लगी लेकिन तीन हुक खोल कर रुक गई और मेरे पास आ कर बोली- साहब, चार दिन से मुझसे क्यों नाराज़ थे? अब बता तुम्हें क्या नाराज़गी थी? मैं चुप रहा.
चाची- पता है तुम्हारी नाराज़गी दूर करने के लिए मैंने ये सब प्लान किया है वर्ना मेरे मम्मी पापा तो उस शादी में जाने को तैयार ही नहीं थे, मैंने उन्हें जबदस्ती भेजा और फिर दीदी को तैयार किया कि मेरे साथ तुझे भेज दें.
मैं मुस्कराने लगा और चाची से लिपट गया. चाची ने भी मुझे बांहों में भर लिया.
बाहर बारिश तेज हो गई थी जिससे अचानक बिजली चली गई.
स्टोरी ऑफ़ सेक्स इन रिलेशनशिप पर आप अपनी राय कमेंट्स में ही लिखिएगा. लेखक के आग्रह पर इमेल आईडी नहीं दी जा रही है.
स्टोरी ऑफ़ सेक्स इन रिलेशनशिप जारी रहेगी.
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