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प्रिय अन्तर्वासना पाठको दिसम्बर महीने में प्रकाशित कहानियों में से पाठकों की पसंद की पांच कहानियाँ आपके समक्ष प्रस्तुत हैं…
मैं अपने बिज़नस के सिलसिले में आगरा जा रहा था। मुझे आगरा में लगभग एक हफ्ते का काम था।
जब मेरे एक दोस्त को पता चला कि मैं आगरा जा रहा हूँ तो वो मेरे पास आया और मुझे कुछ सामान देते हुए बोला- आगरा में मेरी बुआ जी रहते हैं, प्लीज ये सामान उन्हें दे देना। मैंने वो सामान अपने दोस्त से ले लिया और उसी रात आगरा के लिए निकल पड़ा।
आगरा में मैं होटल में रहने वाला था। सुबह सुबह आगरा पहुँच कर मैंने एक दो होटल देखे पर कुछ समझ नहीं आया। फिर सोचा कि पहले दोस्त का सामान ही दे आता हूँ, दोस्त की बुआ के यहाँ चाय पीकर फिर आराम से होटल देखते हैं।
बस फिर मैंने अपनी गाड़ी दोस्त के बताये एड्रेस की तरफ घुमा दी। दस मिनट के बाद मैं दोस्त के बताये पते के सामने था।
मैंने बेल बजाई तो कुछ देर बाद एक लगभग पैंतीस चालीस की उम्र की भरे भरे शरीर वाली औरत ने दरवाजा खोला। मैंने अपने दोस्त का नाम बताया और बताया कि उसने अपनी आरती बुआ के लिए कुछ सामान भेजा है।
तो वो बोली- मैं ही आरती हूँ, आप अंदर आ जाइए! जैसे ही वो मुड़ कर अन्दर की तरफ चली तो उसकी मटकती गांड देख कर मेरे लंड ने एकदम से सलामी दी। आखिर ठहरा चूत का रसिया।
वैसे मेरे दोस्त की बुआ जिसका नाम आरती था, थी भी बहुत मस्त औरत… पूरा भरा भरा शरीर, मस्त बड़ी बड़ी चूचियाँ जो उसके सीने की शोभा बढ़ा रही थी, हल्का सा उठा हुआ पेट जोर पतली कमर के साथ मिलकर शरीर की जियोग्राफी को खूबसूरत बना रहा था, उसके नीचे मस्त गोल गोल मटकी जैसे थोड़ा बाहर को निकले हुए कुल्हे जो उसकी गांड की खूबसूरती को चार चाँद लगा रहे थे।
आप भी सोच रहे होंगे कि शरीर की इतनी तारीफ़ कर दी, चेहरे की खूबसूरती के बारे में एक भी शब्द नही लिखा। अजी, इतने खूबसूरत बदन को देखने में इतना खो गया था कि चेहरे की तरफ तो निगाह गई ही नहीं।
पूरी कहानी यहाँ पढ़िए…
मेरी ऑफिस के एक सहेली नेहा ने बताया कि उसकी शादी है, उसने मुझे भी शादी में आने को कहा और कहा कि आएशा को भी साथ लेकर आना। आएशा और नेहा एक दूसरे को जानती थी। मैंने भी उससे हाँ बोल दिया।
घर आकर जब मैंने आएशा को शादी वाली बात बताई तो उसने जाने से मना कर दिया। मैंने उसे कहा- चल ना यार… वरना मैं अकेली बोर हो जाऊँगी। तो वो बोली- साहिल को साथ लेकर चली जा! मैंने उसे कहा- यार, वो एक फैमिली फंक्शन है। वहाँ मैं साहिल के साथ नहीं जा सकती क्यूंकि सबको यही पता है कि साहिल मेरा बॉयफ्रेंड है।
थोड़ी देर मनाने के बाद आएशा मान गई।
दो दिन बाद शादी वाले दिन हम दोनों पहले पार्लर गई, फिर घर आकर तैयार होने लगी, हमने शादी में साड़ी पहनने का फैसला किया। मैंने नीले रंग की और आएशा ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी। हम दोनों ने साड़ी नाभि से बहुत नीचे बांधी हुई थी। साफ़ शब्दों में कहूँ तो अगर हम दोनों ने अपनी झांटें साफ़ ना की हुई होती तो हमारा झांट प्रदेश सबको साफ़ साफ़ दिख जाता। और हमारा ब्लाउज तो ब्रा जैसा ही था, पीछे से बेकलेस था और आगे से भी बस चूचियाँ ही ढक पा रहा था। कुल मिलाकर हम दोनों माल लग रही थी। अगर उसे वक़्त कोई भी हमें देखता तो वो भी हमें चोदना चाहता।
फिर हम दोनों बहनें अपनी कार से शादी की जगह तक पहुँच गई। शादी में मेरे ऑफिस के सभी साथी आये हुए थे, उनमें से कुछ लड़कियाँ गजब लग रही थी और लड़के भी हेंडसम लग रहे थे।
वहाँ लगभग सभी लड़को की नजर हम दोनों बहनों की चूची पर ही थी। मेरी ऑफिस की एक सहेली प्राची ने मेरे कान में कहा- आज क्या किसी को पटाने का प्रोग्राम है? तो मैंने उसकी बात हंसकर टाल दी।
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यह कहानी नॉएडा के रहने वाले एक कपल रोहित और कविता की है.. जो मेरी कहानियाँ को अक्सर पढ़ते हैं और मुझे मेल भी करते हैं। उनसे धीरे धीरे मेरी बात ज्यादा होने लगी, वो मेरे से चैटिंग करते हुए सेक्स करने लगे। फिर हम व्हाट्सएप पर भी बातें करने लगे और फ़ोन पर भी बात होने लगी।
एक दिन उन्होंने ऐसे ही बात करते हुए मुझे मिलने के लिए बोला। मुझे कुछ काम की वजह से उनसे मिलना नहीं हो पाया और ऐसे ही हमें बातें करते करीब 3-4 महीने निकल गए।
आखिर एक दिन मुझे एक काम की वजह से नॉएडा जाने का मौका मिला, तो मैंने उन्हें बताया। वो बहुत खुश हुए। मैंने उन्हें बताया कि मैं वहाँ 2 दिन के लिए आ रहा हूँ। तो उन्होंने मुझसे कहा कि मैं रात को उनके पास ही ठहरूं। पहले तो मैंने मना किया, परन्तु उनके जोर देने पर मैं उनके पास रुकने के लिए राजी हो गया।
मैं गुरूवार को शाम तक उनके पास पहुँच गया, वो दोनों मुझे स्टेशन पर लेने के लिए आए हुए थे। मैंने उन्हें देखा वो दोनों ही बहुत स्मार्ट थे। रोहित तो बहुत सुन्दर था ही और कविता ऐसा माल थी कि जैसे अँधेरे में रोशनी कर दे। बिल्कुल दूधिया जिस्म.. एकदम कसे हुए मम्मे.. जो उसके टॉप में और भी मस्त लग रहे थे। इतनी सुन्दर होने के बावजूद.. ऊपर से मेकअप करने के बाद वो फुल सेक्सी माल लग रही थी।
मैं एक बार तो उसे देखता ही रह गया, उसकी मुझसे ‘नमस्ते’ की तो मैं उसकी जवानी की कल्पना से वापिस आ गया। रोहित भी मुझे गले लग कर मिला।
हम स्टेशन से बाहर आए और रोहित ने अपनी कार में मेरा बैग रखा और मुझे अपने साथ बिठाया। कुछ ही देर में हम सब घर की तरफ निकल पड़े।
रास्ते में मुझसे रोहित बातें करता जा रहा था और अपने शहर के बारे में बता रहा था। पीछे बैठी कविता भी खुल कर मुझसे बात कर रही थी।
तभी रोहित ने कहा- रवि जी, कविता तो आपकी कहानियों की दीवानी है, ये तो कब से आपको मिलने के लिए तरस रही थी, आपकी पक्की फैन है ये। मैंने भी मुस्कराते हुए पीछे मुड़ कर कविता की ओर देखते हुए कहा- ओह.. अच्छा कविता जी.. क्या रोहित जी सही कह रहे हैं?
तो कविता थोड़ी शर्मा गई।
मैंने उसकी शर्म को दूर करते हुए उससे कहा- अरे फोन पर तो बहुत बेबाक होकर चुद भी जाती हो कविता.. और आज मैं सामने आया तो ऐसे शर्मा रही हो जैसे कुंवारी लड़की शर्माती है।
रोहित बोला- अरे यार कोई बात नहीं कविता की शर्म घर जाकर उतार देंगे। कविता बोली- अरे यार आप तो बस, अभी से शुरू हो गए। आप और सुनाओ.. कैसे हो.. सफर कैसा रहा? मैंने कहा- सब मस्त, बस तुम्हारी वो नंगी फोटो देखते हुए आ गया, जो आप दोनों ने मुझे व्हाट्सैप्प पर भेजी थी।
वो फिर थोड़ा शर्मा गई और बोली- अरे ये भी न बस.. ऐसे-ऐसे काम करते हैं कि पूछो मत! ऐसी ही बातें करते हम उनके घर पहुँच गए।
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मैं एक सरकारी विभाग में उच्च पद पर कार्यरत हूँ, मेरे रिटायर होने में बस अब कुछ ही वर्ष शेष हैं। मैंने अपना सारा जीवन सादगी और कर्मठता से जिया है, अपनी पत्नी के अलावा कभी भी किसी दूसरी के साथ इसके पहले सम्भोग नहीं किया था और न ही मैं इन चक्करों में कभी पड़ा। हाँ, कभी कभी अपने इस दोस्त के साथ महीने दो महीने में पीने पिलाने का दौर चल जाता है बस!
मेरे घर में मेरी पत्नी रानी, एक पुत्र और एक पुत्री है। बेटे का विवाह पिछले साल ही कर दिया था, वह भी एक बैंक में अच्छे पद पर कार्यरत है। मेरे बेटे की पत्नी अदिति भी बहुत सुन्दर और शालीन है, उसने एम बी ए कर रखा है लेकिन कोई जॉब नहीं किया। उसे गृहणी रहते हुए मालकिन बने रहना ज्यादा पसन्द है।
मेरी बिटिया ने बी टेक किया और अब वो भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर है। बेटी का ब्याह भी अभी तीन दिन पहले ही संपन्न हुआ है।
अब बात उस रात की –
बिटिया का ब्याह और विदा हुए तीसरा दिन था। घर अभी भी मेहमानों से भरा हुआ था। थकावट तो बहुत थी पर मानसिक शांति और सुकून भी बहुत आ चला था। आप सब तो जानते ही हैं कि शादी ब्याह में इंसान चकरघिन्नी बन के रह जाता है।
काफी कुछ निपट चुका था लेकिन अभी भी बहुत काम बाकी था कई लोगों का हिसाब किताब करना था, शामियाना वाला, केटरर वगैरह! मन इस उधेड़बुन में उलझा था कि रानी, मेरी पत्नी, की आवाज ने मेरी तन्द्रा भंग की।
‘चाय पियोगे जी?’ वो पूछ रही थी। दोपहर बाद के चार बजने वाले थे सो चाय पीने का मन तो हो ही रहा था, मैंने उसकी तरफ देख के सहमति दे दी। ‘अभी लाई!’ वो बोली।
कुछ ही देर में वो दो कप चाय लिये आई और मेरे बगल में कुर्सी डाल कर बैठ गई। मैंने देखा थकान के चिह्न उसके चेहरे पर भी झलक रहे थे।
मैंने चाय की चुस्की ली फिर मुस्कुरा के उसकी तरफ देखा। ‘ऐसे क्यों देख रहे हो? चाय अच्छी नहीं लगी क्या?’
‘चाय तो अच्छी है, लेकिन आज तो मेरा मन हो रहा है एक महीने से ऊपर हो गया!’ मैंने कहा और धीरे से उसकी जांघ पर हाथ रखा। ‘हटो जी, आप को तो एक ही बात सूझती है हमेशा! बच्चे बड़े हो गये, शादियाँ हो गईं लेकिन आप को तो बस एक ही चीज दिखाई देती है!’
‘अब क्या करूं… तुम हो ही ऐसी प्यारी प्यारी!’ मैंने उसे मक्खन लगाया। ‘सब समझती हूँ इस चापलूसी का मतलब!’ कहते हुए उसने मेरा हाथ अपनी जांघ पर से हटा दिया।
‘अरे मान भी जा न। आज बहुत मूड बन रहा है मेरा, मेरा यह छोटू बेचैन है तेरी मुनिया से मिलने को!’ ‘कोई चान्स नहीं है, घर मेहमानों से भरा पड़ा है! कुछ दिन और सब्र कर लो, फिर मिल लेना अपनी मुनिया से!’ वो बोली और उठ कर निकल ली।
मैंने भी वक़्त की नजाकत को समझते हुए अपना ध्यान दूसरी जरूरी बातों पे लगाया और मेहमानों के डिनर और सोने के इंतजाम करने में व्यस्त हो गया। सब कुछ निपटने के बाद आधी रात से ऊपर ही हो चुकी थी, सब लोग जहाँ तहाँ सोये पड़े थे, मेरा मन भी सोने का हो रहा था, इसी चक्कर में मैंने सारे घर का चक्कर लगा लिया लेकिन कहीं भी कोई गुंजाइश नहीं मिली।
तभी मुझे छत पर बनी कोठरी का खयाल आया। वो कोठरी कोई आठ बाई दस का कमरा था, जिसमें बेकार का सामान पड़ा रहता था जिसे न हम इस्तेमाल में लाते हैं और न ही फेंकते बनता है, जैसे कि सभी के घरों में कोई ऐसी जगह होती है। मैंने वहीं सोने का सोच के गद्दों के ढेर में से दो गद्दे और तकिये कंधे पे रख लिये और ऊपर छत पर चला गया।
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मेरा नाम मधु है। मैं 29 साल की शादीशुदा हॉट, सेक्सी महिला हूँ, एकदम गोरी चिट्टी… अगर अंधेरे कमरे में भी चली जाऊँ तो रोशनी हो जाए। मेरी फिगर 36-28-34 है जो किसी को भी घायल करने के लिए काफी है। आप लोग मेरी फिगर से समझ गये होंगे कि मैं कितनी बड़ी चुदक्कड़ हूँ। मेरी यह फिगर आठ मर्दों की अथक मेहनत का परिणाम है।
मेरा एक तीन साल का बेटा है लेकिन मुझे आज तक यह पता नहीं चला कि मेरे बेटे का बाप इन आठों में से कौन है या फिर आठों ही मेरे बेटे का बाप हैं।
कहानी शुरू करने से पहले आप सभी पाठको से विनती है कि सारे पाठक मेरी टाईट चूची से दो दो बूंद दूध पी लें क्योंकि कहा जाता है कुछ करने से पहले मुँह मीठा करना चाहिए और लोग कहते हैं कि मेरा दूध काफी मीठा है। और हाँ, कोई भी दो बूंद से ज्यादा ना पिये, अगर सारा दूध आप लोग पी लेंगे तो मेरा बेटा भूखा रह जायेगा।
अब कहानी पर आती हूँ:
यह कहानी मेरी शादी से पहले की है, मेरा शरीर बचपन से ही भरा पूरा है। जब मैं सकूल में पढ़ती थी, तब मैं जवानी के दहलीज पर पहला कदम रखा और लोगों की गंदी नजर मेरी चूची और गांड पर पड़ने लगी थी। जब मैं दसवीं में पढ़ती थी, तभी से स्कूल के सारे लड़के मुझ पर मरते थे, लड़के ही नहीं, सारे टीचर भी मुझ पर फिदा थे।
मेरा मैथ शुरु से ही खराब था, इसका पूरा फायदा मैथ के टीचर उठाते थे, वे जानबूझ कर मेरे गालों को ऐंठ देते थे। जब भी वह मुझे अकेली देखते, मेरी गांड या चूची दबा देते!
मैं जैसे तैसे 12वीं पास करके कालेज गई।
तब तक मैं अच्छी खासी जवान हो गई थी, जिस गली से निकलती, लोग मुझे घूरते, आह भरते, गंदी-गंदी कमेंट देते। मुझे अब यह अच्छी लगने लगी थी इसलिए मैं भी जानबूझ कर छोटे और टाईट कपड़े पहनने लगी थी।
मैं अपने कालेज की मॉडल कहलाती थी, मैं कालेज पढ़ने नहीं, गंदे कमेंट सुनने जाती थी। गंदे कामेंट सुन सुन कर मेरे अंदर की अन्तर्वासना जागने लगी थी, मैं अपने आप को जैसे तैसे संभाल पाती थी।
कालेज के कई लड़के मुझे चोदना चाहते थे लेकिन मैं किसी को भाव नहीं देती थी या यूँ कहें कि दिल को कोई भाया नहीं लेकिन एक लड़का था जिसका नाम संतोष था जिससे चुदना चाहती थी और वह भी मुझे चोदना चाहता था। लेकिन हमारी बात भी ठीक से नहीं हो पाती थी, हमेशा एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा देते।
ऐसे करते-करते एक साल निकल गया।
एक दिन मेरे मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई, जब मैंने फोन उठाया तो सामने से जबाब आया- हाय, मधु मैं संतोष! नाम सुनते ही मैं चौक गई कि इसे मेरा नबंर कहाँ से मिला, उसने बताया कि मेरी सहेली से लिया।
धीरे-धीरे हमारी बात होने लगी, पूरा दिन हम फोन पर ही लगे रहते थे, अब कालेज में भी हम साथ घूमते रहते, हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गई, हमें पता ही नहीं लगा, धीरे धीरे हम करीब आते गए।
हम कहीं भी शुरू हो जाते थे, चाहे वह कालेज हो या पार्क, बस हो या सुनसान रास्ता, बस मौके की तलाश में रहते थे, जहाँ मौका मिलता, मेरा बॉयफ़्रेंड चूमा चाटी, चूची दबाना, गांड दबाना, चूत मसलना शुरु कर देता पर अभी तक मैं चुदी नहीं थी। संतोष बहुत कहता था चूत चुदवाने के लिए… पर मैं नहीं मानती थी।
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