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अब तक आपने पढ़ा.. मैं शशि की गांड मार चुका था। अब मेरे पीछे सर खड़े थे उनका मन भी मेरी गांड मारने का दिख रहा था।
अब आगे…
सर का एक हाथ मेरे कन्धे पर था.. दूसरे हाथ से वे कभी-कभी मेरे चूतड़ सहला देते.. कभी मेरे गालों पर हाथ फेर देते। ऐसा वे बार-बार करने लगे।
मैंने अपना हाथ अपने पीछे करके सर के पैन्ट के ऊपर सामने रखा, वे चौंक गए पहले उंगलियों से गुदगुदाया.. फिर हथेली से सहलाने लगा। उनका लंड सोते सांप को जैसे छेड़ दिया हो.. वो एकदम से जाग गया और तुरंत ही फुफकारने लगा।
मैंने फिर उसे थोड़ा मसक दिया, अब तो वह लोहे जैसा तन गया।
सर जी भी मुस्कुराए और पीछे मेरी गांड से चिपक गए, वे अपना दाहिना हाथ पीछे से मेरे पेट पर लाए और एक धक्का मार दिया। कमरे में एक बन्द खिड़की देखकर.. सर जी इशारे में बोले- क्या यह खिड़की खुल सकती है। मैंने कहा- हाँ।
मैंने उनकी पैन्ट की जीप नीचे खोल दी, उनका झटके लेता फनफनाता लंड उनके अंडरवियर में हाथ डालकर बाहर निकाल लिया और अपने हाथ से उसे आगे-पीछे करने लगा। ऐसा करने के साथ ही मैं सर के सामने हो गया, अब सर का लंड मेरे हाथ में था। वे फिर मेरे से चिपक गए तो उनका लंड मेरे पेट में टकराने लगा।
वे जोश से भर उठे, उन्होंने मेरे लंड और फोतों के नीचे दोनों जांघों के बीच में ही अपना लंड पेल दिया। मेरे आगे कोई छेद तो था नहीं.. सामने से दो जांघों के बीच ही जगह थी, उन्होंने दो तीन जोरदार धक्के दिए और मुझे ऐसे कसके पकड़ लिया कि मैं हिल भी नहीं सका।
हाँ.. मैंने अपनी जांघें कसके टाइट कर ली थीं.. जो सर को एक कसी गांड का मजा दे रही थीं। वे धक्कों के साथ मेरे होंठ चूमते रहे, उन्होंने मेरी गर्दन पर कई चुम्मे जड़ दिए और झड़ गए।
अब वे ढीले पड़े.. मैं एकदम से पलटा और अपनी गांड उनके लंड के आगे की.. पर बेकार था, उन्होंने अपना लंड मेरी गांड से छुलाया.. पर लंड ढीला पड़ चुका था। अब उने लौड़े की मेरी गांड में घुसने की ताकत नहीं बची थी।
सर ने मेरी तसल्ली के लिए गांड में थूक लगाकर अपनी उंगली डाली.. पर उंगली का लंड से क्या मुकाबला..! मेरी जांघों पर सर के लंड का माल बह रहा था.. अंडरवियर भी गीला हो गया। शशि कोने में खड़ा मेरी गांड मराई या कहें जांघ चुदाई देख रहा था।
उसके साथ ही मैंने बाथरूम में जाकर नंगे ही अंडरवियर धोया व लंड के माल से भिड़ी जांघें धोईं और वापस आकर पैन्ट पहन लिया।
अब सर जी हम दोनों को अपनी मोटर साइकिल पर बैठा कर ले गए व हमें हमारे घर के करीब छोड़ा। उन्होंने कहा- कल सुबह सात बजे दोनों मेरे निवास पर आ जाना.. वहीं से मेरी मोटर साईकिल पर सब साथ में कॉलेज चलेंगे।
सुबह सात बजे मैं और शशि दोनों सर के निवास पर पहुँच गए। तब सर जी बनियान अंडरवियर में थे, उनका निवास खुला था, हम लोगों के पहुँचने पर उन्होंने एक तौलिया लपेट लिया, वे ब्रश कर चुके थे.. शेविंग कर रहे थे।
हम दोनों को देखते ही बोले- तुम दोनों सही टाइम पर आ गए.. बस नहा कर चलता हूँ, तुम लोग बैठो।
उनका निवास क्या था.. एक बड़ा सा कमरा था.. लेट्रिन बाथरूम और जुड़ा एक छोटा सा कमरा और था। बड़े कमरे में ही टेबल कुर्सी और बिस्तर आदि पड़े थे।
हम दोनों कुर्सियों पर बैठ गए, सर बोले- नाश्ता करके आए हो या नहीं?
फिर उन्होंने पर्स से बीस का नोट मुझे देकर कहा- जाओ नाश्ता ले आओ। मैं उठा तो शशि भी उठा। मैंने कहा- शशि.. तुम यहीं रुको.. सर जी की कुछ मदद करना.. मैं लेकर आता हूँ।
सर की टेबल से मैंने वहाँ रखा ताला चाबी ले लिया, सर ने आँखों के इशारे से शशि को देख कर मेरी ओर प्रश्नवाचक नजर से देखा.. मैंने मौन ही स्वीकृति में सर हिला दिया।
अब मैंने बाहर जाकर किवाड़ लगा दिए.. बाहर से ताला डाल दिया और मैं नाश्ता लेने चला गया, शशि वहीं कमरे में सर के पास रह गया।
मैं बाजार में घूमता रहा और शहर के सबसे नामी हलवाई की दुकान से कचौड़ी समोसे ले आया। मैंने करीब एक घंटा लगाया… आप सब लोग समझ ही गए होंगे कि मैंने ऐसा क्यों किया।
जैसा कि सर जी, जो पुराने लौंडेबाज थे, ने मुझे बाद में बताया कि मेरे जाने के बाद वे मासूम चिकने शशि पर बाघ की तरह टूट पड़े थे। पहले उन्होंने शशि से कहा था कि आराम से बैठो, फिर स्वयं भी पलंग पर बैठ गए। अब वे शशि के बालों से खेलते-खेलते गालों पर आ गए और उसको जोरदार चुम्बन जड़ दिए।
शशि उन्हें रोकता ही रहा.. पर सर ने उसकी पैन्ट उतार दी, अंडरवियर नीचे खिसकाया और पलंग पर औंधा कर दिया। सर ने अपना अंडरवियर तो पहले ही उतार दिया था।
अब उन्होंने मेज पर से क्रीम की शीशी उठा कर अपनी उंगलियों में लेकर उंगली शशि की गांड में डाल दी, फिर थोड़ी देर बाद दो उंगली ठूंस दीं और अन्दर-बाहर करते रहे।
गांड मारने में देर इसलिए लगी कि शशि बार-बार गांड भींच रहा था और सर का लंड सनसना रहा था। अंत में सर ने उसे चेतावनी दे दी- देख शशि.. मान जा.. ढीली कर ले, वरना फिर न कहना कि सर ने गांड फाड़ कर रख दी… अब मैं लंड पेल रहा हूँ।
शशि डर गया, औंधा तो लेटा ही था, उसने टांगें चौड़ाईं तो सर ने अपना क्रीम से लिपटा लंड उसकी गांड पर टिकाया और अन्दर कर दिया। अभी सुपारा ही अन्दर गया था कि वह फिर ‘आ.. आह..’ करने लगा और उसने अपनी गांड सिकोड़ ली।
सर उसका सिर सहलाते बोले- बार बार बदमाशी अच्छी नहीं.. लौड़ा गांड के अन्दर है.. सिकोड़ेगा तो तेरे को ही ज्यादा लगेगी। थोड़ी और ढीली कर बस जरा और..
उन्होंने अपना मूसल सा लंड उसकी कोमल गांड में पूरा पेल दिया। पहले तो सर ने बड़े धीरे-धीरे धक्के लगाए.. और उसे समझाते रहे ‘थोड़ा दर्द तो होता है..’ साथ ही वे पूछते रहे- कभी पहले मराई है?
सर ने दो-तीन चुम्बन ले लिए.. पर लंड गांड में सनसना रहा था। कब तक सबर करते.. सर पूरे जोश में आ गए और उसकी गर्दन में हाथ डाल कर चिपक गए। अब सर जोर-जोर से.. पूरे दम से धक्के लगाने लगे, वे आधा लंड गांड से निकालते.. फिर जोर से पूरा लंड मिसमिसा कर पेल देते।
शशि तड़प उठा- सर सर.. गांड सिकोड़ने का भी अब कोई मतलब न था, सर का पूरा लंड गांड के अन्दर-बाहर हो रहा था। सर के झटके न सिर्फ जोरदार हो गए थे.. वरन तेज भी हो गए थे।
शशि बेबस हो गया.. वो गांड ढीली रखे या टाइट.. सर का लंड तेजी से अन्दर-बाहर हो रहा था। शशि की गांड अपने आप ढीली पड़ गई थी, वह शांत अवस्था में पट लेटा हुआ सर के लंड के धक्के सहन कर रहा था। सर की तेज सांसें उसके गालों गर्दन के पीछे उसे महसूस हो रहीं थी।
सर भी पसीने-पसीने हो गए.. पर रुक नहीं रहे थे, वे पूरी जोरदारी से लंड की चोट पर चोटें दिए जा रहे, उन्हें बहुत जोश आ गया था। शशि ने कहा- सर बहुत देर हो गई.. चलना भी है सर.. मेरा साथी भी आ रहा होगा। सर बोले- परेशान मत कर चुपचाप लेटा रह.. उसे आ जाने दे.. तू डिस्टर्ब मत कर।
दोस्तो, आपने भी माशूकी में गांड मराई होगी.. तो जिन्होंने गांड फाड़ू लंड के जोरदार झटके झेले होंगे.. वे समझ सकते हैं कि गांड मराने का आनन्द और परेशानी क्या होती है।
मेरी समझ से तो गांड मराना सबसे आनन्ददायक क्षण होता है। जब मेहनत कोई दूसरा करता है और मजा अपन को मिलता है। जैसे सर जी की तरह कोई आपकी गांड में लंड पेले है.. लगा है अन्दर-बाहर करने में.. और खूब जोर लगा रहा है। इधर आप मजे से लेटे हैं, वो आपके गालों का होंठों का चूमा ले रहा है.. चाट रहा है.. आपकी पीठ पर पेट पर छाती पर हाथ फेर रहा है.. चूम रहा है चिपक रहा है, आपको बार-बार मक्खन लगा रहा है।
‘लग तो नहीं रही.. कहो तो और धीरे करूँ.. लंड गड़ तो नहीं रहा है..’ ऐसी कुछ बातें कान में धीरे से कहता है ‘यार गांड थोड़ी ढीली कर ले..’ या जोरदार झटकों से गांड की पिटाई कर रहा है। तब भी हर दो मिनट बाद चूतिया बनाने को पूछता है कि ‘कहो तो बंद कर दूँ।’
अब तक मैं आ गया था, मैंने ताला खोला.. किवाड़ खोले.. पर अन्दर से जल्दी ही बंद करना पड़े.. क्योंकि सर जी अभी भी शशि की गांड से चिपके थे।
मैं आया सवेरे तो इसी उम्मीद से था कि आज तो सर के लंड का मजा चखने को मिलेगा। मेरी गांड कल से ही कुलबुला रही थी और सुबह से तो बड़ी बेचैनी थी.. पर शशि भाग्यशाली था, मेरे सामने ही सर उसकी गांड में लंड पेले हुए थे। मैं चुपचाप प्यासा खड़ा था।
सर झड़ गए और अलग हो गए, उनका ढीला लंड भी बहुत बड़ा लग रहा था। मैं सोच रहा था कि जब पूरा खड़ा होगा तो कितना भयंकर होगा।
मैं आपको कहानी कहने में सर जी का परिचय या उनकी बलिष्ठ देहयष्टि के बारे में बताना भूल ही गया। वे लगभग 27-28 साल के होंगे.. हल्के सांवले.. साढ़े पांच या पौने छह फीट के थे, न ज्यादा मसक्युलर थे और न ही दुबले थे, उन्हें आप छरहरा कह सकते हैं।चेहरे मोहरे से सुन्दर हैं।
मुझे शशि से जलन हो रही थी.. उसने कल मेरे लंड का मजा लिया और आज सर जी के लंड का स्वाद चखा, वह माशूक भी बहुत था। अगर सर जी का उस पर दिल आा गया तो गलत नहीं था, पर मैं रह गया।
पर आशा थी कि मेरी इच्छा भी जल्दी पूरी होगी। हम लोगों ने नाश्ता किया और सर के साथ कॉलेज चले गए।
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