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तीन बार मैं सूरज से चुद चुकी थी और हम दोनों को भी घड़ी इशारा दे रही थी कि समय खत्म हो चुका है। हमने अपने कपड़े पहने और रास्ते में अपने बॉस को चाभी देकर धन्यवाद दिया।
बॉस साला हरामी का हरामी ही रहा, विदा करने से पहले मेरी गांड में उंगली करने के साथ-साथ चिकोटी भी काट लिया।
उसके बाद मैं जब घर पहुंची तो नमिता ने डॉक्टर की जानकारी ली तो मैंने सूरज की तरफ देखते हुए नमिता के कान में बताया कि डॉक्टर ने अच्छे से चेकअप किया और मेरी चूत के अन्दर उंगली करके बोली कि यह सूख रही है, पति से ही इसका इलाज संभव है। कहकर मैं अपने कमरे में चली गई कपड़े बदले और फिर लेटे ही लेटे रितेश का इंतजार करने लगी।
नमिता ने मुझे खाना मेरे ही कमरे में दे दिया था।
लगभग एक घंट बाद ही रितेश आ गया, पूरे घर वालों को हाल चाल देने के बाद हम दोनों ने एकांत पाया और फिर हम दोनों अपने कमरे में आ गये।
जब तक रितेश घर पर नहीं था तो मैंने अपने कमरे के पर्दे को इस तरह से सेट किया था कि जो चाहे मेरे कमरे में झांक कर अन्दर हो रहे खेल का नजारा लेकर मस्त हो सकता था।
कमरे के अन्दर आते ही रितेश और मैं एक दूसरे की बाँहों में बहुत देर तक रहे। यही हम दोनों का प्यार था कि हम दोनों ने एक दूसरे से कुछ नहीं छिपाते हैं, खुल कर एक दूसरे से बातें करते हैं, किसने किसके साथ कब सेक्स किया है, ये हम दोनों को पूरा पूरा पता था।
बहुत देर तक मैं उसकी बाँहों में और वो मेरी बाँहों में था। चूंकि अब हम दोनों को दो-तीन घंटे की पूरी छूट थी तो मैं और रितेश अपने बेड पर एक दूसरे से चिपक के बैठे हुए थे।
मैं ज्यादा उत्सुक थी कि सुहाना ने अपने पति के साथ की हुई रतिक्रिया के बारे में क्या बताया। लेकिन रितेश के पास अभी तक सुहाना का फोन नहीं आया था, इसलिये उसको भी कोई जानकारी नहीं थी।
फिर मेरे पूछने पर कि सुहाना के साथ कैसा बीता तो वो बोला कि मजा तो आ रहा था लेकिन जब उसके गांड का बाजा बज चुका था तो वो चली गई और बोली कि मेरा गिफ्ट उधार है और अगर कभी मिले तो मुझे वो गिफ्ट पूरा करेगी।
मेरी उंगलियाँ रितेश की छाती के बालों से खेल रही थी जबकि रितेश मेरी बांहों को सहला रहा था। तभी रितेश ने पूछा- आज तुम्हारी तबीयत खराब थी?
तो मैं सूरज की पूरी कहानी सुनाने लगी ताकि रितेश को समझ में आ जाये कि मेरी तबीयत क्यों खराब हुई।
अचानक रितेश को याद आया कि उसके जीजा के साथ मैंने क्या किया तो मुझे रोकते हुए बोला- तुमने जीजाजी को अपने पानी का भरपूर मजा दिया।
‘हाँ दिया तो… लेकिन वो मेरा गुस्सा था। उस रात को तुम्हारे बिना मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैं छत पर चुपचाप टहल रही थी कि अचानक मैंने नमिता और अमित की लड़ाई की आवाज सुनी तो देखा कि अमित चाह रहा था कि नमिता उसके साथ सेक्स करे जबकि नमिता तैयार नहीं थी। तभी मुझे समझ में आ गया कि अमित इसलिये हर जगह हाथ पाँव मारने की कोशिश करता है।’
‘फिर तुमने क्या किया?’ रितेश ने पूछा। ‘कुछ नहीं… नमिता को रास्ते पर ले आई। दोनों खूब मजा करते है। एक बार तो हम तीनों ने मजा भी साथ ही साथ लिया।’
रितेश मेर निप्पल को दबाते हुए बोला- तुम खूब मजे कर रही थी मेरे पीछे? थोड़ा सा भाव मारते हुये मैं बोली- अगर तुम्हें न पसंद हो तो मैं नहीं करूंगी। ‘अरे नहीं यार, मैं तो मजाक कर रहा था।’
उसके बाद मैंने अपने, नमिता और अमित के बीच हुई कहानी को एक बार फिर रितेश को बताया। रितेश को कहानी सुनाने के बाद मैं बोली- यार, चल आज रात हम दोनों ही अमित और नमिता की चुदाई देखते हैं। ‘यह क्या कह रही हो?’ ‘तो क्या हुआ, वो भी तो तुम्हारे बारे में अब सब जानती है।’
‘अच्छा, चल रात की रात देखते हैं, अब मेरा लंड तन रहा है।’
तो मैं बड़ी ही स्टाईल से खड़ी हुई और रितेश के सामने खड़ी हुई और अपने गाउन को ऊपर करते हुये बोली- ये छेद दूँ तुम्हारे इस लंड को? फिर मैं पीछे घूम कर अपनी गांड को दिखाते हुये बोली- या तुम्हारे लंड को इस छेद की जरूरत है या फिर मेरा मुंह?
रितेश छुटते ही बोला- मुँह!! आओ दोनों एक दूसरे का पहले पानी निकालें, फिर तुम मुझे सूरज के बारे में बताना!
हम दोनों ही 69 की अवस्था में आ गये, रितेश अपने मुंह से मेरे चूत की सेवा कर रहा था और मैं उसके लंड की सेवा कर रही थी। कुछ देर बाद ही हम दोनों का पानी एक दूसरे के मुंह में था।
उसके बाद मैं फिर रितेश के बगल में बैठ गई। हाँ, बीच बीच में मेरी नजर खिड़की की तरफ उठ जाती थी।
मैं लंड चूस के उठी ही थी कि मुझे लगा कि किसी की परछाई है जो कमरे के अन्दर झांक रही थी। मैंने तुरन्त अपने गाउन को उतारा और पूर्ण रूप से नंगी होकर थोड़ा सा खिड़की के और करीब आ गई और रितेश से भी पूरे कपड़े उतार कर मेरी बुर को एक बार और चाटते हुये कहानी सुनने को कहा।
रितेश को भला क्या ऐतराज हो सकता था, वो भी तुरन्त अपने कपड़े उतार कर मेरे पास आ गया और नीचे बैठ कर अपनी जीभ मेरी बुर में लगा दी। मैं तिरछी नजर से खिड़की पर देखते हुए रितेश को अपनी और सूरज की कहानी थोड़ा ऊँची आवाज में सुनाने लगी ताकि जो बाहर खड़ा है, उसे भी खुली खिड़की का मजा आये।
मैंने रितेश को अपने और सूरज की चुदाई के बारे में शुरू से कहानी सुनानी शुरू की कि कैसे मुझे पता लगा कि उसके अन्दर मेरे लिये क्या है और उसने मुझे कब कब और कहाँ कहाँ नंगी देखा।
मैं रितेश को कहानी सुना रही थी पर मेरी नजर बाहर ही थी और जो मैंने देखा तो मुझे मेरे मन मुताबिक ही लगा। वो मेरा सबसे छोटा देवर रोहन ही था जिसको मेरा चस्का लग गया था।
इधर मेरी कहानी खत्म हुई, उधर रितेश कि चटाई खत्म हुई। रितेश खड़ा हुआ तो उसका लंड मेरी चूत चूसाई और चटाई और ऊपर से मेरे और सूरज की कहानी सुनने के बाद काफी टाईट हो चुका था।
वो मुझे अपना लंड दिखाते हुए बोला- जान, तेरी चूत का तो काम हो चुका है, अब मेरे लंड का क्या होगा? मैं बोली- मेरी जान, चिन्ता क्यों कर रहे हो, तुम्हारी यह प्यारी रंडी दुल्हन कब काम आयेगी। चलो आ जाओ, अपने लंड महराज को मेरी गांड की सैर करा दो।
मैं रितेश के और करीब आ गई, उसके कान में बोली कि बाहर उसका सबसे छोटा भाई काफी देर से हम लोगों को देखकर अपना लंड हिला रहा है, लेकिन उसका पानी नहीं निकला है। बात काटते हुए रितेश बोला- तो मेरी प्यारी रंडी बीवी अपने शौहर को छोड़ कर उसका पानी निकालने जायेगी?
‘नहीं यार!’ मैं बोली।
तुम मेरी गांड इस तरह मारो कि रोहन को मेरी गांड और लंड की चुदाई पूरी दिखे पर उसे ऐसा नहीं लगे कि हम उसे देख रहे हैं। यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
रितेश मेरी बात समझ गया, मैं और रितेश खिड़की के और करीब आ गये। हमारी पीठ खिड़की की ही तरफ थी, लेकिन मेरी समझ से मेरी गांड चुदाई बाहर से पूरी तरीके से देखी जा सकती थी।
अब मैं झुक चुकी थी और रितेश मेरे पीछे थोड़ा सा इस तरह से हट कर खड़ा होकर मेरे गांड की उठान को इस प्रकार फैलाया था कि अन्दर का छेद बाहर खड़े रोहन को अच्छे से दिखे।
उसके बाद मुझे मेरी गांड पर कुछ गीलापन सा लगा, रितेश अपने थूक से मेरी गांड को तीन-चार बार गीली कर चुका था। तभी गप्प से उसका लंड मेरी गांड में घुस गया… चीख के साथ मेरे मुंह से गाली भी निकली- माआआदरचोद… मेरी गांड में अपने गधे जैसा लंड को प्यार से नहीं डाल सकता क्या?
उधर रितेश ने भी वैसा ही जवाब दिया- हाँ बहन की लौड़ी, तेरी गांड है या गुफा? मेरा लंड एक ही बार में पूरा का पूरा अन्दर चला गया। चल बता बुर चोदी कितनों से अपनी गांड मरवाई है? ‘अरे मेरे गांडू राजा, ऐसा अपनी प्यारी रंडी के लिये मत बोलो, मेरी चूत के अन्दर किसी का भी लंड सैर कर सकता है, पर मेरी गांड में केवल तेरा ही लंड सैर करता है।’
इस तरह हम लोग गाली गलौच वाली भाषा का प्रयोग करके चुदाई का मजा भी ले रहे थे। बाहर खड़े रोहन का तो मुझे पता नहीं लेकिन रितेश की स्पीड बढ़ गई और कुछ देर बाद रितेश का माल मेरे मुंह में था।
मैं धीरे से पर्दे के पीछे गई और देखने लगी कि रोहन क्या कर रहा है। बाहर का नजारा कुछ अलग ही था, रोहन मदहोश होकर अपने लंड को फेंट रहा था और थोड़ी देर बाद उसकी मलाई उसके हाथ में थी। रोहन ने अपनी जीभ इस तरह अपनी मलाई में लगाई मानो कि वो नमक चाट रहा हो।
एक दो-बार ऐसा करने के बाद वो अपनी मलाई ही पूरी चाट गया कि तभी रितेश का मोबाईल बजने लगा और रोहन अपनी मदहोशी से बाहर आया।
उधर रितेश थोड़ी उँची आवाज में बोला- आकांक्षा, मेरा मोबाईल बज रहा है। मैं भी थोड़ी ऊँची आवाज में बोली- आई। ताकि रोहन को यह समझ में आ जाये कि कोई भी उसे देख सकता है।
और मेरी बात भी सही हुई, रोहन ने तुरन्त अपना लोअर पहना और दरवाजा खोलकर नीचे भाग गया।
रितेश ने मोबाईल उठा लिया, फोन सुहाना का था। मैं भी रितेश के पास बैठ गई, रितेश ने मोबाईल को स्पीकर में कर दिया, उधर से सुहाना बोली -हैलो! रितेश- हैलो! सुहाना- कौन बोल रहा है? रितेश- मैं रितेश!
रितेश ने अपना पूरा परिचय दिया। पूरा परिचय लेने के बाद सुहाना जब कन्फर्म हो गई कि उसकी बात रितेश से ही हो रही है तो वो बोली- रितेश मैं सुहाना बोल रही हूँ।
कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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