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मेरा नाम अजय राठौर है और अन्तर्वासना मेरी पसंदीदा साइट है। अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली और आखिरी कहानी है क्योंकि इस तरह की घटना मेरे साथ एक ही बार हुई है और मैं इसलिए उसको आप लोगों के साथ भी शेयर करना चाहता हूँ। और मेरे मन में उठ रही कुछ शंकाओं को दूर करना चाहता हूँ।
लेकिन उससे पहले मैं आप लोगों को अपना परियच दे देता हूँ, मैं एक 26 साल का हट्टा कट्टा और लम्बी कद काठी का लड़का हूँ, मैंने लॉ की पढ़ाई अभी अभी खत्म की है और इसी क्षेत्र में आगे बढ़ रहा हूँ। मेरा मूल तो राजस्थान का है लेकिन जन्म दिल्ली में ही हुआ है इसलिए दिल्ली को ही अपना घर मानता हूँ।
मेरे जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन एक घटना ने मुझे काफी प्रभावित किया जिसके बाद मेरे मन में एक उथल-पुथल मची हुई है, इसलिए इस कहानी के ज़रिये मैं उसका समाधान ढूंढने की कोशिश कर रहा हूँ।
तो बात कुछ यूं हुई कि जब मैं सेकेण्ड इयर में था तो मुझे एग्जाम देने मेरठ जाना था, मैं सवेरे ही निकल गया और एग्जाम समय से पहले ही सेंटर पर पहुंच गया, बाहर लिस्ट में रोल नम्बर देखा और कमरा नम्बर पता लगाकर अपनी सीट पर जाकर बैठ गया।
काफी परीक्षार्थी पहुंच चुके थे उस समय तक और सब एक दूसरे की शक्लें देख रहे थे, कोई नकलबाजी करने की फिराक में था तो कोई सहयोग पाने की आशा में… इसी तरह मेरी नज़र एक लड़के पर पड़ी जो मुझे काफी देर से देख रहा था।
मैंने उसको एक दो बार देखा लेकिन जब भी मेरी नजर उस पर पड़ती, वो मुझे ही देख रहा होता था, उसके चेहरे पर कोई भाव भी नहीं था, बस देखे जो रहा था।
मेरे मन में भी यही विचार चल रहा था कि यह मुझे क्यों देख रहा है।
खैर कुछ देर बाद एग्जाम शुरु हो गया और सब अपने-अपने एग्जाम को करने लगे।
एक दो बार बीच में मेरी नजर उस लड़के पर पड़ी तो वो तब भी मुझे ही देख रहा था, मैंने सोचा यह अजीब पागल इन्सान है जो पेपर में देखने की बजाये मुझे ही देख रहा है।
मैंने फिर अपने एग्जाम में ध्यान लगा लिया और कुछ समय बाद मैंने अपना पेपर खत्म कर लिया।
मेरी नजर उस लड़के पर पड़ी तो वो अब भी मुझे देख रहा था, अबकी मेरी बार मुझे हंसी आ गई, और मुझे हंसता देखकर वो भी मुस्करा दिया, लेकिन उसकी मुस्कान कुछ ऐसी थी कि जैसे उसे कुछ ईनाम मिल गया हो। उसकी आखों में एक उमंग सी दिख रही थी।
15 मिनट के बाद जब एग्जाम खत्म हो गया तो सब परीक्षार्थी बाहर जाने लगे, मैं भी सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था तो पीछे से एक आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा- कैसा हुआ एग्जाम? मैंने मुड़कर देखा तो पीछे वही लड़का था, थोड़ा मोटा सा, गोरा रंग और चहरे पर वही मुस्कान, मेरी ही उम्र का रहा होगा।
मैंने कहा- ठीक हुआ, आप बताओ? वो बोला- मेरा तो कुछ खास नहीं हुआ? मैंने कहा- होगा कैसे, एग्जाम में सारा टाइम तो आप मुझे ही देखते रहे! वो ठहाका मारकर हंस पड़ा और बोला- हाँ, एक कारण ये भी हो सकता है।
मैंने पूछा- और दूसरा कारण? ‘मेरी तैयारी कुछ खास नहीं थी…’
‘ठीक है कोई बात नहीं, पास होने लायक तो कर आए होगे?’ ‘पता नहीं, वो तो परिणाम ही बताएगा!’ ‘कोई बात नहीं हो जाएगा।’ ‘हाँ देखते हैं!’
हम ऐसे ही बातें करते हुए गेट के बाहर आ गए, मैंने कहा- ठीक है चलता हूँ! वो बोला- कहाँ जाओगे आप? ‘दिल्ली..’ ‘मैं भी दिल्ली ही जाऊँगा, क्या आप मुझे आनंद विहार तक छोड़ सकते हैं?’ मैंने कहा- ठीक है, आ जाओ!
हम चल पड़े, उसका नाम रक्षित बताया उसने.. रास्ते में चलते हुए उसने अपने दोनों हाथ मेरी कमर पर रखे हुए थे और जब बाइक के ब्रेक्स लगते थे तो वो मेरी पीठ से बिल्कुल सट जाता था और अपनी बाहों में भर लेता था। मुझे भी इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि ब्रेक्स लगने पर अक्सर ऐसा हो जाता है।
हम दोनों ने एक दूसरे के बारे में पूछा, घर के बारे में पूछा और ऐसे ही बातें करते हुए आनंद विहार आ गया, उसने कहा- यहीं उतार दीजिए मुझे, यहाँ से मैट्रो ट्रेन से चला जाऊँगा। मैंने कहा- ठीक है।
हमने एक दूसरे फोन नम्बर लिए और बाय-बाय कहकर अपने अपने रास्ते चले गए।
दो महीने बाद एग्जाम का रिजल्ट आया और उसी दिन शाम को उसी लड़के का फोन आया, वो बोला- अजय यार, मैं तो पास नहीं हो पाया उस एग्जाम में! मैंने कहा- कोई बात नहीं, अगले साल फिर से एग्जाम दे देना!
‘वो सब तो ठीक है लेकिन तैयारी कैसे करूँगा? क्या आप मेरी हेल्प कर सकते हो?’
मैंने थोड़ा सोचा और कहा- ठीक है… लेकिन अगर तुम मेरे घर आ सको तो ज्यादा ठीक रहेगा, क्योंकि मेरे पास इतना समय नहीं होता कि मैं किसी और जगह जाकर तुम्हें पढ़ाऊँ! ‘ठीक है मैं आ जाऊँगा, कोई दिक्कत नहीं है मुझे आने में… मैं सोमवार से तुम्हारे वहाँ आ जाया करुँगा। ‘ठीक है!’ कहकर मैंने फोन काट दिया।
सोमवार को शाम के 7 बजे वो मेरे घर आ गया, मैं भी जल्दी ही फ्री होकर उसे पढ़ाने लगा।
ऐसे ही हम दोनों आपस में घुल-मिलने लगे और अच्छे दोस्त बन गए, कभी-कभी जब पढ़ाते हुए रात को देर हो जाती तो वो मेरे घर पर ही सो जाया करता था।
ऐसी ही एक रात की बात है, हम पढ़ाई खत्म करके सोने की तैयारी कर रहे थे, गर्मियों का वक्त था, रक्षित बोला- अजय, आज गर्मी बहुत है और ये जींस इतनी टाइट है कि मुझे इसमें नींद ही नहीं आएगी। ‘हाँ यार, मुझे भी बहुत गर्मी लग रही है।’
वो बोला- यार, मुझसे तो नहीं सोया जाएगा इस जींस में! ‘कोई बात नहीं, तुम जींस निकाल दो, हम दोनों ही तो यहाँ पर हैं, और कौन है! सिर्फ अंडरवियर में भी सो सकते हैं..’
‘नहीं यार, मुझे ऐसे सही नहीं लगता, किसी के सामने!’ ‘कोई बात नहीं, आज लाइट बंद करके सो जाएंगे। फिर तो कोई प्रॉब्लम नहीं होगी ना?’ ‘नहीं फिर तो नहीं होगी!’ कहकर मैंने लाइट बंद कर दी और हम लेट गए।
कुछ ही देर में मुझे नींद आ गई और उसे भी.. रात को नींद में अक्सर हमारे हाथ पैर एक दूसरे को लग जाया करते थे, लेकिन दोनों में से किसी को इस बात से कोई ऐतराज नहीं था।
लेकिन आज रात जब मेरी आंख खुली तो मैंने पाया कि रक्षित के चूतड़ मेरी जांघों के बीच में लग रहे थे, उसके घुटने कुछ इस तरह से मुड़े हुए थे उसकी गांड सीधा मेरे लंड पर टच हो रही थी।
मेरे अंदर वासना की एक चिंगारी सी जगी, मैंने भी अपने घुटनों को इस तरह से मोडा़ कि लंड उसकी गांड के बीच वाली जगह के सामने जा पहुंचा, उसके चूतड़ों के स्पर्श के कारण मेरे लंड में तनाव आने लगा और एक मिनट के अंदर ही मेरा लौड़ा तन गया।
अब मैं धीरे धीरे उसकी गांड पर अपना लौड़ा रगड़ने लगा ताकि उसको पता भी न चले और मेरे लंड को मजा आता रहे, साथ ही साथ मैं उसके नितम्बों पर हाथ भी फेरने लगा।
अब मेरी आग काबू से बाहर होने लगी और मैंने अपनी एक टांग उठाकर उसके ऊपर रख दी जिससे मेरा खड़ा लंड उसी गांड की दरार के बीचे में टकराने लगा और झटके मारने लगा।
मैंने एक हाथ में उसकी चूची को भर लिया और दूसरे हाथ से अपने सिर को सहारा देते हुए उसके जिस्म के साथ चिपकने लगा।
उसने अपनी गांड को मेरी जांघों के बीच में और अंदर सटा दिया… और उसकी चूचियों पर रखे मेरे हाथ को अपने हाथ से दबा लिया और ऐसे ही अपनी चूचियाँ दबवाने लगा।
अब मेरी हवस पूरी तरह जाग उठी थी, मैं जोर जोर से उसकी चूची दबा रहा था और लंड को उसकी गांड की दरार में घुसाने की कोशिश करते हुए उसको पीछे से चूमने भी लगा था।
अगले पल उसने अपना हाथ अपनी चूचियों से हटाकर पीछे की तरफ लाते हुए मेरे लंड पर रख दिया और उसको अंडरवियर के ऊपर से सहलाने लगा। उसका हाथ लंड पर आते ही मजा दोगुना हो गया।
अब उसने अपनी कच्छी निकाल दी और उसकी गोल गोल गांड नंगी हो गई, मैं उसकी नरम नंगी गांड पर हाथ फिराने लगा और वो मेरे लंड को हाथ में थन की तरह पकड़ कर उसका दूध निकालने की कोशिश करने लगा।
अब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपना अंडरवियर निकाल कर लंड उसके हाथ में दे दिया, मेरे लंड के अंदर से गीला पदार्थ निकलने लगा था जो उसके हाथ के स्पर्श से लंड को चिकना कर रहा था, मुझे बहुत मजा आ रहा था उसके हाथ में लंड को देकर… मैं उसको पीठ पर दांतों से काटने लगा।
अब उसने अपने हाथ से मेरे लंड को पकड़े हुए उसे अपनी गांड की गर्म फांकों के बीच में रखवा लिया, मैं पागल होने लगा और उसकी गांड में लंड घुसाने की कोशिश करते हुए उसको आगे की तरफ धक्के मारने लगा।
फिर उसने थोड़ा थूक अपनी हथेली पर लेकर अपनी गांड पर लगा दिया और थोड़ा थूक मेरे लौड़े पर लगाकर मसलने लगा। मैंने बेकाबू होकर उसका हाथ हटाया और लंड को उसकी गांड के छेद पर लगा दिया, उसने भी अपनी गांड मेरे लंड पर और अंदर की तरफ धकेल दी और वो चुदने के लिए तैयार हो गया।
मैंने उसके चूतड़ों को एक हाथ दबोचते हुए लंड उसकी गांड के छेद में अंदर घुसा दिया, वो थोड़ा उचका और फिर अपनी गांड का दबाव मेरे लंड की तरफ बनाते हुए धीरे धीरे अपने आप ही लंड को गांड के अंदर पूरा उतर जाने के लिए धकेलने लगा। और देखते देखते उसकी पूरी गांड मेरे लंड पर चढ़ गई।
अब मैं उसको चूमता हुआ धक्के मारने लगा, 2-3 मिनट बाद लंड अच्छी तरह से उसकी गांड में अंदर बाहर होने लगा और वो उचक उचक कर मुझसे चुदने लगा, उसकी गांड मारने में जो मजा आ रहा था वो मैं यहाँ ब्यान नहीं कर पाऊँगा, लेकिन मैं जन्नत सी में पहुंच गया, उसको दबोचे हुए चोदने लगा।
अब वो सीधा होकर पीठ के बल लेट गया और अपनी टांग मेरे मुंह के सामने उठा ली जिससे मेरा लंड उसकी गांड के छेद पर पहुंच गया।
मैंने भी तुरंत लंड अंदर पेल दिया और फिर से उसकी चुदाई शुरु कर दी।
मैं उसकी टांगों को दोनों हाथों से ऊपर उठाए हुए मजे से उसकी गांड को चोद रहा था, इस पेलम पेल में बडा़ मजा आ रहा था, उसकी गर्म गांड में जब लंड अंदर जा रहा था तो मन करता था उसको बुरी तरह चोद दूं।
इसकी गर्मजोशी के साथ मैंने 6-7 मिनट तक उसको खूब चोदा और फिर अपना वीर्य उसकी गांड में निकालने लगा। क्या मजा था वो जब उसकी गांड के अंदर मैं लंड पिचकारी मार रहा था।
उस रात मैंने उसे दो बार चोदा।
मैंने उससे अगले दिन पूछा कि जो रात को हुआ वो तुम्हें अच्छा लगा? तो वो बोला- हाँ, मैं तो पहले दिन से तुम पर फिदा था, लेकिन अब जाकर वो खुशी मिली है जिसकी तलाश मुझे इतने दिन से थी।
यह सुनकर मैं हंस पड़ा, मैंने कहा- अगर ऐसी बात थी तो पहले ही बता देते, मैं तो पहले ही चोद देता तुम्हें! वो बोला- मुझे डर लगता था कि कहीं तुम नाराज न हो जाओ और मुझे अपने घर आने से मना कर दो..
मैं फिर हंस पड़ा और वो भी.. अब हमारी दोस्ती थोड़ी बदल गई थी, अब तो जब भी वो रात को घर रुकता, मैं हर बार उसकी चुदाई करता, और वो भी खूब मजे लेता मेरे लंड के साथ..
हम दोनों ही एक दूसरे के साथ को मज़े कर रहे थे, लेकिन एक दिन मैंने जब उसको फोन करना चाहा तो उसका फोन बंद आ रहा था। मैंने अगले दिन किया तब भी बंद आ रहा था, मैंने सोचा कहीं फोन खराब हो गया होगा, इसलिए बंद है।
लेकिन उसके बाद तो मैं वो नंबर जब भी लगाता वो हमेशा बंद ही सुनाई देता। 3-4 महीने बीत गए उसका नंबर कभी नहीं मिला और ना ही उसका कोई फोन आया.. पता नहीं ऐसी क्या बात हो गई जो वो एकदम से ही मुझसे अलग हो गया।
अब 2 साल हो चुके हैं लेकिन उसका कोई अता पता नहीं है… मैं उसे आज भी बहुत मिस करता हूँ.. काश वो फिर से आ जाए, बस यही सोचता रहता हूँ।
लेकिन मैं यह भी सोचता हूँ कि यह क्या चीज है जो मुझे उसकी तरफ खींच रही थी, क्या मैं उस पर निर्भर हो गया था, मुझे उसकी गांड मारने में इतना मजा क्यों आता था, उसका साथ होना पसंद आता था, मैं यह चीज आज तक नहीं समझ पाया…
आज भी उसकी बहुत याद आती है, वो मुझे मूवी के लिए ले जाता था, हंसता था, बातें करता था, मेरे जन्मदिन पर गिफ्ट भी लाता था, उसके साथ काफी अच्छा वक्त बिताया मैंने..
पता नहीं अब ऐसा कोई मिलेगा या नहीं!
यह कहानी मैंने इसलिये लिखी कि शायद मुझे अपने सवालों के जवाब यहाँ पर मिल जाएँ! मुझे आपके मेल का इतजार रहेगा, रक्षित की तरह.. [email protected]
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