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लेस्बियन लव स्टोरी में पढ़ें कि मैंने एक बार लेस्बियन सेक्स किया तो मुझे नया सा लगा. मेरी चूत प्यासी हो गयी. पति से सेक्स में भी संतुष्टि ना मिली तो …
नमस्कार मेरे प्यारे दोस्तो! आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद कि आप सब ने मेरी कहानी मेरा प्रथम समलैंगिक सेक्स को इतना सराहा। मुझे आप सबके संदेश मिले लेकिन मैं किसी को जवाब नहीं देती. इसके लिए माफी चाहूंगी।
मैं केवल आपके संदेश पढ़ सकती हूं. उन संदेशों के उत्तर की कृपया अपेक्षा न करें. ये मेरी अपनी बात है। आप सब का प्यार मिला उसके लिए आप सब का फिर से बहुत बहुत धन्यवाद.
कहानी पर आप सब के सुझाव भी मिले और इस बार की कहानी में मैं कोशिश करूँगी कि आपको पसंद आने वाली बातें ज्यादा लिखूं। आपका मनोरंजन करने का मैं पूरा प्रयास करूंगी.
आज की ये कहानी मेरी उसी पुरानी लेस्बियन लव स्टोरी की आखिरी कड़ी है।
कविता ने मुझे एक अलग तरह के अनुभव से अवगत करा दिया था। पता नहीं उसके जाने के बाद कुछ देर तक ग्लानि सी महसूस हुई.
यह कहानी सुनकर मजा लें.
फिर कुछ देर के बाद विचार आया कि यदि ये पाप था तो इससे बड़े बड़े पाप तो मैं पहले से करके बैठी हूं. बस इतना ही सोचने की देरी थी कि अगले ही पल में सब हल्का लगने लगा और अजीब सी अनुभूति होने लगी. ऐसा लग रहा था कि कुछ कमी सी रह गयी हो।
समलैंगिक संबंधों के बारे में हर स्त्री की विचारधारा को तो शामिल नहीं कर सकती किंतु मैं इतना जरूर कह सकती हूं कि ईश्वर के बनाये सभी कामों में संभोग सबसे रोचक काम है, चाहे वो स्त्री-पुरुष के बीच हो, स्त्री-स्त्री के बीच या पुरूष-पुरुष के बीच।
हर स्त्री के भीतर संभोग की इच्छा होती है, चाहे वो पुरुष के साथ हो या स्त्री के साथ। इसीलिए शुरू में थोड़ी हिचकिचाहट होती है. खैर हिचकिचाहट तो पुरुष के साथ भी होती है पहली बार संभोग करने में।
कुछ स्त्रियों में ये पहले से चाहत होती है लेकिन कुछ में इसे कुरेद कर निकालना पड़ता है।
अब बात आगे की करती हूं. कविता के साथ संभोग करने के बाद भी मुझे कुछ कमी सी लग रही थी. काफी देर विचार करने पर याद आया कि कविता ने मेरे साथ सबकुछ किया जो उसकी मर्जी थी, पर मुझे वही करने दिया जो उसकी मर्ज़ी थी।
मतलब ये था कि वो मेरी स्वामी बन गयी थी और मैं उसकी दासी। अब मेरे मन में भी ये ख्याल आने लगा कि स्वामी मैं बनूं और दासी कविता।
मगर कविता अब जा चुकी थी और मेरी मनोकामना किसी और चीज़ के लिए होने लगी थी।
कविता ने एक और चीज़ मुझे नहीं करने दी जो उस दिन मैं करना चाह रही थी. वो थी उसकी योनि को चाटना।
अब जब रह-रहकर ये बातें मेरे मन में आने लगीं तो ऐसा लगता जैसे उसकी सुंदर गीली योनि की मादक खुशबू मेरे नाक, फेफड़ों के भीतर समा गई हो और इर्द-गिर्द उसकी ही खुशबू फैली है।
गहराई से उसके साथ बिताए पलों को, लेस्बियन लव को याद करती तो उसका सुंदर बदन, एक एक कामुक अंग मन के आइने में दिखता और उसके बदन की खुशबू हवाओं में फैली हुई मेरे जिस्म में उतरती हुई प्रतीत होती।
2-3 दिन मैं उसके ही खयालों में खोई रही। पति ने एक बार संभोग भी किया तो ऐसा लगा कि कविता ही है.
मगर उस पर मुझे ये सोचकर गुस्सा भी बहुत आया कि वो इतनी जल्दी अलग किस वजह से हो गयी.
खैर, मेरे पति तो ऐसे ही हैं. उनका इतना ही होता है. वो मुझे ज्यादा देर तक नहीं मजा दे पाते.
मैं अभी भी काफी गर्म थी. पति के झड़ने के बाद मैं बाथरूम में चली गयी.
हमेशा की तरह मैं नंगी होकर अपनी चूत को उंगली से ही शांत करने की कोशिश करने लगी. उंगली करते हुए भी यही सोच रही थी कि कविता मेरी चूत को चाट रही है और मैं उसकी चूत को चाट रही हूं.
उंगली करते करते पता भी नहीं चला कि अपनी चूत के रस में गीली उंगली को मैं कब में चाटने भी लगी. बार बार मुंह में उंगली चूसकर मैं उसे योनि में घुसा रही थी.
मेरे मन में कविता के कामुक बदन का दृश्य चल रहा था. उसे ही सोचकर मैं अपने पूरे बदन पर हाथ फिरा रही थी.
अंत में जब मेरा स्खलन नजदीक आया तो उस वक्त मेरे हाथ की तीन उंगलियां मेरी चूत में थीं.
दूसरे हाथ की उंगलियों को मैं मुंह में लेकर चूस रही थी और नीचे से चूत को भींच रही थी.
जब झड़ कर शांत हुई और अपने होश में आई तो चौंक गयी. अपनी ही स्थिति पर हैरान हो रही थी.
मुझे ज़रा भी होश नहीं था कि कामोत्तेजना में मैं खुद ही अपनी योनि का रस चूस रही थी।
ऐसी हालत तो किसी मर्द के लिए भी नहीं हुई थी मेरी! अब मुझे समझ आ रहा था कि कविता एक अनुभवी खिलाड़ी रही होगी.
वह अच्छी तरह जानती थी कि कैसे किसी के भीतर की इच्छाएं बाहर निकालनी हैं. उसके बाद मैं जब शांत हुई तो फिर मैं सोने चली गयी.
मगर मन में एक उथल पुथल मची हुई थी. चूत को तो मैंने हाथ से शांत कर लिया लेकिन मन प्यासा था।
मेरे भीतर कविता के साथ संभोग करने की, लेस्बियन लव की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो रही थी। बहुत मुश्किल से मुझे नींद आयी उस रात!
फिर अगले दिन से बेचैनी शुरू हो गयी। अकेले में कविता से बात की मैंने और अपना सारा हाल उसे बता दिया। उससे संकोच करने की बात ही नहीं थी.
तब कविता ने कहा कि मेरे लिए एक सीखी-सिखाई साथी को उसने छोड़ रखा है। उसका संकेत समझने में जरा भी देरी नहीं हुई मुझे. ये कोई और नहीं बल्कि प्रीति थी।
कविता ने तो आसानी से कह दिया मगर मेरे लिए आसान नहीं था। भले ही प्रीति मेरी अच्छी सहेली थी मगर इस तरह के संबंधों के लिए कभी सोचा नहीं था मैंने उसके बारे में। मुझे उसको लेकर बहुत संकोच हो रहा था।
मुझसे तो कविता ने अपनी सरल भाषा में कह दिया लेकिन मेरे गले के नीचे हड्डी नहीं उतर रही थी।
मगर कहते हैं कि जब कोई आपकी कमजोरी पकड़ लेता है तो आपको वैसा ही दिखने भी लगता है जो आपको वह दिखाना चाहता है.
कविता से बात खत्म होते ही मेरे मन मे स्वयं प्रीति की छवि दिखने लगी और संयोग से आधे घंटे के बाद प्रीति भी आ गयी.
शुरू में वो थोड़ी शर्मायी सी लगी मगर कुछ पलों के बाद बर्ताव सामान्य सा लगने लगा उसका!
मुझे ऐसा लगने लगा कि मानो मैंने उसे कविता के साथ काम क्रीड़ा करते देखा ही नहीं था।
हम दोनों कुर्सी पर आमने सामने होकर बातें करने लगे। मैं उससे बात करना तो चाहती थी इस विषय में मगर बहुत संकोच हो रहा था।
बातों-बातों में आखिर प्रीति ने मुझसे पूछ ही लिया कि क्या कविता ने मेरे साथ भी वो सब किया जो उसके साथ किया था? थोड़ा हिचकिचाहट हुई मुझे मगर ईमानदारी से मैंने उसे सच बता दिया कि हम दोनों ने लेस्बियन लव किया था।
मेरे बताते ही वो बहुत गौर से मुझे घूरने लगी और कुछ पलों में मुझे उसकी आँखों में अजीब सी चमक दिखने लगी। उसके गाल लाल होने लगे और होंठ और भी अधिक गुलाबी और रसीले दिखने लगे।
मुझे उसके भीतर वासना की आग दिख गयी थी.
बस फिर क्या था, मुझे उससे किसी तरह की सहमति नहीं चाहिए थी। मैंने लपक कर उसे उसके बाजुओं से पकड़ा और अपनी ओर खींच कर उसके होंठों से होंठों को चिपका कर चूमने लगी।
मेरे इस तरह के बर्ताव को देख प्रीति ने भी तुरंत मुझे अपनी पूरी ताकत से पकड़ लिया और अपना सहयोग देने लगी। हम एक दूसरे के होंठों को किसी मिठाई की तरह चूसने लगे और जुबान को बारी-बारी से एक दूसरे के मुंह में देने लगे।
जब वो मेरे मुंह में अपनी जुबान डालती तो मैं उसे चूसने लगती और जब मैं अपनी जुबान उसके मुंह में डालती तो वो चूसने लगती। धीरे-धीरे हमारी कामुकता बढ़ती ही जा रही थी और प्रीति मेरी तरफ झुकती जा रही थी.
बढ़ते हुए जोश के साथ मैं उस पर हावी होती जा रही थी। मैं अपनी कुर्सी पर बैठी उसके ऊपर सवार होने को हो रही थी और वो अपनी कुर्सी पर बैठी पीछे की ओर गिरने जैसी।
उसकी गर्म सांसें मुझे पागल किये जा रही थी और उसके होंठों का रस मानो किसी चाशनी सा मीठा लग रहा था. होंठों से होंठों को चूसने का वो आनंद मुझे अपने पति के साथ इतना गहरा कभी नहीं लगा जितना इस लड़की के साथ लग रहा था.
धीरे धीरे गुजरते पलों के साथ हम दोनों की कामुकता इतनी बढ़ गयी कि हम अपना अपना संतुलन खो बैठे और कुर्सी से गिरते-गिरते बचे। इससे पहले कि हम गिरते हमने एक दूसरे को थामा और संभाला।
प्रीति ने मुझे मेरी कमर से पकड़ रखा था और मैंने उसके दोनों गालों को। एक पल हमने एक दूसरे की आंखों में देखा, देखकर स्माइल दी और फिर से दोनों ही एक दूसरे के होंठों को होंठों से चिपका कर चूमने लगे।
अब हम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे और एक दूसरे के गालों और गर्दन को चूमते हुए स्तनों तक पहुंच गये.
प्रीति ने मेरी साड़ी उठानी शुरू कर दी और साड़ी को कमर तक उठाकर मेरे चूतड़ों को दबाने लगी।
उसके इस तरह दबाने और सहलाने से एक अजीब सी हलचल पैदा हो रही थी मेरे अंदर! मेरा पल्लू भी इस खींचतान में गिर गया था और ब्लाउज की गोलाईयों से स्तनों के उभार दिखने लगे थे जहाँ प्रीति बार-बार उन्हें चूम रही थी।
मैंने भी उसका दुपट्टा निकाल फेंका और उसके पजामे का नाड़ा खींच दिया। उसका पजामा सर्र से नीचे सरक गया।
प्रीति ने भी चूमते हुए मेरी पैंटी को नीचे सरका कर जांघों के नीचे तक कर दिया. वो फिर एक हाथ से मेरे चूतड़ दबाने लगी और दूसरे हाथ से उंगलियों से चूतड़ों के बीच से मेरी योनि को टटोलने लगी।
मैं भी पागलों की तरह कभी उसके चूतड़ों को दबाती तो कभी स्तनों को और साथ ही चुम्बन करती रही।
पहले तो प्रीति को मेरी योनि खोजने में दिक्कत हो रही थी मगर उसकी व्याकुलता इतनी थी कि उसकी उंगलियों को मेरा गुदा द्वार मिल गया. वो मेरी गांड के छेद पर उंगलियां फिराने लगी.
उंगलियां फिराते हुए वो पूरा प्रयास कर रही थी कि उंगलियों को मेरी गांड के छेद के अंदर घुसा ले. मगर काफी प्रयास के बाद भी उंगली को अंदर नहीं घुसा पायी.
भी मैंने अपनी टांगों को फैलाकर चूतड़ों को पीछे की ओर उठाया. उसे मेरी योनि मिल गयी।
जैसे ही योनि मिली उसने तुरंत उंगली मेरी योनि में प्रवेश करा दी और उससे खेलने लगी। मेरी योनि गीली हो चुकी थी और रस की वजह से चिपचिपी हो चुकी थी।
इधर मैं भी प्रीति के स्तनों को मसल मसल कर उसके गुलाबी होंठों का रस पीने में व्यस्त हो गयी थी। पूरे कमरे में हमारे चुम्बनों की आवाज गूंजने लगी थी।
खड़े-खड़े हम काफी देर तक ऐसे ही एक दूसरे को प्यार करती रही।
अब तो प्रीति ने मेरी साड़ी खींच कर अलग कर दी थी और पेटीकोट का नाड़ा भी खींचकर पेटीकोट हटा दिया था।
मेरी साड़ी और पेटीकोट मेरे पैरों में थे। अब मेरी बारी आई; मैंने उसकी पजामी उतार दी।
उसने भी अब मुझे नंगा करने की सोच ली और मेरे ब्लाउज का हुक खोलने लगी।
मैंने भी उसकी ब्रा का हुक खोल उसके बड़े गोल-गोल मलाई की तरह के मुलायम स्तनों को मुक्त कर दिया।
दो पल के लिए मैं उसके सुंदर स्तनों को निहारती रही और भीतर से जलन सी भी हो रही थी.
उसके चूचे देखकर मुझे आभास हुआ कि उसके चूचे मेरे चूचों से ज्यादा सुंदर थे.
उसने भी मेरी ब्रा के हुक खोलकर मेरे स्तनों को बाहर निकाल दिया। मेरे स्तनों को घूरने के बाद वो पागलों की तरह मसलते हुए मेरे चूचकों को मुंह में भरकर बारी-बारी से चूसने लगी. मैं मस्ती में सिसकारने और कराहने सी लगी।
अब मैं उसके सिर को पकड़ कर किसी बच्चे को प्यार करने के जैसे करते हुए उसके माथे को चूमने लगी। कुछ देर बाद उसने झुक कर मेरी पैंटी पूरी बाहर निकाल दी और घुटनों के बल होकर मेरे पेट को चूमा.
फिर उसने मेरी नाभि को चूमा और नाभि के छेद में जुबान डाल कर खेलने लगी। उसके ऐसा करने से मेरे बदन में बिजली की सी लहर दौड़ गयी और मेरी टांगें कंपकंपाने लगीं।
फिर जैसे ही उसने मेरी योनि के ऊपरी हिस्से के दाने को चूमा तो लगा कि मेरा पेशाब ही निकल जायेगा। मैंने झट से उसके बालों को पकड़ा और खींचते हुए उसे खड़ी कर दिया।
मैं दोबारा से उसके होंठों को चूमते हुए उसके मक्ख़न जैसे स्तनों को मसलने लगी। प्रीति मस्ती में सिसकारते हुए आहें भरने लगी।
मेरी उत्तेजना इतनी बढ़ गयी थी कि उसके कामुक बदन को अपनी बांहों में पाकर समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं उसके जिस्म के साथ क्या करूं.
उसके बदन की मनमोहक खुशबू मुझे बेकाबू कर रही थी. कुछ देर उसके बदन को सहलाने के बाद मैंने अपना हाथ उसकी पैंटी पर रखा और उसकी योनि को छुआ.
प्रीति की चूत एकदम से आग की भट्ठी की तरह तप रही थी. गर्म होने के साथ ही बहुत ही मुलायम भी लग रही थी. एकदम नर्म और फूली हुई दो पंखुड़ियां छूते ही मन में उनको देखने की तीव्र इच्छा होने लगी.
मैंने तुरंत एक झटके में उसकी पैंटी निकाल दी और घुटनों के बल होकर उसकी योनि को घूरने लगी। इतनी प्यारी योनि थी कि मुझे ईर्ष्या होने लगी उसको देखकर।
अब मैं सोच रही थी कि काश मैं एक मर्द होती और मेरे पास एक मोटा तगड़ा लंड होता. इसकी चूत में अपने लंड को देकर मैं इसकी चूत की सही से चटनी बनाती और सारा रस निकाल देती इसको चोदकर।
मैंने हल्के से उसकी टांगें फैलाईं और योनि को छुआ. फिर मैंने चूत को खोलकर देखा. मैं तो मंत्रमुग्ध हो गयी. पहली बार इतनी करीब से किसी और की योनि को देखा था मैंने।
हल्के भूरे और काले रंग में अंदर की दोनों छोटी भगोष्ठ और भीतर एकदम गुलाबी और रस से भरा चिपचिपा योनि द्वार और उसके ऊपर हल्के काले बाल।
मैं बहुत ही प्यार से उसको छू रही थी और सहलाने का, लेस्बियन लव का मजा ले रही थी.
तभी एक कामुक आवाज आई- बस देखती ही रहोगी या इसे प्यार भी करोगी? इतना कहते ही प्रीति ने अपनी बाईं टांग उठा कर कुर्सी पर रख ली।
मैंने सिर उठाकर उसे देखा तो उसकी आंखों में काम की ज्वाला भभक रही थी. अपने दोनों होंठों को आपस में भींचते हुए उसने मेरा सिर पकड़ा और अपनी योनि की ओर ले गयी.
मैंने भी एक हाथ नीचे से घुसा कर उसकी चूत को फैलाया और दूसरे हाथ से उसकी जांघ को पकड़ा और एक चुम्बन धर दिया उसकी योनि में!
प्रीति कराह सी उठी और एक मस्ती की अनुभूति करते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं उसने!
ये मेरा पहला अनुभव था किसी की चूत को चूमने का … सच में बहुत रोमांचित करने वाले पल थे ये! एक अलग ही खुशबू आ रही थी मुझे उसकी चूत से जो मेरी उत्तेजना को और अधिक बढ़ा रही थी।
अब मैं सम्पूर्ण रूप से समलैंगिक हो चुकी थी क्योंकि केवल यही एक काम था जो अब तक मैंने नहीं किया था।
कविता से मैं सब सीख चुकी थी; तो मुझे सोचने की कोई जरूरत नहीं थी कि क्या और कैसे करना है।
वैसे भी संभोग एक ऐसी क्रिया है जिसमें किसी को किसी से सीखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बस मन लगना चाहिए और मनुष्य खुद ब खुद करते करते निपुण हो जाता है।
प्यार की तरह ही सेक्स भी ढाई अक्षर का ही शब्द है। जैसे प्यार के लिए कहते हैं- पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय।
किसी भी काम में निपुण होने के लिए उसमें लीन होना पड़ता है. अब मैं चूत में लीन हो चुकी थी और अब आगे आनंद का अपार सागर खोज रही थी।
आपको मेरी लेस्बियन लव स्टोरी कैसी लगी आप मुझे इस बारे में जरूर लिखें. आप मुझे मेरी ईमेल पर मैसेज कर सकते हैं. [email protected]
लेस्बियन लव स्टोरी का अगला भाग: चूत की प्यासी चूत- 2
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