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हॉट लेस्बियन्ज़ कहानी मेरी सहेली के साथ समलैंगिक सम्बन्ध की है. उसके मुलायम स्तनों और गुलाबी चूत देख मैं काबू से बाहर हो गयी. मैंने चूत को इतना चाटा कि …
मैं सारिका एक बार फिर से आप सबका अन्तर्वासना पर स्वागत करती हूं. मैं आपको अपनी प्यासी चूत की कहानी बता रही थी कि कैसे कविता ने मेरे साथ सेक्स करके मेरी लेस्बियन प्यास जगा दी।
हॉट लेस्बियन्ज़ कहानी के पहले भाग लड़की को लगी चूत चाटने की प्यास में आपने देखा कि कविता और मेरी ही सहेली प्रीति मेरे घर आई और हम दोनों में सब कुछ खुल गया. मैंने उसे कविता और मेरे बारे में बता दिया कि वो और मैं भी लेस्बियन सेक्स का मजा ले चुकी हैं.
फिर हम दोनों को नंगी होते देर न लगी और मैं प्रीति के जिस्म में खो गयी. मैंने पहली बार किसी जवान लड़की की नंगी चूत को इतनी करीब से देखा था. अब मैं उस आनंद में डूब जाना चाहती थी.
अब आगे हॉट लेस्बियन्ज़ कहानी:
इस कहानी को सुनकर आनन्द लें.
मैंने चुम्बन से शुरू किया और चूत को जहाँ तहाँ चूमा. कभी ऊपर तो कभी दोनों दरारों में, कभी दायें तो कभी बायें. प्रीति मेरे बालों को खींचती नौचती हुई सी-सी … करने लगी।
बेतहाशा चूमते हुए मैं उसकी नाभि, पेट और चूचियों पर सब जगह हमला कर रही थी. मैं ये क्रिया बार बार दोहराने लगी। मैं जितना कर रही थी प्रीति और अधिक गर्म और उत्तेजित हो रही थी।
अब मैंने चूत की बड़ी भगोष्ठ को दो उंगलियों से फैला दिया और अपनी जुबान भिड़ा दी. जैसे ही उसे छोटी भगोष्ठ पर स्पर्श हुआ उसकी चूत से पतली 2-4 पानी की बूंद तेजी से निकल पड़ीं और वे बूंदें मेरी जुबान से होते हुए नीचे गिर गयीं.
अब वो मेरे बालों को पकड़ कर कांपने लगी। मुझे लगा कि कहीं उसने पेशाब तो नहीं कर दिया? मगर ये पेशाब नहीं था. ये उसके मूत्र द्वार से नहीं बल्कि चूत द्वार से छलका हुआ पानी था.
प्रीति ने गिड़गिड़ाते हुए मुझसे कहा- सारिका जी प्लीज, यहाँ मुझसे नहीं हो पायेगा, प्लीज बिस्तर पर चलिए और जो मर्ज़ी हो आपकी मेरे साथ करो।
ये कहते ही उसने मुझे पकड़ कर उठाया और हम दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कमरे की ओर जाने लगे। मेरी पैंटी अभी भी मेरी जांघों तक ही थी.
कमरे में जाते ही प्रीति बिस्तर पर लेट गयी. एक तकिया उसने सिर के नीचे रखा और टांगें कामुक अंदाज़ में फैला कर चूत खोल दी।
उसने एक हाथ से अपनी चूत को मला और दो उंगलियों से भगोष्ठ फैलाती हुई बोली- आईये सारिका जी, अब ये फुद्दी आपकी है।
मुझे उस दिन पता चला कि चूत को चूत व बुर के अलावा पंजाबी में फुद्दी भी कहते हैं। मुझे और क्या चाहिए था, मैं घुटनों के बल खड़ी हुई और उसकी मोटी जांघों को पकड़ सीधा अपना मुंह उसकी चूत से चिपका दिया।
एक मुग्ध करने वाली खुशबू उसकी चूत से आने लगी और मैंने जुबान से टटोलते हुए उसकी बड़ी तथा छोटी भगोष्ठ को फैला दिया और चूत द्वार पर जुबान फिराने लगी।
प्रीति की कसमसाहट और कराहट से मैं समझ गयी कि वो अब मस्ती के सागर में गोते लगाने लगी है। कुछ पल के लिए चूत से नमकीन स्वाद आ रहा था. मगर जैसे जैसे मैंने उसे चाटना शुरू किया एक हल्की मिठास उसकी चूत से मिलने लगी।
वो कराहते हुए स्वयं अपने मांसल स्तनों को मस्ती में मसलने लगी।
समय जैसे जैसे बीत रहा था प्रीति की चूत रस और अधिक छोड़ती जा रही थी।
मेरे मुंह में पानी भरने लगा था जो मुंह से गिरता हुआ पूरा बिस्तर भिगा रहा था। मैं कभी उसके ऊपर के दाने को दांतों से दबाती तो कभी भगोष्ठ को।
कभी जुबान चूत के भीतर डालने का प्रयास करती तो कभी जांघों को चूमती। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो मैं बरसों की भूखी हूं और प्रीति कोई खाने का स्वादिष्ट भोजन। मैं लगातार चूत को चाटती जा रही थी.
और अचानक ही प्रीति फिर से झटके खाने लगी और रह रहकर अपनी चूतड़ उठाने लगी। मुझे समझ आ गया था कि प्रीति बार बार झड़ रही है।
उसे मैं इस तरह सिसकारते और अंगड़ाई लेते देख कामुक हो रही थी। अब मैंने उसकी चूत में दो उंगलियां अंदर डाल दीं. मैं अंदर और बाहर से चूत को चाटने लगी।
जितनी भीतर उंगली जा रही थी उतना ही ज्यादा जोश आ रहा था मुझे। कई बार प्रीति अपना रस छोड़ने के बाद अब ढीली सी पड़ने लगी थी और मेरे खयाल से आधे घंटे से ज्यादा हो चुका था मुझे उसकी चूत चाटते हुए।
उसका ढीलापन देख मैं उठी और उसकी टांगों को पकड़ कर दोनों टाँगें आपस में चिपका दीं और उसके तलवों को बारी-बारी से चूमा। देखा तो प्रीति मेरे चूमने से ही सिकुड़ सी गयी और मस्ती में अपनी आंखें बंद कर लीं।
बस मेरे लिए समझना मुश्किल नहीं था कि प्रीति दोबारा से गर्म हो रही है। मैंने उसकी टांगों को चूमना शुरू कर दिया और पैरों की उंगलियों को बारी-बारी चूसने लगी।
धीरे-धीरे टांगों के एक एक कोने को मैंन चाटना और चूमना शुरू किया और ऊपर की ओर बढ़ने लगी। प्रीति के बदन के एक एक हिस्से को चूमती चाटती हुई मैं उसके चेहरे तक पहुंच गयी।
वही प्रीति मुझे पूरी ताकत से पकड़ अपने हाथों की उंगलियों के नाखून गड़ाने लगी मेरे पीठ पर। इससे मुझे पीड़ा नहीं बल्कि आनंद की अनुभूति हो रही थी।
मैंने उसके चेहरे को न सिर्फ चूमा बल्कि चाट चाट कर गीला कर दिया था। उसके स्तनों को तो इतना मसल मसलकर चूसा मैंने कि उसका गोरा बदन लाल हो गया। चूचक पत्थर की तरह कठोर हो चुके थे।
अब मैंने उसे बालों से पकड़ कर उठाया और पलट दिया. अब वो पेट के बल थी।
मैं उसके ऊपर चढ़ गई और अपने बदन से उसके बदन को रगड़ना शुरू किया। बदन से बदन रगड़ते हुए मैंने उसके गले को चूमना शुरू कर दिया और फिर धीरे-धीरे चूमती हुई उसके बदन के निचले हिस्से तक जाने लगी।
उसके पहाड़ जैसे मांसल चूतड़ों को जी भर कर मैंने चाटा और चूमा. जैसे मर्जी हुई वैसे खेलते हुए पीछे से उसकी चूत में कई बार तेज़ी से उंगली घुसाकर संभोग किया।
प्रीति अब पागल सी होने लगी थी और उसकी मादक सिसकारियां कमरे में गूंजने लगी थीं। मेरे बिस्तर को तो उसने पूरा ही भिगा दिया था।
मैं धीरे धीरे-धीरे नीचे बढ़ने लगी और मेरी भी गर्मी बढ़ती जा रही थी. रह रहकर मैं भी अपनी चूत पर हाथ फिराते हुए उसे मसल रही थी।
जब मैं उसके पांव तक पहुंच गयी तो उसके बाद मैंने उसे उठाया और कुतिया की भाँति झुका दिया। उसके मोटे चूतड़ों को दोनों हाथों से फैलाया और उसे अपने चूतड़ और उठाने को कहा।
चारों तरफ से चूतड़ों को चूमने के बाद मैंने उसकी चूत पीछे से चाटनी शुरू कर दी। बस 2-4 मिनट हुए ही होंगे कि प्रीति गिड़गिड़ाने लगी- प्लीज … बस और नहीं।
मुझ पर तो जैसे कोई भूत सवार से हो गया था; मैं कुछ सुनने की हालत में नहीं थी; बस उसकी चूत चाटे जा रही थी. और उसकी चूत है कि पानी छोड़े जा रही थी. उसकी जाँघें तक भीग गयी थी।
अब उसने जोर लगाना शुरू कर दिया. मैं भी उसको अपनी ओर खींचे रही लेकिन एक वक्त के बाद उसने मुझसे खुद को अलग कर लिया.
वो एक झटके में पलटी और मेरे बालों से खींचते हुए मुझे अपने पास कर लिया. मुझे पकड़ कर बोली- आ साली कुतिया, अब मेरी बारी है। इतना कहते ही उसने अपने होंठों को मेरे होंठों से चिपका लिया और हम दोनों फिर से जुबान से जुबान व होंठों से होंठ लड़ाते हुए चूमने लगे।
आखिर वो एक सरदारनी जो थी. कब तक मेरे बस में रहती और मैं कैसे भूल गयी कि वो भी एक औरत ही थी. जब मैं अपनी वासना के आगे विवश हो गयी तो वो कैसे न होती।
वो पूरी ताकत से मेरे स्तनों को मसलने लगी और मैं उसके स्तनों को। हम पागलों की तरह एक दूसरे को चूमने लगे थे।
कुछ देर के बाद उसने मुझे खड़ी कर दिया और दीवार से सटा दिया. फिर मेरे दोनों हाथों को फैला दिया और ऊपर कर दिया और बोली– हाथ जरा से भी हिलाये तो फुद्दी के सारे बाल नोंच लूंगी।
मैं उसके कहे अनुसार हाथ ऊपर किये हुए खड़ी रही।
उसने अपना मजा लूटना शुरू कर दिया। मेरे गले व गालों को चूमती हुई वो मेरे स्तनों तक गयी और उन्हें बारी-बारी से मसल मसल कर कर चूसा. फिर धीरे धीरे मेरी नाभि व पेट को चूमती हुई पैरों तक गयी और फिर मुझे घूम जाने को कहा।
मैं घूम गयी.
अब उसने मुझे नीचे से चूमना शुरू किया और कमर पर आ कर रुक गयी।
जैसे मैंने उसके चूतड़ों को प्यार किया वैसा ही अब वो मेरे साथ करने लगी और नीचे से हाथ डाल कर मेरी चूत को सहलाने लगी।
वो मेरे चूतड़ों को अपने अंदाज में प्यार करती हुई बार बार चांटे मारे जा रही थी और मैं कराहती रही। मेरी चूत अब किसी तंदूर की तरह गर्म होकर भभक रही थी. चूत की सिकुड़ती और फैलती मांसपेशियों का अहसास मुझे हो रहा था।
गीली चूत से रिसता हुआ मेरा रस जांघों से होता हुआ नीचे जा रहा था। मैं इतनी व्याकुल हो गयी थी कि न चाहते हुए भी मेरा हाथ पीछे प्रीति के सिर पर चला गया और उसके बालों को सहलाने का प्रयास किया।
इस पर प्रीति ने मेरी चूत के बालों को पकड़ जोर से खींचा और मैं चिल्ला उठी। प्रीति ने कठोर स्वर में कहा- साली कुतिया, छिनाल … जैसा बोला था वैसे ही खड़ी रह, वर्ना आज तेरी फुद्दी में एक झांट भी नहीं बचेगा।
मैं वापस उसी अवस्था में हो गयी और वो फिर से मेरे चूतड़ों, चूत और जिस्म से खेलने लगी। मेरी स्थिति इतनी बुरी हो गयी थी कि अब अपनी टांगों पर खड़े रहना मुश्किल था। मैं किसी भी तरह झड़ जाना चाहती थी.
मगर प्रीति अपनी ही धुन में मेरे बदन का मजा लिए जा रही थी। कुछ देर के बाद उसने मुझे कहा- अपनी गांड उठाओ मेरी जान और गांड को दोनों हाथों से फैलाओ।
मैंने उसके कहने के अनुसार अपनी गांड को दोनों हाथों से फैला कर चूतड़ों को पीछे की ओर उठा दिया।
प्रीति के सामने अब मेरी चूत थी. उसने जांघों पर हाथ मलते हुए कहा- कितनी मस्त चूत है, कितने लौड़े तरस रहे होंगे इसमें जाने के लिए!!
इतना कहते ही उसने एक चुम्बन मेरी चूत के मुख पर धर दिया। उसके होंठों की छुअन से मेरा पूरा बदन हिल गया और रस की 2-4 बूंदें छलक पड़ीं चूत से।
प्रीति मेरी जांघों पर लगा रस जीभ से चाटते हुए मेरी चूत तक आ गयी। मैंने सोचा नहीं था कि प्रीति इस तरह से आक्रामक रूप ले लेगी।
पर जो भी था मुझे मजा ही आ रहा था और अब मैं चाहती थी कि किसी भी तरह प्रीति मुझे झाड़ दे।
मेरी जाँघें पकड़ प्रीति ने अपना पूरा मुंह मेरे चूतड़ों के बीच घुसा दिया और मेरी चूत को जुबान से टटोलने लगी। मैं आनंद के सागर में जैसे डूबने लगी।
वो तरह तरह से अपनी जुबान से मेरी चूत को छेड़ने लगी और मेरे भीतर रह रहकर एक मीठी सी सुईं की सी चुभन होने लगी। वो जुबान से कभी मेरी चूत के भगोष्ठ को फैलाती तो कभी चूत द्वार के भीतर घुसाने का प्रयास करती।
कभी किनारों से लेकर गुदा द्वार तक चूमती तो कभी जांघों को! मैं पागल सी हुई जा रही थी.
इतनी मस्ती तो तब भी नहीं आती थी जब पूरी तरह गर्म होकर लिंग चूत से घर्षण करता था। कुछ ज्यादा समय भी नहीं हुआ था अभी और मैं चरम सीमा के मार्ग पर थी।
मुझसे अब अब इस तरह अपने चूतड़ हाथों से फैलाये और उठाये नहीं रहा जा रहा था. मेरी टांगों में अब शक्ति छिन्न सी होने लगी थी। एक भय भी दिल में था प्रीति को लेकर क्योंकि वो अब अलग ही रूप में थी।
मैं जितना कर सकती थी सहन करने की कोशिश कर रही थी और खुद को रोकने का प्रयास कर रही थी.
मगर फिर रहा न गया और मैंने झटक कर प्रीति को अलग कर दिया. प्रीति पीठ के बल से दूसरी तरफ बिस्तर पर गिर गयी.
मैं तुरंत जाकर उसके मुंह पर अपनी दोनों जाँघें फैला कर बैठ गयी। मैं खुद ही अपनी चूत उसके मुंह पर रख जल्दी जल्दी और जोरों से आगे पीछे कमर के सहारे रगड़ने लगी।
उसने भी साथ देते हुए तुरंत हाथ उठाकर मेरे स्तनों को जोर जोर से दबाना शुरू कर दिया. मैं अत्यंत मजे में थी और कुछ ही पलों में मैंने हिचकी लेने की तरह 10-12 झटके लिए और पतली चिपचिपी सी धार उसके मुंह में भरते हुए झड़ गयी।
इस बदहवास हालत में भी इतना होश तो था कि मैंने अपना सारा वजन नहीं रखा प्रीति के मुंह पर वर्ना मेरे जैसी भारी भरकम औरत के दबाव में उसकी सांसें रुक जातीं।
मैं अब ढीली पड़ने लगी थी किंतु अब भी मैं अपने स्तनों पर दबाव और चूत पर उसकी जुबान की हरकत महसूस कर रही थी। अपनी सांसों को काबू में करती हुई मैं प्रीति के बाल सहलाने लगी और अपना बदन ढीला करने लगी।
मेरे शरीर की ढिलाई महसूस करते ही प्रीति ने भी अपनी हरकतें धीरे धीरे बंद कर दीं। मैं उसके मुंह के ऊपर से उठकर बिस्तर के एक किनारे पर करवट लेकर लेट गयी।
प्रीति ने भी सरक कर मेरे मुखाने होकर करवट ले ली और मुस्कराते हुए मुझे अपनी बांहों में भर लिया। मैंने भी उसे अपनी छोटी बहन के जैसे पकड़ लिया और उसके बालों को सहलाते हुए उसके होंठों पर एक चुम्बन धर दिया।
हम दोनों ने एक दूसरे की आंखों में देखा तो दोनों हॉट लेस्बियन्ज़ की नजरों में एक संतुष्टि झलक रही थी।
कुछ देर के बाद प्रीति ने अपनी एक जांघ मेरी जांघ पर रख मुझे और जोरों से जकड़ा और कहा- आपको बुरा तो नहीं लगा? मैंने आपको गालियां दीं, आपके साथ ऐसा बर्ताव किया।
मैंने उसके माथे को चूमते हुए कहा- बिल्कुल भी नहीं, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। प्रीति ने दोबारा कहा- हम इतने दिनों से दोस्त हैं, हर बात एक दूसरे से कहते हैं, पर ऐसा कभी करेंगे सोचा नहीं था। आपके साथ बहुत मजा आया मुझे!
इस पर मैंने कहा- कविता को धन्यवाद देना चाहिए कि हमें उसने इतना करीब ला दिया। प्रीति बोली- हाँ, सब उसी की वजह से ही है. मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी आपसे सीधे कहने की मगर उसने ही मुझे प्रोत्साहित किया।
मैंने भी कहा– मुझे नहीं पता था कि एक औरत के साथ भी इतना मजा आता है, मैं बहुत संकोच कर रही थी, मगर तुम्हारी सुंदरता देख मुझसे रहा नहीं गया और ये इच्छा कविता ने ही मेरे अंदर पैदा की।
प्रीति बोली- आप भी बहुत सुंदर हो. आपकी गांड मुझे बहुत अच्छी लगती है. जी करता है खेलती रहूं. इस उम्र में भी आपकी गांड सख्त दिखती है और जाँघें मस्त!
मैं भी उसकी तारीफ में लग गयी और उसे बताया कि उसकी चूत कितनी सुंदर है, स्तन मक्खन की तरह हैं।
थोड़ी देर बाद मैंने फिर से उसकी चूत चाटने की इच्छा व्यक्त की. मगर अब बहुत देर हो रही थी इसलिए प्रीति ने कहा कि अगले दिन करेंगे। हम बाथरूम में गई और एक दूसरे के बदन को साफ किया। फिर कपड़े पहन कर और तैयार होकर हॉट लेस्बियन्ज़ ने एक दूसरे को चूमकर विदा किया।
मन बड़ा खुश लग रहा था और अंदर से इच्छा हो रही थी कि दिन बीत जाए और जल्दी ही वो दिन आये जब मैं उससे दोबारा मिलूंगी. अब मेरे अंदर चूत से चूत रगड़ने की प्यास और गहरी हो गयी थी।
तो दोस्तो, आशा करती हूं कि मेरा ये नया अनुभव, हॉट लेस्बियन्ज़ कहानी आप सभी पाठकों को पसंद आई होगी। किसी भी प्रकार का सुझाव देना चाहते हैं तो मुझे जरूर लिखें। मैं अपनी अगली कहानी में आपके सुझावों को प्रस्तुत करूंगी। धन्यवाद। आप सबकी प्रिया सारिका कंवल [email protected]
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