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दोस्तो.. मेरा नाम शीतल है और मैं एक बड़ी कंपनी में काम करती हूँ। मैं एक अन्तर्वासना की पाठक हूँ.. तथा हर रोज़ इस वेबसाइट पर कहानियाँ पढ़ती हूँ। मैं बहुत दिनों से सोच रही थी कि मैं भी मेरी एक पुरानी और मजेदार चुदाई की कहानी इस पर लिखूँ।
तो दोस्तो, यह घटना दो साल पहले की है.. जब मेरी अनचुदी चुत पहली बार चुद गई थी। यह एक बहुत ही रोमांचक दास्तान है।
जब हम लोग मतलब मेरे घरवाले और मैं सब हमारे गाँव के नजदीक ही एक कस्बे में रहा करते थे। हमारा गाँव कर्नाटक स्टेट में उस्मानाबाद के नाम से है।
आपको तो मालूम ही है कि गाँव तो गाँव ही होता है.. वहाँ पर बिजली की दिक्कत.. ऊपर से खराब सड़कें.. मतलब कोई विकास नहीं होता.. पर दोस्तो, वहाँ की हरियाली से दिल खुश हो जाता है।
अक्सर मेरे पापा वहाँ काम के लिए या फिर खेत में देखभाल के लिए जाया करते थे। कभी-कभी पापा के साथ हम सभी परिवार के लोग भी जाया करते थे। हमारे साथ में एक पापा की उम्र का नौकर भी जाता था। वो बड़ा अजीब सा था.. एकदम काला सा पतला सा और उससे भी अजीब कि उसने जिंदगी में शादी नहीं की थी। उसे हम चाचा कहते थे।
तो वो और मेरे पापा रोज़ सुबह जाते थे और शाम को वापस आते थे और दिन भर मैं और मेरी माँ बोर होते थे।
एक दिन की बात है हम लोग ऐसे ही घर पर बैठे थे और पापा आ गए और साथ में वो चाचा भी आए। वो हर रोज़ आकर घर में चाय पीकर ही अपने घर जाते थे। मैं भी उनसे रोज़ बात करती थी और कभी मन में ऐसा ख्याल नहीं आया था।
जब वो उस दिन आए तो वो उनकी नज़र कुछ ठीक नहीं लग रही थी। वो कुछ और निगाहों से मुझे घूर रहे थे। मुझे थोड़ा अजीब लगा लेकिन मैंने इग्नोर कर दिया और उठ कर बाहर चली आई।
घर के पीछे जहाँ गाय और भैंस को बांधा जाता है.. मैं वहाँ टहल रही थी।
मेरे पीछे कोई अलग सी आवाज़ आ रही थी जैसे कोई पानी डाल रहा हो.. मैं थोड़ी डर सी गई।
मैंने पीछे देखा तो वही चाचा थे, वे वहाँ पर पेशाब कर रहे थे.. और साथ ही मुझे भी घूर रहे थे और अपने लण्ड को हिला रहे थे। मुझे डर लगा और मैं भाग कर घर में आ गई.. पर मैंने किसी को कुछ नहीं बोला था।
मैं बहुत डरी हुए थी पर वो जो अपना लण्ड हिला रहे थे.. वो सीन मेरे दिमाग़ से जा नहीं रहा था। मैंने उनके लण्ड को देखा था.. ख्यालों में कभी मुझे वो अच्छा लग रहा था.. एकदम काला मोटा सा था। उनका लण्ड बूढ़ा था.. लेकिन दमदार लण्ड था।
मैं ठहरी अनछिदी.. तो वो सब सोच कर मुझे कुछ डर भी लग रहा था।
फिर वो चाचा अपने घर के लिए निकल गए.. पर वो अपना डिब्बा वहीं छोड़ गए। वो डिब्बा बहुत देर बाद मम्मी के ध्यान में आया.. पर तब तक वो शायद अपने घर पहुँच चुके थे।
अब क्या था.. मम्मी बोलीं- पापा थके हुए हैं.. तुम उनके घर जाकर ये डिब्बा उन्हें दे आओ।
मैं एकदम से खुश हुई.. ना जाने क्यों.. पर डर भी लगा.. क्योंकि उनका लण्ड मुझे खींच रहा था। चूंकि शाम के 7 बजने के बाद पूरा अंधेरा रहता है.. इसलिए मैं वहाँ पर जा नहीं सकती थी।
पापा बोले- जाने दो.. वो कल आकर ले लेंगे.. अभी बाहर मत जाना। मेरा मन बैठ गया।
दूसरे दिन उठी.. तो पापा की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी.. उन्हें कुछ बुखार सा आया था। वो बोले- मैं आज खेत पर नहीं जा पाऊँगा.. थोड़ा घर पर ही आराम कर लूँगा।
उतने में चाचा आ गए.. उनको देख कर फिर से मेरी चुत में चुल्ल मचने लगी, मैंने उनको देख कर एक हवस भरी स्माइल दी। उन्होंने भी देखकर एक स्माइल दी।
उन्हें खेतों में जाना था.. तो वो पापा से बोले- साहब आप आराम कीजिए.. आज मैं ही खेत पर चला जाता हूँ। लेकिन मेरे पास खाने के लिए डिब्बा नहीं है.. मैं वहाँ पर खाना क्या खाऊँगा?
तो मम्मी बोलीं- आप जाइए मैं थोड़ी देर में आकर आपको खेत पर खाने का डिब्बा दे दूँगी। वो ‘ठीक है’ कहकर चले गए और जाते हुए मुड़कर मेरी तरफ देखकर स्माइल करने लगे.. जैसे कोई इशारा दे रहे हों।
मैं उनको देख कर मुस्कुरा दी।
पता नहीं ये क्या था.. उनके लण्ड का क्या जादू था वो ही जाने.. उसी के सदके दोपहर को मैं खाने का डिब्बा देने गई।
मैं एकदम तैयार होकर मस्त लिपस्टिक लगा कर जैसे एक दुल्हन सज-धज कर अपने दूल्हे के पास चुदने जा रही हो।
मैं खेत में पहुँची.. तो वो सामने बैठे हुए थे, उन्होंने मुझे देखा और झट से खड़े हो गए.. जैसे कि वो मेरी ही राह देख रहे हों। वो मेरे पास आए और वहाँ पर एक कुटिया बनी हुई थी.. उन्होंने मुझसे वहाँ अन्दर जाकर बैठने को बोला।
मैं फिर थोड़ा सा डर गई.. मैं अन्दर जाकर बैठ गई थी।
वो मेरे पीछे से आए मैंने पीछे मुड़कर देखा.. तो एकदम दंग रह गई। वो पूरे नंगे मेरे पीछे खड़े थे।
उनका लण्ड मेरे मुँह के पास था और वो हँस कर मेरी तरफ देख रहे थे। अब तो मुझे कंट्रोल नहीं हुआ। मैंने झट से उनका लण्ड पकड़ कर हिलाना चालू कर दिया। इतना बड़ा लण्ड था.. मैंने सोचा मैं तो आज पक्की मर जाऊँगी।
मैं लण्ड हिलाती रही.. तो वो बोले- जल्दी से मुँह में लो मेरी रानी। मैंने मना किया.. पर उन्होंने जबरदस्ती मेरे मुँह में अपना लण्ड ठूँस दिया।
मैं कुछ बोल भी नहीं पा रही थी.. इतना बड़ा लण्ड था। उसका एकदम अलग सा स्वाद था.. कुछ नमक जैसा खारा था.. पर ना जाने क्यों मीठा लग रहा था।
वो मेरे मुँह को चोदे जा रहे थे और कुछ मिनट के बाद वो झड़ गए। मुझे अपने मुँह में उनका वीर्य एकदम मीठा लगा जैसे मैं लस्सी पी रही होऊँ।
हय.. क्या स्वाद था.. मजा आ गया।
वो थोड़े खुश लगे.. ऐसा लगा कि बहुत दिनों के बाद कोई माल खाने वाली मिली हो।
अब उन्होंने मुझे पूरा नंगी किया और नीचे लेटा दिया.. और पागलों की तरह मुझे चूमने लगे। वो मुझे समझो खूब खा रहे थे.. मेरा पूरा मुँह गीला कर दिया। वो ऐसे चाट रहे थे.. जैसे कोई कैदी जेल से निकल कर खाना देखकर कैसे टूट पड़ता है.. वो वैसे ही टूट पड़े थे।
मुझे भी बहुत आनन्द आ रहा था।
कुछ ही देर में वो फिर से तैयार हो गए और उन्होंने अपना लण्ड मेरी चुत पर रखा और रगड़ने लगे.. ताकि मेरी चुत गीली हो जाए। पहले मैं मना कर रही थी.. पर मुझे उनके लण्ड का स्पर्श जन्नत की सैर करा रहा था।
मैंने भी कमर उछाल कर उनको रिस्पॉन्स दिया और ऐसे ही करते-करते मेरी चुत पूरी गीली हो गई थी। तभी एकदम से उन्होंने अपना मूसल लण्ड मेरी चुत में घुसा दिया।
‘ओह माआ’ मैं ज़ोर से चिल्लाई.. मेरी चुत बहुत दर्द कर रही थी पर उनको उसका कोई गम नहीं था।
वो ज़ोर से चोदते गए.. मैं चिल्लाती रही और आख़िरकार नॉनस्टॉप चोदने के बाद वो झड़ गए।
उसके बाद वे मेरे होंठ अपने मुँह में लेकर चूस रहे थे जैसे कोई आम खा रहा हो और ऐसे ही मुझे जकड़ कर सो गए।
मेरी भी आँख लग गई थी। जब दो घंटे बाद मेरी आँख खुली तो 5 बज चुके थे।
मैं उठ कर कपड़े पहनकर भाग रही थी कि चाचा ने मुझे फिर पकड़ लिया। मैं बोली- चाचा अब नहीं.. बहुत देर हो गई है.. घर पर दिक्कत हो जाएगी। कल मैं फिर आ जाऊँगी।
पर उन्होंने ऐसे रिएक्ट किया.. जैसे वो बहरे हों.. मुझे सुन कर भी अनसुना कर दिया। फिर मेरी पैन्ट निकाल कर फेंक दी और मेरी पेंटी ना जाने कहाँ गायब कर दी।
वो एक बार फिर मेरे पर चढ़ गए। मेरी चुत बुरी तरह सूज गई थी.. फिर भी बेरहमी से लौड़ा मूसल की तरह घुसा दिया।
इस बार मैं सह नहीं पाई थी.. पर दो मिनट के बाद मुझे भी आनन्द आने लगा। कुछ देर जबरदस्त चुदाई के बाद वो फिर से झड़ गए। इसके बाद उन्होंने मुझे जाने दिया और मैं घर आ गई।
घर पर सब कुछ ठीक था.. किसी ने मुझसे कुछ नहीं पूछा।
दोस्तो, आपको मेरी पहली कहानी कैसी लगी.. मुझे ईमेल करके ज़रूर बताइए.. मेरा ईमेल है। [email protected] मैं फिर एक बार गाँव की शरारातें लेकर आऊँगी।
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