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दोस्तो, एक बार फिर मैं आप लोगों का स्वागत करती हूँ। मेरी पिछली दो कहानियों को आप सभी पाठकों द्वारा बहुत सराहा गया। मुझे मेरी स्टोरी के लिए बहुत से मेल आए.. जिनमें लोगों ने मेरी कहानी की बहुत प्रसंशा की है।
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि जब सुबह के समय में सो कर उठी और मेरी पैंटी को बिस्तर के पास से गायब देखा तो मैं घबरा गई और इधर-उधर उसे खोजने लगी.. पर पूरा बेडरूम तलाशने के बाद भी मैं उसे नहीं ढूंढ पाई।
थोड़ी देर बाद रवि उठ गए.. आज उन्हें बाहर जाना था। थोड़ी देर बाद बच्चे भी उठ गए। जैसे ही अन्नू को पता लगा कि उसके पापा उसकी नानी के शहर में जा रहे हैं.. तो वो भी उनके साथ जाने की जिद पर अड़ गई।
मैंने भी उसकी बात को मान लिया और थोड़ी देर बाद वो दोनों चले गए। आलोक और रोहन दोनों उन्हें बस स्टैंड तक छोड़ने गए थे।
उनके जाते ही मैं फिर से अपनी पैंटी को ढूंढने लगी। मैंने सोचा शायद आलोक ने मेरी पैंटी ली हो। मैंने आपको शायद पहले ही बता दिया था कि आलोक रोहन के रूम में ही रहता था.. तो मैं उसके कमरे में जाकर वहाँ अपनी पैंटी देखने लगी।
आश्चर्य कि मुझे अपनी पैंटी वही बिस्तर के नीचे पड़ी मिली। मैंने उसे उठा लिया.. देखा तो उस पर पहले से कुछ ज्यादा ही दाग़ लगे हुए थे और वो अभी तक गीली लग रही थी।
तभी डोरबेल बजी और मैं उस पैंटी को वहीं डालकर दरवाज़े की तरफ जाने लगी।
आलोक और रोहन बस स्टैंड से वापस आ गए थे, मैंने दरवाज़ा खोलकर उन्हें अन्दर बुला लिया।
रोहन के स्कूल का वक्त हो रहा था.. मैंने रोहन का लंच पैक किया और फिर वो स्कूल चला गया।
उसके जाते ही मैंने आलोक से पूछा- तुमने मेरी पैंटी कमरे से क्यों उठाई? वो किसी अंजान की तरह बोला- चाची आप ये क्या बोल रही हो.. भला मैं आपकी पैंटी क्यों उठाने लगा?
मेरा दिमाग खराब होने लगा आखिर ये चल क्या रहा था.. पहले मुझे खिड़की से किसी के झांकने का एहसास और फिर एकदम से पैंटी का गायब हो जाना.. अगर ये सब आलोक नहीं कर रहा था तो कौन कर रहा था। इन्हीं सबको याद करते हुए मैंने सोचा कि कल आलोक के बाद मेरे कमरे में सिर्फ रोहन ही आया था तो क्या रोहन ने ही..!?
मैं यह सब सोच ही रही थी कि तब तक आलोक मुझसे बोला- चाची जी, अभी पापा का कॉल आया था.. मुझसे आने के लिए बोल रहे थे.. तो मैंने कल आने का बोल दिया है।
मैं उसके मुँह से यह सुनते ही उदास हो गई। वो मेरे पास आया और मेरे चेहरे को अपने हाथ में लेते हुए मेरी आँखों पर किस करने लगा, मुझसे बोला- मेरी प्यारी चाची तो उदास हो गईं.. आज का दिन मैं अपनी चाची के लिए यादगार बना दूँगा।
फिर उसने वहीं खड़े-खड़े गाउन के ऊपर से ही मेरी चूत को मसलना शुरू कर दिया। मैं भी उत्तेजना में आकर उसके होंठों को चूमने लगी। आज मैं बहुत ही जोर से उसके होंठों को चूम रही थी। एक पल के लिए तो वो भी सिहर गया। हम दोनों एक-दूसरे की जीभों को भी चूम रहे थे।
अगले ही पल उसने अपने हाथों को मेरी चूत से हटाकर मेरी गाण्ड पर रख दिए और मेरे गोल मोटे चूतड़ों को जोर-जोर से दबाने लगा। मुझे अब और भी मस्ती चढ़ने लगी थी।
फिर उसने बिना मेरी गाण्ड से हाथ उठाए मेरे गाउन को मेरे चूतड़ों के ऊपर कर दिया और फिर उसने मेरी काली पैंटी को मेरी जांघों तक उतार दी।
मैं कपड़े पहने हुए भी नंगी हो चुकी थी। मेरी कमर के नीचे का पूरा हिस्सा अब नंगा था। अब आलोक मेरी नंगी गाण्ड को जोर-जोर से मसल रहा था.. जिससे मुझे मीठा-मीठा सा दर्द हो रहा था।
फिर वो मुझे उठाकर मेरे बेडरूम में ले आया और बेड पर मुझे उल्टा लेटा दिया। मैं समझ गई थी कि ये आज मेरी गाण्ड मारने के मूड में है.. पर मैं इतनी उत्तेजित थी कि उससे कुछ बोल नहीं पा रही थी।
मेरी चूत पूरी तरह से गीली हो चुकी थी।
अब आलोक उठा.. उसने मुझे सीधा किया और मेरा गाउन उतार कर साइड में रख दिया। मैंने आलोक से बोला- आलोक प्लीज अब ज्यादा देर मत करो।
वो उठा और उसने अपनी पैंट की जेब से एक कन्डोम का पैकेट निकाला और मुझे देते हुए बोला- चाची पहले मुझे ये तो पहना दो। मैंने आलोक से कहा- आज तो पूरी तैयारी से आए हो। तो वो हँस दिया.. फिर वो मेरे पास आकर लेट गया।
मैंने उसका तना हुआ लण्ड अपने हाथों में लिया और उस पर एक जोरदार चुम्मी दी। फिर मैंने एक हाथ से उसके लण्ड को पकड़ा और दूसरे हाथ से उस पर कंडोम लगाने लगी।
वो उठा और उसने मुझे सीधा लेटाकर मेरी टांगों के बीच आ गया.. उसने मेरी दाईं टांग को उठाया और अपने कंधे पर रख लिया।
मैंने मस्ती में उससे बोला- आज कल पोर्न देखकर बहुत नए-नए पोज़ सीख गए हो। तो वो हँसकर बोला- आपको भी देखना है क्या?
मैंने हँसकर उसकी बात को टाल दिया। फिर उसने मेरी चूत पर अपने लण्ड को लगाया और बिलकुल धीरे-धीरे उसे मेरी चूत के अन्दर धकेलने लगा जिससे मुझे हल्का-हल्का दर्द होने लगा.. पर वो दर्द मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
वो लगातार मेरी चूत में धीरे-धीरे अपने लण्ड को अन्दर-बाहर करता जा रहा था और मेरे मम्मों को दबाए जा रहा था, मुझसे बोला- चाची, आपके मम्मे अभी तक इतने टाइट हैं कि इन्हें मसलने में अलग ही मजा है। इतना बोलते ही वह मेरे मम्मों को चाटने लगा। मेरे मम्मे उसके मसले के कारण एकदम लाल पड़ गए थे।
अब वो उठा और अपनी स्पीड तेज कर दी। मैं भी अपनी कमर उचका उचका कर उसका साथ दे रही थी, उसके हर एक दमदार झटके से मेरी पतली कमर में एक लहर सी दौड़ने लगती थी।
उसने अब मुझे घोड़ी बन जाने को कहा.. मैं बिना देरी के बिस्तर पर अपने घुटनों और हाथों के बल खड़े होकर घोड़ी बन गई।
आलोक मेरे पीछे से आया और एक ही झटके में उसने अपना पूरा लण्ड मेरी चूत की दरार में उतार दिया। मैं दर्द से सिहर उठी.. पर वो लगातार मेरी चूत पर धक्के मारे जा रहा था।
अब मैं पूरी मस्ती के साथ गाण्ड उठा कर उसके हर धक्कों का जबाव दे रही थी। थोड़ी ही देर बाद मेरा बदन अकड़ने लगा और मैं ‘ओईई..ई.. माआआ.. मर गगई..’ करते हुए झड़ने लगी।
झड़ते वक्त आलोक ने अपने लण्ड को मेरी चूत में रोककर रखा था.. जिससे मेरी चूत का पानी मेरी चूत में ही बना रहा और आलोक के लण्ड को कन्डोम के अन्दर तक भिगो दिया।
आलोक ने एकदम से अपने लण्ड को मेरी चूत से निकाला और मेरी गाण्ड के छेद पर रख कर जोरदार धक्का मारा.. जिससे उसका दो इंच लण्ड मेरी गाण्ड में घुस गया।
मैं दर्द के मारे उछल पड़ी, मेरी आँखों के आगे एकदम से अँधेरा छा गया। मैं जोरों से रोने लगी.. तो आलोक रुक गया.. पर उसने अपना लण्ड मेरी गाण्ड में ही रहने दिया और वेसे ही अपने पेट के बल मेरी कमर से लिपट गया।
मैंने अपने सीने को बिस्तर पर टिका दिया.. पर मैं अभी भी अपने घुटनों पर खड़ी हुई थी और आलोक मुझसे किसी सांप की तरह लिपटा हुआ था।
मैंने रोते हुए आलोक से बोला- तूने तो मुझे मार ही डाला। पर मेरे इतना बोलते ही उसने एक बहुत जोरदार धक्के के साथ अपने पूरे लण्ड को मेरी गाण्ड में उतार दिया। मैं उससे भागने के लिए इधर-उधर हाथ-पैर मारने लगी.. पर उसकी मजबूत पकड़ के कारण मैं कुछ नहीं कर पाई।
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मैं रोते हुए उससे बोली- आलोक तूने तो आज मार ही दिया मुझे। मुझे इतना असहनीय दर्द हो रहा था कि मेरे आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। आज मेरी गाण्ड की सील भी टूट चुकी थी.. जिसे मैंने आज तक रवि को भी नहीं छूने दिया था।
थोड़ी देर बाद मैं नार्मल हुई तो आलोक ने अपने लण्ड को अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। अब वो लगातार अपने धक्कों से मेरी गाण्ड को चोद रहा था.. पर मैं अभी भी अपनी कसी हुई गाण्ड की सील टूटने का शोक मना रही थी।
आलोक ने अब धक्के मारते हुए एक हाथ से मेरी चूत को सहलाना शुरू कर दिया जिससे मुझे भी अब मस्ती आने लगी थी। फिर उसने अपनी दो उंगलियों को मेरी चूत में डालकर मेरी चूत को भी चोदना शुरू कर दिया।
उसने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी, वो बहुत ही तेजी से मेरी गाण्ड में धक्के दे रहा था। मैं भी अब अपनी कमर उठा उठा कर उसके धक्कों का जवाब दे रही थी।
मेरी चूत दोबारा अपना पानी छोड़ने लगी.. जो कि मेरे झुके होने की वजह से मेरी चूत से होते हुए मेरे पेट और फिर मेरे मम्मों पर आने लगा।
मेरी चूत से निकली हुई धार का कुछ पानी सीधा बिस्तर पर जाकर गिरने लगा। फिर रवि भी जोरदार धक्कों के साथ मेरी गाण्ड में झड़ने लगा।
एक के बाद एक उसके गर्म वीर्य की धार मेरी गाण्ड को भिगोने लगी। मैं उसके लण्ड से निकला हुआ गर्म वीर्य मेरी गाण्ड के अन्दर साफ-साफ महसूस कर पा रही थी।
मैंने आलोक से पूछा- तूने कन्डोम निकाल दिया था क्या? उसने बोला- नहीं तो।
फिर जब उसने अपने लण्ड को मेरी गाण्ड से बाहर निकाला.. तो मैंने देखा कि कॉन्डोम का आगे का हिस्सा पूरा फट चुका था.. जिसमें से उसका लण्ड बाहर निकला हुआ था।
शायद जब वो अपना लण्ड मेरी कसी हुई गाण्ड में डाल रहा था.. तभी कन्डोम का ये हाल हो गया था।
आलोक उठकर वहीं मेरे पास लेट गया। उसने अपना कन्डोम उतारकर वहीं बिस्तर के नीचे डाल दिया।
अब मैं भी उठकर बैठ गई.. उठते ही मैंने अपने हाथ को अपनी गाण्ड के छेद पर लगाया। मेरी गाण्ड का छेद सूज गया था और उसमें से आलोक का सफ़ेद पानी निकल रहा था।
मैंने आलोक को बोला- ये तूने क्या कर दिया.. मुझे बहुत दर्द हो रहा है। तो वो मुझे ‘सॉरी’ बोलने लगा।
मैं उठकर बाथरूम जाने लगी.. पर ठीक से चल नहीं पा रही थी। मैं लड़खड़ाती हुई बाथरूम तक पहुँची.. मैंने वहाँ खुद को अच्छे से साफ किया। अपनी चूत और गाण्ड को भी साबुन से अच्छे से साफ किया। फिर मैं वहाँ से नहाकर बाहर आई।
मैं वहाँ से नंगी ही बाहर आई और अपने कमरे में पहुँची, आलोक वहीं बिस्तर पर ही सो गया था।
मैंने अलमारी खोली और उसमें से तौलिया निकालकर अपने नंगे गीले बदन को पोंछा और फिर ब्रा और पैंटी पहनने लगी। पैंटी पहनते टाइम मुझे खोई हुई पैंटी का ख्याल आया जो कि मुझे रोहन के कमरे में उसके बिस्तर के नीचे मिली थी।
अब मेरा पूरा ध्यान उस पैंटी पर गया.. तो मैंने सोचा कि अगर ये सब रोहन कर रहा है.. तो कल आलोक के जाने के बाद से मुझे उस पर नज़र रखनी होगी।
फिर मैंने आलोक को उठाया और उससे नहा कर आने का बोला। वो उठकर अपने कमरे में चला गया।
मेरी नज़र बिस्तर पर पड़ी.. जिसकी चादर मेरी चूत के पानी से गीली पड़ी हुई थी और उस पर धब्बे भी पड़ गए थे।
मैंने जल्दी से उस चादर को बदल दिया और उस चादर को उठाकर बाथरूम में धोने के लिए डाल दिया। मैंने उस कन्डोम को भी उठाकर डस्टबिन में डाल दिया.. पर मैंने अपनी पैंटी वही पड़ी रहने दी.. जो कि आलोक ने मुझे चोदते समय उतारकर वहीं डाल दी थी। वो वही अलमारी के पास पड़ी हुई थी।
अब एक बजने वाका था.. मैं खाना बनाने के लिए रसोई में गई.. मैंने खाना बनाया।
आज रोहन भी स्कूल से जल्दी आने का बोल कर गया था तो थोड़ी देर बाद रोहन भी स्कूल से आ गया।
जब मैं दरवाज़ा खोलने गई तो रोज की तरह वो आते ही मेरे सीने से लग गया। मैंने भी उसको अपनी बांहों में भर लिया.. जिससे उसका सिर मेरे मम्मों में दबने लगा.. पर इस बात का मुझे कोई एहसास नहीं था।
फिर वो मुझसे अलग हुआ और हम दोनों अन्दर आने लगे। उसने मेरी लड़खड़ाती चाल देखकर पूछा- माँ आप ऐसे क्यों चल रही हो? तो मैंने बोला- अभी नहाते समय बाथरूम में फिसल गई थी।
फिर हम सब लोगों ने मिलकर खाना खाया। उसके बाद आलोक और रोहन वहीं सो गए और मैं अपने कमरे में आ गई।
कुछ देर बाद मुझे मेरे कमरे में किसी की आहट हुई.. तो मैंने वैसे ही लेटे हुए अपनी आँखों को हल्का सा खोलकर इधर-उधर देखा.. तो मुझे अलमारी के पास रोहन खड़ा हुआ दिखा। शायद वो मुझे सोता हुआ समझ कर कमरे के अन्दर आ गया था।
मैंने देखा कि मेरी पैंटी रोहन के हाथ में थी और वो बार-बार उसे अपने मुँह की तरफ ले जाकर उसे सूंघ और चाट रहा था।
इससे आगे क्या हुआ.. वो सब अगले भाग में लिखूंगी।
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