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दोस्तो, मेरी उम्र लगभग पैंतीस साल है। मुझे औरतों के कसे हुए मम्मों को देखने और उनकी चूत चूसने का जबर्दस्त शौक है।
मेरे पड़ोस में चंचल भाभी रहती हैं। उनके पति प्रति दिन सुबह नौ बजे अपने ऑफिस चले जाते हैं। बच्चे बाहर होस्टल में पढ़ते हैं.. शाम सात बजे तक घर में भाभी के अलावा कोई नहीं रहता.. उसके बाद पति लौट आते हैं।
एक दिन भाभी को पता चला कि उनके पति का अफेयर मोहल्ले की ही एक बहुत खूबसूरत महिला से काफी दिनों से चल रहा है।
यह पता चलते ही वो समझ गईं.. कि पतिदेव अब उनमें दिलचस्पी क्यों नहीं लेते हैं।
बस एक दिन वे बैठी-बैठी अपनी आँखें नम कर कुछ सोचती हुई दिखीं। स्वाभाविक तौर पर मैंने उनसे पूछ लिया- भाभी आज आप चुप-चुप और उदास सी क्यों दिख रही हैं?
भाभी ने कुछ उत्तर नहीं दिया और उठकर अपने घर के अन्दर चली गईं।
इस बात को कुछ दिन बीते कि अचानक मेरी पत्नी को तीन दिन के लिए बाहर जाना पड़ा, घर में मैं अकेला रह गया।
दोपहर को भाभी मेरे घर से थोड़ा दही लेने आईं। मैंने उन्हें फ्रिज से दही निकाल कर दे दिया।
भाभी दही लेकर जाने की बजाय वहीं सोफे पर बैठ गईं, बोलीं- उस दिन आप मेरी उदासी का कारण पूछ रहे थे.. बाहर मैं कैसे बताती?
फिर उन्होंने पूरा किस्सा सुनाया और कहने लगीं- इनकी दिलचस्पी अब मुझ में ख़त्म हो गई है। अब मैं अपने शरीर की जरूरत कैसे पूरी करूँ? आजकल मुझे रात को नींद नहीं आती। दिन भर काम में मन नहीं लगता। संतोष जी आप बताएँ.. मैं क्या करूँ?
उनकी इस तरह की बेबाक बात सुनकर मैं पहले तो बड़ा चकराया। फिर मैंने उन्हें कहा- भाभी मेरे लायक कोई ‘सेवा’ हो तो जरूर बताएँ.. मुझसे जो भी बन पड़ेगा.. मैं करूँगा।
इतना सुनते ही वे बोलीं- आपके इस स्वभाव के कारण ही मैंने खुलकर आपको सारी बात बता दी, अब आप अपनी बात से पलटना नहीं।
मैं बोला- मैं समझा नहीं।
‘कोई बात नहीं.. एक घंटे बाद सब समझ जाओगे आप। मैं अभी आपका और अपना खाना बनाकर लेकर आती हूँ।’
मैं सोच में पड़ गया कि भाभी आखिर चाहती क्या हैं? खैर छोड़ो.. जो होगा देखा जाएगा.. मैंने मन ही मन कहा।
मैं टीवी ऑन करके व्यस्त हो गया।
थोड़ी देर बाद घन्टी बजी.. उठकर देखा.. तो चंचल भाभी हाथ में खाना लिए खड़ी थीं। मैंने उन्हें अन्दर आने दिया और दरवाजा वापस बंद कर दिया।
अन्दर आते ही भाभी मुझसे लिपट गईं.. और बोलीं- संतोष जी सचमुच मुझे आग लगी हुई है.. एक तो सौतन की और इस निगोड़ी ‘चिकनी’ की.. अब आप जल्दी से स्वादिष्ट और गरम-गरम खाना खा लीजिये और अपना मदद का वादा निभाइए।
मैं हक्का-बक्का रह गया।
चंचल जी वैसे तो दिखने में पुराने ज़माने की हीरोइनों जैसी दिखती है और उन्होंने अपने आपको को गजब का मेंटेन भी किया हुआ है।
मेरा दिल भी बेईमान होने लगा, मन ही मन सोचा कि घर आई इस नियामत को क्यों ठुकराया जाए।
जल्दी से मैंने खाना खाया और अपने हाथ से चंचल को भी खिलाया। हाथ धो कर हम लोग बेडरूम में आ गए।
मेरी बीवी केवल सामान्य सेक्स करती थी.. वो भी अनमने मन से.. अपनी चूत की साफ़ सफाई पर वह ध्यान नहीं देती थी.. इसलिए कभी उसकी चूत चूसने का मन नहीं होता था।
चंचल भाभी कुछ ज्यादा ही प्यासी लग रही थीं.. बेडरूम में आते ही चित्त लेट गईं.. और वो अपनी साड़ी पेटीकोट सहित ऊपर उठा चुकी थीं।
दूर से ही उनकी क्लीन शेव्ड गुलाबी चूत के दर्शन हो रहे थे। शायद उन्हें मेरी बीवी ने मेरी पसंद के बारे में बताया हुआ होगा.. क्योंकि वो आपस में सहेलियों जैसा व्यवहार रखती थीं।
खैर.. मेरे मुँह में पानी भर आया। मैंने भी आव देखा न ताव.. उनके घुटने ऊँचे करके उनकी चूत की कोमल फांकों से अपनी जीभ भिड़ा दी।
भाभी ‘आह.. आह..’ कर उठीं। बोलीं- आह संतोष जी चूसो.. और जोर से और प्यार से इस निगोड़ी को खूब चूसो।
तब तक वे अपने ब्लाउज के पूरे बटन खोल चुकी थीं। मैंने भी अपने दोनों हाथ उनके मोटे-मोटे मम्मों पर जमाए और रसीली फांकों को चूसने लगा।
वे अपने हाथ पैर इधर-उधर फेंकने लगीं। मेरे लण्ड देवता भी इस क्रिया के दौरान गीले हो चुके थे और राकेट की शक्ल ले चुके थे।
जब मैंने अपनी जुबान चूत के छेद में डाली.. तो भाभी एकदम बौखला उठीं, बोलीं- मेरे राजा अब बजा दो इसका बाजा।
मैं एक उंगली से चूत के सफ़ेद दाने को भी सहलाता जा रहा था.. भाभी अब तो बेकाबू हो गईं।
उन्होंने कस कर मेरे सर को अपनी चूत में दबाने की कोशिश की और बोलीं- हाय इतना मजा तो मुझे पहले कभी नहीं आया। मेरे पति तो बस अपनी आग शान्त करते रहे और मैं भी इसी को सेक्स समझती रही। भला हो उस सौतन का जो मुझे आपसे मिलवा दिया।
चूत चूसते-चूसते मुझे भाभी के मोटे छत्तीस साइज के बोबों का ध्यान आया, भाभी आसमानी रंग की ब्रा में उन्हें कैद किए हुए थीं।
उनके नुकीले चूचक एकदम कड़क हो चुके थे। चूचक चूसने और भग्नासे पर उंगली रगड़ने का मजा भी कुछ और ही होता है।
अब मैंने ब्रा की स्ट्रिप हटा कर उनका एक चूचक अपने मुँह में भर लिया.. और हौले से उसे चूसने लगा।
मेरी एक उंगली भग्नासे के दाने पर चल रही थी, भाभी मस्ती में अपनी आँखें बंद किए हुए थीं।
तुरंत उन्होंने दूसरा चूचुक मेरे मुँह में धकेल दिया और कहने लगीं- संतोष जी अच्छे से चूसो.. और खूब चूसो.. आज इनको ढीला कर दो।
मैं भी पूरे जोश से मम्मों को दबाते हुए चूसने लगा।
भाभी की रसीली रंगीली चूत पानी-पानी हो गई थी, आनन्द का रस बहता जा रहा था, भाभी की उत्तेजना चरम पर पहुँचने लगी। भाभी बोलने लगीं- आज आपने मुझे जीवन के सर्वोच्च आनन्द से परिचय कराया.. अब अपने मूसल का और मजा दे दो राज्जा..
मैंने सोचा थोड़ा गीलापन पोंछ लें। अपने लण्ड महाराज और चूत महारानी को अच्छे से साफ़ करके.. जब मैंने सुपारा अन्दर की ओर धकेला.. तो भाभी तुरंत पनिया उठीं।
जैसे ही लण्ड और आगे बढ़ा.. भाभी अपनी कमर उछालने लगीं.. कसकर मुझे पकड़ लिया और कहने लगीं- राजा फाड़ दो आज इसको.. डाल दो पूरा अन्दर तक..
मेरा सुपारा जैसे ही पूरा अन्दर जाकर बच्चेदानी से टकराया.. भाभी आनन्द के अतिरेक से चीख उठीं, वे ‘आह आह.. वाह वाह..’ करने लगीं- आह्ह्ह.. डालो राजा.. जोर से चोदो.. अब चोदो.. सारी गर्मी निकाल दो इसकी!
मैं भी कस-कस कर धक्के लगाने लगा।
पांच-सात धक्कों में तो भाभी हिचकोले खाने लगीं, बोलीं- राजा मैं तो गई.. आह्ह्ह्ह्ह्.. आप भी छोड़ दो अब अपने रस की धारा.. आह्ह..
मैंने कहा- भाभी अभी तो शुरूआत है।
भाभी दंग रह गईं.. कहने लगीं- मेरी मुनिया तो ‘फच.. फच..’ करके दुखने लगी है.. निकालो न अपना भी माल जल्दी से।
मैं भी जोर-जोर से धक्के लगाता हुआ भाभी की इच्छानुसार जल्दी स्खलित होने की कोशिश करने लगा। जैसे ही उनके चूचुक को मुँह में लिया.. वैसे ही स्खलित हो गया।
गर्म-गर्म रस की फुहार जब अन्दर पड़ी.. तो भाभी ‘उंह.. उम्म्ह..’ कर उठीं, बोलीं- संतोष जी आज आपने मस्त कर दिया।
यह थी मेरी रस भरी कहानी.. अब तो हाथ हटा लोजिये और आपके प्यार की कुछ बूँदें मेरी ईमेल पर भी डाल दीजिएगा। [email protected]
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