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हैलो दोस्तो, मैं राज, रोहतक हरियाणा से… अब तक मैं पांच चूत चोद चुका हूँ.. आज मैं तीसरी चूत चोदने की कहानी लेकर आया हूँ।
यह कहानी मेरी पुराने घर की पड़ोस की भाभी की है.. उनके दो लड़के और दो लड़कियाँ हैं, लड़कियों की शादी हो चुकी है।
भाभी की उम्र 40-42 साल होगी और भाई साहब (भाभी के पति) बहुत शरीफ आदमी थे। भाभी के दोनों लड़के पढ़ते हैं।
भाभी का नाम कमला (काल्पनिक) है। तब भाभी का घर और हमारा घर आमने-सामने था परन्तु अब हमने अपने खेत में घर बना लिया है। भाई साहब ने 2013 में घर खरीदा था.. पहले वो हमारी गली के आखिरी घर में रहते थे।
अब वहाँ वो भैंस और उनके लिए भूसा आदि रखते हैं। हमारे पुराने घर में मेरा कमरा ऊपर था.. और मैं कभी दोपहर.. कभी रात को.. भाभी को खिड़की से देखकर मुट्ठ मारता था।
भाई साहब खेती करते हैं.. उनका खुद का ट्रेक्टर है, उनके पास पुरानी मोटरसाइकिल है।
यह बात अक्टूबर 2014 की रात 9 बजे की है।
मैं ऊपर अपने कमरे में सोने जा रहा था.. तो अचानक भाभी की आवाज आई- आओ देवर जी एक बार आइए.. ये मोटरसाइकिल गली में खड़ी है.. इसने घर के भीतर खड़ी कर दे।
मैं बोला- भाभी, भाई साहब और राजू (बड़े लड़के का नाम) विक्की (छोटे लड़के का नाम) कहाँ गए? भाभी बोलीं- दोनों खेत में गए हैं अपने पापा के साथ.. खेत में पानी देने। मैंने कहा- मैं अभी आया 2 मिनट में।
यह कहकर मैं ऊपर चला गया और भाभी को खिड़की से देखकर लंड आगे-पीछे करने लगा।
मैंने सोचा भाभी भी मस्त हैं.. अब चूत भी दे दे.. तो मजा आ जाएगा। यही सोचकर कि भाभी को आज कहीं ना कहीं हाथ लगाऊंगा.. फिर मुट्ठ मारूँगा।
मैं लंड के मुँह को ऊपर करके पैंट ऊपर करके उनके घर गया। गली में कोई नहीं था। मैं मन में भाभी की चुदाई के बारे में सोच रहा था।
मैं बोला- भाभी पूरा गेट खोल दो।
मैं मोटरसाइकिल को घर के अन्दर ले जाने लगा। मेरा मन भाभी की चूत पर था, लंड जब खड़ा हो तो क्या बुड्डी और क्या जवान। मैंने यही सोचते-सोचते मोटरसाइकिल घर के अन्दर खड़ी कर दी।
भाभी वहीं गेट पर खड़ी थीं और गली में इधर-उधर देख रही थीं, मैं पीछे खड़ा उनकी गाण्ड देख रहा था, मन यही कर रहा था कि पीछे से पकड़ लूँ.. पर मैं डर गया।
फिर मैं बोला- और कोई काम हो तो बताओ। भाभी बोलीं- बस यही काम था.. अब मैं रोटी बनाऊँ हूँ।
अब मेरा लंड कड़क हो गया, मैंने धीरे से भाभी के चूतड़ों पर हाथ लगा दिया और उनके घर से अपने घर आ गया।
मैं सीधा ऊपर अपने कमरे में गया और लौड़े को पैंट से आजाद कर दिया। अब मैं बिल्कुल नंगा हो गया और थोड़ी खिड़की खोल कर भाभी को देखने लगा.. भाभी आटा गूंथ रही थीं।
मैं भाभी को देखकर मुट्ठ मारने लगा और पानी निकाल कर सो गया। अब मेरी आदत हो गई.. भाभी को देखता और मुट्ठ मारता।
हमारा पुराना घर बड़ा था। एक दरवाजा भाभी वाली गली में था.. और एक मेन गली में था। मेन गली में हमारे घर के पास एक बैठक थी.. मैं वहीं अखबार पढ़ता था।
लगभग नवम्बर महीने बाद की बात थी।
सुबह 9 बजे के करीब मैं उस बैठक में अखबार पढ़ रहा था। बैठक के पीछे वाले खाली प्लाट में भाभी की ज्वार की पुली थी।
भाभी वो पुली लेने उधर आई थीं। भाभी ने पुली बांध ली थी। मैंने सोचा भाभी उठवाने के लिए किसी को बुलाएंगी.. तो मैं बैठक के बाहर ऐसे खड़ा हो गया कि भाभी को बस मैं ही दिखाई दूँ।
भाभी ने मुझे देखा और पुली उठवाने के लिए बुलाया।
मैं उठवाने गया तो भाभी बोलीं- देवर कितनी देर तक है इधर.. अभी ज्वार की पुलियों के 2-3 चक्कर ले कर जाउंगी। मैं बोला- भाभी अभी आधा घंटा इधर ही हूँ.. मैं उठवा दूँगा।
फिर मैंने भाभी को पुली उठवा दी जैसे ही वो चलीं.. मैंने उस दिन की तरह फिर चूतड़ों पर हाथ घुमा दिया। भाभी कुछ नहीं बोलीं और चली गईं।
थोड़ी देर में भाभी फिर आईं.. मैंने फिर से उनके चूतड़ों पर हाथ घुमा दिया.. वो अब भी कुछ नहीं बोलीं। वो फिर आईं और बोलीं- बस देवर यो आखिरी है।
मैं भाभी को पुली उठवाने लगा.. भाभी जैसे ही चलने लगीं.. मैं बोला- भाभी रूको.. पीछे से पुली खुल गई है.. मैं बांध देता हूँ।
भाभी ऐसे ही खड़ी हो गईं.. और मैं पीछे से भाभी की पुली बांधने लगा.. मैंने बांधते-बांधते भाभी के चूतड़ों को सहला दिया।
भाभी बोली- बांध दी के? मैं बोला- बस भाभी काम होने वाला है।
अब मैंने चारों तरफ देखा कोई देख तो नहीं रहा।
उधर मुझे कोई नहीं दिखाई दिया.. तो मैंने लौड़ा निकाल लिया और भाभी के चूतड़ों पर घिसने लगा।
मैंने भाभी के कान में कहा- बांध दिया भाभी। भाभी चलने लगीं.. तो मैंने उनकी कमर दबा दी और कहा- दे दे न? लेकिन भाभी कुछ नहीं बोलीं और चली गईं।
मैंने लंड को फटाफट पैंट में डाला और घर आ गया और अपने कमरे में जाकर फिर मुट्ठ मारी।
मैं भाभी के चूतड़ों पर लंड घिस कर घर आ गया और अपने कमरे में जाकर मुठ्ठ मारकर लेट गया। अब मैं रोज भाभी को देखता.. कभी-कभी बात भी करता.. लेकिन भाभी ऐसे बात करतीं जैसे उन्हें कुछ पता ही नहीं हो।
एक महीना ऐसे ही गुजर गया।
अब आ गया दिसम्बर.. लेकिन मेरी बात नहीं बन रही थी। एक दिन ऐसा हुआ भाभी रात को 9 बजे के करीब अपने अन्दर वाले घर में भैंस बांधने जा रही थीं.. और मैं उन्हें खिड़की से देख रहा था।
जैसे ही भाभी ने गेट बन्द किया और अन्दर वाले घर में जाने लगीं.. तो मैं कमरे से बाहर निकल कर गाना गुनगुनाने लगा।
भाभी ने मेरी और देखा और बोलीं- राज छोरे के करे है? मैं बोला- कुछ ना भाभी.. बस नींद नहीं आ रही.. तो घूम रहा हूँ छत पर.. आप कहाँ जा रही हो?
भाभी बोलीं- भैंस बांधने जा रही हूँ उस घर में.. तेरे भाई ने मुझसे कहा है कि आज मैं ही बांध दूँ। मैं बोला- ठीक है भाभी जाओ।
फिर मैं भी भाभी के पीछे-पीछे चलने लगा। भाभी बोलीं- तुम कहाँ जा रहे हो?
तो मैंने जानबूझ कर भाभी के अन्दर वाले घर के पड़ोसी का नाम लेकर कहा- आपके पड़ोसी के घर जा रहा हूँ। उन्होंने कुछ नहीं कहा और मैं उनके साथ हो लिया।
अब सर्दी में रात को 9 बजे कौन दरवाज़ा खुला रखता है। मैं बोला- भाभी मैं जाता हूँ.. इनका तो दरवाजा बन्द है।
भाभी बोलीं- रुक.. अब थोड़ी देर मैं भी भैंस बांध लूँ.. तो मैं भी चलती हूँ। मैं भाभी के साथ हो लिया।
भाभी के पुराने घर में लाइट नहीं थी उन्होंने एक दिया जला लिया। मैंने सोच लिया कि जो होगा देखा जाएगा.. आज तो भाभी की चूत लेनी ही है।
भाभी के उस घर में 2 कमरे हैं.. जिसमें से एक भैंसों को बाँधने के लिए और दूसरा चारा आदि के लिए था। भाभी कमरे से चारा लेकर भैंसों के कमरे में डाल रही थीं।
अब भाभी चारे को भैंसों के कमरे में डाल कर उसमें चुन मिलाने लगीं.. मैं पागल हो रहा था। मैंने लंड जिप से बाहर निकाल लिया और भैंसों के कमरे में घुस गया।
भाभी झुकी हुई थीं.. चारे में कुछ मिला रही थीं.. मैंने लौड़े की खाल पीछे कर लंड का टोपा निकाल लिया और भाभी के पीछे खड़ा हो गया।
मैं वासना में होश खो चुका था.. मैंने पीछे भाभी की गाण्ड पर लंड लगा दिया। भाभी थोड़ी हिलीं.. पर काम करती रहीं।
मैं धीरे-धीरे भाभी के चूतड़ों पर हाथ घुमा रहा था। मैंने महसूस किया कि भाभी के हाथ रुक गए हैं.. और वो ऐसे के ऐसे रहीं।
मैं भाभी की सलवार का नाड़ा खोलने लगा.. भाभी ने भी चुपचाप नाड़ा खुल जाने दिया।
अब भाभी के गोरे चूतड़ मेरे सामने थे.. मैं भाभी के चूतड़ चाटने लगा। भाभी कुछ नहीं बोल रही थीं.. बस उनकी सांसें तेज चल रही थीं।
मैंने थोड़ी देर भाभी के चूतड़ चाटे और कहा- भाभी लंड चूस ले एक बार.. भाभी घूम कर लंड चूसने लगीं.. मुझे बहुत मजा आने लगा था।
अब मैं भाभी को खड़ी करके उनका सूट ऊपर करके उनकी चूची पीने लगा और लंड को पेट पर घिस रहा था। कुछ मिनट बाद भाभी बोलीं- बस रहने दे.. इब बहुत देर हो रही है.. किसी ने देख लिया तो के होगा।
मैंने कहा- भाभी कुछ ना.. बस थोड़ी देर में सारा काम हो जाएगा.. बस तुम झुक जाओ। भाभी झुक गईं.. मैंने लंड पर थूक लगाया और भाभी की चूत पर लगाने लगा.. पर लंड साला फिसल जाता।
भाभी ने नीचे से हाथ निकाल कर लंड को पकड़ कर चूत पर लगाया, मैंने धक्का मारा.. लंड गचाक से चूत में घुस गया, फिर लंड थोड़ा सा निकाल कर फिर तेज से धक्का मारा।
भाभी की हल्की चीख निकली- आआआईईईईई..
फिर मैं धक्के पर धक्के मारने लगा। भाभी की चूत में लंड अन्दर जाता.. तो वे चूत को टाइट कर लेतीं।
कुछ मिनट में मैं झड़ गया। थोड़ी देर ऐसे ही रहे.. फिर लंड चूत से निकाल लिया।
भाभी बोलीं- देर हो गई.. भैंस बांधने दे।
मैं बोला- भाभी अभी और करेंगे.. पहले चूत धो लो। भाभी बोलीं- तेरा उठ जाएगा इतनी जल्दी? मैं बोला- तुम भैंस बांध लो.. तब तक उठ जाएगा।
भाभी भैंस बाँधने लगीं। भाभी के पास पांच भैंस थीं.. वो पहली भैंस बाधंने लगीं.. तो मैंने उनके होंठ चूम लिए।
दूसरी भैंस बांधी.. तो उनकी चूची पीने लगा।
ऐसे करते-करते मेरा लंड खड़ा हो गया। मैंने कहा- भाभी देख अब। भाभी ने लौड़ा देखा और चूम लिया।
भाभी बोलीं- जल्दी बाड़ दे.. इब रुका नी जात्ता। मैंने कहा- भाभी फिर झुक जा।
भाभी झुक गईं.. और फिर हमारी चुदाई शुरू हो गई।
इस बार भाभी की चूत धोने के कारण कुछ टाइट हो गई थी। जब मैं धक्का लगाता.. भाभी सिसकतीं- आआईईईईईईईई आज तो फाड़ दी.. आईईईईई.. माँआइइइइ..
मैं बोला- भोसड़ी की कितनी मुट्ठ मारी है तेरी चूत के नाम की.. और ले मेरा लंड.. ले.. मैंने स्पीड बढ़ा दी।
भाभी ‘इइआ.. इआआह..’ करती रहीं और मैं चोदता रहा।
तभी भाभी बोलीं- और कर दे.. कररर.. साले.. आआई गई.. मैं आआइइईई.. और भाभी झड़ गईं।
मैंने और तेज धक्के लगाए ताकि भाभी ढीली हों.. तब तक मैं भी झड़ जाऊँ। थोड़ी देर में मेरा माल गिरने वाला था।
मैंने लंड बाहर निकाल लिया और भाभी की गाण्ड पर सारा माल छोड़ दिया। फिर भाभी बोलीं- पहले तुम निकलो.. ध्यान से.. कोई देखे ना।
मैं चारों तरफ देखता हुआ.. घर आ गया।
उसके बाद तो मैंने भाभी को कभी नहाते हुए.. कभी खाना बनाते हुए चोदा।
दोस्तो.. यह थी मेरी कहानी अभी दो चूतों के बारे में और लिखूंगा।
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