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नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम महेश कुमार है और मैं आपकी चहेती पायल शर्मा का देवर हूँ। आप लोगों ने पायल शर्मा के नाम से मेरी लिखी हुई कहानियों.. जो अन्तर्वासना पर प्रकाशित हुई हैं उनको पढ़ा.. और बहुत पसन्द किया.. इसके लिए धन्यवाद।
दोस्तो, आप लोगों के बहुत सारे मेल आ रहे हैं.. सभी का जवाब देना मुश्किल है.. इसलिए आपको बता देना चाहता हूँ कि ये आपबीती मेरी प्यारी भाभी पायल की है.. मगर मेरी लिखी हुई है और उन्होंने मेरे कहने पर ही ये कहानियाँ अपने नाम से आप तक पहुँचाई हैं।
क्योंकि यह कहानी भाभी की जुबान में ज्यादा अच्छी लगेगी। अब इसके आगे की कहानी लिख रहा हूँ वो भी पायल भाभी की जुबानी है.. आनन्द लीजिएगा।
दोस्तो.. मेरे और महेश जी के सम्बंध के बारे में तो आप पढ़ ही चुके हैं.. कुछ दिन के बाद भैया की छुट्टियाँ खत्म हो गईं.. और भैया चले गए।
भैया के जाने के बाद भाभी और मम्मी-पापा के दबाव के कारण मैं ऊपर भाभी के कमरे में सोने लगी और इसका फायदा महेश जी को मिला। मैं उनसे बहुत बच कर रहती थी.. मगर फिर भी मौका लगते ही वो जबरदस्ती मेरे साथ सम्बन्ध बना ही लेते थे और मैं कुछ भी नहीं कर पाती।
करीब दो महीने बाद महेश जी को कम्पनी की तरफ से घर मिल गया और वो अपने बीवी-बच्चों के साथ उस घर में रहने लगे.. मगर इन दो महीनों में महेश जी ने मेरे साथ तीन बार सम्बन्ध बनाए।
महेश जी के जाने के बाद मैं घर में आजादी सी महसूस करने लगी।
कुछ दिनों के बाद भैया का तबादला ग्वालियर में हो गया, वहाँ पर उनको सरकारी क्वार्टर भी मिल गया.. इसलिए वो भाभी को साथ लेकर जाना चाहते थे और तब तक मेरा रिजल्ट भी आ गया था.. इसलिए पापा के कहने पर भैया ने मेरा एडमीशन भी ग्वालियर में ही बीएससी में करवा दिया।
भैया को जो सरकारी र्क्वाटर मिला.. उसमें एक छोटा सा डाइनिंग हॉल, किचन, लैट.. बाथ और दो ही कमरे थे.. जिनमें से एक कमरा भैया भाभी ने ले लिया और दूसरे में मैं रहने लगी।
कुछ दिनों तक तो नया शहर था इसलिए मेरा दिल नहीं लगा.. मगर धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो गया।
मैं खाना खाकर सुबह दस साढ़े बजे कॉलेज चली जाती और शाम को चार बजे तक घर लौटती थी.. उसके बाद कुछ देर टीवी देखती और फिर फ्रेश होकर रात का खाना बनाने में भाभी का हाथ बंटाती थी। उसके बाद खाना खाकर रात कुछ देर पढ़ाई करती और फिर सो जाती।
धीरे-धीरे कॉलेज में कुछ लड़कियों से दोस्ती भी हो गई.. मगर कभी लड़कों से दोस्ती करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई।
एक रात मैं पढ़ाई कर रही थी.. तो मुझे ‘इईशश.. श… श.. अआआह.. ह…ह.. इईशश.. श…श.. अआआह.. ह…ह..’ की आवाज सुनाई दी।
मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है। अपने आप ही मेरे कदम भैया-भाभी के कमरे की तरफ उठने लगे।
उनके कमरे का दरवाजा अन्दर से बन्द था और लाईट जल रही थी। मैं जल्दी से कोई ऐसी जगह देखने लगी.. जहाँ से अन्दर का नजारा देख सकूँ.. मगर काफी देर तक तलाश करने के बाद भी मुझे कोई भी ऐसी जगह नहीं मिली.. इसलिए मैं दरवाजे से ही अपना कान सटाकर अन्दर की आवाजें सुनने लगी।
अब भाभी की सिसकियों की आवाज तेज हो गई थी.. जिन्हें सुनकर मुझे भी अपनी जाँघों के बीच गीलापन महसूस होने लगा था। कुछ देर बाद भाभी की सिसकियाँ ‘आहों और कराहों’ में बदल गईं.. और वे शान्त हो गईं।
मैं समझ गई कि उनका काम हो गया है और कभी भी दरवाजा खुल सकता है.. इसलिए मैं जल्दी से अपने कमरे में आकर सो गई.. मगर अब नींद कहाँ आने वाली थी।
उत्तेजना से मेरा बदन जल रहा था और मेरी योनि तो जैसे सुलग ही रही थी।
अपने आप मेरा हाथ योनि पर चला गया वैसे मुझे उंगली से अपना काम किए बहुत दिन हो गए थे। जब से महेश जी मुझसे यौन सम्बन्ध बनाने लगे थे.. मैंने उंगली से मैथुन करना छोड़ दिया था.. क्योंकि उस समय मैं इतनी डरी रहती थी कि इन सब बातों के बारे में सोचने का ध्यान ही नहीं रहता था और वैसे भी मेरी वासना शान्त हो जाती थी।
मगर आज भैया-भाभी की उत्तेजक आवाजें सुनने के बाद मैं इतनी उत्तेजित हो गई थी कि मैं उंगली से अपनी उत्तेजना को शान्त किए बिना नहीं रह सकी।
इसी तरह मैंने बहुत सी बार भैया-भाभी के कमरे में इस तरह की आवाजों को सुना और जब दिल करता तो उंगली से अपनी वासना को शान्त कर लेती थी। इसी तरह से दो साल बीत गए और मैं बीएससी फाईनल में पहुँच गई।
मगर इन दो सालों में मेरे शरीर और रंग रूप में काफी परिर्वतन आ गया, मेरा रंग पहले से भी अधिक निखर गया और शरीर भर गया, मेरी बगलों में बाल उग आए और मेरी योनि तो अब गहरे काले बालों से भर गई थी.. जिन्हें मौका लगने पर कभी-कभी मैं हेयर रिमूवर से साफ कर लिया करती थी।
मेरे उरोज इतने बड़े हो गए थे कि उन्हें सम्भालने के लिए अब मुझे ब्रा पहननी पड़ती थी और अब तो मुझे भाभी के कपड़े भी बिल्कुल फिट आने लगे थे।
अपनी आदत के अनुसार जब मैं सारे कपड़े उतार कर शीशे में अपने नंगे शरीर को देखती तो सम्मोहित सी हो जाती, बिल्कुल दूध जैसा सफेद रंग.. गोल चेहरा.. सुर्ख गुलाबी होंठ, बड़ी-बड़ी काली आँखें.. पतली और लम्बी सुराहीदार गर्दन.. काले घने लम्बे बाल.. जो कि अब मेरे कूल्हों तक पहुँचते थे। बड़े-बड़े सख्त उरोज और उन पर गुलाबी निप्पल सामने वाले को चुनौती देते से लगते थे। मेरी पतली कमर.. गहरी नाभि..पुष्ट और भरे हुए बड़े-बड़े नितम्ब.. केले के तने सी चिकनी व मुलायम जाँघें.. दोनों जाँघों के बीच गुलाबी रंगत लिए फूली हुई योनि।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मेरा शरीर कद काठी में तो भाभी के समान ही था.. मगर रंग-रूप और सुन्दरता में अब मैं भाभी पर भारी पड़ने लगी थी।
जब मैं बन-सँवर कर कॉलेज जाती.. तो लड़के ‘आहें..’ भरने लगते और मैं अपने आप पर इतराने लगती थी।
एक दिन घर से पापा का फोन आया। पापा ने बताया कि मम्मी सीढ़ियों पर फिसल कर गिर गई हैं.. जिससे उनके हाथ की हड्डी टूट गई और सर पर भी चोट आई है।
भैया ने उसी दिन एक हफ्ते की छुट्टी ले ली और हम सब घर चले गए।
घर जाकर देखा तो मम्मी के हाथ पर प्लास्टर लगा हुआ था और सर पर भी पट्टी बँधी हुई थी। भैया के पूछने पर मम्मी ने बताया- बारिश के कारण सीढ़ियाँ गीली हो गई थीं.. और जब वो किसी काम से ऊपर जाने लगीं.. तो पैर फिसल जाने से गिर गईं।
अब मम्मी तो कोई काम कर नहीं सकती थीं.. इसलिए घर के सारे काम मुझे और भाभी को ही करने पड़ते थे। एक हफ्ता बीत गया और भैया की छुट्टियाँ समाप्त हो गईं।
भैया अकेले ही ग्वालियर जाने के लिए तैयार हो गए.. मगर पापा ने कहा- तुम्हारी मम्मी को तो ठीक होने में दो महीने लग जाएंगे। तुम अकेले कैसे रहोगे तुम्हें घर के काम की और खाने की परेशानी होगी। तुम पायल को यहीं पर छोड़ दो और बहू को अपने साथ ले जाओ।
मगर भाभी ने मना कर दिया और कहा- मैं यहाँ रह जाती हूँ.. और पायल को जाने दो.. नहीं तो दो महीने कॉलेज ना जाने पर उसकी पढ़ाई खराब हो जाएगी। इस पर पापा ने भी सहमति दे दी।
मेरा अकेले जाने का दिल तो नहीं कर रहा था.. मगर अपनी पढ़ाई के कारण मुझे भैया के साथ ग्वालियर आना पड़ा।
शुरूआत में तो अकेले का मेरा दिल नहीं लगता था.. क्योंकि घर के इतने सारे काम अकेले करना और कॉलेज भी जाना मेरे लिए कठिन हो रहा था.. मगर धीरे-धीरे आदत सी बन गई।
मैं सुबह जल्दी उठ जाती और घर के सारे काम खत्म करके भैया के लिए दोपहर तक का खाना सुबह ही बनाकर रख देती थी। उसके बाद मैं कॉलेज चली जाती और शाम चार साढ़े चार बजे तक कॉलेज से लौटती थी।
घर आकर मैं कुछ देर टीवी देखती और फिर नहाकर रात का खाना बनाने लग जाती। भैया भी शाम साढ़े छः सात बजे तक घर आ जाते थे।
रात का खाना मैं और भैया साथ ही खाते और उसके बाद मैं कुछ देर अपने कमरे में पढ़ाई करती और सो जाती थी।
इस तरह कुछ दिन बीत गए।
बारिश का मौसम था.. इसलिए हफ्ते भर से लगातार बारिश हो रही थी.. जिस कारण एक भी कपड़ा सूख नहीं रहा था और दो दिन से बिजली (लाईट) भी खराब थी। रात को मोमबत्ती की रोशनी से ही काम चलता था।
मेरे कपड़े ना सूखने के कारण मैं ब्रा और पैन्टी तो पहले से ही भाभी के पहन रही थी.. मगर एक दिन तो शाम को जब मैं नहाने लगी तो मेरे पास नहाकर पहनने के लिए एक भी कपड़ा नहीं था।
मैंने जो कपड़े पहन रखे थे बस वो ही सूखे थे.. इसलिए मैंने उनको अगले दिन कॉलेज में पहन कर जाने के लिए निकाल कर रख दिए और नहाकर अन्दर बिना कुछ पहने ही भाभी की नाईटी पहन ली।
वैसे भी एक तो बिजली नहीं थी.. ऊपर से रात में कौन देख रहा था। इसके बाद मैं खाना बनाने लग गई.. मगर तभी भैया ने फोन करके बताया- मैं एक पार्टी में हूँ.. मुझे आने में देर हो जाएगी.. और मैं खाना भी खाकर ही आऊँगा।
अब तो मुझे बस मेरे लिए ही खाना बनाना था.. इसलिए मैंने थोड़ा सा खाना बनाकर खा लिया।
बिजली खराब थी और मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई कर नहीं सकती थी.. इसलिए मैं अपने कमरे में आकर ऐसे ही लेट गई। बाहर बारिश तो नहीं हो रही थी.. मगर बिजली चमक रही थी और ठण्डी हवा चल रही थी.. इसलिए पता नहीं कब मेरी आँख लग गई।
कुछ देर बाद अचानक दरवाजे के खटखटाने की आवाज से मेरी नींद खुल गई। मैं समझ गई कि भैया आ गए है। मैंने जो मोमबत्ती जला रखी थी.. वो खत्म होकर बुझ चुकी थी.. मगर खिड़की से इतनी रोशनी आ रही थी कि मैं थोड़ा बहुत देख सकती थी।
मैं जल्दी से दरवाजा खोलने चली गई और मैंने जैसे ही दरवाजा खोला तो भैया सीधे मेरे ऊपर गिर पड़े.. शायद वो दरवाजे का सहारा लेकर ही खड़े थे.. अगर मैंने उन्हें पकड़ा नहीं होता तो वो सीधे मुँह के बल फर्श पर गिर जाते।
भैया के मुँह से शराब की तेज बदबू आ रही थी। उन्होंने इतनी शराब पी रखी थी कि वो ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे।
मैंने भैया को पकड़ कर उनके कमरे में ले जाने लगी.. तो उन्होंने भाभी का नाम ले कर मुझे कस कर पकड़ लिया और कुछ बड़बड़ाने लगे।
घर में अँधेरा होने के कारण भैया ठीक से मेरी सूरत तो देख नहीं पा रहे थे.. मगर मैंने भाभी की नाईटी पहन रखी थी और मैं कद-काठी में भी भाभी के समान ही थी.. इसलिए भैया शायद मुझे भाभी समझ रहे थे।
भैया के कमरे में भी बिल्कुल अँधेरा था।
मैंने उन्हें बिस्तर पर सुला दिया और अपने कमरे में जाने के लिए मुड़ी तो भैया ने मेरा हाथ पकड़ कर झटके से खींच लिया और फिर से भाभी का नाम लेकर कहा- कहाँ जा रही हो रानी..
मैं स्तब्ध थी.. आगे क्या हुआ वो अगले भाग में आपके सामने होगा।
आपके ईमेल की प्रतीक्षा रहेगी। [email protected]
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