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मैं और रेनू अच्छे दोस्त थे, हम खुल कर बातें कर रहे थे, मजाक कर रहे थे। मुझे समझ आ गया था कि रात को गिरने वाली घटना सच में हुई थी, उसके बाद मैंने नशे में रेनू को चूमने की कोशिश की, उसके बाद मैं सो गया था।
आज शाम के लिए मैंने कुछ नहीं सोचा था। हमारे बीच बढ़ती शरारत और बदमाशियों ने मुझे कहीं न कहीं दिलासा दिला रखी थी कि शायद मेरा सपना सच हो जायेगा।
मैंने इस बीच कई बार उसके बूब्स और गांड को हाथ लगाया, जिस पर मुझे बहुत बुरी प्रतिक्रिया नहीं मिली।
कल रात के सपने के कई अंश मेरे आँखों के आगे घूम जाते थे, जिनके कारण में अपने आप को रोक नहीं पा रहा था।
घर आकर मैंने एक बढ़िया शावर लिया और टॉवल में ही आकर बाहर ड्राइंग रूम में बैठकर मधु से चैट कर रहा था। मैंने अपनी चैट के दौरान उसे बताया कि मेरे साथ कल सपने में क्या हुआ।
इस पर मधु की तरफ से मुझे हरी झंडी मिल गई, उसका कहना था कि एक ही ज़िन्दगी है, इसमें कोई भी अरमान अपने साथ लेकर नहीं जाओ, सब यहीं है और उन्हें जियो।
तभी मैंने देखा की रेनू भी शावर लेकर केवल टॉवल लपेट के इसी कमरे की तरफ चली आ रही थी। रेनू- ऐसे क्या देख रहे हो? इतनी खूबसूरत भी नहीं हूँ मैं!
मैं ठंडी आह भर कर- कभी हमारी नज़र से भी देखो जानेमन! थोड़ा बनावटी हंसी हँसा जिससे लगे कि मज़ाक है।
रेनू- अच्छा छोड़ो ये सब, बताओ कि तुम पीने वाले हो क्या? मैं- लेकर तो पीने को ही लाया हूँ, पर तुम जैसा कहो।
रेनू- मैं तो नहीं पीने वाली, कल रात हालत ख़राब हो गई थी, तुम चाहो तो पी लो।
मैं- अगर तुम नहीं पियोगी तो मैं भी नहीं पियूँगा। वैसे कल तुम्हें इसलिए चढ़ गई थी क्योंकि तुमने कॉकटेल (कोक बोलने के बाद थोड़ा पॉज लेकर) बना लिया था।
रेनू- (हँसते हुए) अच्छा तो तुम चाहते हो कि मैं में पीयूं? हम्म्म
मैं- नहीं, मैं नहीं चाहता, तुम देखो तुम्हें पीनी है या नहीं, मेरी मर्ज़ी से मत चलो, खुद फैसला करो। रेनू- अच्छा पीते है पर ज्यादा नहीं पिएंगे आज, कल मुझे वैसे भी शाम को फ्लाइट पकड़नी है।
मैं- ओके, तो उठा लाओ दो गिलास और थोड़ी बर्फ!
दो-दो पेग तक तो हम नार्मल बात कर रहे थे पर इस सब के बीच हमारे बीच थोड़ी टच और फील जैसे कार्य हो रहे थे। दोनों तौलिये में बैठकर शराब पी रहे थे, इससे मुझे अंदाज़ा तो था कि रेनू भी अपनी प्यास बुझाना चाहती है पर शायद पहल नहीं करना चाहती।
मैं भी इस प्यास का भरपूर फायदा उठा रहा था। बीच बीच में मैं उसे अपने राजकुमार के दर्शन भी करा ही देता था। तभी मैंने उससे पूछा- क्यूँ जब से मैं यहाँ आया हूँ, मैंने कभी नहीं देखा कि तुम्हारे पति तुम्हें कॉल वगैरह करते हों। तुम लोग फ़ोन पर बात नहीं करते क्या?
रेनू चेहरे पर थोड़ी उदासी दिखी पर बनावटी मुस्कान के साथ- अरे क्या है न कि वो बहुत बिजी रहते हैं। उन्हें टाइम थोड़ा कम मिल पाता है।
एक अधनंगी औरत के आँसू में आँसू कम अवसर ज्यादा दिखाई पड़ता है, मैंने उसकी जांघ पर हाथ रखकर थोड़ा सहलाते हुए कहा- तुम्हें झूठ बोलना नहीं आता। तुम कोशिश भी मत किया करो। कोई बात नहीं अगर तुम नहीं बताना चाहती, वैसे भी हमारी दोस्ती को अभी समय ही कितना हुआ है। इतना विश्वास थोड़े ही न कर सकती हो मेरे ऊपर!
रेनू- नहीं, मैं झूठ नहीं बोल रही, तुम्हें ऐसा क्यूँ लगा कि मैं झूठ बोल रही हूँ। तुमसे झूठ क्यूँ बोलूँगी यार।
मैं- ठीक है। चलो टॉपिक चेंज करो। अच्छा बताओ कि किस कलर की नेल पेंट अच्छी लगती है तुम्हें? रेनू थोड़ी अचंभित, आँखें बड़ी बड़ी करके- क्यूँ?
मैं- यार तुम सवाल बहुत करती हो? सीधा कलर का नाम बताओ? रेनू- मुझे नीला रंग पसंद है पर जब बात नेल पेंट की हो तो कोई भी कलर बुरा नहीं होता। पर फिर भी मैं ब्राउन शेड्स पसंद करती हूँ नेल पर लगाने के लिए।
मैं अपने सोफे के बगल से एक छोटा सा कागज़ का बैग निकाल कर- तो ये लो। रेनू- यह क्या है? मैं- फिर सवाल… अरे खोल कर देख लो?
रेनू फुर्ती से हाथ चलते हुए, चेहरे पर उत्सुकता के भाव के साथ- अरे वाह !! राहुल यह तो बहुत ही अच्छी नेल पेंट है। कलर भी तुम बहुत अच्छा लाए हो, मेरी चॉकलेट कलर की नेल पेंट खत्म भी हो गई थी।
वो उठकर जाने लगी। जल्दी में जब वो उठी तो उसका हाथ टॉवल पर ही था और उठी तो टॉवल खुल गया। टॉवल इतना भी नहीं खुला था कि वो बदन से पूरी तरह अलग हो पाता पर फिर भी पूरा बदन तो एक झलक के लिए नंगा दिख ही गया था।
मेरी हवस ने मुझे उस एक झलक में उसके पूरे बदन के हर अंग को बारीकी से देखने की अजीब सी दिव्य शक्ति मिल गई थी, मैं मौके का पूरा फायदा उठाते हुए खड़ा हुआ और उसको सोफे पर दोबारा बैठा दिया।
वो खुले टॉवल से अपने बदन को छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी या यूँ कह लो मेरे सब्र का इम्तेहान ले रही थी।
मैं- कहाँ जा रही थी? रेनू- कुछ नहीं बस वो नेल पेंट रिमूवर लेने।
मैं- मुझे बता दो, मैं ले आता हूँ! रेनू- सो स्वीट ऑफ़ यू!
उसने मुझे लोकेशन बताई कि कहाँ मिलेगी नेल पेंट रिमूवर। मैं जल्दी से लेकर आ गया वापस तब तक रेनू ने अपना तौलिया ठीक से लपेट लिया था।
मैंने उसकी तरफ शीशी बढ़ाई। रेनू- थैंक यू।
मैं फिर किचन से कुछ बर्फ और खाने का सामान लेकर वापस कमरे में आया तो…
रेनू- क्या तुम मुझे थोड़ी सी कॉटन भी लेकर दे सकते हो, जहाँ यह शीशी रखी थी, वहीं रखी होगी।
मैं हाँ में सर हिला कर चल दिया और कॉटन ढूंढने के चक्कर में मेरे हाथ में प्लास्टिक का लंड (डिल्डो) मिला। मैं दोनों चीज़ें साथ में लेकर आ गया।
डिल्डो को मैंने एक हाथ में अपनी पीठ के पीछे छुपा रखा था और कॉटन उसे पकड़ा दी और फिर अपनी जगह बैठ गया। मैंने अपने सोफे की तरफ साइड में जमीन पर उसका डिल्डो भी रख दिया।
ख़ामोशी के बीच रेनू अपने हाथों के नेल पेंट को रिमूवर से छुड़ा रही थी और उसके आधे से ज्यादा बाहर की तरफ झांकते बूब्स से अब थोड़े थोड़े निप्पल भी दिखने लगे थे।
मेरे भी तौलिये से अब मेरे उभार को देखना मुश्किल नहीं था, मैंने अपने उभार को छुपाने की भी कोई कोशिश नहीं की थी।
मैं तो चाहता था कि वो मेरे अंदर के इस सैलाब को देखे और उसके मन में भी वही ख्याल आयें जो मेरे दिमाग में चल रहे हैं।
मैं अपने पेग पीने में और उसके बदन को घूरने में लगा हुआ था, यह बात वो भी जानती थी पर उसने किसी तरह का कोई विरोध नहीं किया बल्कि अपने बदन को दिखा कर मुझे और उत्तेजित करने के लिए अब उसके पास एक नया पैंतरा भी मिल गया था।
अब उसके हाथों की उँगलियों की सभी नाख़ून साफ़ हो चुके थे अब उसने झुक कर अपने पैर की उंगलियों के नाख़ून की सफाई शुरू की। यह बात तो काबिल-ए-तारीफ़ थी की उसके वजनी जिस्म के होते हुए भी उसमें काफी लचक थी, वो बड़े आराम से झुकी हुई अपने पैरों की उँगलियों की सफाई कर रही थी। पर उसके कारण उसके बूब्स पर पड़ते दबाब के कारण अब उसकी गोलाइयाँ दब कर बाहर आने को बेक़रार थी।
पर कल रात की एक कोशिश नाकामयाब होने के बाद अब मैं चाहता था कि पहल मैं ना करूँ बल्कि रेनू से पहल करवाने की मेरी मनोकामना थी।
ख़ामोशी को तोड़ते हुए मैंने कहा- अगर तुम चाहो तो पैर के नाख़ून मैं क्लीन कर देता हूँ, नेल पेंट भी लगा दूंगा।
वो कुछ नहीं बोली, बस मेरी तरफ शरारती मुस्कान से देखा और मेरी तरफ अपने हाथ की कॉटन को बढ़ा दिया, उसके चेहरे के हावभाव बता रहे थे जैसे वह कह रही हो कि तुमने इतनी देर से क्यूँ बोला, मैं तो कब से चाहती थी कि तुम मुझे छू लो।
वो अपनी टाँगें उठा कर मेरी तरफ यानि सोफे के ऊपर रखने लगी पर मैंने उसके पैरों को हाथ लगाकर इशारा किया कि उन्हें ऐसे ही रहने दो।
उसके चेहरे पर सवाल के भाव थे, उसकी भवें सिकुड़ी हुई मुझे देख रही थी।
मैं आकर जमीन पर बिल्कुल रेनू के सामने बैठ गया, उसके पैर को अपनी जांघों पर रखा तो दूसरे पैर को उसने बिना कहे ही मेरी दूसरी जांघ पर रख दिया।
उसकी दोनों टांगों के बीच जो दूरी थी उसके कारण अब रेनू की खूबसूरत टाँगें और चूत मेरी आँखों के बिल्कुल सामने थी, वो उसे छुपाने की कोई भी कोशिश नहीं कर रही थी।
उसकी नजर इसी पर थी कि मेरी नज़र कहां है और मैं भी चाहता था कि वो देखे कि मैं क्या देख रहा हूँ।
मैं रेनू के पैरों के नाख़ूनों की सफाई भी करता जा रहा था और इतनी करीब से चूत के दर्शन के कारण मेरे तौलिये से बाहर आने को तड़पते लंड ने भी अपनी ऊँचाइयों को छू रखा था।
काफी देर से तड़प रही रेनू ने आखिर पहल की और अपनी दूसरे पैर को मेरी जांघों पर रगड़कर मुझे और गर्म करने की कोशिश करने लगी।
इतने पर भी मैंने किसी तरह की कोई हरकत नहीं की तो वह अपने पैर से मेरे तौलिये के अंदर पैर डाल कर मेरे लंड और उसके आस पास अपने तलवों से छूने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने उसकी आँखों में देखा तो कुछ ऐसा लगा जैसे वो कह रही हो कि तुम मुझे चोद क्यूँ नहीं देते?
पर मुझे तो मज़ा आ रहा था, मैं देखना चाहता था कि वह किस हद तक जाकर मुझे मनाती है।
मैंने अब तक रेनू के पहले पैर के सभी नाख़ून अच्छे से साफ़ कर दिए थे। अब मुझे उसके उस पैर को साफ़ करना था जो मेरे लंड और उसके आस पास सहला रहा था।
मैंने बिना कुछ कहे उसके पहले पैर को छोड़ कर दूसरे को बाहर निकाला। जब मैं दूसरे पैर को अपने तौलिये से निकाल रहा था तो उसने अपने पैरों से मेरे तौलिये को उछाल कर मेरे लंड को खुली हवा में सांस लेने का मौका दे दिया।
अब मेरी कमर में तौलिया ज़रूर बंधा हुआ था पर जिस अंग को छुपाने के लिए बांधा गया था वो रेनू की नज़र के सामने खुला पड़ा था। मैंने अब भी रेनू से नयन नहीं लड़ाए क्योंकि मुझे पता था कि आँखों की भाषा में वो मुझसे क्या कहेगी। मैंने बिना कुछ बोले, बिना कोई प्रतिक्रिया दिए दूसरे पैर को अपने हाथों से पकड़ कर थोड़ा ऊपर किया और नाख़ून साफ करने लगा। मेरा लंड का निशाना बिल्कुल रेनू के चेहरे की तरफ था।
अब शायद रेनू से कंट्रोल नहीं हो रहा था क्योंकि अब उसने अपनी पहली टांग जो मैं अभी अभी छोड़ चुका था उसे बिना ये जताए हुए कि यह सिर्फ एक इत्तेफाक है, उसने अपने तलवे को मेरे लंड के ऊपर रख दिया और धीरे धीरे पर दबाव के साथ मसलने लगी।
मैं अभी भी नाख़ून ही साफ कर रहा था, अपने मुंह से एक भी सिसकारी नहीं फूटने दी, मैं एक पत्थर की तरह मजबूती का प्रदर्शन कर रहा था।
अब उसकी दूसरी टांग को छोड़ कर मैंने फिर से पहले पैर को अपने हाथों में ले लिया जिससे वो लंड से दूर हो सके, और मैं उस पर नेल पेंट लगा सकूँ।
चुप्पी तोड़ते हुए मैंने कहा- रेनू, ज़रा नेल पेंट तो देना! अब नज़र मिलाना जरूरी था, मैंने उसकी आँखों में देखा, उसकी आँखों में हज़ारों सवाल दिखाई दे रहे थे।
उसने बिना कुछ बोले नेल पेंट मेरी तरफ बढ़ा दी। मैंने नेल पेंट खोल कर उसके नाखूनों को रंगना शुरू किया।
अब शायद वो हार मानने लगी थी, अबकी बार उसने अपने तलवे को मेरे लंड पर नहीं रखा था।
अबकी बार मैंने उसके पैर को उठाकर अपने लंड पर रखवा दिया और ऐसे बर्ताव किया जैसे सब नार्मल है और बोला- और बताओ दुबई जाकर क्या करने वाली हो?
रेनू कुछ नहीं! उसकी आवाज़ में थोड़ी खनक थी।
मैं- अच्छा यह बताओ कि अपने पति के लिए यहाँ से क्या गिफ्ट ले जा रही हो? रेनू उसकी तेज़ साँसें और बढ़ते रक्तचाप को महसूस किया जा सकता था- मैं अपने आप को ले तो जा रही हूँ। मुझसे बेहतर तोहफा और क्या हो सकता है।
मैं- इसमें तो कोई दो राय नहीं है कि तुमसे बेहतर तोहफा तो कुछ नहीं हो सकता। आअह्ह… मेरे मुंह की सिसकारी सुनने के लिए शायद उसके कान भी तड़प रहे थे।
मेरी दो अर्थी बातें यह बताने के लिए काफी थी कि मैं उसे गौर से देख चुका हूँ। ये सभी हरकतें इतने साधारण तरह से कर और करवा रहा था कि मुझे खुद पर ही फख्र होने लगा था।
रेनू- तुम नेल पेंट तो बड़ी खूबसूरती से लगा रहे हो? इतना अच्छा नेल आर्ट तो पार्लर में भी मुश्किल है।
मैं- अरे! ये मेरी कलाकारी नहीं, यह तो तुम खुद इतनी खूबसूरत हो कि कैसे भी लगा देता तो अच्छी ही लगती।
रेनू थोड़ा मुंह बनाकर- मुझे नहीं लगता कि मैं इतनी खूबसूरत हूँ। मैं- नहीं, तुम बेहद खूबसूरत हो! तुम्हारी आँखें एकदम बड़ी बड़ी और काली हैं, तुम्हारी तो एक नजर से ही आदमी बेहोश हो जाए। तुम्हारे होंठ, तुम्हारी मुस्कराहट को और भी सेक्सी बनाते हैं, तुम्हारी गर्दन किसी सुराही की तरह दिखती है।
थोड़ा रूक कर सांस लेकर- तुम्हारे बूब्स माशा अल्लाह बहुत ही फुरसत से बनाए गए होंगे। उन पर निप्पल के थोड़ा नीचे गोरे गोरे बूब्स पर छोटे छोटे काले निप्पल क़यामत ढा देते हैं। तुम्हारी नाभि पर की हुई नक्काशी (टैटू) तुम्हारे बदन को और भी ज्यादा खूबसूरती देता है। तुम्हारी चिकनी चूत जिस पर एक भी बाल नहीं है, वो तुम्हारे पूरे जिस्म की सबसे बेहद और अनोखी खूबसूरती है। इतनी खूबसूरती होने के बाद तुम कैसे कह सकती हो की तुम खूबसूरत नहीं हो।
मेरी तारीफ़ के पुलों ने दो बातें की, एक तो यह कि उसे यह विश्वास दिला दिया कि मैंने उसके हर अंग को बहुत बारीकी से देखा है और दूसरा यह कि वो थोड़ी शर्मा भी गई।
उसने मेरे लंड पर अपने पैर की रगड़ को थोड़ा ज्यादा दबाव के साथ रगड़ना शुरू कर दिया था। उसकी जांघें अब उसकी चूत पर कस रही थी। शायद मेरी बातों से होने वाली तरंगों ने उसे गिला करना शुरू कर दिया होगा।
रेनू- तुम चाहे कुछ और कर सको या न कर सको, पर बातें तो बहुत अच्छी बना लेते हो।
मैं- तुम मुझे चाबी लगा रही हो क्या?
अब रेनू बहुत बेबाक हो चुकी थी अब उसका खुद पर कोई कंट्रोल नहीं था। रेनू- मैं तो काफी देर से चाबी लगा रही हूँ। पर मुझे लगता है मेरा खिलौना ही ख़राब है। फिर जोर से हंसने लगी और अपना तौलिया अपने बदन से अलग कर दिया।
मैं- जितना चाबी लगाओगी खिलौना उतनी देर चलेगा… वैसे तुम नंगी ज्यादा अच्छी लगती हो। रेनू दोनों हाथ चेहरे पर रख कर- तुम भी।
मैं- तुम्हारे दोनों पैरों में नेल पेंट लग चुका है, तुम चाहो तो हाथों में भी लगा दूँ? रेनू आँख मारते हुए- हाँ !! लगा दो।
पिछले भाग के सभी सवाल तो यूँ के यूँ ही खड़े है और ऊपर से एक और नई जिज्ञासा कि रेनू के हाथों में नेल पेंट लग पाएगा या नहीं?
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