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पिछले भाग में आपने पढ़ा – पूर्ण संतुष्टिदायक चुदाई के बाद हम दोनों एक दूसरे की आगोश में पड़े रहे। मेरा अर्धसुप्त लिंग अभी भी रेनू की चूत में ही था और हम एक दूसरे के बदन को सहला रहे थे, चूम रहे थे।
अब आगे – तभी मेरी नज़र घड़ी पर पड़ी, मैंने देखा सात बजने में पांच मिनट बाकी थे। मैं- चलो, साथ में नहा कर आते हैं। रेनू- मुझे नहीं नहाना… मुझे तो ऐसे ही तुम्हारे साथ नंगे पड़े रहना है।
मैं- यार मुझे ऑफिस भी जाना है। रेनू- आज मत जाओ न ऑफिस! मैं- अच्छा जी!! इतना मज़ा आ रहा है?
रेनू- इतने दिनों बाद जानदार लंड मिला है ऐसे थोड़े ही जाने दूंगी। परसों तो मुझे जाना ही है। बस आज की बात है, देख लो। ऑफिस में कह दो कि घर शिफ्टिंग करनी है। मैं- ओ के मेरी जान!
मैंने अपना लंड चूत से बाहर निकाला और रेनू के मुंह के पास रख दिया। रेनू अब समझ चुकी थी कि मुझे मना करने का कोई तरीका उसके पास नहीं है तो वो हम दोनों के मिश्रित रस से सने लंड को चूसने लगी।
इधर मैंने फ़ोन किया अपने बॉस को। बॉस- हेलो, हाय राहुल, गुड मॉर्निंग, हाऊ आर यू? मैं- गुड मॉर्निंग बॉस, मैं अच्छा हूँ। बस आपको इसलिए तकलीफ दी कि मैं आज शिफ्ट कर रहा हूँ इसलिए आज आ नहीं पाऊँगा। अह… मेरे मुंह से सिसकारी निकल गई।
रेनू मेरे लंड को चूसते हुए मेरे सुपारे को अपनी जीभ से सहला भी रही थी। मेरा लंड तो मुंह की गर्मी पाते ही दुबारा औकात में आना शुरू हो गया था और कॉल पर किसी और से बात करते हुए चुसवाने में मज़ा दुगना हो गया था।
बॉस- ओके नोटेड, पर अगर लंच के बाद हाफ डे के लिए आ सके तो आ जाना। मैं- ठीक है बॉस, मैं कोशिश करूँगा।
फ़ोन डिसकनेक्ट करके- अच्छे से चूस भेनचोद, साली रंडी!
अब मेरा लंड रेनू के गले में ठोकर मारने लगा था जिसके कारण रेनू को बार बार ठसका या खांसी सी आ रही थी। पर शायद मुझे खुश करने के लिहाज से बंदी लंड को अपने मुंह से बाहर नहीं निकाल रही थी। चूसते हुए लंड पर वो अपने हाथ से मेरे बॉल्स को भी सहला रही थी और पकड़ रही थी।
इसी बीच उसके नाजुक और कोमल हाथों और उँगलियों का मेरी रानों में स्पर्श मुझे जन्नत की सैर करा रहा था।
आँखें बंद किये छत की तरफ मुंह किये मैं काफी देर तक उहह आआह्ह करता रहा और रेनू मेरे लंड को बराबर चूसती रही। एक पल वो आ ही गया जब मैं अपने चरम पर था, मैंने कहा- रेनू बेबी आई एम गोइंग टू कम।
रेनू ने अपने हल्के हाथ से बिल्कुल नाजुकता दिखाते हुए मेरे कूल्हों को भी सहलाना शुरू कर दिया।
नाजुक हाथों का स्पर्श जैसे ही कूल्हों को लगा मेरे अंदर बिजली सी दौड़ गई, यह वाकयी एक अनोखा स्पर्श था जिसने तन बदन में आग लगा दी।
मैं अपने चरम पर होने के कारण जल्दी ही रेनू के मुंह को अपने वीर्य से भरने तो तैयार था।
रेनू किसी कलाकार की तरह अभी तक मेरे लंड को मुंह भी लिए हुए बैठी थी और जीभ से धीरे धीरे सहला रही थी। मैंने रेनू के बालों को पकड़ रखा था और रेनू के मुंह में गरमा गरम पिचकारी मारने लगा।
रेनू ने कोई जल्दी बाज़ी नहीं दिखाई और आराम से पूरी मलाई को मुंह में गिरने दिया। मैं मुंह के अंदर छोटे छोटे धक्के लगाकर पूरी तरह संतुष्टि का मज़ा लूट रहा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
थोड़ी देर बाद रेनू ने मेरा लंड अपने मुंह से बाहर निकाल कर मुंह में भरा वीर्य मेरे सामने पड़े कपड़ों पर उगल दिया और फिर से मेरे लंड को अच्छे से साफ़ करने के लिए मुंह में लेकर अच्छे से सफाई की। बॉल्स के नीचे, रानो पर, गांड के छेद तक चाट चाट कर पूरी तरह मेरे बदन से वीर्य की एक एक बूँद को पोंछ डाला।
वो उठ कर वाशरूम चली गई मैं यों ही नंगा लेटा रहा और मेरी आँख लग गई।
एक फ़ोन की घंटी से मेरी नींद खुली, मैं जैसे चौंक कर उठा देखा तो कॉल मधु का था। घड़ी में समय 10-40 हो गया था। मैं सोती हुई सी आवाज़ में एक जम्हाई लेते हुए- हेलो?
मधु- अरे सो रहे हो? ऑफिस नहीं गए क्या? मैं अंगड़ाई लेते हुए- ऑफिस में बहाना मार दिया है कि घर शिफ्ट कर रहा हूँ।
मधु- अच्छा! कैसी रही नए घर में सुबह। मैं- मस्त, एकदम ज़बरदस्त!
मधु- चलो ठीक है, मुऊआहह (फ़ोन पर किस किया) आप घर के सामान वगैरह देखो, मैं भी पैकिंग चालू करती हूँ। बहुत कुछ पैक करना है, आधा सामान यहाँ है और आधा दूसरे घर में, कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि कहाँ से शुरू करूँ। चलो मैं फ़ोन रखती हूँ। टाटा बाय, लव यू! मैं- लव यू टू!
मेरे दिमाग में अभी कुछ देर पहले घटी घटना दौड़ रही थी, मैं अपना फ़ोन देखने लगा, पर मधु के लास्ट कॉल के अलावा उससे पहले की कॉल रात की थी। बॉस की कॉल मुझे दिख ही नहीं रही थी, मैं थोड़ा अचंभित था, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।
मैंने बरमूडा पहना तो पाया कि मेरा बदन चिपचिपा रहा था, मेरे पेट और लंड के आस पास काफी वीर्य पड़ा पड़ा सूख गया था।
मैं फ़ोन रखकर सबसे पहले वाशरूम गया, नहा कर तैयार होकर रेनू के कमरे की तरफ चल दिया, धीरे से बिना आहट किये दरवाज़ा खोल कर अंदर का नज़ारा देख कर मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गई।
रेनू अपने बिस्तर पर बेसुध सो रही थी। वो सो रही थी, यह चौंकने वाली बात नहीं थी पर चौंकने वाली बात यह थी कि वो वैसे ही सो रही थी जैसा मैं उसे रात को उसे छोड़ कर आया था।
मुझे यकीन तो नहीं हो रहा था पर अब एहसास होने लगा था कि जो कुछ मैंने देखा वो सब सपना ही था।
मैं कमरे के दरवाज़े को दुबारा से बंद करके सबसे पहले बॉस को फ़ोन किया कि मैं आज शिफ्टिंग कर रहा हूँ और ऑफिस नहीं आ सकूँगा।
फिर दिमाग थोड़ा रिलैक्स हुआ मैंने दो कप चाय बनाईं और रेनू के कमरे में लेकर आया। चाय रखकर मैंने रेनू को गौर से देखा। मैं अब तक अपने ऊपर विश्वास नहीं कर पा रहा था कि सुबह जो हुआ वो एक सपना था।
मुझे यह भी देखना था कि सपने में रेनू जैसी दिख रही थी क्या वो वैसी ही है सच में? वो इतनी गहरी नींद में थी कि उसे कुछ पता नहीं चलता…
पर गांड तो फट रही थी इसलिए ऊपर से ही रेनू के बदन का मुआयना करके उसे उठाने के लिए हाथ लगाया, काफी हिल डुला कर उठाया तब कही जाकर मैडम की नींद खुली। मैंने कहा- लो चाय पी लो।
मैंने अपना वाक्य बहुत सोच समझ कर बोला था, मुझे न तो ‘आप’ बोलना था न ही ‘रेनू’ क्योंकि इस सपने के कारण दिमाग में बहुत से केमिकल लोचे हो गए थे। यही समझ नहीं आ रहा था कि आखिर कहाँ तक की बात सपने में देखी है और कौन सी बात सच थी।
खैर उसने उठकर गुड मॉर्निंग बोला और चाय के लिए थैंक्स कहा। मैं अपना मग उठा कर बाहर जाने लगा तो रेनू बोली- राहुल कहाँ जा रहे हो? यहीं बैठ कर चाय पी लो, मैं तुम्हें खा नहीं जाऊँगी।
मैं- मैं रात को हुई अपनी गलती पर शर्मिंदा हूँ। रेनू- अरे यार राहुल कैसी बातें करते हो, सॉरी तो मुझे कहना चाहिए। तुमने मेरी मदद की और मैं तुम्हें… खैर छोड़ो, रात गई बात गई… वैसे भी हम दोनों नशे में थे।
मैं थोड़ा मुस्कुरा कर- थैंक यू सो मच, आप सच में बहुत अच्छी हो।
हम दोनों यूँ ही बैठे बैठे इधर उधर की बातें करने लगे।
पर अब मेरा मन रेनू के लिए पहले की तरह साफ़ नहीं था, मेरी नीयत ख़राब होने लगी थी, जब भी मौका लगता, मैं उसके गले के अंदर झाँकने की कोशिश करता या कहीं से भी कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा था, जब भी उसे छूने का मौका मिले, तो चांस मार ही लेता था।
शायद वो भी यह बात समझ गई थी कि मैं चांस मार रहा हूँ पर उसने कोई ख़ास विद्रोह नहीं दिखाया। बातें करते करते बारह बज गए थे।
मैं- अच्छा रेनू अब में चलता हूँ, आज छुट्टी हो ही गई है तो घर के सारे ज़रूरी सामान वगैरह ले आता हूँ क्योंकि फ्राइडे शाम की मेरी ट्रेन है और संडे को शाम तक ही लौट पाएंगे, हम लोग इसलिए आज ही का दिन है सामान खरीदने के लिए!
रेनू- हाँ तो ठीक है, चलो मैं तुम्हारी मदद किये देती हूँ, बनाओ लिस्ट!
हम दोनों ने मिलकर लिस्ट बनाई। उसने मुझे आस पास की ही अच्छी सस्ती सुन्दर टिकाऊ सामान लाने की जगह भी दिखा दी और किफायती सामान दिला कर वापस आ गये।
घर पर सामान रख कर हम खाना खाने चले गए, एक अच्छे मुग़लई रेस्टोरेंट में खाना खाया, वहाँ से सीधा एक मूवी देखने गए। मैंने रास्ते से एक व्हिस्की ली और शाम को घर आ गये।
अब मैं और रेनू अच्छे दोस्त बन गए थे, हम हर विषय पर खुल कर बात कर लेते थे, मजाक मज़ाक में एक दूसरे को चूंटी काट लेते थे। इसी बीच बातों बातों में मुझे समझ आ गया था कि कल रात को गिरने वाली घटना सच में हुई थी और उसके बाद मैंने उसे नशे में धुत्त हो कर किस करने की कोशिश की थी, उसके बाद मैं सो गया था।
जितने अरमान आप अपने दिल में सजा के बैठे हैं, उससे कही ज्यादा इंतज़ार खुद राहुल कर रहा है, आने वाली इस शाम के रंगीन ख्वाब दिल में सजा कर… तो बतायें कि क्या इस शाम को राहुल अपने ख्वाब को सच कर सकेगा?
– अगर शाम रंगीन हुई तो कौन करेगा, इस खेल की शुरुआत? – ख्वाब ज्यादा उत्तेजक था या असलियत ज्यादा रंगीन होगी?
पढ़िए अगले भाग में
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