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अंकल ने पाइप को मेरी गांड में घुसा कर वॉटर टैप से पानी खोल दिया.. एकदम मेरे अन्दर गुदगुदी होने लगी।
अंकल धीरे-धीरे पाइप को अन्दर-बाहर करने लगे.. फिर उन्होंने पाइप को अन्दर ज्यादा अन्दर तक डाल दिया। क़रीब चार इंच पाइप मेरी गाण्ड में अन्दर चला गया.. मेरी गाण्ड से पानी की तेज़ धार लगातार नीचे गिर रही थी। एकदम साफ झलझला पानी.. कोई गंदगी नहीं.. यह देख कर अंकल बोले- अब अन्दर तक पूरी सफाई हो गई है..
अब मैंने उस पाइप को अंकल के हाथ से ले लिया और खुद ही इसे अन्दर-बाहर करने लगी। मुझे खूब मज़ा आ रहा था.. अंकल मुझे ऐसा करते हुए बड़े गौर से देख रहे थे और बहुत खुश लग रहे थे।
आख़िर मैंने पाइप को अपनी गाण्ड से बाहर निकाला और कमोड से उठ आई।
मैंने अंकल को कहा- यह तो सचमुच बहुत काम की चीज़ है.. पेट के अन्दर की सफाई ऐसे तो कोई नहीं करता होगा। अंकल बोले- हाँ आमतौर पर लोग नहीं करते.. लेकिन जानकार और मस्त लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। इससे अन्दर तक अच्छी तरह सफाई भी हो जाती है और मज़ा भी आ जाता है।
बाथरूम की इस गरमागरम क्रिया और यहाँ के नशीले माहौल ने मन में चुदाई की आग भड़का दी थी.. लग रहा था कि अंकल का लंड पकड़ कर उसे अपनी चूत में डाल लूं। लेकिन पता नहीं अंकल क्या सोचेंगे.. यह सोच कर मैं वहाँ नंगी ही खड़ी रही।
तब अंकल ने कहा- मेरा एक काम कर दो।
उन्होंने झट से डिल्डो का एक डिब्बा खोला और एक बड़ा खूबसूरत सा डिल्डो निकाल कर मुझे थमा दिया और बोले- इस पर क्रीम लगालो और मेरे पिछले छेद में डालो।
इसके साथ ही अंकल बाथटब का किनारा पकड़ कर झुक गए। मुझे बड़ा अजीब लग रहा था। मगर मैंने अंकल के कहे अनुसार डिल्डो पर ढेर सारी क्रीम लगाई और अंकल की गाण्ड में घुसाने लगी। उनकी गाण्ड कसी हुई थी.. इसलिए डिल्डो अन्दर नहीं जा रहा था।
अंकल ने कहा- थोड़ा ज़ोर लगा कर ठेलो।
मैंने वैसा ही किया.. तब भी मैं डिल्डो अंकल की गाण्ड में घुसाने में नाकाम रही.. तब अंकल ने डिल्डो मुझसे ले लिया और खुद से ज़ोर लगा कर अन्दर डाल लिया।
फिर उन्होंने मुझसे कहा- अब तुम डिल्डो को अन्दर-बाहर करो।
मैंने जब डिल्डो को अंकल की गाण्ड में अन्दर-बाहर करना शुरू किया.. तो उनका लण्ड बड़ा और कड़ा होने लगा। मुझे इस काम में मज़ा आने लगा था, मैं खुद को रोक ना सकी, मैंने अंकल का लण्ड दूसरे हाथ से पकड़ लिया और उससे खेलने लगी।
अंकल पर मस्ती चढ़ती जा रही थी.. वह ज़ोर-ज़ोर से डिल्डो पर अपनी कमर आगे-पीछे करने लगे.. अपने लण्ड को उन्होंने खूब दबा कर पकड़ने को कहा। फिर वह सीधे हो कर आईने वाले फर्श पर लेट गए और उन्होंने मुझे अपने ऊपर लिटा लिया। मैं भी पूरे जोश में आती जा रही थी।
अंकल ने अपने हाथों में मेरे मम्मों को थाम लिए.. हम दोनों के लब एक-दूसरे से लिपट गए।
मेरे मम्मों के निपल्स को भी वह बीच- बीच में चूस लेते थे। मेरी बुर गीली होने लगी। मैं अपनी गोल चिकनी जांघें अंकल की ठोस.. चौड़ी और मज़बूत जांघों के ऊपर रगड़ने लगी। डिल्डो अब भी आधे से अधिक अंकल की गाण्ड में घुसा हुआ था… फिर मैंने अंकल की एक जाँघ को अपनी दोनों जांघों के बीच में कर लिया और थोड़ा ऊपर खिसक कर अपनी बुर को उनकी जाँघ पर रगड़ने लगी।
इससे मेरी हालत खराब होने लगी.. मस्ती बहुत बढ़ गई.. ऐसा लग रहा था कि अंकल का लण्ड पकड़ कर उसे अपनी बुर में डाल लूँ।
तभी अंकल ने मुझे अपने ऊपर से उतार कर नीचे लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर आ गए। मेरी जांघों को फैला कर मेरी चूत को अपनी उंगलियों से सहलाने लगे।
अब तो मैं और भी बेक़ाबू होने लगी.. अंकल की उंगलियाँ मेरी चूत रस से लथपथ हो गई थीं। अंकल ने पास में पड़ी हुई क्रीम की शीशी से ढेर सारी क्रीम निकाल कर अपने टनटनाए हुए लंड पर लगाई और उसे मेरी बुर पर सहलाने लगे। अंकल के लण्ड का एहसास जैसे ही मेरी बुर को हुआ.. वह एकदम मस्त होकर मचलने लगी। चूत के दोनों होंठ खुल कर बाहर आ गए.. वो लण्ड लीलने को मचल उठी।
हम दोनों एक-दूसरे से कुछ भी नहीं बोल रहे थे.. मगर हमारे जिस्म एक-दूसरे की ज़रूरत को अच्छी तरह समझते हुए उसे पूरा करने के लिए ज़ोर लगा रहे थे।
और फिर अंकल ने अचानक ही अपने लण्ड का भारी.. गोल.. गुलाबी सुपाड़ा मेरी बुर के फैले हुए लबों के बीच रख कर दबा दिया.. जिससे मेरी बुर में दर्द होने लगा।
हालाँकि पहले एक-डेढ़ इंच अन्दर तक मैं अपनी उंगली और डिल्डो अपनी बुर में डाल चुकी थी.. मगर मेरी उंगली तो बिल्कुल पतली है.. डिल्डो का सुपाड़ा भी डेढ़-दो इंच से ज़्यादा मोटा नहीं था.. मगर अंकल का लण्ड मैं हाथ में ले चुकी थी.. उसका सुपाड़ा भी अपनी मुठ्ठियों में कसा था.. मेरा अंदाज़ा था कि अंकल के लण्ड की मोटाई तीन इंच से भी अधिक है.. सुपाड़ा तो और भी बड़ा था।
अंकल ने थोड़ा और दबाव मेरी बुर पर डाला.. तो मुझे और तेज़ दर्द होने लगा।
मेरी आँखें मस्ती में बंद थीं.. मेरे जिस्म में सेक्स की लहर दौड़ रही थी.. मगर लण्ड जाते वक़्त बुर में हो रहे दर्द ने मुझे आँख खोलने पर मजबूर कर दिया। आँखें खोल कर मैंने अंकल को देखा.. वह मेरे मम्मों और निपल्स को बारी-बारी से चूस रहे थे।
मैंने अपने दोनों हाथों से अंकल का चेहरा पकड़ लिया.. तब अंकल ने अपना चेहरा उठा कर मेरे चेहरे की तरफ देखा। हम दोनों की आँखें मिलीं.. तो मैंने अंकल की आँखों में अपने लिए बेइंतेहा प्यार देखा। उनके प्यार में डूब कर मैंने अपना दर्द बर्दाश्त करने की पूरी कोशिश की।
तभी अंकल ने मेरी आँखों में देखते हुए पूरी ताक़त से ‘खचाक..’ से मेरी बुर में अपना लण्ड ठेल दिया.. जिससे मेरी चीख निकल गई।
उनका पूरा सुपाड़ा मेरी बुर में दाखिल हो गया था.. मेरी चीख सुन कर अंकल रुक गए और मेरे गालों.. लबों को चूमने लगे।
थोड़ी देर उसी हालत में रहते हुए उन्होंने कहा- बेबी.. बस थोड़ा सा दर्द होगा.. इसे बर्दाश्त कर लो.. मेरे लिए.. मैंने तुम्हारी आँखों में अपने लिए बहुत प्यार देखा है। मैं जानता हूँ तुम मुझे बहुत प्यार करती हो.. मैं पहली बार किसी लड़की के साथ इस हालत में हूँ.. तुम भी पहली बार किसी मर्द की आगोश में इस तरह आई हो.. यह दर्द तो हर लड़की को ज़िंदगी में एक बार झेलना ही पड़ता है।
इतनी देर में मेरा दर्द गायब हो चुका था.. अंकल की बातों से मुझे अच्छा लगने लगा। अंकल मेरे मम्मों के निप्पलों को सहलाने लगे.. मेरे चेहरे पर प्यार करने लगे।
मैं भी उनकी छाती के निप्पलों को अपनी नाज़ुक उंगलियों से छेड़ने लगी.. उनका लण्ड अब तक मेरी बुर पर वैसे ही टाइट डंडे की तरह खड़ा था। उसका मुण्ड मेरी योनि में पेवस्त था.. मेरे निप्पलों की चुसाई से.. फिर मेरी चुदाई की ख्वाहिश ज़ोर पकड़ने लगी।
मुझे नॉर्मल होते देख अंकल खुश हो गए और तेज़ी के साथ मेरे मम्मों को चाटते हुए एक हाथ से मेरी बुर पर लण्ड के किनारे किनारे सहलाने लगे.. जिससे मुझे वहाँ पर गुदगुदी होने लगी।
मेरे जिस्म की हरकत से अंकल समझ गए कि मुझे अब मज़ा आने लगा है.. तो उन्होंने कहा- लो अब तैयार हो जाओ..
और यह कहते ही अंकल ने अपने लण्ड का मुण्ड मेरी योनि से बाहर निकाला.. उसे आस-पास फैली चिकनाई में तर किया.. फिर मेरी बुर के मुँह पर ढेर सारी चिकनाई मल दी और अपने लण्ड को मेरी बुर के दोनों लबों के बीच मेरी सुराख पर लगा दिया और एक ज़ोर का झटका मारा.. तो मेरे होश ही उड़ गए।
मैं उनसे छूटने की कोशिश करती हुई.. चीख पड़ी। मेरी बुर ने खून बहाना शुरू कर दिया, दर्द से मैं बेहाल हो गई..
लेकिन अंकल उसी तरह मुझे दबाए हुए अपने सारे जिस्म का बोझ मुझ पर डाले हुए.. पड़े रहे.. उनके बोझ से मैं हिल भी नहीं पा रही थी।
मुझे अपनी साँसें रुकती हुई लगने लगीं, बड़ी मुश्किल से मैं साँस खींच रही थी, मेरा चेहरा इस एसी बाथरूम में भी पसीने से तरबतर हो गया था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
थोड़ी देर में मुझे थोड़ा ठीक लगने लगा। मैं अंकल के नीचे थोड़ा कसमसाई तो अंकल कोहनी के बल ऊपर उठ गए और मेरे चेहरे पर प्यार करने लगे। मैं भी उनका साथ देने लगी।
तब अंकल ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में थाम कर मुझे अपने सीने से लगा लिया, कहने लगे- जान.. मैं तुम्हें किसी तकलीफ़ में नहीं देख सकता.. तुमसे पहले मैंने किसी और से प्यार ज़रूर किया था.. मगर उसके साथ जिस्मानी रिश्ता कभी नहीं बनाया था.. तुम अब मेरी जान बन गई हो.. मेरी रूह अब तुम्हीं हो.. जो सुख आज तुमने मुझे दिया है.. जो खुशी मुझे दी है.. उसने तुम्हें मेरे दिल की मलिका बना दिया है.. मैं तुम्हारे बगैर ज़िंदगी के बारे में सोच भी नहीं सकता।
अंकल की बातें सुन कर मेरा रोम-रोम खुशी से झूम उठा, मैं कुछ बोले बिना ही अंकल के सीने से बुरी तरह चिपक गई। अंकल पर मुझे बहुत प्यार आ रहा था.. मैं उनकी छाती की निप्पलों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।
इससे अंकल मस्ती में छटपटाने लगे और फिर उन्होंने आहिस्ता-आहिस्ता अपनी कमर आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। मुझे भी मज़ा आने लगा.. नीचे से मैं भी अपनी कमर उचकाने लगी।
अंकल मेरी तरफ से प्रत्युत्तर पाकर और भी मस्ती में आ गए.. उन्होंने अब तेज़ी से मुझे चोदना शुरू कर दिया।
मैं भी पहली बार चुदाई की असली लज़्ज़त से आशना हो रही थी.. तो मेरी मस्ती भी सातवें आसमान तक पहुँचने लगी थी। मैं बड़बड़ाने लगी- अंकल.. बहुत अच्छा लग रहा है.. और तेज़ कीजिए.. और ज़ोर से..
अंकल पर मेरी बात का पूरा असर हुआ और वह मुझे खूब कस कर अपनी बांहों में ले कर जम कर चोदने लगे।
मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि इस प्रकार शादी के बिना मैं किसी से अपनी मर्ज़ी से चुद जाऊंगी.. लेकिन अंकल के साथ चुदाई करके मुझे कोई गिला नहीं हो रहा था.. उल्टे ऐसा लग रहा था कि बस अंकल इसी तरह अपने सीने से लगाए मुझे ज़िंदगी भर चोदते रहें।
मेरी मस्ती बढ़ती जा रही थी.. अंकल के धक्कों की रफ़्तार भी बढ़ती जा रही थी। मेरी साँसें बहुत तेज़ हो गईं.. मेरा जिस्म अकड़ने लगा।
लगा कि जिस्म का सारा लहू सिमट कर मेरी बुर के अन्दर आ रहा है.. और.. ‘आह.. अंकल मैं मर रही हूँ.. मेरी जान निकल रही है..’ कह कर मैं एकदम से अंकल से चिपक गई और मेरी बुर ‘फ़च.. फ़चा..’ कर पानी छोड़ने लगी।
तभी अंकल भी चीखने लगे- बेबी.. मेरी जान आहह.. मेरी जाआअन मुझे खुद में पूरा समा लो.. आह आह.. वे भी मुझ पर ढह गए.. उनके लण्ड से पिचकारी की तरह वीर्य की तेज़ धार मेरी बुर की गहराई में बरसने लगी।
मैं एकदम नशे में मस्त पड़ी थी। अंकल भी मेरे ऊपर बेसुध पड़े तेज़-तेज़ साँसें ले रहे थे।
कुछ देर बाद हम लोग उठे.. फिर नहा कर बाहर निकले और कपड़े पहन कर ख़ान खाने के बाद सो गए।
दोस्तों मेरी जिन्दगी की सबसे हसीं दास्ताँ का यह आगाज़ था.. जो मैंने आपसे रूबरू किया। उम्मीद है कि आपको मेरी कहानी पसन्द आई होगी.. मैं चाहती हूँ कि आप अपने ख्यालों को मेरे दोस्त की ईमेल पर भेज दें.. अपने ख्यालात नीचे डिसकस कमेंट्स पर भी जरूर लिखें!
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