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यह लाइव फैमिली सेक्स कहानी मेरी बीवी की जुदाई की है. हम दोनों सेक्स कर रहे थे तो दरवाजे से मेरी साली बेटी हमारी कामलीला देख रही थी. तो मैंने क्या किया?
सभी पाठकों का एक बार फिर से मेरी नयी सेक्स कहानी में स्वागत है। मैं आपको अपनी पत्नी की 13 दिन की जुदाई से उपजी चुदाई की तड़प की कहानी बता रहा था जिसका पहला भाग बीवी मायके में लिंग मुट्ठी में मैं पेश कर चुका हूं.
अभी तक आपने जाना कि मेरे ससुर की मृत्यु पर बीवी 13 दिन तक मायके में रुकी हुई थी. 12वें दिन मेरे सब्र का बांध टूट गया. मैं उसी शाम उसके घर जा पहुंचा और उसे रात को अकेले में मिलने के लिए बुलाया।
हमारा मिलन होते ही दोनों एक दूसरे के जिस्मों में गुत्थमगुत्था हो गये और चुम्बनों के दौर के पश्चात् नग्न जिस्मों की आग को चुदाई से मिटाने के लिए तैयार हो गये.
देर होते देख शशि ने शीघ्रता से चुदाई को अंजाम देने का आग्रह किया और मैंने उसे घुटनों के बल डॉगी स्टाइल में झुका लिया. उसकी योनि का द्वार मेरे मुंह के ठीक सामने आ गया था।
अब आगे लाइव फैमिली सेक्स कहानी:
मैंने अपनी जीभ निकालकर शशि के योनि द्वार के दोनों होंठों को चाटना शुरु कर दिया। अब तो शशि की सिसकारियां उसके काबू से बाहर होने लगीं। सिसकरती हुई शशि ने कहा- धीरे से करो, मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है! कहीं बाहर किसी ने आवाज सुन ली तो ठीक नहीं होगा!
मुझ पर जैसे शशि की चेतावनी का कोई असर ही नहीं था। मैंने तो अपनी जीभ को गोल घुमा कर धीरे से उस काम द्वार (योनि) के अंदर ठेलना शुरू कर दिया। शशि ने अपने घुटनों को एक दूसरे के साथ जोड़ लिया।
चादर उसने कसकर पकड़ ली। उसका पूरा बदन अकड़ने लगा और वो ऐसे ही अपने नितंब हिला हिलाकर जोर जोर से झटके मारने लगी। मैं समझ गया कि अब शशि के लिए रुकना मुश्किल है।
मैंने उठकर पीछे की तरफ बढ़ते हुए अपना पौरूषांग (लिंग) शशि के योनि द्वार पर लगा दिया। आज 12 दिन बाद मेरा लिंग उस स्वर्गद्वार को छू रहा था। बेचैनी इतनी कि अभी मैंने उसको छुआ ही था कि शशि ने पीछे की तरफ झटका मारा।
इसी झटके में लोहे की तरह तपता हुआ मेरा लिंग शशि के योनि द्वार को चीरता हुआ अंदर तक प्रवेश कर गया। शशि की बेचैनी का आलम तो यह था कि मेरा इंतजार किए बिना ही उसने बहुत तेजी से अपने शरीर को आगे पीछे सरकाना शुरू कर दिया।
शशि की अधीरता देखकर मैं भी आपे से बाहर हो रहा था। मैंने दोनों हाथों से शशि की पीठ को पकड़ा और धकाधक जोर जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए।
हम दोनों की धक्का एक्सप्रेस बहुत तेजी से चलने लगी और फिर चुदाई करते हुए बीच में ऐसा समय आया कि हम दोनों की धक्का एक्सप्रेस फेल हो गई। मेरे लिंगमुंड के छोटे से मुख से एक बड़ी सी धार वीर्य लिये हुए मेरी बीवी की योनि के अंदर गिरी और मैं बिल्कुल निढाल हो गया।
मैंने देखा कि शशि भी निढाल हो चुकी थी। हम दोनों वहीं एक दूसरे के बराबर में लेट गए और एक दूसरे से चिपक गए। ऐसा लग रहा था जैसे हम बरसों बाद मिले हों।
हम दोनों के जिस्मों के मध्य में एक सेंटीमीटर भी जगह नहीं थी। हम दोनों निस्तेज अवस्था में आंख बंद किए एक दूसरे से चिपके हुए लेटे थे।
तभी किसी के खखारने की आवाज हुई और उसने पूछा- काम निपट गया हो तो मैं अंदर आ जाऊं? यह दिव्या की आवाज थी।
हम दोनों घबराकर उठे और अपने अपने कपड़े पहने। मैंने इशारा करके शशि से पूछा तो शशि ने मुझे बताया कि उसने दिव्या को हमारा काम निपटने तक छत पर ही चौकीदारी करने को कहा था।
झुंझलाहट में मैंने अपना सिर पीट लिया। हो सकता है कि दिव्या बाहर से सब कुछ देख रही हो!! अभी हमने पूरे कपड़े पहने ही थे कि दिव्या ने अंदर प्रवेश किया तो मुझे याद आया कि इस दरवाजे में तो कुंडली भी नहीं है!
मेरे ख्यालों में तो यही घूमने लगा कि जब मैं और शशि काम अवस्था में लीन थे तो शायद दिव्या दरवाजे में से झांक कर हमें देख रही होगी। दिव्या के अंदर आते ही शशि ने मुस्कराकर उसका स्वागत किया।
दिव्या एकदम दोनों के पास बैठ गई। शशि ने उसको थैंक्यू बोला। मैंने खुद को संयमित करते हुए बहुत हल्की सी आवाज में दिव्या का स्वागत करते हुए उससे पूछा- स्वीटहार्ट, तुझे कैसे पता लगा क्या काम निबट गया है?
मेरे सवाल का निडरता से सामना करते हुए दिव्या ने बिंदास अंदाज में कहा- मौसा जी … 5 साल तो मेरी शादी को भी हो गए हैं! मैं भी जानती हूं कि एक पारी कितनी देर में खेली जाती है!
मैंने आँख मारते हुए और शशि की तरफ मुखातिब होते हुए कहा- मुझे तो लगता है कि दिव्या बाहर से पूरा गेम देख रही थी! तभी दिव्या खड़े होते हुए बोली- मौसा जी, फालतू शक मत करो! मैं तो छत के दूसरे किनारे पर खड़ी थी। जब मुझे अंदाजा हो गया कि आप लोगों की पारी खत्म हो चुकी है, तभी इधर आई हूं।
उसने कह तो दिया लेकिन उसके चेहरे पर दिखने वाली शैतानी मुस्कान कुछ और ही बयां कर रही थी।
माहौल को बदलने के लिए शशि ने दिव्या से उसके परिवार की बातें शुरू कर दीं।
मैंने कहा- यार, मैं चला जाता हूं। तुम यहां औरतों वाली बातें कर लो! दिव्या ने कहा- चलो छोड़ो, आज तो मौसा जी साथ हैं, अगर आपको नींद नहीं आई है तो हम तीनों मिलकर लूडो खेलते हैं?
उसका मूड देख मैंने दिव्या की बात पर तुरंत सहमति दे दी। दिव्या ने अपना मोबाइल निकाला और उसमें लूडो खेल चलाकर हमारे आगे कर दिया। हम तीनों काफी देर तक एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते हुए लूडो खेलते रहे।
मगर मेरा ध्यान लगातार ही दिव्या की शैतानी मुस्कराहट पर ही था।
करीब 3:00 बजे शशि ने कहा- अब मुझे नींद आ रही है। दिव्या मुझसे बोली- मौसा जी, मैं आपके साथ चलती हूं … आप उसी तरह छत से नीचे उतर जाना तो मैं चड्ढा जी के गेट की कुंडी लगा लूंगी।
दिव्या मुझे वापस मेरे बिस्तर तक छोड़ कर आई और उसके बाद शशि और दिव्या आकर सो गईं।
मेरी आंखों से तो अभी भी नींद कोसों दूर थी। मुझे रह-रहकर दिव्या की वही शैतानी मुस्कराहट दिखाई दे रही थी।
ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं जब शशि की योनि में पीछे से जोर-जोर से अपने लिंग के धक्के मार रहा था, तब दिव्या दरवाजे में से वह नजारा देखकर मुस्करा रही होगी। यह सोचकर ही मेरे तो पूरे बदन के रोंगटे खड़े हो रहे थे।
अचानक मेरा हाथ बरमूडा पर गया तो पाया कि बरमूडा के अंदर मेरा प्रिय नाग भी फुंफकार रहा था। उसकी यह तड़प दिव्या की उस मुस्कराहट के लिए थी।
कुछ ही पलों में दिव्या मेरी नजरों में मेरी साली की बेटी की छवि से उतरकर एक कामदेवी बन गई थी। दिव्या के बारे में सोचते सोचते मुझे कब नींद आ गई पता भी नहीं चला।
सुबह 8:00 बजे दिव्या ने ही आकर मुझे जगाया।
नींद खुलते ही मैंने दिव्या को अंदर बुलाया और उससे पूछा कि शशि कहां है? हंसते हुए दिव्या बोली- मौसा जी, कभी किसी और को भी याद कर लिया करो? आपके दिलो-दिमाग पर हर समय मौसी ही छाई रहती हैं! इतना प्यार मैंने किसी दूसरे पति-पत्नी में नहीं देखा।
ये बोलकर वह हंसती हुई कमरे से बाहर चली गई। मैं भी उठकर अपने नित्य कर्म में लग गया।
उसके बाद तेरहवीं की रस्म आदि के कार्यक्रम में दिन कब निकल गया पता ही नहीं चला।
शाम को 5:00 बजे तक सब फ्री हो चुके थे। वापस जाने वाले रिश्तेदार भी जा चुके थे। सिर्फ कुछ ही लोग घर में रुके थे।
मैंने भी शशि से वापस चलने के लिए कहा। तभी दिव्या की मम्मी और दिव्या दोनों आए और बोले- कम से कम आज और रुकिए! आप थक गए हैं। कल हम भी चले जाएंगे, आप भी चले जाइएगा. आज बैठकर ढे़र सारी बातें करेंगे.
मैं शायद दिव्या के रोकने की ही प्रतीक्षा कर रहा था। उसके एक बार बोलते ही मैंने वहां रुकने का निर्णय किया। शशि के पास वहां न रुकने का कोई कारण भी नहीं था। मायका तो हर लड़की को प्यारा होता है।
हमें वहां बैठाकर दिव्या की मम्मी चाय बनाने चली गई। अब मेरा ध्यान पूरी तरह से दिव्या पर था और मैं सोच रहा था कि कैसे यह कामायनी आज मेरी बांहों में हो।
मेरा दिमाग लगातार दिव्या के कामुक बदन को भोगने की तरकीब लड़ा रहा था। मेरे अंदर का भद्र पुरुष शायद कहीं चला गया था और मेरा शैतानी दिमाग न जाने क्या क्या सोचने लगा था।
मैंने महसूस किया कि मेरी टांगों के बीच में भी यह सोच सोचकर कुछ हलचल हो रही है। तब तक चाय बन कर आ गई।
चाय की चुस्कियां लेते हुए मैं सिर्फ दिव्या को भोगने की तरकीब ही लड़ा रहा था।
दिव्या और शशि आपस में बातें कर रहे थे। तभी दिव्या बोली- आज भी हम लोग लूडो खेलेंगे! ये सुनकर मुझे तो जैसे संजीवनी हाथ लगी!
मैंने तुरंत हां करते हुए कहा- लेकिन वहीं खेलेंगे जहां कल खेले थे! थोड़ी सी ना नुकुर के बाद शशि और दिव्या ने भी खेल के स्थान पर सहमति जता दी।
अब तो मुझे अपना टारगेट थोड़ा आसान लगने लगा। दिमाग यही सोच रहा था कि दिव्या को कैसे कहूं? वो मानेगी या नहीं? दिव्या से पहले तो मुझे शशि को बोलना पड़ेगा क्योंकि मैंने कभी शशि से छुपाकर कोई काम नहीं किया था।
काफी सोच विचारने के बाद मैंने शशि से थोड़ी देर बाजार चलने के लिए कहा। शशि तुरंत तैयार होकर आ गई। मैं अपने साले की बाइक लेकर शशि को साथ लेकर बाजार के लिए निकल गया।
बाजार में एक अच्छे रेस्टोरेंट में जाकर मैंने सबसे पहले शशि को चाट खिलाई! उसके बाद शशि से कहा कि अपनी पसंद का जो भी लेना है ले लो क्योंकि कल सुबह हम चले जाएंगे।
मैं चाहता था कि जब मैं शशि से दिव्या के लिए कहूं तो उसका मूड बिल्कुल ठीक हो और वह किसी तरह का कोई हंगामा न करे। करीब एक घंटा बाजार में बिताने के बाद और अपनी जरूरत और पसंद की कुछ चीजें लेने के बाद शशि ने वापस चलने को कहा।
घर की ओर बढ़ने से पहले मैं शशि को लेकर पास के ही एक पार्क में चला गया। बहुत दिन बाद हम पार्क में गए थे।
शाम के लगभग 7:00 बजे थे। पार्क का मौसम बहुत सुहावना था। पार्क में कई लोग टहल रहे थे।
धीरे-धीरे शशि का मूड भांपकर मैंने शशि से दिव्या के बारे में पूछा- शादी के 6 साल बाद भी दिव्या को कोई औलाद क्यों नहीं है? क्या दिव्या में कोई कमी है या उसके पति मनोज में?
शशि ने बताया कि 3 साल पहले इस बारे में जब दिव्या की मम्मी से उसकी बात हुई थी तो उन्होंने बताया था कि डॉक्टर के हिसाब से तो दोनों ही ठीक हैं, कोई कमी नहीं है। फिर पता नहीं दिव्या के घर में औलाद क्यों नहीं है? इस बात पर वह और पूरा परिवार दुखी भी है।
मैंने हंसते हुए कहा- अरे तो दिव्या को एक बार हमारी सेवाएं लेनी चाहिएं!
अचानक शशि ने मेरी तरफ देखा और मुस्कराकर बोली- सुधर जाओ! दिव्या मेरी भांजी है! मैंने भी पलटवार करते हुए कहा- तेरी भांजी है ना! मेरी तो स्वीटहार्ट है!
शशि को मालूम था कि मैं शुरू से ही दिव्या को स्वीटहार्ट बोलता आया हूं। शशि ने तुरंत मुझे रोकते हुए कहा- ए मिस्टर, आपकी निगाह गलत जगह पर है।
मैंने भी शशि के अच्छे मूड का फायदा उठाने की कोशिश करते हुए अगला प्रयास किया और कहा- यार एक बात बताओ … क्या पता दिव्या की गोद भराई मेरे ही हाथों से लिखी हो? एक बार कोशिश करने में क्या जाता है?
मेरी इस बात पर अचानक शशि सीरियस हो गई और बोली- मैं भी चाहती हूं कि दिव्या के घर में जल्द से जल्द नन्हा-मुन्ना बालक खेलने लगे लेकिन जो तुम सोच रहे हो वह सोचना बंद कर दो। मैंने महसूस किया कि मेरी बात पर शशि सीरियस जरूर थी लेकिन गुस्सा नहीं थी।
तो मैंने प्रयास जारी रखते हुए कहा- देखो मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूं और तुमको धोखा नहीं देना चाहता हूं मगर मुझे ऐसा लगता है कि मेरा एक चांस दिव्या के घर में खुशियां ला सकता है और मैं यह काम तुम्हारी सहमति से ही करना चाहता हूं. हां, अगर तुम नहीं चाहती तो मैं दिव्या की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखूंगा!
मेरी इसी बात ने शायद शशि का दिल जीत लिया. उसने पार्क में ही मुझे अपने गले से लगा लिया और बोली- मुझे तुम पर पूरा विश्वास है और शायद तुम्हारी बात भी सही है कि दिव्या अगर शायद कहीं बाहर ट्राई करे तो हो सकता है कि उसकी गोद भर जाए!
ऐसा लग रहा था कि मेरा तीर सही निशाने पर लगा है।
कुछ देर चुप बैठने के बाद अचानक शशि बोली- क्या तुम सच में दिव्या को इतना खुश देखना चाहते हो?
मैंने पलट कर कहा- ये सिर्फ दिव्या की खुशी का नहीं बल्कि तेरी और पूरे परिवार की खुशी का सवाल है बाबू! अगर दिव्या की गोद भर जाएगी तो तुम्हारा पूरा परिवार खुश हो जाएगा!
शशि ने मेरे माथे को चूमते हुए कहा- तुम कितना सोचते हो मेरे परिवार के बारे में! मैंने भी चुपचाप एक मुस्कान के साथ शशि को गले से लगा लिया परंतु अभी भी पूरा प्लान फाइनल नहीं था।
फिर शशि ने घर चलने को कहा।
मैं सोचने लगा कि शशि लगभग सहमत है परंतु बात आगे कैसे बढ़ेगी! इस बारे में शशि से ज्यादा बात करना मुझे उचित नहीं लगा।
मैं भी शशि के साथ साथ घर को निकल लिया। घर आकर ये सब रात्रि भोज की तैयारी में लग गए।
खाना खाने के बाद मेरे साले ने मुझे पुनः चड्ढा जी वाले कमरे में ही चलने के लिए कहा।
सच कहूं तो मैं खुद उसी कमरे में सोना चाहता था। मैं तो 9:00 बजे ही चड्ढा जी वाले कमरे में जाकर लेट गया और शशि और दिव्या के संदेश का इंतजार करने लगा।
करीब 10:00 बजे दिव्या ने मेरे मोबाइल पर व्हाट्सएप पर मैसेज करके मुझे छत पर उसी कमरे में लूडो खेलने के लिए बुलाया।
मैं तो जैसे इसी इंतजार में था; मैं तुरंत उठ कर दबे पांव छत की तरफ चल दिया और अपने पूर्व रात्रि वाले कामकक्ष को बढ़ता चला गया।
शशि और दिव्या मुझसे पहले ही वहां बैठी थीं। आज तो फर्श पर एक गद्दा भी बिछा हुआ था।
कमरे में जाते ही दोनों ने एक मीठी सी मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया और दिव्या ने तुरंत अपने मोबाइल में लूडो लगा लिया. हम तीनों करीब आधा घंटा लूडो खेलते रहे।
आधे घंटे बाद शशि बोली- मुझे थोड़ा काम है। मैं घर में सब लोगों के लिए दूध बनाकर आती हूं। तुम दोनों के लिए भी दूध लेकर आऊंगी तब तक तुम खेलते रहो।
यह कहकर शशि वहां से उठकर चली गई। शशि के जाते ही मेरे मोबाइल पर व्हाट्सएप के मैसेज की घंटी बजी.
मैंने जैसे ही मैसेज खोलकर देखा तो शशि का मैसेज था जिसमें लिखा था- मैं कम से कम एक घंटा नहीं आऊंगी. कोशिश करके देख लो. मगर प्लीज जबरदस्ती मत करना और ऐसा कोई काम मत करना जिससे कल को तुम्हारी बदनामी हो।
मैसेज पढ़ते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। मैंने मन ही मन शशि को धन्यवाद दिया. दिव्या ने तो जैसे मेरी मुस्कराहट को पढ़ लिया था; तुरंत मुझे चिढ़ाते हुए बोली- लगता है मौसी का मैसेज है.
उसके सवाल पर मैंने हां में सर हिला दिया. दिव्या मेरी चुटकी लेते हुए बोली- मौसी ने लिखा होगा कि दिव्या को जल्दी से यहां से भगाओ!
मैंने भी उसके मजाक का मजाक में ही जवाब देते हुए कहा- तेरी मौसी ने लिखा है कि अभी तो मैं नीचे हूं, तुम दिव्या पर चढ़ जाओ! “धत्त!! “कुछ तो शर्म करो मौसा जी!” बोलकर दिव्या ने नजरें झुका लीं।
यह तो मैं समझ गया था कि दिव्या ने मेरी बात को मजाक में ही लिया है और बुरा नहीं माना है। अब मेरा दिमाग बहुत तेजी से काम कर रहा था कि कैसे जल्दी से जल्दी दिव्या को बांहों में लिया जाए!
तभी दिव्या ने लूडो का नया मैच लगा लिया और मुझे खेलने को कहा। मैंने कहा- कुछ शर्त लगाएगी तभी खेलूंगा! दिव्या बोली- आप हार जाते हो, आज भी फिर से हार जाओगे!
मैंने कहा- चल तू ही जीत जाना, मगर शर्त तो लगा ले! दिव्या बोली- जो आप चाहो वो मंजूर! मैंने भी नजरों ही नजरों में दिव्या पर वार करते हुए कहा- सोच ले, कभी बाद में मुकर मत जाना?
दिव्या बोली- मौसा जी, आपकी स्वीटहार्ट का वादा है … जो बोलती है वो करती भी है. कभी नहीं मुकरती! ये बोलकर उसने तुरंत नया गेम स्टार्ट कर दिया.
लगातार गेम के दौरान मैं दिव्या को किसी न किसी बात पर छेड़ता रहा.
मैं भी यह चाहता था कि दिव्या और मेरे बीच की झिझक थोड़ी कम हो जाए। मैंने जानबूझकर दिव्या से पिछली रात का जिक्र करते हुए पूछा- जब मैं और शशि अंदर थे तब तू देख रही थी न कि हम क्या कर रहे हैं?
दिव्या ने नजरें नीची करके हंसते हुए कहा- मौसा जी, रात गई बात गई! मैंने बस इसी बात को पकड़ कर बात आगे बढ़ाते हुए अगला सवाल दागा- अच्छा एक बात बता … हम दोनों को प्यार करते देख कर तेरा मन नहीं हुआ?
उसने भी तपाक से जवाब दिया- मौसा जी मन होने से क्या होता है? मैं तो यहां अकेली आई हूं! मैंने अगला पासा फेंकते हुए कहा- तो क्या हुआ? हम हैं ना तेरे स्वीटहार्ट, तू तो खुद को मेरी साली मानती है और साली तो आधी घरवाली होती है!
दिव्या ने खनकती सी हंसी के साथ कहा- लगता है मौसी ने कई दिनों से आपकी पिटाई नहीं की है। मैंने कहा- क्यों? तूने कल रात देखा नहीं कि वह अपने होंठों से कितनी बुरी तरह मेरी पिटाई कर रही थी?
वो बोली- आखिर मौसी के अंदर तेरह दिन का जोश जो था! मैंने बस दिव्या की इस बात को पकड़ा और तुरंत उसकी नजरों से नजरें मिलाते हुए कहा- जोश में ही तो मजा आता है!
मेरे कहते ही जैसे अचानक दिव्या की चोरी पकड़ी गई। उसने नजरें नीचे कर लीं. मैंने महसूस किया कि दिव्या की सांसों में हल्की हल्की गर्मी थी। अब दिव्या की तपती जवानी पर बस अंतिम वार करना बाकी था।
मेरे प्रिय पाठको, आपको मेरी यह कामुक कहानी कैसी लग रही है इस बारे में अपने सुझाव और विचार मुझ तक पहुंचाते रहें. शीघ्र ही आपसे लाइव फैमिली सेक्स कहानी के अंतिम भाग में एक बार फिर से मुलाकात होगी। मेरा ईमेल आईडी है [email protected]
लाइव फैमिली सेक्स कहानी का अगला भाग: ससुराल में बीवी और उसकी भानजी संग- 3
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