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सभी पाठकों को अंश बजाज का प्रणाम.. मेरी पिछली कहानी ‘शादी में चूसा कज़न के दोस्त का लंड’ से आप लोग जुड़े रहे उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद..’ रवि मेरी जिंदगी का एक ऐसा गीत है जिसकी गूंज हर वक्त मेरे दिल और दिमाग में बजती रहती है.. उसको भूल पाना नामुमकिन है.. इसलिए अब हर शख्स में मैं उसी को ढूंढ़ने की कोशिश करता हूँ…
खैर आज मैं आपको अपनी ज़िंदगी का दूसरा वाकया बताने जा रहा हूँ जब मैं किशोरावस्था में था.. लड़कों के प्रति मेरा आकर्षण तो शुरु से ही था लेकिन इस घटना के वक्त वो आकर्षण कुछ ज्यादा ही हावी होने लगा था मुझ पर.. चढ़ती जवानी में हर वक्त मर्दों के ही ख्याल घूमते रहते थे दिमाग में.. स्कूल, मार्केट, शादी, ब्याह… जहाँ कहीं भी जाता, बस नज़रें लड़कों के शरीर का जायज़ा लेना शुरु कर देती थीं..
अगर मार्केट में किसी सेक्सी लड़के को देख लिया तो बस उसी के लंड के बारे में सोच सोच कर मुठ मारता था रात को.. लेकिन किसी के साथ कुछ हो नहीं पाता था.. एक तो घर वालों का डर और ऊपर से गांव का माहौल.. अगर किसी के साथ कुछ कर लेता और घर वालों को पता लग जाता तो जान ले लेते मेरी.. इसलिए सिर्फ हाथ ही जगन्नाथ था उस वक्त..
लेकिन एक शख्स था जिसके बारे में अक्सर सोच सोच कर मैं मुट्ठ मारा करता था और वो थे मेरे ताऊ जी के लड़के संदीप.. जिनको मैं भैया बुलाता था।
हालांकि उम्र में वो मुझसे 8-9 साल बड़े थे.. उनकी शादी को तीन साल हो चुके थे और 2 बच्चे भी थे लेकिन उनको देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वो शादीशुदा हैं.. लगभग 5 फुट 10 इंच की लंबाई.. गोरा रंग.. चेहरे पर दमक.. गहरे काले रंग के रेशमी से बाल.. 70-75 किलो वज़न यानि देखने में भरा भरा जवान शरीर… छाती उठी हुई और होठों पर ताव दे रही मूछें.. देखने में किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं लगते थे।
अक्सर कुर्ता पजामा ही पहनते थे और पैरों में जूती.. छाती चौड़ी करके जब चलते थे तो गज़ब लगते थे.. मैं अक्सर उनके घर भाभी के पास पढ़ने के लिए जाया करता था और इस बहाने उनको देखकर आँखें भी सेंक लिया करता था..
लेकिन वो घर में कभी कभी ही दिखते थे.. इसलिए उनके शरीर के बारे में ज्यादा कुछ जान नहीं पाया कि वो कपड़े उतारने के बाद कैसे दिखते होंगे.. और पजामा पहनने के कारण लंड का भी पता नहीं लगता था कि कितना बड़ा होगा.. बस उनकी सेक्सी मूंछों और छाती के बारे में ही सोच सोच कर मुठ मार लेता था..
एक बार की बात है जब भाभी बच्चों को लेकर अपने मायके गई हुई थी गर्मी की छुट्टियों में.. और मेरा उनके घर जाना हो नहीं पा रहा था, मैं उनको देखने के लिए कई दिन से तड़प रहा था.. और साथ में यह भी सोच रहा था कि भाभी के घर में न होने की वजह से उनके लंड में भी कई दिन से माल इकट्ठा हो गया होगा.. काश मुझे वो पीने का मौका मिल जाए…
लेकिन कोई बहाना नहीं मिल रहा था उनके घर जाने का.. फिर अगले दिन ताई जी और ताऊ जी किसी काम से बाहर जा रहे थे और घर में खाना बनाने वाला कोई नहीं था तो सुबह ताई जी घर आकर मम्मी को बोल गईं कि संदीप घर में अकेला है और उसको खाना दे देना..
मुझे उम्मीद की एक किरण नज़र आई और मैं मन ही मन खुश हो रहा था कि शायद आज बात बन जाए.. इसलिए मैं सुबह से घर में ही घूमता रहा मम्मी की नज़रों के सामने.. ताकि जब खाने की बारी आए तो वो किसी को और को न भेज दें संदीप के घर..
वक्त काटना मुश्किल हो रहा था.. बड़ी मुश्किल से 10 बजे और मम्मी ने खाना बनाना शुरु किया.. अब तो मैं रसोई में ही मंडराने लगा.. मन ही मन में सोच रहा था.. कि कब खाने बने और मम्मी मुझे आदेश दे ..कि जा.. अंश कर ले अपनी हसरत पूरी और देख ले अपने जवान मर्द संदीप को..
मन में यही ख्याल चल रहे थे.. हाय वो अकेला होगा आज घर में… बिस्तर पर लेटा होगा या.. टीवी देख रहा होगा.. मैं मन ही मन कहानियाँ बुन रहा था. .और आखिरकार वो शब्द मेरे कानों में पड़ ही गए जिनके लिए मैं सुबह से प्रार्थना कर रहा था..
मम्मी बोली- अंश.. आज तेरी ताई जी कहीं बाहर गई हैं और संदीप घर में अकेला है.. उसका खाना डिब्बे में लगा दिया है जाकर दे आ.. मैं खाने का डिब्बा उठाकर उछलता हुआ गेट से निकल गया और सेकेंड्स में ही संदीप के घर के गेट पर जा पहुंचा..
घर के बारे में बताना तो भूल ही गया.. उनका काले रंग का बड़ा सा गेट था और गेट में घुसते ही दोनों तरफ दो बड़े बड़े कमरे और बीच में 8 फुट की गैलरी..गैलरी के बाद अंदर जाकर चौड़ी और खुली जगह जिसकी सिर्फ चार दीवारी थी जिसे बरामदा भी कह सकते हैं.. और उस खुली जगह के बाद पीछे की तरफ दो सटे हुए कमरे.. मैं पिछले कमरे में ही बैठकर पढ़ता था.. और बरामदे में एक इंटों की बनी हुई चकोर पानी की हौद थी जिसमें से नहाना धोना भी होता था।
मैंने कुंडी बजाई तो अंदर से आवाज़ आई ‘खुला है आ जाओ…’ मैं दाखिल हुआ और अंदर की कुंडी लगाकर गैलरी के अंदर जाकर आवाज़ लगाई- संदीप भैया.. उधर से आवाज़ आई- कौन अंश…? ‘हाँ भैया, आपका खाना लेकर आया हूँ..’ ‘तो वहाँ क्यों खड़ा है अंदर आ जा…!’
जैसी ही बरामदे में कदम रखा, मैं सहम सा गया.. संदीप भैया बरामदे में बैठकर नहा रहे थे, उनका पूरा बदन पानी में भीगा हुआ लकड़ी की पटड़ी पर आलथी पालथी मारकर बैठे हुए थे, दांए हाथ में पानी का डोल सिर पर जाता हुआ उनके बगल के बालों को दिखा रहा था.. और उनके सिर से बह रहा पानी काले रेशमी बालों को माथे पर चिपकाता हुआ उनकी छाती के बालों को भिगोता हुआ नाभि से होकर उनके काले रंग के टी.टी के अंडरवियर के मूतने वाले कट के पास बने उभार पर से उछलता हुआ नीचे फर्श पर गिर रहा था..
मेरा मुंह तो खुला रह गया.. कुछ सेकेंड्स तक बुत बनकर उनके अंडरवियर के भीगे उभार को देखता रहा.. वो फिर बोले- अंश खड़ा क्यों है तू, बैठ, मैं अभी नहाकर आया.. ‘ठीक है भैया..’ कहकर मैं सामने वाले कमरे में बैठ गया और दरवाजा पूरा खोल दिया ताकि उनके भीगे मर्दाना शरीर को जी भर के देख सकूं..
वो पानी डालकर अपनी छाती के बालों में साबुन लगाकर झागों में हाथ फिराने लगे.. उनके निप्पल भूरे रंग के थे जो छाती के भीगे बालों में मस्त लग रहे थे.. फिर वो अपनी जांघों पर साबुन लगाकर रगड़ने लगे.. जब जांघों पर ऊपर की ओर साबुन मलते हुए हाथ अंडरवियर पर आंडों के ऊपर पहुंचा देता तो मेरे मुंह में आई लार को मैं अंदर गटक जाता और एक लंबी आंह छोड़ देता..
पहली बार उनके बदन को नंगा देखा था मैंने.. और मैं अपने आप पर कंट्रोल खोता जा रहा था। अब वो शरीर पर पानी डालकर साबुन को धोने लगे और मुझे आवाज़ लगा दी- अंश.. मेरे बेड पर एक तौलिया रखा होगा ज़रा वो दे दे मुझे..
मैं तपाक से तौलिया कंधे पर डालकर संदीप के सामने जाकर खड़ा हो गया.. अब वो भी खड़े होकर पानी डालने लगे और उनका सारा साबुन धुलने लगा.. अब दाएं हाथ में डिब्बा लेकर उन्होंने बाएं हाथ को अंडरवियर में डाला और लंड अंदर ही हाथ में मसलते हुए धोने लगे।
अब तो हद ही हो गई थी.. उनके अंडरवियर से गिरते पानी के नीचे मुंह लगाकर पीने को मन कर रहा था और बार बार मुंह में पानी आ रहा था।
फिर मेरी नज़र पास ही फर्श पर रखे साबुन पर गई, हवस में डूबे दिमाग ने काम किया और मैं जान-बूझकर पैर साबुन पर रखते हुए फिसलकर घुटनों के बल उनके पैरों में जा गिरा और उनकी कमर को पकड़ते हुए मुंह सीधा उनके भीगे अंडरवियर में बने उभार पर जा लगा.. मैंने होंठ लंड पर लगा दिए और उनके चूतड़ों को हाथों में भींच दिया.. आह.. क्या जन्नत का अहसास था वो.. यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
एक बार तो उनकी भी ईस्स… निकल गई लेकिन फिर वो मुझे हाथों से संभालते हुए बोले- अरे क्या हुआ.. तुझे लगी तो नहीं? मैं भी वापस उठता हुआ बोला- नहीं भैया.. बस ज़रा सा पैर फिसल गया था.. कहते हुए मैं उठने लगा तो मेरी नज़र उनके अंडरवियर के मूतने वाले कट पर पड़ी तो देखा कि मेरे होंठों के अहसास से उनके लंड में हल्का सा तनाव आ गया है और वो 6 इंच का लंड गीले अंडरवियर में लटका हुआ है।
भैया बोले- ठीक है, तौलिया मुझे दे दे और बिस्तर पर मेरा अंडरवियर रखा होगा वो भी ला दे ज़रा.. मैं अंडरवियर लेने कमरे में वापस गया.. अब मेरी वासना भी चरम पर थी.. पलंग पर उनका लाल रंग का अंडरवियर था जिस पर हल्के सफेद रंग का चमकीला सा पदार्थ लगा हुआ था.. लगता है भाभी के ना होने की वजह से भैया ने अंडरवियर नहीं धोया है..
मैंने अंडरवियर को उल्टा किया और मेरी वासना उस अंडरवियर को मेरे होठों तक ले गई और मूतने वाले कट के पास लगे सफेद सूख चुके पदार्थ को मैंने जीभ से चाट लिया.. आह ..क्या स्वाद था उसका.. हल्का नमकीन.. और उसमें से आ रही संदीप के लंड की खुशबू.. आह.. नाक में लगाकर सूंघता रहा और चाटता रहा..
भैया ने फिर आवाज़ लगाई- अरे कहाँ रह गया? मैं हड़बड़ाकर बोला- आया भैया..
लेकिन यह क्या.. अंडरवियर को चाटने से वो अंदर से हल्का गीला हो गया.. अंडरवियर लेकर पहुंचा और भैया को दे दिया.. भैया ने देखा कि अंडरवियर अंदर से गीला है.. अब उनको शायद मेरे गिरने वाले नाटक का पता लग गया और अनजान बनकर बोले- अंश यार, ये साबुन का पानी जो फर्श पर फैला है इसे साफ कर दे!
मैं झाड़ू और डिब्बा लेकर पानी डालने लगा.. झुका हुआ मैं फर्श पर पानी डालते हुए भैया के लटके गीले लंड को देखे जा रहा था और वो मेरे ऊपर ही नजर बनाए हुए थे। वो छाती के पानी को पौंछते हुए तौलिये को मेरी नजर और उनके लंड के बीच में नहीं आने दे रहे थे.. मेरे देखते रहने से उनके लंड में तनाव आना शुरु हो गया.. तौलिया कंधे पर डालते हुए उन्होंने अंडरवियर पर हल्का सा खुजला दिया जिससे मेरे होंठ खुल गए.. और आह निकल गई..
यह देखकर भैया का लंड जैक की तरह ऊपर उठता हुआ पूरा तन गया और अंडरवियर का तंबू सीधा नुकीला होकर मेरी तरफ इशारा करने लगा.. भैया ने कहा- देख, मेरे पैरों के पास थोड़ा गंदा पानी है इसे भी साफ कर दे.. मैं झाडू लगाते हुए भैया के और करीब आ गया..और लंड मेरे नाक के सामने गीले अंडरवियर में झटके मार रहा था.. मैं और करीब आ गया और मेरे होंठों और लंड के बीच में आधे हाथ से कम दूरी रह गई..
अब भैया की उत्तेजना भी बढ़ गई थी और उन्होंने अंगड़ाई लेने के बहाने अपने दोनों हाथ कूल्हों पर रखते हुए गांड को आगे धकेल दिया जिससे लंड मेरे होठों को छू गया.. अब मुझसे रहा नहीं गया और मैं वहीं घुटनों पर बैठकर उनके गीले अंडरवियर को मुंह में लेकर बेतहाशा चूसने लगा..
मेरे हाथ भैया की गद्देदार भीगी गांड पर कस गए थे और भैया के हाथ मेरे सिर पर.. वो गांड को आगे धकेलते हुए अंडरवियर समेत मेरे मुंह को चोदने लगे.. लंड से पानी आना शुरु हो गया और पच्च पच्च की आवाज होने लगी.. अब उन्होंने अंडरवियर नीचे गिरा दिया और अपने सांवले से गीले आंडों में मेरा मुंह दे दिया।
लंड के ऊपर हल्के हल्के झांट थे जो हफ्ते भर पहले काटने के बाद उगे थे.. और मैं उनके 7 सात इंच के लौड़े को मस्ती से चूसने लगा.. उनकी सिसकारियाँ निकलने लगीं, वो तेज तेज मुंह को चोदने लगे और 2 मिनट बाद वीर्य की गर्म पिचकारी मेरे गले में लगने लगी.. 4 मोटी मोटी पिचकारियों से मेरा मुंह भर गया और मैं उसे भैया का प्यार समझकर पी गया।
फिर तो भैया मेरे सामने नंगे ही खड़े हो गए और मैं उनके सिकुड़ते लंड को देखने लगा.. वो बोले- तू पसंद करता है इसे? ‘हाँ भैया…’ ‘तो पहले क्यों नहीं किया कभी?’ ‘आपसे डर लगता था!’
‘अरे नहीं मेरी जान.. तूने तो तेरी भाभी से ज्यादा मज़ा दे दिया आज, वो तो कभी नहीं चूसती और चूसती है तो नखरे करती है.. अब तो तेरी भाभी की गैरहाज़िरी में तुझे ही बुलाया करूँगा!’
‘ठीक है भैया.. मैं तो आपको वैसे भी बहुत पंसद करता हूँ..’ यह सुनकर भैया ठहाका मारकर हंस पड़े और बोले- ठीक है अंश, तू जा अब.. तेरी पसंद का मैं अब ख्याल रखूंगा..
मैं चला आया और उसके बाद जब भी भाभी घर पर नहीं रहती तो मैं भैया को आनन्दित करने उनके पास पहुंच जाता था।
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