This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
‘क्या आप इस संडे को मिल सकते हैं?’ उसने एक पल भी गँवाए बगैर पूछा। मैंने पूछा- कहाँ? तो वो बोली- महागुन माल या फिर पेसिफिक? मैंने उत्तर दिया- शाम को बताऊँगा।
शाम को मैंने उसे फ़ोन किया और बता दिया कि हम विकास मार्ग पर मिल रहे हैं।
संडे को शाम 4 बजे हम दोनो मिले। मैंने उसे देखते ही पहचान लिया पर वो जितनी अच्छी पिक्चर में लग रही थी हक़ीकत मे उससे ज़्यादा सुंदर थी, लगभग 5 फुट 9 इंच लंबी, भरवाँ लेकिन अनुपात में शरीर, छातियाँ भारी कमर अंदर और कूल्हे भारी!
चेहरे से वो कोई 35 साल के आसपास की लग रही थी, चेहरे पर हल्का मेकअप था बहुत सुंदर थी पर चेहरे पर एक अलग से रौब था उसने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहन रखा था जो ना बहुत टाइट था और ना ही बहुत ढीला… कुल मिला कर मैं उसके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ था।
हम दोनों वही पास में एक रेस्टोरेंट में बैठ गये, मंजरी ने कॉफ़ी और स्नैक्स का ऑर्डर दे दिया। एक कोने की टेबल पर बैठ कर हम एक दूसरे के बारे मे जानने लगे, उसने भी अपने जीवन के बारे में बताया और मैंने भी अपने जीवन और कारोबार के बारे में बताया। साथ ही यह बताया कि मेरा अच्छा चलता हुआ बिज़नेस मुझे बंद करना पड़ा था और अब मैं प्रेक्टिस कर रहा हूँ और साथ ही साथ अपना डायगनोस्टिक सेंटर चला रहा हूँ, मेरे 2 बेटे हैं मेरी उम्र 45 साल है।
जैसे ही मैंने उसे अपनी उम्र बताई तो वो हैरान रह गई और बोली- आप किसी भी तरह से 37-38 से ऊपर नहीं लगते हो! क्योंकि मेरा शरीर चर्बी रहित है इसलिए मैं अपनी उम्र से कुछ कम ही दिखता हूँ।
आम जान पहचान के बाद मैंने पूछा- हाँ मंजरी जी, अब बताएँ कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ? तो वो बड़ी गंभीर आवाज़ में बोली- दलबीर जी, आपसे रिकवेस्ट है कि आप मुझे जी कहना बंद करें, बस मंजरी कह कर बुलाएँ! ‘ठीक है मंजरी जी, अबसे मैं आपको मंजरी कहकर ही बुलाऊँगा…!’
उसने मेरी बात काटते हुए कहा- आपने तो अभी भी जी की पूंछ मेरे नाम के साथ लगाई है? मैंने ‘सॉरी’ बोला और औपचारिक बातचीत शुरू करी।
मैंने उससे उनके घर परिवार और रिश्तेदारों के बारे में पूछा, उसने भी मुझे सारा कुछ बताया और कहा- हम रिश्तेदारों से सिर्फ़ औपचारिक रूप से ही मिलते हैं, क्योंकि जब हम परेशानी में थे और सबको हमारी सारी हालत का पता था पर फिर भी कोई मदद के लिए सामने नहीं आया था, हालाँकि सब सक्षम थे और अच्छे ख़ासे पैसे वाले हैं, इसलिए मैं किसी के यहाँ ना तो जाती हूँ ना ही कोई मेरे यहाँ आता है।
एक पल रुक कर वो फिर बोली- बस मेरी एक देहरादून वाली ननद के सिवा, क्योंकि वो उस समय जिस लायक थी, उसने मदद करी थी और मैं भी उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानती हूँ और जीवन में उसे अगर मेरी जान की भी ज़रूरत पड़ेगी तो हंस कर दे दूँगी।
अब मंजरी ने मुझसे पूछा- अब आप बताएँ अपने बारे में? तो मैंने भी बताया- काफ़ी कुछ तो आप मेरी कहानी से जान चुकी हैं, बाकी मेरी पत्नी को शुरू से ही सेक्स में रूचि बहुत कम थी और वो ज़्यादा धार्मिक प्रवृति की है और जब उसे मनप्रीत के बारे में पता चला तो वो और उदासीन हो गई। मेरे 2 साले थे पहले छोटा साला और दो साल बाद बड़ा साला गुज़र गया था तब से उसकी रूचि इसमें बिल्कुल ख़त्म हो गई है। आर्थिक तौर पर मैं बस हैंड टू मऊथ वाली स्थिति में हूँ।
मेरा दवाई का बिज़नेस था जो कि किराए की दुकान में था और मकान मलिक ने दुकान खाली करवा ली उसके बाद काफ़ी कोशिश करके भी काम नहीं जम पाया। फिर किसी दोस्त के साथ हर्बल सप्लिमेंट का काम किया था पर उसमें भी नुकसान हो गया और लगभग साढ़े तीन लाख से ज़यादा का नुकसान मेरे हिस्से में आया।
मैंने कुछ सेकिंड रुक कर उसकी ओर गौर से देखा, वो मेरी बात को बड़े ध्यान से सुन रही थी और अपलक मेरी ओर देख रही थी।
मैंने बात को आगे बढ़ते हुए कहा- मैं भी एक इंसान हूँ, इच्छाएँ मेरे अंदर भी हैं पर मैं इस काम पर पैसा नहीं खर्च नहीं कर सकता इसलिए मैं अपनी वासना और भावनाओं को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश करता हूँ। मैं ऐसे कहते समय थोड़ा भावुक हो गया था, मेरे दोनों हाथ टेबल पर ही थे।
यह बात कहते समय मैंने महसूस किया कि उसने अपना हाथ मेरे हाथों पर रख दिया था और मेरे हाथों को थपकते हुए वो बोली- दलबीर जी, मैं समझ सकती हूँ।
तभी वेटर काफ़ी ले कर आ गया और मुझे अपनी बात को विराम देना पड़ा। वेटर के जाने के बाद उसने मुझे कहा- दलबीर जी, आप काफ़ी अधिक भावुक हैं।
मैंने कुछ जवाब नहीं दिया बस अपलक उसकी ओर देखता रहा। हम वहाँ पर कोई 1 घंटा बैठे और फिर मैंने उसे कहा- अब चलें? तो वो बोली- अब बताइए आपने कहा था कि मिलने के बाद कोई फ़ैसला करेंगे अब आपका क्या फ़ैसला है? तो मैंने कहा- मंजरी, मेरे पास कोई जगह नहीं है और होटल में जाने से डर लगता है।
उसने मेरी तरफ बड़े मोहक अंदाज़ से देखा और बोली- उसकी चिंता आप ना करो, उसका भी इंतज़ाम हो जाएगा! मैंने प्रश्न सूचक नज़रों से उसे देखा तो वो बोली- हमारी अपनी कोठी है और उसमें मैं अकेली रहती हूँ। मैंने उसे फिर कहा- मंजरी, एक बार और सोच लो, औरत की इज़्ज़त बड़ी नाज़ुक होती है।
वो मुझे बड़ी गहरी नज़रों से देखते हुए बोली- मैंने बहुत गहराई से सोचा है और अपने पति की बाक़ायदा इजाज़त ली है। तब मैंने उसे कहा ‘अच्छा कल बात करते हैं, मैं अपना फ़ैसला कल बताता हूँ।
तो वो कुछ निराशा जनक अंदाज़ में बोली- दलबीर जी, मुझे निराश मत करना। मैं भी चुप हो गया और हम दोनों साथ में ही पार्किंग में गये, उसने वहाँ से अपनी मारुति आल्टो ली और मैंने अपनी बाइक! और अपने अपने रास्तों पर चल दिए।
रास्ते में मैं यह सोच रहा था कि उसे हाँ कहूँ या ना! फिर अंदर से एक आवाज़ आई कि जब तुझे भी शारीरिक सुख चाहिए और उसे भी, तो मना क्यों कर रहा है! तो मैंने फ़ैसला लिया कि मैं कल उसे हाँ कह दूँगा।
उसी दिन रात करीब 8 बजे मेरे पास एक फोन आया जो कि मैंने नंबर देखे बिना उठा लिया, उधर से आवाज़ आई- हेलो! मैंने भी प्रतिउत्तर दिया- जी कहिए कौन? उधर से आवाज़ आई- जी, दलबीर जी बोल रहे हैं? मैंने कहा- जी, बोल रहा हूँ। उधर से आवाज़ आई- दलबीर जी, प्रदीप बोल रहा हूँ।
मैं एकाएक पहचान नहीं पाया था कि कौन सा प्रदीप है, मैंने पूछा- सर, मैंने आपको पहचाना नहीं? तो वो बोला- दलबीर जी, मैं प्रदीप केलीफ़ोर्निया से मंजरी का पति! मैंने तुरंत पहचाना और समझ नहीं पाया कि क्या बात करूँ इस आदमी से… मैंने प्रत्यक्षत: कहा- जी बताएँ सर, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?
तो एक क्षण रुक कर वो बोला- सर समझ नहीं पा रहा कि बात कहाँ से शुरू करूँ! मैंने फिर कहा- भाई साहब, आप खुल कर बात करें और मुझे बताइए कि मुझसे आप क्या सहायता चाहते हैं? इस पर वो बड़े गंभीर स्वर में बोला- श्रीमान, मेरी वाइफ ने आपकी पिक्चर मुझे भेजी थी, मैंने ही उसे आपसे मिलने के लिए कहा था। मैंने उत्तर में सिर्फ़ कहा- हूँम्म!
इस पर वह बोला- दलबीर जी, आप पढ़े लिखे आदमी हैं और इस परिस्थिति को समझ भी सकते हैं, मेरी पत्नी ने आपसे मुलाकात कर के मुझे आपके बारे में बताया है, हालाँकि बात तो हमारी आपके बारे में पहले ही हो गई थी पर फिर भी मैं चाहता था कि वह भी आपसे मिल कर आपको जाने और समझे आपसे मुलाकात करके वह संतुष्ट है।
तब मैं बोला- प्रदीप जी, इस चीज़ को लेकर आपके मन में कोई गुस्सा या ग्लानि आएगी तो? प्रदीप ने उत्तर दिया- दलबीर जी, यहाँ मैं जिस कंपनी में काम कर रहा हूँ, उसकी मालकिन एक विधवा है, और मैंने जिस तरह से उसकी कंपनी को संभाला है, उससे यह कंपनी काफ़ी अधिक प्रॉफिट में आई है, मैं यहाँ पर ना सिर्फ़ इंजीनियर हूँ बल्कि एक तरह से जनरल मैंनेजर भी मैं ही हूँ। मेरे और मार्था के बीच में ना जाने कैसे शारीरिक सम्बन्ध स्थापित हो गये। वो बहुत अच्छी स्त्री है, मैंने इसके बारे में मंजरी को नहीं बताया, बस यही बताया है कि यहाँ पर मैं अपना काम चला लेता हूँ।
एक पल के लिए रुक कर वो बोला- और मार्था को भी पता है कि मैं शादी शुदा हूँ पर उसने कभी अपना हक नहीं जताया मुझ पर, आप बताइए कि मंजरी मुझ पर कितना विश्वास करती है, यदि वो चाहती तो अपनी आग को कैसे भी शांत करती, किसी के साथ भी सम्बन्ध बना लेती तो मुझे क्या पता लगता… पर उसने मुझ पर इतना विश्वास किया और मैंने उसे अपने बारे में बताया तो भी उसने कोई नाराज़गी नहीं दिखाई।
कुछ क्षण रुक कर वो फिर बोला- आज मैं जो भी हूँ, जहाँ भी मंजरी की वजह से हूँ। अगर मंजरी मेरे साथ ना होती तो मैं फैक्ट्री सील होने के बाद जब तंगहाली में दिन गुज़र रहता तो शायद मैंने आत्महत्या कर ली होती पर वो मंजरी हो थी जिसने उस हालत में मेरा साथ नहीं छोड़ा और मेरी मार्गदर्शक बनकर मुझे हमेशा सहारा दिया और राह दिखाई। अब आप ही बताएँ कि मैं कैसे उसकी इच्छा का अनादर कर सकता हूँ?
मैं बहुत ध्यान से उसकी बातें सुन रहा था और सोच रहा था कि किसे महान कहूँ मंजरी को या प्रदीप को… कितने महान विचार हैं इनके! एक मेरी बीवी है जो ना तो खुद इस सब में रूचि रखती है और ना ही यह बर्दाश्त कर सकती है कि मैं कहीं और से अपनी ज़रूरत पूरी करूँ। मुझ पर पूरा ध्यान भी रखती है और हमेशा मुझ पर शक भी करती है।
अब मैंने अपने हथियार डालते हुए कहा- मुझे मंज़ूर है प्रदीप जी! उधर से आवाज़ आई- दलबीर जी, मैं आपका यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा’ और जीवन में कभी मैं आपके काम आ पाया तो तो खुद को भाग्यशाली समझूंगा। अब मंजरी आपसे संपर्क कर लेगी और आप दोनों समय देख लेना जब भी आपको सुविधाजनक हो।
मैंने कहा- ठीक है प्रदीप जी! और उसने इसके बाद मुझसे इजाज़त लेकर फ़ोन काट दिया।
मैं इन दोनों मियाँ बीवी के बारे में सोच रहा था कि फिर से फ़ोन की घंटी बजी, मैंने चौंक कर फ़ोन उठाया, बिना नंबर देखे उधर से मंजरी की आवाज़ थी और वो बहुत ही प्यार से थोड़ा लंबा खींचती हुई बोली- हल्ल्लो… मैंने उत्तर दिया- जी कहिए, क्या हाल है आपका?
‘जी मैं तो ठीक हूँ, उम्मीद करती हूँ कि आप भी ठीक होंगे?’ वो बड़े ही मादक अंदाज़ में बोली। मैं सोच रहा था कि अब ये क्या कहेगी और मैं अभी सोच में ही पड़ा था कि उधर से आवाज़ आई- क्या हुआ आप कुछ नाराज़ हैं क्या? मैं थोड़ा हड़बड़ा कर बोला- नहीं नहीं, ऐसी बात नहीं है।
मुझे अभी उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी आपका फ़ोन आ जाएगा इसलिए मैं थोड़ा सोच में पड़ गया था, मैं एक पल रुक कर बोला- अभी आज ही हम मिले थे इसलिए मुझे इतनी जल्दी उम्मीद नहीं थी कि आपका फ़ोन इतनी जल्दी आ जाएगा।
मैंने उसे यह नहीं बताया कि प्रदीप का फ़ोन मेरे पास आया था। शायद फ़ोन करवाया ही उसने था इसीलिए उसे पता था कि मेरी प्रदीप से बात हो चुकी है, इसलिए वो बोली- अब तो कोई और रुकावट नहीं आएगी आपके और मेरे मिलने में? क्योंकि आपके मन का वहम तो शायद निकल चुका होगा। मैंने ही प्रदीप जी से कहा था आपसे बात करने के लिए! वो पहले से ज़रा गंभीर आवाज़ में बोली।
मैंने उसे कहा- मंजरी, मैं आपको कल बताता हूँ! पर वो मेरी बात काटते हुए बोली- अभी भी… कुछ बाकी है? मैं बोला- आप पूरी बात तो सुनो, मैं आपको कल बताता हूँ कि हम कब मिलेंगे लेकिन मैं आपसे दिन के टाइम ही मिल पाऊँगा। वो तपाक से बोली- कोई बात नहीं, दिन में चलेगा। इसके बाद मुझे कुछ काम था तो मैंने उसे ये बता कर फ़ोन काट दिया।
उस रात घर जाने से पहले मैं फ़ैसला कर चुका था कि मुझे तो हाँ ही कहना है। यह फ़ैसला करने के बाद मैं कुछ निश्चिंत सा हो गया था और वैसे भी मुझे काफ़ी टाइम हो चुका था किसी के साथ करे हुए पत्नी तो 7- 8 साल से ना के बराबर ही रूचि लेती थी, इसलिए मुझे भी सेक्स की भूख तो थी ही और बिना मेहनत के कोई खुद ही राज़ी हो जाए तो फिर तो क्या ही कहना।
अगले दिन करीब 10:30 बजे उसका फ़ोन आया, मैं भी करीब खाली सा ही था तो मैंने भी आज बड़े रोमांटिक लहजे में जवाब दिया- क्या हाल है जानेमन? कहानी जारी रहेगी। [email protected]
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000