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मेर पति ने हाथ का झटका देते हुए कहा, “तुम बकवास कर रही हो। न तो तुमने और न तो समीर ने कुछ भी ऐसा किया की जो पश्चाताप या डाँट के काबिल था। तुमने समीर को ब्लाउज में हाथ डालने के लिए इसलिए कहा की तुम्हारे ब्रा में चूहा घूस गया था। और समीर ने भी इसीलिए तुम्हारे ब्रा के अंदर हाथ डाला।
जब दो जवान स्त्री और पुरुष ऐसी स्थिति में होते हैं तो ऐसा हो जाता है, उसमें न तो तुम्हारा और न तो समीर का कोई दोष है। पुरुष और स्त्री के बिच का आकर्षण भगवान् की दी हुई भेंट है। जब तक तुम्हें ऐसा न लगे की किसीने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है या तुम्हें निचा दिखानेकी कोशिश की है तब तक तुम इसको ज्यादा महत्त्व न दो। बल्कि ऐसी हरकतों को एन्जॉय करो। हमेश याद रखो ‘भूत तो चला गया, भविष्य मात्र आश है, तुम्हारा वर्तमान है मौज से जिया करो।”
मुझे बहुत अच्छा लगा की मेरे पति राज ने मुझे डांटा नहीं और मेरे या समीर के वर्तन को नकारात्मक रूप में नहीं लिया। उन्होंने मेरी दुविधा को समझा और मेरे मनमंथन को ख़तम कर दिया। उनकी समझ बूज़ की मैं कायल हो गयी। बल्कि मुझे ऐसा लगा जैसे वह मुझे प्रोत्साहन दे रहे हों। खैर, मुझे अच्छा लगा की मेरे पति मुझे समझ रहे थे। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
उस प्रसंग और मेरे पति के साथ बात करने के बाद मेरे और समीर के बिच में काफी कुछ बदल चुका था। मैं जब समीर के करीब होती थी तो मेरे पुरे बदन में एक नयी ऊर्जा और उत्तेजना का अनुभव होता था। मैं अपने आपको फिरसे नवयुवा महसूस कर ने लगी थी।
मुझे समीर के बदन की महक, उसके होठों की चमक, आँखों में छिपी लोलुपता, उन का मेरे स्तनों को दबाना और सहलाना, मेरी साडी पर से मेरी गांड की दरार में उंगली घुसेड़ने की कोशिश करना इत्यादि याद करते ही मैं रोमांचित हो जाती थी और मेरी चूत में से पानी निकलने लगता था। समीर जब भी मुझे ललचायी नज़रों से देखते या मेरे वेश की प्रशंशा करते तो मैं शर्म के मारे पानी पानी हो जाती। बल्कि मुझे इंतजार रहता था की समीर को मेरी पहनी हुई ड्रेस पसंद आये।
मैं समीर की पसंदीदा वेश पहनने के लिए आतुर रहती थी। अगर कभी कोई ख़ास ड्रेस उसे पसंद आता था तो मैं उसे पहन ने में मुझे बड़ी ख़ुशी होती थी। पहले मैं किसी भी तरह के भड़कीले वेश पहनना पसंद नहीं करती थी। पर समीर कहता तो मैं पहनकर आती थी।
साथ साथ में मेरे मनमें एक डर भी था। मेरा मन मुझे सावधान कर रहा था की इस रास्ते पर आगे खतरा हो सकता है। पर मैं बदल चुकी थी। मुझे समीर का साथ अच्छा लगता था और उसकी छेड़खानी और सेक्सी टिकाएं मुझे नाराज करने के बजाये उकसाती थीं।
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मेरे लिए वह एक बुरा दिन था। पिछली रात को मैं ठीक से सो नहीं पायी थी। मेरे पति राज उस हफ्ते टूर पर थे। मुझे रात को बुरे सपने आये और अकेले में कुछ भी आवाज होते ही मैं डर जाती थी। सुबह का ट्रैफिक पागल करने वाला था। मेरी तबियत ठीक नहीं थी। ऑफिस पहुँचने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी। एक खचाखच भरी हुई बस में कितनी सारी बसें छूटने के बाद घुसने का मौका मिला। इतने सारे लोगों के बिच मेरा तो जैसे कचुम्बर ही निकल गया। समीर का मूड भी ठीक नहीं था। उसकी छुट्टी बॉस ने कैंसिल कर दी थी। समीर गुस्से में था।
मेरा पूरा दिन काम में बिता। दुपहर को देर से बॉस आये और एक दूसरे ग्राहक के लिए फिर मुझे उसी तरह की रिपोर्ट बनाने के लिए कहा। काम ज्यादा नहीं था पर मुझे जरूर देर तक बैठे रहना पड़ेगा। मैं तुरंत काम में लग गयी। समीर ने जब मुझे गंभीरता पूर्वक काम में लगे हुए देखा तो मेरे पास आये। जब उन्होंने मुझे पूछा तो मैंने सब बातें बतायी। उन्होंने पाया की वह तो उन्हीं का ग्राहक था। उन्होंने कुछ कागज़ अपने हाथ में लिए और मेरे साथ काम में लग गए।
मुझे कड़ा सरदर्द हो रहा था। बाहर विजली के कड़क ने की और बादलों के गरज ने की आवाज आ रही थी। छे बजे ही पूरा ऑफिस खाली हो चुका था। झमाझम बारिश शुरू हो गयी थी। हम जब काम ख़तम कर के बाहर आये तो साढ़े सात बज चुके थे। पिछले तीन घंटों से मुश्लाधार बारिश हो रही थी और लगता था की पूरी रात बारिश नहीं रुकेगी। जैसे तैसे हम पुरे भीगे हुए समीर की बाइक के पास पहुंचे। हमारे पास न तो कोई रेनकोट था और न ही कोई छाता।
समीर ने बाइक शुरू किया और मैं पीछे बैठ गयी। समीर ने अपनी गोद में एक ब्रीफ़केस ले रखी थी। इस कारण मुझे अपने हाथ समीर की जांघों के बिच रखने पड़े। मैं थोड़ी आगे झुकी तो मेरी दोनों चूचियां समीर की पीठ पर दबी हुई थीं। मुझे अजीब भी लग रहा था और एक तरह का रोमांच भी हो रहा था। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।
बाइक पर बैठने से तेज हवा मेरे गीले बदन को और ठंडा कर रही थी। मुझे जुखाम हो गया और मैं छींके खा खा कर परेशान हो गयी। दुर्भाग्य वश समीर की बाइक एकाध किलो मीटर चलने के बाद खराब हो गयी। हमने बाइक को धक्के मार कर बड़ी मुश्किल से एक पार्किंग लोट में खड़ी की। वहां से नजदीकी बस स्टैंड पर हम पहुंचे और बस या टैक्सी का इंतजार करने लगे। बसें भरी हुई आती थी और बीना रुके निकल जाती थी। मैं रास्ते तक जा करके कोई टैक्सी खाली मिले तो रोकने के प्रयास कर रही थी, पर सारी टैक्सियां भरी हुई आरही थी।
तब अचानक एक भले कार वाले ने मेरी हालत देख कर अपनी गाडी रोकी। गाडी में एक सीट खाली थी। गाड़ी के मालिक (जो खुद गाडी चला रहा था) ने हमसे कहा, “बस एक जगह है। आप दोनों में से कोई एक को ही हम ले सकते हैं। समीर और मैं ने एक दूसरे की और देखा। तब मुझे अचानक एक बात सूझी और मैंने गाडी के मालिक से कहा, “सर, क्या आप हम दोनों को ले चलेंगे अगर हम एक ही सीट मैं बैठ जाएँ तो?”
गाडी के मालिक ने मुझे एक अजीब नजर से देखा। तब मैंने उनसे हाथ जोड़कर कहा, “हम पिछले एक घंटे से टैक्सी या बस का इंतजार कर रहे है। पर कोई टैक्सी या बस रुकी नहीं। हम ऐसा करेंगे की मैं मेरे पति की गोद में बैठ जाउंगी, इससे हम एक ही सीट रोकेंगे और किसीको कोई दिक्कत नहीं होगी। प्लीज! बारिश बहुत जोरों से हो रही है। यह एक आपात जनक स्थिति है और अगर आप हमें लिफ्ट नहीं देंगे तो पता नहीं हमें यहां कितने घंटों इंतजार करना पड़ेगा।
गाडी के मालिक ने मेरी और सहानुभूति से देखा। मैं पूरी तरह बारिश में भीगी हुई थी। उस दिन मैंने कुछ ज्यादा ही पतले कपडे पहने थे। मेरे कपडे मेरे बदन से ऐसे चिपके हुए थे की मुझे पता नहीं मैं कैसी दिख रही होउंगी। गाडी के मालिक ने कुछ देर सोचकर हमें अंदर आने को कहा। समीर ने मेरी और देखा और कुछ कहने की कोशिश कर रहा था पर मैंने पलट कर गाडी में से कोइ न देखे ऐसे होठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने का इशारा किया। वह शायद मुझे पूछने की कोशिश कर रहा था की क्यों मैंने उसे अपना पति कह कर पुकारा।
पहले समीर गाडी में घुसा और बाद में मैं उसकी गोद मैं जा बैठी। आगे एक महिला बैठी थी। उसने मुझे देखकर पीछे मुड़कर “हाई” किया। कार में सब बैठने वाले हमारी तरह पूरी तरह भीगे हुए थे।
समीर की गोद में अगली ४५ मिनट बैठना मेरे लिए एक बड़ा ही रोमांचक अनुभव रहा। मैं समीर के दोनों हाथों के बिच जकड़ी हुई थी। उसक लण्ड एकदम खड़ा होगया था और मेरी गांड की दरार में कोंच रहा था। समीर का बांया हाथ लगातार मेरे बाएं स्तन को दबा रहा था। मुझे ऐसे लगा की जैसे वह यह जान बुझ कर कर रहे थे। मेरे साड़ी के पल्लू में सब कुछ छिपा हुआ था और कोई उसे देख नहीं सकता था। मैं कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थी क्यूंकि आखिर मैंने ही उन्हें अपना पति बताया था।
उस कार ने हमें घर से करीब दो किलोमीटर दूर छोड़ दिया। अब बाकी की दुरी हमें चल कर पार करनी थी। मैं एक कदम भी चलने की हालत में नहीं थी। मुझे बहुत सरदर्द हो रहा था। मेरी आखें लाल हो रही थी। समीर ने मेरा एक हाथ और कन्धा सख्ती से पकड़ा और मुझे आधा उठाकर पूरा टेका देते हुए मुझे घसीटते घर की और चल पड़े। मैं भी लुढ़कते हुए उनके सहारे धीरे धीरे चलने लगी। जब मैं अपने घर तक पहुंची तब मुझमें एक और कदम चलने की ताकत नहीं थी।
सोसाइटी के दरवाजे पर मैं खड़ी रही, तो समीर मुझे भांप रहे थे। उस बारिश में वह मेरे पुरे बदन को देख रहे थे। मेरा हाल देखने लायक तो था ही। मेरे सारे कपडे मेरे बदन पर ऐसे चिपक गए थे की मेरी चमड़ी साफ़ दिखाई दे रही थी। मेर ब्रा और मेरा पेटीकोट ऐसे नजर आ रहे थे जैसे उनके ऊपर मैंने कुछ पहना ही नहीं था। मैंने उस दिन नायलॉन का गहरे गले वाला ब्लाउज और छोटी सी सिल्की कपडे की ब्रा और उसके ऊपर नायलॉन की ही साड़ी पहनी थी।
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साड़ी मेरी नाभि के काफी निचे बंधी हुई थी। मैंने देखा की मेरी चूँचियाँ, मेरे निप्पलं और निप्पलों के पूरी गोल घूमती हुए मेरे एरोला साफ़ साफ़ दिखाई दे रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था की जैसे उस समय बारिश में मैं समीर के सामने एकदम नंगी खड़ी हुई थी। मुझे समीर की शरारत, जो उसने कार में की थी वह याद आयी तो मैं शर्म और उत्तेजना से तार तार हो गयी। मैंने अपनी साडी ठीक की और घर जाने के लिए आगे बढ़ी।
समीर ने देखा की मैंने उसे मुझे ताकते हुए देख लिया था तो उसकी नजरे झुक गयीं। उतने में ही मुझे जोरों से छींकें आने लगीं। मेरे नाक से पानी बह रहा था। समीर ने मुझे पूछा की क्या मेरे पास सर्दी की कोई दवा है। जब मैंने मनाकिया तो उसने कहा वह जाकर तुरनत ही मेरे लिए दवाई लेकर आएगा और मुझे दवाई देकर ही फिर घर जाएगा। समीर दवाई लेने चला गया। मैं बड़ी मुश्किल से सीढ़ियां चढ़कर घर में प्रवेश कर ही रही थी की मेरे फ़ोन की घण्टी बज उठी।
पढ़ते रहिये.. क्योकि ये कहानी अभी जारी रहेगी..
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