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अब तक आपने पढ़ा..
पायल- ओह पापा.. अब जाने भी दो और वैसे भी फ़ोन के बारे में मुझे नहीं पता.. किसने किया था.. मैं तो अपने आप ही आने वाली थी। संजय- अच्छा अच्छा.. ठीक है.. अब आ गई हो.. तो अच्छे से एन्जॉय करो.. और हाँ अगर सिंगापुर घूमने का मन हो तो मेरे साथ चलो.. मैं आज रात ही काम के सिलसिले में जा रहा हूँ.. पायल- अरे पापा.. क्या आप भी.. मैं आई और आप जाने की बात कर रहे हो? संजय- बेटा काम है.. तुम भी आ जाओ वहाँ एन्जॉय कर लेना..
अब आगे..
पायल- नहीं पापा आप ही जाओ.. मैं यहाँ अपने भाइयों के साथ रहूँगी।
संजय- हाँ ये सही रहेगा.. मैंने तुम दोनों को यही बताने के लिए घर पर रोका था.. मेरे जाने के बाद कोई लफड़ा मत करना तुम दोनों.. और टाइम पर घर आ जाना। मैं यहाँ रहूँ तो कोई बात नहीं.. मगर मेरे पीछे अपनी आवारगार्दी बन्द कर दो। पिछली बार भी रात को पार्टी के चक्कर में पुलिस ले गई थे.. तुम लोग ऐसे घटिया दोस्तों को छोड़ क्यों नहीं देते?
संजय खन्ना उनको सुनाते रहे.. वो बस ‘जी हाँ.. जी हाँ..’ करते रहे, घर में दोनों शेर चूहे बन गए.. अभी इनकी यह बात चल ही रही थी कि सुनीता वहाँ आ गई.. जिसे देख कर पायल ने मुँह बना लिया और वहाँ से चली गई। सब जानते हैं इनकी नहीं बनती.. तो कोई कुछ नहीं बोला। उसके पीछे अनुराधा भी चली गई। सुनीता गुस्से में टेबल पर आकर बैठ गई और संजय को घूरने लगी।
उधर कमरे में जाकर पायल बिस्तर पर बैठ गई.. उसकी माँ पीछे-पीछे कमरे में आ गई। अनुराधा- बेटा ऐसा नहीं करते.. ऐसे खाने पर से उठना ठीक नहीं.. पायल- मॉम आप जानती हो.. मैं उसकी शक्ल भी देखना पसन्द नहीं करती.. तो क्यों वो मेरे सामने आती है? अनुराधा- बेटी भूल जाओ पुरानी बातों को.. मैं भूल गई तो तुम क्यों उस घिनौनी बात को दिल से लगाए बैठी हो? पायल- नहीं मॉम.. मैं नहीं भूल सकती और उस चुड़ैल को देखो तो.. कैसे तैयार होकर घूमती है.. ना जाने कहाँ-कहाँ मुँह मारती फिरती है।
अनुराधा ने पायल को समझाया- ऐसा नहीं बोलते और वो ये सब इसलिए पहनती है.. क्योंकि काम में तुम्हारे पापा की बराबर की हिस्सेदार है। अब बड़ी-बड़ी मीटिंग्स में जाना.. लोगों से मिलना होता है.. तो थोड़ा सज-संवर कर रहना ही चाहिए ना.. पायल जानती थी कि उसकी माँ बस उसको बहला रही है.. बाकी वो खुद अन्दर से टूटी हुई थी। मगर पायल ने ज़्यादा ज़िद या बहस नहीं की और अपनी माँ को वहाँ से भेज दिया।
खाने के दौरान संजय ने सुनीता को साथ चलने को कहा और वो मान गई। किसी ने कुछ नहीं कहा.. सब जानते हैं कि अक्सर काम के सिलसिले में दोनों बाहर जाते रहते हैं। खाने के बाद कोई खास बात नहीं हुई सब अपने कमरों में चले गए।
शाम को दोनों सन्नी से मिलने गए.. सन्नी- अरे यार कहाँ हो तुम दोनों.. कब से इन्तजार कर रहा हूँ। पुनीत ने सुबह की सारी बात सन्नी को बताई तो वो खामोश होकर बैठ गया और कुछ सोचने लगा।
रॉनी- अरे यार क्या हुआ.. अब क्या करें.. कुछ आइडिया दे? सन्नी- अब क्या आइडिया दूँ.. सारा गेम पलट गया.. तू ऐसा कर पुनीत, टोनी को कुछ पैसे देकर उसका मुँह बन्द कर दे.. और कह दे तेरी बहन नहीं मान रही है.. पुनीत- नहीं ऐसा नहीं हो सकता.. पुनीत खन्ना ने कभी किसी से हार नहीं मानी है..
रॉनी- भाई तो अब आप क्या करोगे? गुड्डी को ले जाओगे क्या वहाँ? पुनीत- नहीं रॉनी.. कुछ और सोचना होगा.. गुड्डी को नहीं ले जा सकते.. सन्नी- उसके जाए बिना टोनी मानेगा नहीं.. एक आइडिया तो है.. मगर रिस्की है थोड़ा.. पुनीत- क्या है बता ना यार?
सन्नी- देखो बिना गुड्डी को ले जाए वो मानेगा नहीं.. मगर उसको ले जाना तुम चाहते नहीं.. क्योंकि उस गेम में हर एक गेम के साथ एक कपड़ा निकालना पड़ता है.. सही ना.. रॉनी- हाँ यार यही तो बात है.. सन्नी- पुनीत तू अच्छा खिलाड़ी है… यार अगर तू हारे ही नहीं.. तो क्या दिक्कत है.. गुड्डी को ले जाने में? रॉनी- नहीं नहीं.. कभी नहीं.. अगर भाई हार गया तो?
सन्नी- अरे यार सब जानते है.. पुनीत लकी है.. कभी नहीं हारता। पुनीत- हाँ रॉनी.. बात तो सही है.. मैं हारूँगा ही नहीं.. तो गुड्डी को कुछ नहीं होगा और टोनी की बहन को चोदकर हम अच्छा सबक़ सिखा देंगे.. उस कुत्ते को.. रॉनी- ठीक है.. माना आप फाइनल गेम जीत जाओगे.. मगर एक भी राउंड हारे तो एक कपड़ा निकालना होगा और हमारी गुड्डी सबके सामने ऐसे… नहीं नहीं.. कुछ और सोचो.. यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
सन्नी- इसकी फिकर तुम मत करो.. देखो लड़की के जिस्म पर 4 कपड़े होंगे.. दो बाहर और दो अन्दर.. मेरे पास ऐसी तरकीब है.. पुनीत एक नहीं अगर 2 राउंड भी हार जाए.. तो भी हमारी गुड्डी का किसी को कुछ नहीं दिखेगा। रॉनी- सच ऐसा हो सकता है?
सन्नी ने दोनों को अपना आइडिया सुनाया.. तो दोनों खुश हो गए।
पुनीत- बस अब खेल ख़त्म.. जिस बात का डर था.. वो टेन्शन दूर हो गई। अब 2 चान्स हैं मेरे पास.. मगर देख लेना मैं एक भी नहीं हारूँगा.. रॉनी- ये सब तो ठीक है भाई.. मगर गुड्डी वहाँ आएगी कैसे.. और इस गेम के लिए मानेगी कैसे?
पुनीत- तू इसकी फिकर मत कर.. मैं गुड्डी को कैसे भी मना लूँगा.. रॉनी- बस फिर तो कोई टेन्शन ही नहीं है.. मगर ये ज़िमेदारी आपकी है.. मुझे ना कहना.. गुड्डी को मनाने के लिए.. ज़ुबान आपने दी है.. तो आप ही कुछ करोगे.. ओके.. पुनीत- अरे हाँ यार.. मगर कभी जरूरत हो तो हाँ में हाँ मिला देना..
सन्नी- ये सही कहा तुमने.. अब यहाँ से जाओ.. दिन कम हैं.. अपनी बहन को किसी तरह मनाओ.. पुनीत- यार तेरा दिमाग़ तो बहुत तेज़ चलता है.. तू ही कोई आइडिया बता ना.. सन्नी- मुझे पता था.. तू ये जरूर बोलेगा.. अब सुन गुड्डी को बाहर घुमाने ले जा.. उसका भाई नहीं.. दोस्त बन तू और अपने क्लब में भी लेकर आ.. वहाँ टोनी से मिलवा.. मैं ऐसा चक्कर चला दूँगा कि गुड्डी खुद ये गेम खेलने को कहेगी।
रॉनी- क्या बोल रहे हो सन्नी.. गुड्डी को क्लब में लाएं.. उस टोनी से मिलवाएं और गुड्डी क्यों कहेगी गेम के लिए.. मेरी समझ के बाहर है सब.. सन्नी- तुम दोनों कुछ नहीं समझते.. मैं टोनी को कहूँगा कि गुड्डी मानेगी नहीं.. अब तू हमारी मदद कर उसको मनाने में.. बस वो हमारा साथ देगा.. तो काम बन जाएगा और गुड्डी मान जाएगी.. पुनीत- यार तू पहेलियाँ मत बुझा.. तेरा आइडिया बता.. ये होगा कैसे?
सन्नी ने विस्तार से दोनों को समझाया तो दोनों के चेहरे ख़ुशी से खिल गए और पुनीत ने सन्नी को गले से लगा लिया। पुनीत- मान गया यार तेरे दिमाग़ को.. क्या दूर की कौड़ी निकाली है.. रॉनी- यार ये आइडिया तेरे दिमाग़ में आया कैसे.. गुड्डी तो मान जाएगी.. अब देखना है साला टोनी अपनी बहन को कैसे मनाता है? सन्नी- अब तुम दोनों जैसे परेशान हो गुड्डी को मनाने में… साला टोनी भी तो परेशान होगा ना.. वो भी कुछ ना कुछ जुगाड़ लगा लेगा। रॉनी- कहीं वो भी यही आइडिया ना अपना ले.. तुम उसको बताओगे तो?
पुनीत- अपनाता है तो ठीक है.. हमें क्या बस दोनों को राज़ी होनी चाहिए। उसके बाद वहाँ जीत तो हमारी ही होगी ना.. हा हा हा हा.. रॉनी- चलो यार अभी का हो गया.. अभी हमारा घर पर होना जरूरी है.. पुनीत- हाँ सही है यार.. पापा के जाने के टाइम उनके सामने रहेंगे.. तो ठीक रहेगा.. और वैसे गुड्डी को भी गेम के लिए पटाना है।
सन्नी- ओके तुम जाओ.. मगर मेरी बात का ख्याल रखना.. गुड्डी को दोस्त बनाओ.. उसके करीब जाओ और दोनों साथ में नहीं रहना.. पुनीत बस तुम उसको पटाओ.. दोनों साथ रहोगे तो उसको अजीब लगेगा और काम बिगड़ जाएगा।
दोनों वहाँ से घर चले गए.. संजय जाने के लिए रेडी हो रहे थे। ये दोनों पापा के कमरे में उनसे कोई बात कर रहे थे और पायल हॉल में अकेली बैठी हुई थी।
तभी सुनीता वहाँ आ गई और पायल के सामने आकर बैठ गई। सुनीता को देख कर पायल जाने लगी।
सुनीता- रूको गुड्डी.. आख़िर कब तक तुम मुझसे दूर रहोगी.. एक बार तुम मेरी बात तो सुन लो.. पायल- अपना मुँह बन्द रखो और मेरा नाम पायल है समझी.. तुम्हारे मुँह से ये गुड्डी शब्द अच्छा नहीं लगता। सुनीता- अच्छा ठीक है.. मगर मेरी बात तो सुन लो.. तुम जो समझ रही हो वैसा कुछ नहीं है.. पायल- बस करो.. नहीं मैं कुछ कर बैठूंगी.. अपनी बकवास बन्द रखो और जाओ यहाँ से.. सुनीता- पायल मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ.. तुम कभी मेरी बात ही नहीं सुनती.. पायल- तुम नहीं जाओगी.. मुझे ही जाना होगा… यहाँ से नहीं तुम्हारी मनहूस शक्ल देखते रहना पड़ेगा।
पायल गुस्से में वहाँ से अपने कमरे में चली गई और कुछ देर बाद संजय और सुनीता वहाँ से निकल गए। हाँ जाने के पहले संजय गुड्डी से मिलकर गया और उसका मूड खराब देख कर कुछ ज़्यादा नहीं कहा।
दोस्तो, उम्मीद है कि आपको कहानी पसंद आ रही होगी.. तो आप तो बस जल्दी से मुझे अपनी प्यारी-प्यारी ईमेल लिखो और मुझे बताओ कि आपको मेरी कहानी कैसी लग रही है।
कहानी जारी है। [email protected]
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