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लेखिका: अनजान एवम् अनाम युवती सम्पादिका एवम् प्रेषिका : तृष्णा प्रताप लूथरा (TPL) अन्तर्वासना के लक्ष लक्ष पाठिकाओं और पाठकों को मेरा नमस्कार!
मेरी पिछली रचना ‘पति की संतुष्टि में बाधा नहीं बनी’ को पढ़ने और उसके बारे में अपने विचार बताने के लिए बहुत धन्यवाद। उसी रचना को पढ़ने के बाद एक अनजान एवम् अनाम युवती ने उसके जीवन में घटी एक घटना को लिख कर मुझे भेजा और उसे प्रकाशित करवाने का अनुरोध किया। मेरे बहुत आग्रह करने के बावजूद भी उस युवती ने मुझे उसकी व्यक्तिगत एवम् निजी जानकारी के बारे में इस रचना में कुछ भी साझा एवम् प्रकाशित करने के लिए प्रतिबंधित किया है।
उस युवती के अनुरोध एवम् आग्रह का मान रखते हुए तथा उसकी गोपनीयता को बनाये रखने हेतु मैंने इस रचना के सभी पात्रों तथा स्थान आदि के नाम बदल दिए हैं। उस अनजान एवम् अनाम युवती ने उसके साथ बीती एक घटना का जो विवरण भेजा था उसको सम्पादित एवम् भाषा तथा व्याकरण सुधार के बाद का उभरा रूप मैं आप सबके लिए नीचे प्रस्तुत कर रही हूँ।
अन्तर्वासना के पाठिकाओं और पाठकों मैं आपके लिए एक अनजान एवम् अनाम युवती हूँ जिसे आप चाहें अपनी इच्छा अनुसार किसी भी नाम से पुकार सकते हैं। मैं अपने माता पिता के साथ पूर्वी भारत के एक छोटे से शहर में रहती हूँ तथा वहाँ के एक लड़कियों के स्कूल में छात्राओं को पढ़ाती हूँ।
पाँच वर्ष पूर्व मेरे माता-पिता द्वारा तय की गई मेरी शादी उसी रात को ही टूट गई क्योंकि पुलिस ने दुल्हे को विवाह मण्डप में से ही गिरफ्तार कर के उसे उसकी असली ससुराल जेल में ले गए थे। मुझे बाद में पुलिस से ही पता चला था कि वह व्यक्ति वास्तव में एक बदमाश गिरोह का सदस्य था जो लड़कियों से शादी करने के बाद उस लड़की के माध्यम से घर वालों से धन-दौलत और जायदाद की मांग करते रहते थे। जब उन्हें वहाँ से कुछ नहीं मिलता या मिलना बंद हो जाता था तब वह लोग उस लड़की को अरब देशों में लेजा कर शेख लोगों को बेच देते थे। अगर उन व्यक्तियों को उस लड़की की उचित कीमत नहीं मिलती थी तो वह उस लड़की से वेश्यावृति करवाते थे और विरोध करने पर उसका वध भी कर देते थे। मुझे उस उत्पीड़न से बचाने के लिए और अपराधियों को उचित दंड दिलाने के लिए मैं अपने देश की पुलिस की अत्यंत अनुगृहीत हूँ।
कुछ माह तक उस हादसे से हताश रहने के बाद जब मैं उस सदमे से बाहर निकली तब मैंने भविष्य में कभी शादी नहीं करने की प्रतिज्ञा ली और घर वालों को अपने निर्णय से अवगत करा दिया। घर वालों ने समझाने की बहुत कोशिश करी लेकिन मेरे अटल निश्चय के सामने सभी को घुटने टेकने पड़े और उसके बाद मैंने बीएड कर ली तथा शहर के एक स्कूल में नौकरी करने लगी।
मेरी एक छोटी बहन है मंजू जो मुझसे तीन वर्ष छोटी है और दिखने में बहुत ही सुन्दर एवम् आकर्षक है तथा सभी उसे अप्सरा भी कहते हैं। उसी मंजू की शादी दो वर्ष पहले एक बहुत ही बड़े और धनी एवम् संप्पन घर के एक बहुत ही स्मार्ट युवक सिद्धार्थ के साथ हो गई थी।
उसकी शादी के दो सप्ताह के बाद जब वह और सिद्धार्थ पहली बार फेरा डालने के लिए घर पर आये तब माँ ने चार दिन के लिए मेरा कमरा उन्हें दे दिया और मुझे उन दिनों स्टोर में रहना पड़ा था। तीन दिन तो मंजू और सिद्धार्थ मेरे कमरे में ही सोते रहे लेकिन चौथी रात को अगले दिन आने वाले बिछोह से दुखी मंजू माँ से बातें करते करते उनके पास ही सो गई।
सिद्धार्थ देर रात तक मंजू के आने की प्रतीक्षा करता रहा किन्तु जब वह नहीं आई तब उसे कमरे में अकेले ही सोना पड़ा। उस रात लगभग साढ़े ग्यारह बजे सोने से पहले मैं लघु शंका के लिए बाथरूम के भिड़े हुए द्वार को धकेलती हुई अन्दर घुसी और जो देखा उससे स्तब्ध हो गई। बाथरूम की लाइट जल रही थी और सिद्धार्थ पूर्ण नग्न रूप में अपने सिर को थोड़ा ऊपर किये तथा आँखें बंद किये पॉट के सामने खड़ा हुआ था, उसने अपना बायां हाथ पॉट की टंकी पर रखा हुआ था और वह दायें हाथ से बड़े ही प्यार से अपने सात इंच लम्बे एवम् ढाई इंच मोटे लिंग को हिला रहा था।
क्योंकि रात के उस समय मुझे घर के किसी भी सदस्य के दिखने या मिलने की सम्भावना नहीं थी इसलिए मैं सिर्फ एक बिना बाजू का टॉप और एक झीनी सी पैंटी पहने हुए बाथरूम में घुस गई थी। सिद्धार्थ को अकस्मात् ही उस हालत में देख कर मैंने अपने को एक संकोचशील स्थिति में पाया और शर्म के मारे मेरा चेहरा और कान भी लाल हो गए।
कुछ क्षणों के बाद भी जब सिद्धार्थ ने मुड़ कर मेरे ओर नहीं देखा और अपने लिंग को हिलाने में तल्लीन रहा तब मैं समझ गई कि सिद्धार्थ को मेरा बाथरूम में आगमन का पता ही नहीं चला था। लगभग दो मिनट तक तो मैं वहीं खड़े हो कर उस रोमांच भरे नज़ारे को देखती रही और उसके बाद मैं जाकर वाश-बेसिन की शेल्फ पर बैठ गई तथा सिद्धार्थ की उस क्रिया को देखने में मग्न हो गई।
उसके बलवान एवम् मज़बूत मांसल शरीर बहुत आकर्षक लग रहा था, लेकिन उसका सात इंच लंबा और ढाई इंच व्यास का तना हुआ लिंग उससे भी अधिक आकर्षक लग रहा था। सिद्धार्थ जब भी अपना हाथ पीछे की ओर ले जाता तब उसका लीची के आकार जैसा गुलाबी रंग का लिंग-मुंड बाहर निकल आता और बाथरूम की रोशनी में चमकने लगता था। और जब वह अपना हाथ आगे की ओर ले जाता तब लिंग-मुंड उसकी त्वचा में छुप जाता और वह चमक भी लुप्त हो जाती।
उस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि बाथरूम में दिवाली की बत्तियों की तरह एक लाईट जल बुझ रही है। मैं उस लुभावने दृश्य को देखने में इतनी लीन थी कि मुझे समय गुजरने का पता ही नहीं चला और मेरी तन्द्रा तब टूटी जब सिद्धार्थ का स्वर मेरे कानों में पड़ा। वह छत की ओर मुँह करके कह रहा था– ओह इश्वर, तेरी भी क्या अजब माया है। मुझे तो घरवाली चाहिए थी और तुमने यह आधी घरवाली को क्यों भेज दिया? फिर मेरी ओर देखते हुए बोला– दीदी, आप कब आईं? मुझे तो आपके आने की कोई आहाट ही नहीं सुनाई दी। कृपया मुझे इस दशा में आपके सामने खड़े रहने के लिए क्षमा कर देवें।
मैंने उसकी बात सुन कर मुस्कराते हुए कहा– अगर तुम्हारा कार्य अथवा क्रिया समाप्त हो गई हो तो तुम बाहर जाओ ताकि मैं लघु शंका से मुक्त हो सकूँ।
तभी सिद्धार्थ बेशर्मी से अपने लिंग को हिलाता हुआ नीचे बैठ गया और बोला– दीदी, आप झूठ क्यों बोल रही हैं? आपकी गीली पैंटी तो बता रही है कि आपने भी तो वहाँ बैठे बैठे वाश-बेसिन में ही लघु-शंका कर ली है। उसकी बात सुन कर मुझे एहसास हुआ कि उसका संकेत मेरी चौड़ी जाँघों के बीच में से दिख रही मेरी पैंटी की ओर था।
हड़बड़ाहट में जब मैंने अपनी पैंटी की ओर देखा तो मैंने पाया कि मेरा एक हाथ मेरी योनि के ऊपर था और उसकी बड़ी ऊँगली पैंटी के एक ओर से उसमें घुसी हुई थी।
मैंने झट से ऊँगली को बाहर निकाल कर जब अपने हाथों से अपनी पैंटी को छुपाने की कोशिश करी तब मुझे उसका गीलापन महसूस हुआ। मैं समझ गई कि सिद्धार्थ को लिंग हिलाते देख कर मेरी उत्तेजना भी जागृत हो गई होगी और अनजाने में मैंने अपनी ऊँगली योनि में डाल दी होगी जिससे उसमें से पानी रिसना शुरू हो गया होगा।
मैं तुरंत शेल्फ से उतर कर खड़ी हो गई और दरवाज़े की ओर जाने ही लगी थी कि तभी सिद्धार्थ उठ कर मेरे पास आया और मेरी बाजू पकड़ कर मुझे रोका और कहा– दीदी, मैंने तो मंजू से मेरी मदद के लिए कहा था लेकिन वह खुद नहीं आई बल्कि उसने आपको यहाँ आने की तकलीफ दे दी। दीदी, क्या मेरे इस कार्य में आप मेरी सहायता करेंगी?
मैं एक साधरण परिवार की एक सामान्य युवती हूँ जिसे किसी भी अन्य युवती के तरह युवा शरीर की भूख सताती रहती है और मैं उसे मिटाने का प्रयास अपनी ऊँगली से करती भी रहती हूँ। आज जब सिद्धार्थ ने मुझसे सहायता मांगी तो मेरे शरीर की वह भूख जाग उठी और मैं सोच में पड़ गई कि ‘क्या करूँ और क्या नहीं करूँ!’
मेरे सामने दो विकल्प थे, जिनमें से एक था कि मैं सिद्धार्थ के साथ पूरा सहयोग करूँ और यौन संसर्ग करके दोनों की भूख मिटा कर संतुष्टि पाऊँ। तथा दूसरा विकल्प था कि मैं अपने को उसके साथ सिर्फ पारस्परिक हस्त-मैथुन तक ही सीमित रखूँ।
क्योंकि मैं अपनी छोटी बहन मंजू के साथ कोई विशवासघात नहीं करना चाहती थी इसलिए निश्चय किया की मुझे दूसरे विकल्प तक ही सीमत रहने की सहमति देनी चाहिए।
मुझे सोचते हुए देख कर सिद्धार्थ बोला– दीदी आप रिश्ते में मेरी साली यानि की आधी घरवाली भी तो हो, फिर इतना भी क्या सोचना, अगर आपकी सहमति हो तो मुझे जल्दी से आपके कपड़े उतारने की अनुमति दे दीजिये। मैं एक कदम पीछे हटते हुए बोली- नहीं, मैं मंजू या और किसी के कहने पर नहीं आई हूँ। मुझे मेरी लघु-शंका यहाँ ले कर आई है।
मेरी बात सुन कर सिद्धार्थ बोला- दीदी, क्या आप मेरी इस क्रिया में सहयोग नहीं देंगी? मैं तो सोच रहा था की इस समय आप भी उत्तेजित हैं और मेरी जैसी समरूप क्रिया भी कर रही थी। क्यों नहीं हम दोनों पारस्परिक एक दूसरे की क्रिया में सहायता करें और आसीम आनन्द एवम् संतुष्टि पायें?
उसकी बात सुन कर मैंने अपना निर्णय कुछ इस प्रकार दिया- तुम्हें सहयोग एवम् सहायता करने के लिए मेरे कपड़े उतारने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह तुम्हारी इस क्रिया में बाधा नहीं बनेगे।
फिर मैंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- लेकिन मेरा सहयोग सिर्फ तुम्हारे साथ हम दोनों द्वारा एक दूसरे का पारस्परिक हस्त-मैथुन तक ही सीमित रहेगा, इसलिए तुम इससे आगे बढ़ने के लिए ना तो कोशिश ही करना और ना ही कोई अनुरोध। मेरी बात सुन कर सिद्धार्थ थोड़ा मायूस तो हुआ और बोला- ठीक है दीदी जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। लेकिन पारस्परिक हस्त-मैथुन के लिए क्या मैं आप की पैंटी उतार सकता हूँ?
उसकी बात सुन कर मुझे थोड़ा संकोच तो हुआ लेकिन अपने आप को नियंत्रण में रखते हुए कहा- ठीक है तुम उसे उतार सकते हो। मेरा उत्तर सुनते ही वह तुरंत फर्श पर बैठ गया और मेरी पैंटी को दोनों तरफ से पकड़ कर नीचे की ओर सरकाने लगा।
मेरी पैंटी दोनों तरफ से सरक कर जब मेरी जांघों तक पहुँच कर रुक गई तब उसने मेरी ओर देखा तो मैंने अपनी टांगें चौड़ी कर दी ताकि उनके बीच में फंसी पैंटी का भाग भी नीचे सरक सके। पैंटी के टांगों के बीच में से मुक्त होते ही सिद्धार्थ ने उसे झटके से नीचे खींच कर मेरे पैरों तक पहुँचा दी और आगे झुक कर मेरे केशहीन जघन स्थल को चूम लिया।
उसकी इस हरकत से मैं स्तब्ध हो गई और जल्दी में एक कदम पीछे की ओर लिया ही था कि मेरे पैरों में फंसी पैंटी के कारण मैंने अपना संतुलन खो बैठी। इससे पहले कि मैं लड़खड़ा कर नीचे गिरती, मुझे सिद्धार्थ के मज़बूत हाथों ने थाम लिया और मैं उसकी बाहों में झूल गई।
मैंने जब अपने को सम्भाला तो पाया कि उस अकस्मात् की पकड़ा धकड़ी में मेरा टॉप ऊँचा हो गया था और मेरे दोनों स्तन बाहर निकल कर बाथरूम की तेज़ रोशनी में चमक रहे थे। सिद्धार्थ मेरे सफ़ेद स्तनों और उन पर उभरे काले रंग के चुचूकों को नग्न देख कर मन्त्र-मुग्ध हो कर देखता रहा और बोल पड़ा- दीदी, आपके स्तन तो वास्तव में आराध्य हैं। मंजू के स्तन भी इतने सुंदर नहीं है जितने आपके हैं। लगता है कि इन्हें किसी बड़े मेधावी एवम् प्रतिभाशाली मूर्तिकार ने बड़े ही प्यार से तराशा है।
फिर उसने मुझे सीधा खड़े होने में सहायता करी और कहा- दीदी, अब तो मैं आपका हर अंग बहुत ही पास से देख चुका हूँ इसलिए अब तो इन्हें परदे में रखने का कोई औचित्य ही नहीं रह गया है। अब तो आप मुझे आपका टॉप उतारने की अनुमति भी दे ही दीजिये।
सिद्धार्थ के द्वारा दिए गए तर्क को स्वीकार करते हुए जैसे ही मैंने उसे मेरा टॉप उतारने की अनुमति प्रदान कर दी और उसने एक क्षण में ही उसे ऊँचा करते हुए मेरे शरीर से अलग कर दिया। अब हम दोनों पूर्ण रूप से नग्न हो कर एक दूसरे के सम्मुख खड़े थे और एक दूसरे के अंगों को निहार रहे थे।
मैंने देखा कि सिद्धार्थ का शरीर बहुत ही मांसल एवम् मज़बूत था और उसकी भुजाओं तथा टांगों एवम् जाँघों की मांसपेशियाँ उभरी हुई थीं। इतने में मेरा ध्यान उसके लिंग की ओर गया तो मैंने देखा कि उत्तेजना की वजह से वह एकदम तना हुआ था और उसकी नसें भी उभरी हुई थीं।
तभी सिद्धार्थ ने मेरे हाथ को पकड़ कर अपने लिंग पर रखते हुए कहा- दीदी, क्या हम सारी रात ऐसे ही खड़े एक दूसरे को देखते रहेंगे? अब आप जल्दी से पारस्परिक हस्त-मैथुन का श्री गणेश तो कर दीजिये। क्योंकि मैंने अपने जीवन में पहली बार किसी पुरुष के लिंग को हाथ लगाया था इसलिये उसका स्पर्श भी मुझे बहुत ही अजीब लग रहा था। फिर भी मैंने उसकी बात सुन कर और बिना कोई उत्तर दिए उसके लिंग को पकड़ लिया तो पाया कि वह एक लोहे की रॉड की तरह सख्त था।
मैंने अहिस्ता से सिद्धार्थ के लिंग को सहलाना शुरू किया लेकिन इस क्रिया को करने के बारे में अधिक पता नहीं होने के कारण उसका लिंग बार बार मेरे हाथ से फिसल जाता था।
यह देख कर सिद्धार्थ बोला- दीदी, आप यह कैसे कर रही हैं? मुझे लगता है कि आप मेरा हस्त-मैथुन करना नहीं चाहती है। मैंने उत्तर में कहा- नहीं ऐसी बात नहीं है, लेकिन मुझे किसी पुरुष का हस्त-मैथुन करना नहीं आता है। मैंने आज पहली बार किसी का लिंग पकड़ा है और उसका हस्त-मैथुन कर रही हूँ।
मेरी बात सुन कर सिद्धार्थ ने विस्मय की दृष्टि से मुझे देखा और फिर अपने हाथ को मेरे हाथ पर रख कर दबा दिया और बोला– अगर आप इसे ढीला पकड़ कर हिलाएँगी तो यह फिसलता ही रहेगा। आप इसे कस कर पकड़िये और जोर से हिलाइए ताकि मुझे रगड़ लगे। जैसे सिद्धार्थ ने बताया मैंने उसी तरह उसके लिंग को कस कर पकड़ लिया और जैसा मैंने उसे हिलाते हुए देखा था वैसे ही हिलाना शुरू कर दिया।
क्योंकि हम दोनों के बीच में कुछ फासला था इसलिए मुझे और सिद्धार्थ को कुछ कठिनाई आ रही थी इसलिए उसने अपनी दाईं बाजू को मेरे कन्धों पर रख कर मुझे अपने निकट खींच लिया। इस निकटता के कारण मेरा बायाँ स्तन सिद्धार्थ की छाती के दाईं भाग से छूने लगा था और जब मैं लिंग हिलाती थी तब वह हम दोनों के शरीर के बीच में होने के कारण दब जाता था। जब मैं सही विधि से सिद्धार्थ का हस्त-मैथुन करने लगी तब उसने अपना बायाँ हाथ मेरे जघन-स्थल पर रखा और उसी हाथ की बड़ी ऊँगली को मेरी योनि की ओर बढ़ा कर मेरे भगांकुर को ढूँढने लगा।
जब मुझे एहसास हुआ की वह मेरे भगांकुर को ढूंढने में असमर्थ हो रहा है तब मैंने अपनी टाँगे थोड़ी चौड़ी कर दी जिससे सिद्धार्थ को कुछ सुविधा हो जाए। मेरी जाँघों के बीच में जगह मिलते ही उसकी ऊँगली मेरी योनि के होंठों को भेदती हुई सीधा मेरे भगांकुर तक पहुँच कर उसे सहलाने लगी थी।
सिद्धार्थ के शरीर से चिपट कर उसके लिंग को हिलाने और उस द्वारा मेरे भगांकुर को सहलाने से मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी तथा मैंने अपनी चुचूकों को सख्त होते हुए महसूस किया।
उधर सिद्धार्थ का लिंग-मुंड उसकी त्वचा से बाहर आ गया और फूलने लगा था क्योंकि उसका व्यास उसके लिंग से अधिक हो गया था। हम दोनों को चुपचाप एक दूसरे को हिलाते अथवा सहलाते हुए पांच मिनट हो गए थे तभी सिद्धार्थ ने अपनी उस ऊँगली को भगांकुर से हटा कर मेरी योनि के अन्दर डाल दी और मेरे जी-स्पॉट को कुरेदने लगा।
उसके ऐसा करने से मेरी उत्तेजना में वृद्धि होने लगी और मेरे शरीर में कम्पन की लहरें उठने लगी तब वह अपने अंगूठे से मेरे भगांकुर को भी सहलाने लगा। सिद्धार्थ के इस दोहरे आक्रमण से मेरी उत्तेजना में कई गुना बढ़ोतरी होने लगी और मेरे शरीर के अंगों में एक प्रकार की गुदगुदी एवम् कम्पन होने लगा था।
मैंने उस पर काबू पाने के लिए सिद्धार्थ के लिंग को और भी अधिक कस कर पकड़ लिया तथा हिलाने की गति को भी बहुत तेज़ कर दिया। इस क्रिया को अभी छह-सात मिनट ही हुए थे की शरीर की इस गुदगुदी एवम् कम्पन के कारण मेरे मुख से सिसकारियाँ निकलने लगी थे और मेरा शरीर कुलबुलाने लगा।
मेरी सिसकारियाँ सुन कर और शरीर के कुलबुलाने को महसूस कर के सिद्धार्थ की उत्तेजना भी चरम-सीमा पर पहुँच गई और उसके मुख से भी आवाजें निकलने लगी। तभी मेरे उदर के नीचे वाली माँस-पेशियाँ खिंचने लगी और योनि के अन्दर सिकुडन महसूस होने लगी तथा मेरी टांगें अकड़ने लगी थी। मुझे अपने आप को संतुलन में रखने में कठनाई अनुभव होने लगी और मैं सिद्धार्थ से और भी कस कर चिपक गई तथा उसके लिंग को अधिक तीव्रता से हिलाने लगी।
दो मिनट के अंतराल में ही मेरे और सिद्धार्थ के मुख से कुछ ऊँचे स्वर में सिस्कारिया एवम् हुंकार निकलने लगी थी। उसी समय मेरे उदर के नीचे भाग की माँस-पेशियाँ एकदम से खिंच गई और मेरी योनि ने पूरी तरह से सिकुड़ कर सिद्धार्थ की ऊँगली को जकड़ लिया। मेरी दोनों टाँगें ऐंठ गई और एड़ियाँ ऊपर उठ गई जिस कारण मैं अपना संतुलन खोकर गिरने वाली थी तभी सिद्धार्थ ने मुझे अपने शरीर के साथ जकड़ कर संभाला। उस बहुत ही महत्वपूर्ण क्षण में मेरी दोनों आँखें बंद हो गई, सांसें तेज़ हो गई और योनि में अत्यधिक सिकु्ड़न होने के साथ ही उसमें से रस का स्खलन होने लगा।
तभी मेरे हाथ में पकड़े सिद्धार्थ के लिंग में मुझे स्पंदन का अनुभूति हुई और साथ ही मुझे अपनी जांघ पर कुछ गर्मी महसूस हुई। जब मैंने चौंक कर नीचे देखा तो पाया कि सिद्धार्थ का लिंग झटकों के साथ अपने वीर्य की बौछार मेरी जांघ पर कर रहा था। जब मैं उस वीर्य की बौछार से बचने के लिए उसके रास्ते से हटने लगी तो हट नहीं सकी क्योंकि सिद्धार्थ ने बहुत कस के अपने साथ जकड़ रखा था तथ उसने एक हाथ में मेरा स्तन भी थाम रखा था।
छह-सात बार बौछार करने के बाद जब वीर्य स्खलन बंद हो गया तब मैंने लिंग को छोड़ कर अपने को सिद्धार्थ से अलग करने की चेष्टा करी। सिद्धार्थ ने मेरे स्तन को छोड़ दिया और अपनी पकड़ को ढीला कर दिया तथा अपनी ऊँगली को मेरी योनी से बाहर निकाल कर अपना हाथ वहाँ से हटा लिया।
उसके हाथ को देख कर मुझे हैरानी हुई क्योंकि वह बहुत गीला था और ऐसा लग रहा था कि जैसे उसने मेरी योनि में से हुए रस-स्त्राव से अपना हाथ धोया हो। सिद्धार्थ अपने उस हाथ को अपने मुंह में लगा कर चाटने लगा और बोला- दीदी, आपका रस तो अमृत है। सच में यह मंजू के रस से बहुत ज्यादा मीठा है तथा कहीं अधिक स्वादिष्ट भी है।
इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती उसने बहुत ही फुर्ती से मेरे उस हाथ की उँगलियों को जिस पर उसका वीर्य लगा था मेरे मुँह में ठूंस दीं और कहा- ज़रा आप मेरे वीर्य-रस को चख कर बताइये कि इसका स्वाद कैसा है? सब कुछ इतनी जल्दी से हुआ कि मेरे न चाहते हुए भी उसका रस मेरे मुँह के अन्दर लग गया जिससे मुझे उबकाई आ गई। मैंने तुरंत उस रस को थूकते हुए उससे कहा- सिद्धार्थ, यह पहला अवसर है कि मैंने किसी पुरुष को वीर्य स्खलित करते हुए देखा है। जब मुझे वीर्य के स्वाद के बारे में पता ही नहीं तो मैं तुम्हारे वीर्य के बारे में कैसे कुछ बता सकती हूँ।
मेरी बात सुन कर सिद्धार्थ बोला- दीदी, इस क्रिया में मेरी सहायता करने के लिए मैं आपका बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ। सच बताऊँ तो आज मेरे जीवन का सब से आनंदमयी हस्त-मैथुन हुआ है। आज तक मेरा इतना वीर्य नहीं निकला जितना आज निकला है।
फिर मेरे स्तनों पर हाथ रखते हुए कहा- क्या मैं आपको संतुष्ट कर सका या नहीं, यह तो बता सकती हैं? मैंने उसके हाथों को अपने शरीर से अलग करते हुए मैंने कहा- सिद्धार्थ, मैंने तुम्हारे अनुरोध पर तुम्हारी क्रिया में सहायता की है अपनी संतुष्टि के लिए नहीं और यह बात अब यहीं पर समाप्त होती है।
इतना कह कर मैंने नल चला कर अपनी जाँघों और टांगों पर लगे सिद्धार्थ के वीर्य को साफ़ किया तथा अपनी योनि को अच्छे से धोकर कपड़े पहने और बाथरूम से बाहर आ गई।
अपने कमरे में पहुँच कर मैं बिस्तर पर लेटी बहुत देर तक सोचती रही और अपने से एक प्रश्न करती रही- क्या मैंने सिद्धार्थ के साथ पारस्परिक हस्त-मैथुन करके ठीक किया या गलती करी थी?
अगली सुबह मंजू और सिद्धार्थ के जाने के बाद मैं फिर से अपने कमरे में रहने लगी और जब भी उस बाथरूम में जाती तो उस रात का दृश्य एक चलचित्र की तरह मेरी आँखों के सामने घूम जाता। हालाँकि उस दिन के बाद इस तरह की कोई घटना मेरे साथ नहीं घटी है लेकिन आज तक मुझे अपने उस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला है और शायद जीवन भर मिलेगा भी नहीं।
तो अन्तर्वासना के सम्मानित पाठिकाओं और पाठकों मुझे आशा है कि आपको उस अनजान एवम् अनाम युवती की यह रोचक रचना अच्छी लगी होगी। आपके विचारों का स्वागत है और आप अपने सन्देश [email protected] या [email protected] पर भेज सकते हैं।
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