This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
सर्व प्रथम सभी पाठकों को मेरा सादर प्रणाम.. साथ ही अन्तर्वासना को मेरी पहली कहानी को दीर्घकालीन बहुलोकप्रिय रसभरी कहानियों के संग्रह में शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद।
मेरा नाम प्रेम है.. मैं दिल्ली का रहने वाला हूँ। यह मैं पिछले तीन सालों से अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। शुरू से लेकर अब तक शायद ही कोई कहानी रही होगी.. जो मैंने नहीं पढ़ी हो। मैं इस बात का गवाह हूँ कि ब्लू-फिल्म देखकर जितना रस नहीं आता.. उतना रात को अन्तर्वासना डॉट कॉम की कृतियों को पढ़कर आता है।
यह मेरी प्रथम कहानी है.. और मैं वादा करता हूँ कि मेरी सारी कहानियाँ शत-प्रतिशत सही होंगी.. क्योंकि मैंने अपनी चौबीस साल की जिन्दगी में जो पाया है.. वही आपके सामने बयान करने का ख्वाहिशमंद हूँ।
मेरा उद्देश्य सिर्फ आपका मनोरंजन करना ही नहीं बल्कि वास्तविकता से अवगत कराना भी है। इसे मैं अपना कर्तव्य मानता हूँ.. किसी औरत की आबरू ही उसके लिए सब कुछ होती है.. इस बात को मद्देनजर रखते हुए मैं यहाँ सिर्फ नाम में परिवर्तन करूँगा, बाक़ी सारी बातें यथासंभव सत्य होंगी। तो आइये लुत्फ़ उठाइए मेरी सच्ची अन्तर्वासना का..
देवियों और सज्जनों.. आप अपने सारे हिलते-डुलते और वासना से कांपते हथियारों को थामकर बैठ जाइए.. क्योंकि बहुत हो गई भूमिका.. अब शुरुआत होने जा रही है जंग की.. हाँ जी लंड और चूत की जंग.. जिसकी शुरुआत तो उस युग से शुरू हो गई थी.. जब इंसानों को ये तक नहीं पता था कि रिश्ते क्या होते हैं.. शर्म किस चिड़िया का नाम है.. उन्हें तो सिर्फ पता था कि सम्भोग करना है और सिर्फ सम्भोग ही होता था..
मैं दिल्ली के एक कॉलेज में इंजीनियरिंग का छात्र हूँ। कद से छ: फिट लम्बा.. खासा बलिष्ठ.. या फिर यूँ कहें कि एक अच्छे व्यक्तित्व का मालिक हूँ.. तो यह कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हर लड़की मेरी पर्सनालिटी और हाज़िरजवाबी की तारीफ़ करती है।
मेरा नाम तो प्रेम है.. जो आपने सुना ही होगा हा हा हा.. क्योंकि पहले ही बता चुका हूँ। मुझे पता है आपको सब्र नहीं हो रहा है.. सो सीधे अपनी पहली कहानी पर आता हूँ।
शीतल नाम था उसका.. मैं उसे तब से चाहता था.. जब मेरा लंड नुन्नी हुआ करता था। मेरी और शीतल की दोस्ती बचपन से थी.. पर उम्र के साथ ये प्यार में बदल गई और दसवीं के बाद मैंने उसे प्रपोज कर ही डाला। वो मान भी गई।
हम दोनों एक-दूसरे को बड़ी शिद्दत से टूटकर चाहते थे। सच कहूँ.. मैं उसे सात्विक प्रेम करता था.. मेरे मन में उसके लिए कोई दुर्भावना नहीं थी। हम छुप-छुप कर मिलते थे.. एक-दूजे को बड़े प्यार से छूते थे और हमारी मोहब्बत ज्यादातर आँखों से ही ब्यान होती थी।
वो खिलकर जवान और खूबसूरत हो गई थी.. उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हिरण के समान थीं.. बदन दूध सा सफ़ेद.. उसका सीना और चूतड़ों में बिल्कुल तारतम्य पूर्वक विकास हुआ था। एक जितना आगे.. दूजा उतना ही पीछे उठा हुआ था। उसके नागिन से लहराते काले रेशमी बाल जो जरा घुंघराले से भी थे।
वक़्त ने करवट ली और मैं इंजीनियरिंग पढ़ाई पूरी करने बाहर चला गया। अब शुरू होती है.. मेरी अन्तर्वासना की दास्तान..
हम रोज़ फोन पर बातें किया करते थे.. कभी-कभी डबलमीनिंग बातें भी कर लिया करते थे.. पर फिर भी मैं उसके बारे में सेक्स वाली फीलिंग नहीं आने देता था।
एक दिन मुझे अपने बचपन के दोस्त से पता चला कि मेरे जाने के बाद उसकी जिन्दगी में कोई और आ गया है। मैं बौखला गया.. मेरा प्यार अचानक नफरत में बदलने लगा। आखिर हमारी सात साल की मोहब्बत का ये सिला दिया उसने मुझे..!
मैं उसी पल उसे फोन लगाया.. पर वो कहीं और बिजी थी। बड़ी मुश्किल से एक घंटे के बाद उसने फोन उठाया और पूछने पर बहाने बनाने लगी। मैंने अपना गुस्सा जाहिर नहीं होने दिया क्योंकि मेरे दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। मैंने सिर्फ उससे मिलने की बात कही और बड़ी मुश्किल और प्लानिंग से उसे राज़ी किया। वो मान गई।
मैंने उसी वक़्त ट्रेन पकड़ी और आ पहुँचा उसके घर.. उसके पापा ऑफिस गए हुए थे.. माँ रिश्तेदारी में थी.. और एक छोटा भाई था जो स्कूल गया हुआ था।
हमारे पास सिर्फ दो घंटे थे.. मैंने जाते ही उसे सीने से लगा लिया। दिन के ग्यारह बजे थे और उस वक़्त किसी अनजान मोहल्ले में जाना कितना जोखिम भरा था। पर उस वक़्त मेरे मन में सिर्फ मेरे साथ हुई बेवफाई की नफरत थी.. उसने मुझे अपने से दूर किया और रूहअफ्ज़ा बनाने चली गई.. क्योंकि बहुत गर्मी थी.. मेरा मन तो कहीं और ही था.. आज तो मैं उसे निम्बू की तरह निचोड़ने का फैसला कर ही चुका था।
मैंने रूहअफ्ज़ा एक ही घूंट में ख़त्म कर डाला और उसे पकड़कर पागलों की तरह बेतहाशा चूमने लगा। वो भी आँखें बंद किए लम्बी लम्बी ‘आहें..’ भरने लगी। मेरे चूमने से वो गरम होने लगी। मैंने अपने जूते ड्राइंग रूम में उतार फेंके और उसे उठा कर सीधे बेडरूम में लाकर पटक दिया। वो शायद कुछ कहना चाहती थी.. पर मैंने उसे कुछ कहने ना दिया और आदमखोर शेर की तरह उसके जिस्म पर टूट पड़ा।
मैंने उसके बालों को जोर से पकड़ कर खींचा और उसके रसभरे होंठों को पीने लगा। वक़्त का तो पता नहीं.. पर जब उसकी साँसें फूलने लगी.. तभी जाकर हम अलग हुए। मैंने उसे लिटा दिया और एक ही झटके में उसकी कमीज़ उतार दी।
उसने सफ़ेद ब्रा पहन रखी थी। दो सेकंड के लिए तो मैं उसकी खूबसूरती देखकर एकदम पत्थर सा जम गया.. फिर मैं उसकी चूचियों को मसलने लगा.. मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसकी ब्रा खींच कर उतारनी शुरू कर दी.. पर मुझसे ब्रा का हुक खुल ही नहीं रहा था।
उसने कहा- रुको.. मैं उतारती हूँ। पर मेरे भीतर का शैतान कहाँ मानने वाला था। मैंने उसकी ब्रा खींचकर फाड़ दी।
तभी ऐसा लगा कि दूध में ढेर सारा मक्खन रखा हो। उसके दो बेशकीमती उभार और उन पर दो छोटी-छोटी चैरियां रखी हुई थीं। मेरी कल्पना से भी परे खूबसूरत और मादक जिस्म मेरे सामने अपनी छटा बिखेर रहा था।
मैं तो बस पूरा का पूरा खा जाना चाहता था.. इस दूध और मलाई के शेक वाले केक को.. चूस-चूसकर.. चुसक-चुसक कर मैंने उसकी चूचियों को लाल कर दिया।
वो तो आँखें बंद किए ‘आअह्ह्ह.. उम्म्माआह.. स्स्स्स्स्स..’ पागल हुए जा रही थी।
मैंने अपनी जीभ से उसके सारे बदन को चाटना शुरू किया। मैंने उसकी पेट और पीठ पर उसके गर्दन पर कम से कम चार सौ चुम्बन तो जड़े ही होंगे। न जाने कितनी बार अपने दांतों से काटा भी होगा.. उसे मुझे याद नहीं।
मुझे बस य़ाद है.. तो बस उस वक्त का परमसुख.. जो उसे जितना बेकरार कर रहा था.. उससे कहीं ज्यादा मुझे उत्तेजित कर रहा था।
अब बारी थी उसकी लैगिंग्स उतारने की.. मैंने एक ही झटके में उसकी इलास्टिक वाली पजामी उतार फेंकी। उसने नीचे पैन्टी पहनी ही नहीं थी शायद.. या पता नहीं लैगिंग्ज़ के साथ वो भी निकल गई होगी.. मैंने ध्यान नहीं दिया.. क्योंकि मेरा ध्यान सिर्फ उसकी चिकनी चूत पर था।
बिल्कुल चिकनी.. जैसा कि एक छोटी बच्ची की होती है.. नर्म मुलायम.. चमकती.. पर बिल्कुल कामररस से भरी हुई। चूत को देख कर ऐसा लग रहा था.. जैसे नई गुलाब की दो पंखुरियों पर ओस की ढेर सारी बूँदें आ जमी हों। मेरे हाथ उसकी चूचियों पर तैनात हो चुके थे और मेरा मुँह उसकी जाँघों के बीच लगा हुआ था, उस ओस की बूँद को पी जाना ही मेरा एकमात्र लक्ष्य था।
वो चुदासवश कमर उठा रही थी.. और मैं अपनी पूरी जीभ उसकी नई नवेली चूत में घुसा रहा था। करीब दस मिनट तक मैं ऐसे ही उसकी चूत चूसता रहा। मैंने उसे अपना लण्ड चूसने को कहा तो उसने मना कर दिया। मेरे मन का गुस्सा और बढ़ गया। मेरा छ इंच का लण्ड गुस्से से तमतमाने लगा.. लौड़े का सुपाड़ा बिल्कुल लाल हो गया।
मैंने आव देखा न ताव और उसकी कमर के नीचे एक तकिया लगा कर अपना लंड उसकी फुद्दी में डालने लगा.. पर पहली बार के कारण असफल हुए जा रहा था।
मुझे उसकी चूत अपने लंड के सामने छोटी सी लग रही थी.. मैंने अपने सुपारे पर अपना थूक लगाया और एक और बार कोशिश करने लगा। मेरे लंड का सुपारा इस बार एक इंच ही अन्दर गया होगा कि ये क्या.. उसकी चूत की गर्मी और कसावट से पता नहीं मेरा सारा माल एकदम से फचफचाते हुए निकल पड़ा।
सच कहूँ दोस्तो.. उस वक़्त मुझे बहुत डर और शर्मिंदगी महसूस हुई कि कहीं मैं नामर्द तो नहीं हूँ.. कहीं ज्यादा मुठ्ठी मारने से तो इतनी जल्दी स्खलित नहीं हो गया.. पर शायद पहली बार किसी नंगी लड़की का अपने सामने मुलायम बदन देख सबके साथ यही होता है।
मैंने हार नहीं मानी और इस बार बाथरूम में जाकर ‘सू.. सू..’ करके वापस आय़ा। मेरे एक दोस्त ने बताया था कि स्खलित होने के बाद सूसू करने से लंड जल्दी खड़ा हो जाता है।
मैंने उसकी चूत में एक ऊँगली डाली.. वो चली गई.. मैंने दो डालीं.. वे भी चली गईं।
मैंने फिर अपनी दोनों उंगलियां डालकर उसकी चूत का जायजा लिया और उसकी बच्चेदानी को भी छुआ। दस मिनट तक अपनी उंगलियां अन्दर-बाहर करके मैंने उसे स्खलित कर दिया।
फिर मैंने अपना लंड जबरदस्ती शीतल के मुँह में पेल दिया। पहले तो वो नानुकुर कर रही थी.. बाद में फिर वो मान गई। आआह.. ओह्ह्ह्ह.. क्या बताऊँ दोस्तों.. कैसा लगा.. जैसे जन्नत में आ गया हूँ.. और कोई परी अपने गोल-गोल छल्लेदार होंठों से मेरा लंड चूस रही हो।
अब तो उसे भी लंड चूसने में मजा आने लगा था.. यकीन मानिए दोस्तो.. सिर्फ दो मिनट में मेरा पप्पू दुबारा खड़ा हो गया और इस बार उसका रूप पहले से भी ज्यादा भीषण लग रहा था। मैंने इस बार उसे बिस्तर पर लिटाया और खुद नीचे खड़ा हो गया। उसके दोनों पैरों को उठा कर अपने कंधे पर रखा और बेरहम शिकारी बन कर अपना लंड उसकी चूत पर टिका दिया। अब एक जोर का धक्का मारा.. ‘आह्ह्ह.. ईह्ह्ह्ह.. मर गई प्रेम..’
मुझे ऐसा लगा कि मेरा लंड किसी गरम छल्ले में जा अटका हो। हम दोनों की सांसें एक साथ थम सी गईं। उसके होंठ और मेरे होंठ आपस में सिल गए। मैंने उसे चूमना चालू रखा और धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू कर दिया।
फिर मुझे इसकी बेवफाई याद आ गई.. न जाने मुझे क्या हुआ.. मैंने पूरे गुस्से के साथ अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी।
सारा कमरा और घर ‘चुउभ्ह.. चुउब्हा..’ की आवाज़ से गूंज उठा। आवाज़ इतनी तेज थी कि यदि उस वक़्त कोई बाहर सड़क पर भी गुज़र होता.. तो वो सुन लेता।
उसने अपनी टाँगें रंडियों की तरह पूरी खोल लीं और चूतड़ों को उठाते हुए कहने लगी- प्रेम हाँ.. हाँ.. इसी तरह चोदो.. और अन्दर डालो.. फाड़ दो मेरी चूत.. मैंने कहा- साली आज नहीं छोडूंगा.. और सारी कसक निकाल लूँगा.. फाड़ दूंगा तेरी चूत.. आह्हाअह.. ले.. पूरा ले..
सच बताऊँ मुझे तो वो इस वक़्त किसी रंडी से कम नहीं लग रही थी, अपनी सील तो उसने पहले ही तुड़वा रखी थी पर मैं अपनी बेवफाई का बदला लेने में जुटा हुआ था। मैंने उसे धक्के मारना जारी रखा.. इस बीच लगातार उसकी चूत पानी छोड़े जा रही थी। उसकी करतूत को सोचकर न जाने कहाँ से मुझमे असीम ताकत आ गई थी और मैंने उसे जोर-जोर से चोदना शुरू कर दिया।
कुछ ही देर बाद वो थक कर निढाल हो गई और मैंने अपना लवड़ा बाहर निकाल लिया।
उसकी गांड बहुत सेक्सी थी.. मैंने तेल लेकर उसकी गान्ड में उंगलियों से लगाकर.. अपना लंड अन्दर पेलने लगा। उसे बहुत दर्द हो रहा था.. पर मुझे इसकी ज़रा भी परवाह नहीं थी।
उसकी गाण्ड थोड़ी सी फट भी गई.. मैंने अपना लंड बाहर निकला.. तो पाया कि उस पर खून और थोड़ी सी पॉटी लगी हुई है। मुझे उस वक़्त जरा भी घिन नहीं आई। मैंने फिर थोड़ी सी रहमदिली दिखा कर पीछे से ही लंड उसकी चूत में फिर से पेल दिया।
आअह्ह्ह्ह.. धक्के पर धक्के.. धक्के पर धक्के.. हम दोनों का बदन बिल्कुल थरथराने लगा.. एकदम काँपने लगा।
काफ़ी देर के बाद मेरा शरीर फिर से अकड़ने लगा, मैंने पूछा- अपना पानी कहाँ निकालूँ? उसने कहा- मेरे मुँह में डाल दो। मैंने अपने दोनों पैर बिस्तर पर रखे उसके पैरों को अपने हाथों से उसके सीने से लगाकर मैं बेरहमों की तरह अपने अंतिम धक्के मारने लगा। करीब बीस धक्कों के बाद मेरे लंड ने अपना नमकीन पानी उसके चेहरे पर उसकी आँखों पर.. उगलना शुरू कर दिया। मानो जिस हसीन चेहरे से मैं प्यार करता था.. उसके हर एक इंच पर मैं अपने प्यार के तेज़ाब से अपनी मुहर लगा देना चाहता था। उसके मुँह में जितना पानी आया.. वो सारा गटक गई। वो जैसे-तैसे उठकर मुस्कुराते हुए बस बोली- चुदाई करने आए थे या …? इस तरह दोस्तो, मैंने उसकी बेवफाई का बदला तीनों छेदों को जी भर के चोद कर लिया।
वो और मैं दोनों समझ चुके थे कि माज़रा क्या है। मैंने सिर्फ एक विश्व विजेता वाली तिरछी मुस्कान से उसे देखा और वापस चला आया। मैं उससे फिर कभी नहीं मिला। हाँ.. पर इतना जरूर समझ चुका था कि प्यार-व्यार कुछ नहीं होता.. इंसानों में सिर्फ और सिर्फ जिस्मानी भूख होती है.. जो जरूरत के हिसाब से कभी भी हावी हो सकती है।
मैं इसी सत्य के साथ आज करीब पंद्रह से ज्यादा लड़कियों.. भाभियों और हर उस प्यासी महिला को चोद चुका हूँ.. जो फ़ालतू के प्यार-व्यार के ड्रामे में ना पड़ कर सीधे चूत चुदाई वाले काम की बातें करती है।
सच भी यही है.. जब निन्यानवे प्रतिशत से भी ज्यादा प्यार शादी में कन्वर्ट ही नहीं होता.. तो फिर ये ड्रामा क्यों? सीधे काम के मुद्दे पर आओ और संसार के सत्य का लुत्फ़ उठाओ.. सम्भोग का लुत्फ़ लो।
पाठकों और पाठिकाओं अपना कीमती वक़्त मेरी इस सच्ची आपबीती को देने के लिए धन्यवाद। आपको कैसा लगा.. जरूर लिखिएगा, बंदा इंतज़ार कर रहा है, अगर आप सुनना चाहेंगे.. तो मैं आगे भी जरूर सुनाऊँगा.. [email protected]
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000