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थोड़ी देर बाद वो भाभी को शादी वाले जोड़े में सजा कर लाई मेरे कमरे में! आते ही उसने कहा- हज़ूर नवाब साहिब, आपकी मलिका सुहागरात के लिए तैयार है। मैं भी उसी लहजे में बोला- ऐ हसीं बांदी, क्या तुम्हारी मलिका हुसन का मुजस्मा है? वो बोली- आप खुद ही उनका दीदार कर लीजिये, यह हुस्न का तौहफा आपके लिए यह कनीज़ ख़ास तौर से तैयार करके लाई है। मैं बोला- बहुत खूब ऐ खूबसूरत कनीज़, तुमने हमारी बहुत अरसे की दिली मुराद को पूरा किया है, हम तुमको इनामात से सरोबार कर देंगे। कम्मो बोली- अगर जान की ईमान पाऊँ तो अर्ज़ करने की गुस्ताखी कर रही हूँ कि आप और मालिकाए आला की मदद करने के लिए यह नाचीज़ आपके इस शाही हरम में आपके रूबरू रहने की इजाज़त मांगती है!
तभी भाभी घूँघट की आड़ से बोली- अरे तुम यह क्या गिटर पिटर कर रहे हो, कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या बोल रहे हो तुम दोनों।
यह सुनना था कि मैं और कम्मो ज़ोर से हंस दिए, इस सारे चक्कर में भाभी का घूंघट भी खुल गया था और वो हैरत से हम दोनों को देख रही थी कि इन दोनों को क्या हुआ है जो खामख्वाह ही हंस रहे हैं।
कम्मो ने भाभी का चेहरा फिर घूंघट में डाला और उनको पलंग पर बैठा दिया। मैं धीरे से सजी धजी भाभी के करीब जा ही रहा था कि उससे पहले ही कम्मो ने मुझको एक गुलाब का फूल पकड़ा दिया और आँखों से इशारा किया कि यह मैं भाभी का घूंघट उठाने के बाद उनको पेश करूँ।
मैंने ऐसा ही किया, बड़े धीमे से भाभी का घूंघट उठाया और उनको गुलाब का फूल पेश किया और बोला- माशाल्लाह, क्या हुस्न है ऐ मलिका-ऐ-आलिया… मेरे ख्वाबों की हसीं परी, आपकी खिदमत में यह अदना सा तौहफा पेश है। भाभी बोली- सोमू यार, यह क्या चल रहा है? कहाँ है मलिका-ऐ-आलिया और कहाँ है मेरा तौलिया? इतना सुनना था कि मेरा और कम्मो का हंसी के मारे बुरा हाल हो रहा था।
भाभी हैरान और परेशान हम दोनों को टुकर टुकर देख रही थी। फिर कम्मो ने भाभी को समझाया कि यह सिर्फ एक खेल है जो हम अक्सर एक दूसरे के साथ खेलते हैं क्यूंकि लखनऊ एक नवाबों का शहर है इसलिए लखनवी तहज़ीब तो दिखानी ही पड़ेगी ना!
कम्मो खेल को आगे बढ़ाते हुए बोली- छोटे मालिक, आप अब आगे बढ़ कर मलिका-ऐ-आलिया का घूंघट हटा दीजिये।
घूँघट हटने के बाद मैंने उनके लबों को चूम लिया और उनके सारे जिस्म को गौर से देखने लगा जैसे कि अक्सर नया दूल्हा अपनी नई ब्याहता दुल्हनिया को बड़ी उमंग से देखता है। मैं बोला- ऐ लखनऊ की हसीं दर हसीं मलिकाये-आलिया, अगर आपकी इजाज़त हो तो मैं आपके संगमरमरी जिस्म को देखने की जुर्रत कर सकता हूँ क्या? तब भाभी भी मलिका-ऐ-आलिया के रोल को खलते हुए बोली- ऐ हमारे सरताज, इस लौंडिया की क्या हिम्मत जो नवाब-ए-अवध को हमारे इस अदना से जिस्म को ना देखने देने की जुर्रत कर सके!
इतना सुनना था कि मैं पहले भाभी की साड़ी उतारने लगा और इस काम में कम्मो भी पूरी तरह से शामिल हो गई, पहले धीरे से उनकी साड़ी उतार दी फिर उनके ब्लाउज पर हाथ साफ़ किया और आखिर में उनके पेटीकोट को उतार दिया।
तब भाभी ने आगे बढ़ कर मेरे पायज़ामे का नाड़ा खोल दिया और कुरता भी उतार दिया, मेरे खड़े लंड को झुक कर भाभी ने प्रणाम किया और कहा- हे लंडम, जी मुझको एक पुत्र प्रदान करो! मैंने भी एक हाथ ऊँचा कर के कहा- तथास्तु… पुत्रवती भव!!! कम्मो भी मुस्कराते हुए बोली- चलो, अब आगे की कार्यवाही शुरू करते हैं। छोटे मालिक अब आप भी शुरू हो जाएँ।
मैंने झुकी हुई भाभी को अपने हाथों से उठाया और कहा- भाभी, नाटक खत्म हुआ, अब आप बताओ कैसे चुदना पसंद करेंगी? भाभी शर्माते हुए बोली- जैसे तुम चाहो और जिससे बच्चा होने की संभावना अधिक हो, वैसे ही चोदो मुझको। मैं बोला- इस मामले की माहिर तो अपनी कम्मो रानी है, वो ही बता सकती है कि कैसे चुदाई करें हम! डॉक्टर कम्मो रानी, आप बताओ कैसे चोदना है भाभी को?
इस बीच भाभी मेरे लंड से खेल रही थी और उसको इधर उधर कर रही थी लेकिन वो फिर अटेंशन में सीधा खड़ा हो जाता था। कम्मो ने कहा- सबसे पहले भाभी को घोड़ी बना कर चोदेंगे आप छोटे मालिक, जैसे आप पहले भी कर चुके हैं, जब मैं इशारा करूँगी आप अपना वीर्य भाभी की चूत में छोड़ेंगे। आगे मैं देख लूँगी, ठीक है?
अब मैंने भाभी को गले से लगा लिया और उनके मोटे और मुलायम चूतड़ों को दबाने लगा। भाभी भी अपनी चूत को मेरे खड़े लंड से रगड़ रही थी। इसी तरह हम एक दूसरे को गले लगा कर प्रगाढ़ आलिंगन में बंधे हुए सारे कमरे का चक्कर लगाने लगे। मेरा लौड़ा भाभी की चूत के ऊपर हल्की हल्की रगड़ लगा रहा था जिससे भाभी का जोश एकदम से बहुत तीव्र हो रहा था।
फिर मैं एकदम से नीचे बैठ गया और अपना मुंह भाभी की चूत में डाल दिया। भाभी वहीं लेटने लगी लेकिन कम्मो उनको उठा कर ऊपर पलंग पर ले गई और मुझको भी वहाँ आने का इशारा करने लगी।
भाभी ने पलंग पर लेटने के बाद अपनी गोल सफेद टांगों को खोल दिया और मैंने झट से अपनी पोजीशन लेकर उनकी चूत को चाटना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में ही भाभी इतनी गर्म हो गई कि उन्होंने मुझको मेरे बालों से पकड़ कर मुझको चूत से हटा कर अपने ऊपर कर लिया और मेरे मुंह को बेतहाशा चूमने लगी।
मैंने भी उनकी चुम्मियों का जवाब वैसे ही दिया और फिर उनको घोड़ी बनने के लिए उकसाया। जब भाभी घोड़ी बन गई तो मैं भी उस चूतड़ों के बीच से अपना लंड उनकी उभरी हुई चूत में धीरे धीरे डालने लगा, लंड जब पूरा अंदर चला गया तो मैं ज़रा रुक गया और आज की भाभी की चूत की पकड़ को सराहने लगा, इतनी तेज़ और मज़बूत पकड़ भाभी की चूत में पहले कभी नहीं थी, यह ज़रूर कम्मो की ख़ास डिश का कमाल था।
अब मैंने धीरे धीरे चुदाई की स्पीड बढ़ा दी, लंड को पूरा निकाल कर फिर धीरे से अंदर डालने का क्रम शुरू कर दिया। लंड पूरा निकाल कर धीरे धीरे से पूरा डालना भी एक कला होती है जो चूत के शहसवार अच्छी तरह से जानते हैं क्योंकि लंड को पूरा निकालने का मतलब है कि लंड की टिप कभी भी चूत के बाहर नहीं आनी चाहिए। इस तरीके से पूरे लंड का घर्षण और गर्जन कायम रहता है और औरतों को लंड का पूरा मज़ा मिलता रहता है।
और उधर कम्मो भी भाभी को गर्म करने की कोशिश कर रही थी, वो उसके गोल और मोटे मम्मों के साथ खेल रही थी। फिर वो भाभी की चूत में हाथ डाल कर उसकी भग को रगड़ने लगी, थोड़ी देर में भाभी खूब हिलते हुए झड़ गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने अपनी चुदाई स्पीड फिर एकदम आहिस्ता कर दी ताकि भाभी को फिर गर्म करके उसका एक बार और छुड़ाया जाये। मैं अब पूरा का पूरा लंड एक साथ अंदर डाल कर उसको भाभी की चूत में थोड़ा थोड़ा घुमाने लगा, यह स्टाइल भाभी को बहुत पसंद आया और वो जल्दी जल्दी अपने चूतड़ों को आगे पीछे करने लगी।
कम्मो जो अभी भी भाभी की चूत में हाथ डाले हुए थी और उसके भग को रगड़ रही थी, नीचे से ही मुझको इशारा किया और मैं अपने लौड़े का घोड़ा सरपट दौड़ाने लगा। इस रेस में भाभी एक बार फिर एकदम से अकड़ी और फिर चूतड़ हिलाती हुई झड़ गई और उनकी चूत से बहुत सा पानी नीचे गिरा।
अब कम्मो ने मुझको इशारा किया कि मैं अपना छूटा लूँ जल्दी ही! मैंने लंड से भाभी की चूत के अंदर उसके गर्भाशय के मुंह को तलाश लिया और जब मेरा लंड उनके ठीक गर्भाशय के मुंह पर था तो मैंने अपना वीर्य का बाँध खोल दिया और भाभी की चूत को अपने वीर्य से पूरा भर दिया। जैसे ही गर्म वीर्य भाभी की चूत और गर्भाशय पर गिरा, भाभी एक बार फिर झड़ गई और वो पलंग पर लेटने की कोशिश करने लगी लेकिन मैंने उनके चूतड़ अपने हाथों में पकड़ रखे थे।
कम्मो ने जल्दी से भाभी के पेट के नीचे 2 मोटे तकिये रख दिए ताकि उनके चूतड़ ऊपर रहें और वीर्य नीचे न बह जाए। मैं भी उठ कर अपना लंड को साफ़ करने के लिए बाथरूम में चल गया। तब तक भाभी सामान्य हो चुकी थी।
फिर हम पलंग पर लेट गए, एक तरफ़ कम्मो नंगी लेट गई और दूसरी तरफ़ भाभी, बीच में मैं लेट गया। भाभी कुछ थकी हुई लगी और वो झट ही सो गईं।
मैंने कम्मो की चूत में ऊँगली डाली तो वो एकदम गीली हो रही थी। मैंने देखा कि भाभी तो काफी गहरी नींद में थी तो मैं पहले कम्मो को चूमता रहा और फिर उसके मम्मों को चूसा और फिर उसकी भग को थोड़ी देर मसला और फिर जब वो मुझको खुद ही लंड से खींच कर अपने ऊपर आने का न्योता देने लगी तो मैं भी उसके ऊपर चढ़ गया।
कम्मो के साथ चुदाई एक इंस्ट्रक्टर के साथ चुदाई के समान था क्यूंकि वो बड़े ध्यान से मेरी हर चेष्टा को देखती थी और जहाँ मैं गलती करता था वो मेरा कान पकड़ने में नहीं हिचकिचाती थी।
लेकिन मैं कम्मो को चोदते हुए ख़ास ख्याल रखता था कि उसके द्वारा बताये हुए तरीके का पूरी तरह से पालन हो क्यूंकि मैं उसके कमज़ोर पॉइंट अब जान गया था तो मुझको अपनी मर्ज़ी के मुताबिक उसको छुटाना आता था। अब भी वैसा ही हुआ, मैंने जल्दी से कम्मो रानी का छूटा दिया और उसके बाद एक मधुर चुम्बन और प्रगाढ़ आलिंगन के बाद हम दोनों सो गए। कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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