मेरा गुप्त जीवन-68

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कम्मो बोली- यह सब कमाल है स्पेशल डिश का है, उसने जिताया इनको और हराया हमको! भाभी बोली- वो कैसे? कम्मो बोली- वो ऐसे कि यह डिश ख़ास तौर से आदमियों के लिए बनाई जाती है और यह बड़े बड़े नवाबों की ख़ास-उल-ख़ास डिश होती थी और इस हलवे को खाकर वो एक रात में दर्जनों औरतों को चोद देते थे। लेकिन यह डिश अगर औरत खाए तो वो बड़ी ही कामवासना से भर जाती है और काम क्रीड़ा में ज़्यादा देर नहीं टिकती लेकिन कई बार चुदवाने के लिए तैयार रहती हैं, यही कारण है कि औरतें हार गई और आदमी अभी भी डटे हैं मैदान-ऐ-जंग में!

भैया बोले- क्यों कम्मो रानी, अब और क्या प्रोग्राम है? कम्मो बोली- आप दोनों मर्दों ने तो खूब ऐश कर ली, अब हमारी बारी है क्यूंकि हमारी चूतें अभी तक भूखी प्यासी हैं। भैया अपने लोहे के समान खड़े लौड़े को देखते हुए कहा- हाँ हाँ, आ जाओ फिर से मैदान में, एक एक की बजा कर रख देंगे हम दोनों।

कम्मो ने कहा- हमको नहीं बजवानी अपनी चूत, हमको तो चटवानी हैं अपनी अपनी, करोगे क्या? मैं बोला- क्यों नहीं, ज़रूर करेंगे आपकी सेवा, क्यों भैया? भैया सोच में पड़ गए।

भैया को सोचते देख कर भाभी बोली- अरे जाने दो कम्मो रानी, भैया ने यह काम कभी किया ही नहीं, क्यूंकि यह तो इनके लिए नीच काम है ना! क्यों जी? भैया अगल बगल झाँकने लगे। मैंने मौके की नज़ाकत को भांपा और कहा- अरे भाभी आप क्या बातें कर रही हैं, अगर भैया ने यह काम पहले नहीं किया तो क्या हुआ हम सिखा देंगे न भैया को और पूरा परफेक्ट बना देंगे उनको।

मैंने भाभी का हाथ पकड़ा और उनको गद्दे पर लिटा दिया, पहले मैंने उन मोटे उरोजों को चूसा और फिर उनकी चूचियों को मुंह में डाल कर चूसा। भाभी ने जोश में अपनी कमर उठा दी और मेरे मुंह को अपनी चूत में डाल दिया। मैं बड़े मज़े से अब उनकी सफाचट चूत के होटों को चूसने लगा और फिर धीरे से अपनी जीभ का कमाल दिखाने लगा।

उधर कम्मो भैया को उठा कर भाभी और मेरे पास ले आई और भैया और कम्मो हमारी चूत चुसाई को बड़े ध्यान से देखने लगे। पारो भी खाली नहीं बैठना चाहती थी तो वो भी भैया के पीछे खड़ी होकर उनके अंडकोष को हाथों में मसलने लगी।

भाभी ने बड़ी ज़ोर ज़ोर से अपने मज़े उजागर करने लगी, वो ज़ोर ज़ोर से आहें भरने लगी और अपनी कमर को उठा कर अपनी चूत मेरे मुंह के साथ जोड़ दी, और फिर वो थोड़ी देर और चुसाने के बाद एकदम झड़ना शुरू हुई और मेरे मुँह को अपनी संगमरमर वाली जाँघों में ज़ोर से दबा दिया।

यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! पारो भी भैया के लंड को अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी, थोड़ी देर में भैया को भी मज़ा आने लगा और वो अपने लंड को पारो के मुंह में आगे पीछे करने लगे।

कम्मो ने भैया के मुंह के साथ अपना मुंह जोड़ दिया और उनके होटों को चूसने लगी, कभी जीभ भी मुंह के अंदर डाल देती। भैया ने पारो के मुंह में अंदर बाहर हो रहे लंड को और तेज़ी से अंदर डालना शुरू कर दिया। पारो को कम्मो ने आँख मारी और इशारा किया- बस और नहीं, कहीं भैया का छूट न जाए!

अब कम्मो ने भैया को अलग किया और खुद नीचे लेट गई और अपनी टांगें पूरी तरह से चौड़ी कर दी और पारो ने भैया के हिचकिचाते हुए मुंह को बालों से भरी चूत में डाल दिया। कम्मो ने भैया के सर को अपनी चूत में भग के ऊपर रख दिया और हाथ से उनको भग को चूसने के लिए प्रेरित करने लगी। भैया भी जल्दी समझ गए और अब पूरी मुस्तैदी से कम्मो की चूत को चूसने लगे। और जैसे जैसे भैया सीखते गए वो भी एक एक्सपर्ट की तरह कम्मो की चूत को चाटने और चूसने लगे।

भाभी और मैं एकदम मस्ती से चूत चटाई में व्यस्त थे। फिर भैया भी अपने बड़प्पन को भूल गए और आम आदमियों की तरह ही औरतों की सेवा में लग गए।

जब कम्मो छूट गई तो उसने सबको कहा- ताली बजाओ… भैया सीख गए एक और चुदाई सबक!

अब हम सब थक कर आराम करने लगे। कम्मो उठी और नंगी ही अपने मम्मे हिलाती हुई बाहर गई और जल्दी ही सबके लिए ग्लासों में कोक डाल कर ले आई। कोक पीते ही हम सब काफी फ्रेश हो गए।

मेरा सर भाभी की नंगी गोद में पड़ा था और भैया पारो की गोद में सर रख कर आराम फरमा रहे थे। यह देख कर कम्मो बड़ी खुश हो रही थी कि उसका बनाया हुआ प्लान पूरा खरा उतर रहा था। भैया अब पूरी तरह से चुदाई कार्य सीख गए थे और बड़ी मस्ती से सबको चोद रहे थे।

कम्मो बोली- क्यों देवियो और देवताओ, आपकी क्या मरजी है, अब खेल बंद करें या अभी और चुदाई करनी है? सबने बोला- अभी कुछ देर और… लेकिन क्या करना है यह तुम ही बताओगी? कम्मो ने कहा- आओ घोड़ियों की रेस खेलते हैं। सब बोल पड़े- यह घोड़ियों की रेस क्या चीज़ है कम्मो रानी?

कम्मो बोली- हम में से दो औरतें घोड़ी बन जाएंगी और ये दोनों घोड़े हम पर पीछे से चढ़ेंगे। जो औरत बच जायेगी वो इस खेल की कप्तान होगी और वो यह देखेगी कि कौन सी घोड़ा-घोड़ी की जोड़ी आखरी टाइम तक टिकती है। जो घोड़ा या घोड़ी हार मान जायेगा उस की टीम हार गई मानी जायेगी। क्यों मंज़ूर है? भैया कुछ थके हुए लग रहे थे लेकिन फिर भी इस नई गेम के लिए तैयार हो गए।

कम्मो ने कहा- भैया जी, आप अपने लिए सवारी पसंद कर लीजिये? भैया ने कहा- पसंद क्या करना है, जो भी मेरे साथ पार्टनर बनाना चाहे वो आ जाए। पारो बोली- कम्मो और भाभी यह गेम खेलेंगी और मैं रेफरी का काम करूंगी। कम्मो बोली- भैया अब चुन लो अपना पार्टनर?

भैया ने भाभी की तरफ देखा तो वो थोड़ी सी मेरी तरफ देख रही थी और कम्मो ही थी जो उनकी तरफ देख रही थी। भैया ने कम्मो को आँख मारी और कहा- मैं अपनी घोड़ी कम्मो को बनाऊँगा और उसकी सवारी करूंगा। क्यों सोमू ठीक है न? तुम भाभी को अपनी घोड़ी बना लो! मैं बोला- जैसे आप कहें भैया, वैसे भाभी से भी पूछ लेते हैं कि उनकी क्या मर्ज़ी है? क्यों भाभी? भाभी मुस्कराते हुए बोली- जैसा तेरे भैया कहें, वही ठीक है।

पारो बोली- दोनों घोड़ियाँ अपनी अपनी जगह पर घोड़ी बन जाएँ और घोड़ों का इंतज़ार करें। किसी घोड़ी या फिर घोड़े को कुछ पीने या खाने की इच्छा हो तो बता दे, नहीं तो फिर रेस शुरू होती है अब! और यह कह कर उसने एक सीटी बजाई और कहा- चढ़ जाओ शहसवारो!

कम्मो और भाभी गद्दे पर घोड़ी बन कर तैयार हो गई और भैया घोड़े की तरह हिनहिनाते हुए आये और कम्मो की चूत और गांड को सूंघने लगे। यह देख कर सब घोड़ियाँ और घोड़े ज़ोर से हंस पड़े।

मैंने भी भैया की तरह ही पहले भाभी की चूत और गांड को सूंघा और फिर हिनहिनाते हुए घोड़ी बनी भाभी पर पीछे से मोटे लंड को पेल दिया। भाभी थोड़ी देर के लिए उचकी और फिर मेरा पूरा लंड अंदर ले गई और अपनी गांड को मेरी अंडकोष के साथ जोड़ दिया।

उधर भैया भी बिल्कुल मेरी नक़ल कर रहे थे, वो भी लंड अंदर डाल कर कम्मो को पीछे से हाथ डाल कर उसके मम्मों के साथ खेल रहे थे और साथ में धक्के भी काफी तेज़ मारने शुरू हो गए थे।

मैं धीरे धीरे घोड़ी को दौड़ा रहा था ताकि वो थक ना जाए। मैंने एक हाथ अंदर डाल कर भाभी की चूत के भग को सहला रहा था जिस से भाभी और भी गर्म हो रही थी। लेकिन भाभी छिपी आँखों से भैया को भी देख रही थी कि वो कैसे चुदाई का खेल कर रहे थे और मेरा भी साथ निभा रही थी अपने चूतड़ों को आगे पीछे कर के! कोई 10 मिन्ट गुज़र चुके थे, भाभी एक बार छूट चुकी थी लेकिन मैं अब घोड़ी को सरपट भगा रहा था।

उधर भैया भी अब घोड़ी को बेलगाम कर के उसके ऊपर लेट चुके थे। लेकिन कम्मो भैया को हारने देना नहीं चाहती थी तो वो उनको संभाल रही थी, बार बार उसको अपने चूतड़ों के धक्के से इशारा भी कर रही थी कि घुड़सवार धीरे चलो! मैंने महसूस किया कि भाभी भी यही चाहती थी कि भैया ही जीतें सो उन्होंने जानबूझ कर तीसरी बार जब उनका छूटा तो वो लेट गई और कहने लगी- मैं हार गई… बस और नहीं! कम्मो और भैया अभी भी धक्काशाही में लगे हुए थे।

पारो ने ज़ोर से सिटी बजा कर कहा- भैया और कम्मो जीत गए यह घुड़दौड़! भैया पसीने पसीने हो रहे थे और कम्मो भी थकी हुई लग रही थी लेकिन मैं और भाभी अभी भी फ्रेश लग रहे थे। हम दोनों उठे और भैया और कम्मो को जीत की बधाई दी और कहा- कम्मो का चेला कैसे हार जाता यारो!

फिर पारो ने हम चारों की सेवा शुरू कर दी, मीठा शरबत रूह अफ्ज़ा बनाया हुआ रखा था, वो सबने पीया और कुछ थकावट कम होने लगी। फिर भाभी ने कम्मो और पारो को 100-100 रूपए का इनाम दिया और उन दोनों को बड़ा धन्यवाद दिया कि बड़ा अच्छा प्रोग्राम हो गया। फिर वो दोनों नंगे ही अपने कमरे में चले गए। कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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