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आपकी सेक्सी श्रेया आहूजा का प्यार भरा नमस्कार.. यह आपबीती दिल्ली में काम कर रहे नौजवान रविन्द्र झा की है।
रविन्द्र ने इंडिया के टॉप कॉलेज से इंजीनियरिंग की और वो मल्टी नेशनल कंपनी में लाखों की पगार पर काम कर रहा है। उसकी शादी हुए कुछ महीने हो चले हैं लेकिन वो अपनी बीवी को यहाँ शहर लेकर नहीं आया था, उसने मुझे बताया कि उसकी बीवी घरेलू किस्म की है.. गंवार है..
रविन्द्र झा मेरी तरफ एकटक देख रहा था। मैं हॉट पैंट्स पहने हुई थी और ऊपर एक कैमीजॉल पहन हुआ था। इन छोटे काले कपड़ों में मेरा दूध सा गोरा बदन चमक रहा था।
मैंने एक जांघ को दूसरे पर चढ़ाया और रविन्द्र को कॉफी पीने को कहा। मैं- तो क्या नाम है तुम्हारी बीवी का? रविन्द्र- सावित्री झा.. मैं- और कहाँ के हो तुम? रविन्द्र- राजनगर.. मैं- राजनगर? यह कहाँ है?? रविन्द्र- दरभंगा बिहार में है..
मैं- ओके.. मेरी भूगोल की जानकारी थोड़ी कमज़ोर है। खैर.. अपनी बीवी को सबसे मिलाने दिल्ली कब ला रहे हो? रविन्द्र- कभी नहीं.. वो आपके जैसी नहीं है, सब मेरा मज़ाक उड़ाएंगे। मैं- मैं कुछ समझी नहीं? रविन्द्र- उसमें कुछ नहीं है.. सांवली सी गंवार किस्म की औरत है.. उसे अंग्रेजी भी बोलनी नहीं आती है।
मैं- तो क्या हुआ.. मैं हूँ न.. मैं उसे एकदम मॉडर्न कर दूँगी। रविन्द्र- सच? मैं- मुच..! उसके बाद जल्द ही रविन्द्र बिहार को रवाना हो गया।
इसके आगे की दास्तान रविन्द्र झा की जुबानी सुनिए।
दोस्तो.. मैं पटना एयरपोर्ट से टैक्सी लेकर अपने घर राजनगर पहुँचा, घर पर माँ बाबूजी से मिला, लाल रंग की साड़ी में सावित्री और भी गंवार लग रही थी। मैं अपने भाग्य को कोस रहा था.. कि कहाँ श्रेया मैडम.. कहाँ यह जाहिल देसी ठर्रा.. मैं रात में दोस्तों के साथ छत पर बैठा था, चार दोस्त साथ मिलकर देसी दारू पी रहे थे और एक अंग्रेजी फिल्म यानि पोर्न फिल्म देख रहे थे, उस फिल्म में एक अंग्रेज लड़की को दो लड़के चोद रहे थे।
एक दोस्त बोला- अरे यार ये अंग्रेज लौंडियाँ बड़ी बेकार सी होती हैं.. देखो साली के लटके हुए मम्मे दिख रहे हैं। दूसरा दोस्त- सही कहा दोस्त.. इससे ज्यादा कसे हुए तो मेरी बीवी के दो बच्चों की माँ होने के बाद भी हैं.. तीसरा दोस्त- सही कहे हो भैया.. हमारे गाँव की लड़कियों का जवाब नहीं..
मैं और मेरा लंड यह देख कर और सुन कर दोनों कामोत्तेजित हो गए। मेरा लंड भी खड़ा हो गया और मैं भी उठा और सीधा अपने कमरे में चला गया।
कमरे में सावित्री बिस्तर में मेरी तरफ गांड करके लेटी हुई थी। मैंने धीरे से उसकी साड़ी उठाई.. उसके सांवले गोल-गोल यौवन रस भरे चूतड़ों को मसल देने का मन कर रहा था। मैंने नीचे से ऊपर हाथ फेरने शुरू किए। मेरा हाथ अब साड़ी के अन्दर घुस चुका था और उंगलियाँ शायद योनि द्वार के समीप पहुँच गई थीं।
सावित्री यानि सावी.. कसमसा सी गई और ‘आह’ की आहट उसके मुँह से निकल गई, मेरी एक ऊँगली अब उसकी चूत के अन्दर थी। उसने अपनी गरम-गरम जांघों के बीच दहकती चूत के ऊपर शहरी लड़कियों के जैसे पैंटी नहीं पहनी थी। सावी- सैंया जी.. यह क्या कर रहे हैं?
मैं- तेरी चुदाई करने की तैयारी कर रहा हूँ.. समझी! सावी- जी सैंया जी.. मैं- तो उठ बहन की लौड़ी और अपनी साड़ी खोल.. सावी- जी.. मैं- जी की बच्ची.. अब तेरी साड़ी खोलने के लिए तेरे बाप को बुलाऊँ?
सावी ने अपनी साड़ी खोलनी शुरू की, अब वो लाल पेटीकोट और लाल रंग के ब्लाउज़ में थी। मैं बिस्तर में बैठा हुआ था और वो मेरे पास खड़ी थी। मैंने उसके पेटिकोट के नाड़े को खींचा और पेटीकोट एक ही झटके में नीचे गिर पड़ा।
उसकी मस्त मांसल जांघें थीं, कामरस से भरी हुई मदमस्त जांघें थीं, चूत के पास हल्के बाल.. नाभि अन्दर को धंसी हुई थी। मैं- और ब्लाउज़ कौन खोलेगा.. मेरा बाप..? खोल न रंडी..
उसने अपना ब्लाउज़ खोला.. अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी। उसके गोल-गोल सुडौल दूध से भरे चूचे जिनसे मानो यौवन रस टपक रहा हो। मैंने उसके हाथ उठा कर देखा.. तो बगल में बाल उगे हुए थे।
मैं- अगली बार से बाल साफ़ करके चुदवाना.. मैंने उसकी चूत में ऊँगली डाली- कभी चुदवाई है किसी से? सावी- जी.. आप कैसी बात कर रहे हैं? मैं- सही कह रहा हूँ.. अगर चूत चुदवाने पर खून न निकला.. तो तेरी माँ चोद दूँगा।
मेरा अपनी बीवी से बात करने का ये जो लहजा था.. दरअसल यह मेरी अन्दर की भड़ास थी। दिल्ली में रहकर कोई दिल्ली वाली ने घास तक नहीं डाली.. कोई साली मेरे साथ कॉफ़ी तक पीने को राजी नहीं थी।
मैंने सोचा था कि शादी ऐसी ही किसी जीन्स टॉप वाली से होगी.. लेकिन मिली मुझे एक गाँव की सांवली सी लड़की.. अनपढ़.. न मेकअप करने का सलीका न बात करने का शऊर..
मुझे तो आज बस उसको चोद देना था। मैंने उसको बिस्तर पर पटका और जांघें फैलाईं.. उसने अपने दोनों हाथों से अपनी बुर को छुपाया। ससावी- आहिस्ते से करना सैंया जी.. एकदम कुँवारी है.. मैं- जोर-जोर से करने और करवाने दोनों का मज़ा एक जैसा होता है। मेरा लंड एकदम तनतनाया हुआ था.. नब्बे डिग्री पर खड़ा हुआ बांस जैसा अकड़ा हुआ था।
सावी ने अपने हाथों को हटाया तो मैंने देखा चूत का मैदान साफ़ था। मैं- अरी तेरी चूत किसने साफ़ की?
सावी- पड़ोस वाले मोहन काका की औरत नाई का काम जानती है.. उसी ने उस्तरा से साफ़ की.. बोली शादी है न.. करवा ले साफ़.. मैं सोच में पड़ गया- वाह भाई क्या ज़माना है.. देहात वाले मॉडर्न होते जा रहे हैं।
गर्मी के मारे सावी के साँवले बदन में पसीना आ रहा था। मदमस्त कर देने वाली जवानी थी उसकी.. उसका कमसिन बदन मुझे मदहोश किए जा रहा था। मैंने चूत पर थूका और अपना लंड अन्दर घुसाने लगा। दर्द से आहत सावी के नाखूनों को मैं अपने चूतड़ों में गड़ता हुआ महसूस कर सकता था।
अभी बुर में आधा लंड गया ही था कि सावी की गांड की उछाल ने पूरा लंड अपने अन्दर ले लिया। सावी की चूत की ज्वाला अन्दर ही अन्दर धधक रही थी.. जो अब उफान बनकर सामने आई थी।
वह मदहोश होकर नीचे से उछाल और मैं ऊपर से धक्का मार रहा था। जिसको अंग्रेजी में स्मूच कहते है.. वो मैंने लेने की कोशिश की। पहली कोशिश नाकाम रही उसने अपने होंठ हटाए और मेरी पप्पी उसके गाल पर पड़ी। फिर उसने से मेरे होंठों को अपने होंठों पर रखवा लिया और चुसवाने लगी। अपनी गरम-गरम जीभ को मेरे तालू पर मल रही थी.. साथ ही अपनी एक ऊँगली को मेरी गांड के छिद्र में घुसाए जा रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
सावी- अहह अहह.. बस आराम से सैंया जी.. सारी कसर आज ही निकाल दोगे क्या..
मैं खामोश था और चुपचाप लंड घुसेड़े जा रहा था। सावी तो बहुत ही सेक्सी माल निकली.. जिसे मैंने गाँव वाली समझ के इतने महीनों तक खुद से दूर रखा.. वो तो सेक्स की पूरी कोठरी निकली..
जैसे ग्वाला भैंस के थनों को निचोड़ कर दूध दुहता है.. वैसे ही सावी की चूत मेरे लंड को निचोड़ती हुई उससे माल निकालने में अग्रसर थी।
मेरा माल छूटने ही वाला था.. थोड़ा जल्दी निकलने को था.. यानि शीघ्रपतन.. लेकिन तब भी चलेगा.. पहली बार की चुदाई के हिसाब से ठीक ही था।
मेरे झटकों से मेरा माल निकलने लगा.. मैंने उसकी चूत को इस कदर भर दिया कि लंड माल के चिकने बहाव से ही चूत में से वापस निकल आया।
उसकी चूत से खून भी निकल रहा था.. मैं अपने लंड को साफ़ करने के लिए उठा तभी सावी ने मुझे फिर से अपनी तरफ खींच लिया।
उसने मुझसे अपनी चूचियों पर मेरा हाथ रखवाया और अपनी एक जांघ मेरे ऊपर चढ़ा दी।
सावी- क्यों सैंया जी कैसा लगा? मैं निरुत्तर था.. क्या बोलता कि इतना मज़ा तो कोई दिल्ली वाली भी नहीं देती। सावी- सैंया जी.. जीवन भर मज़ा दूँगी.. इतना कि आप शहर वालियों को भूल जाओगे.. मैं- ऐसी कोई बात नहीं है..
सावी- मैं जानती हूँ कि आप सबसे खफा थे कि आपकी शादी एक गंवार से हो गई थी.. इसीलिए आपने मुझे इतने महीने गाँव के घर पर ही रखा। मैं- हाँ सावी.. लेकिन मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी कामुक हो! सावी नीचे हो गई और मेरे लंड को अपनी जीभ से साफ़ करने लगी। मेरे टट्टों को दबाते हुए लंड को अपने होंठों की मालिश दी। पता ही नहीं चला.. कब नींद आ गई.. सोने से पहले बस मुझे इतना याद है कि उसने कहा था- मैं बेबी डॉल हूँ सोने दी..
वो सुबह मेरे लिए चाय बना के लाई.. उस समय वो साड़ी पहने हुई थी, गीले बालों की खुशबू महक रही थी। दोस्तो, उस पर मुझे प्यार आ रहा था.. अब मुझे उससे कोई शिकायत नहीं थी।
मैं उसे अपने साथ दिल्ली ले आया.. दोस्तों के बीच पार्टी दी.. बहुत सारे दोस्त आए, सावी ने अपने हाथों से खाना बनाया..
मैंने एक पंजाबी दोस्त को अपनी बीवी को बोलते सुना- देख क्या मस्त फिगर है.. भाभी एकदम बेबी डॉल जैसी है.. और एक तू है मोटी कहीं की..’
दोस्तो, बड़े शहरों की लड़कियाँ जंक फ़ूड खाते-खाते मोटी होती जा रही हैं। मोटी लड़कियां कितना भी मेकअप करें.. कितना भी अंग्रेजी बोलें.. चुदाई में मज़ा नहीं देतीं.. जितना कि सावी जैसी देसी माल मजा देती हैं।
दोस्तो.. बीवी कितनी ही ख़राब क्यों न हो.. हम लड़के भी कोई सलमान खान नहीं होते.. इसलिए बस अपनी बीवी से प्यार करो.. [email protected]
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