मेरा गुप्त जीवन -25

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निर्मला गैर मर्दों से अपनी चूत चुदाई के किस्से सुनाती रही, मैं चुप बैठा रहा। निर्मला ने पूछा- छोटे मालिक, कहीं आप बुरा तो नहीं मान गए? ‘नहीं नहीं… बुरा कैसा! अच्छा किया अपनी तसल्ली कर ली तुमने! सच बताना उस लड़के के इलावा किसी और से तो नहीं करवाया तुमने?’

‘नहीं नहीं छोटे मालिक, बिल्कुल नहीं!’ ‘और किसी औरत या लड़की के साथ तो नहीं किया कभी?’ ‘यह आप क्या पूछ रहे हैं छोटे मालिक?’ ‘नहीं मैंने सुना है तुम औरतें आपस में भी खूब लग जाती हो एक दूसरी के साथ!’

वो चुप रही और उसकी यह चुप्पी से मुझको लगा कि आपसी सम्बन्ध भी थे इसके दूसरी औरतों के साथ। ‘नदी में कहाँ नहाती हो तुम सब?’ ‘वही जो घाट है न उस पर ही नहाती हैं सब, लेकिन आदमियों और लड़कों का उस तरफ आना मना है।’ ‘अच्छा? कोई जगह तो होगी जहाँ से कुछ देखा जा सके?’

वो हिचकते हुए बोली- है तो सही, आप देखना चाहते हैं क्या? ‘अगर तुम दिखाओ तो इनाम मिलेगा।’ वो बोली- कल देखने आ सकते हो? ‘हाँ, क्यों नहीं।’ ‘अच्छा तो मैं आपको ले जाऊँगी।’

फिर हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में सो गये।

सुबह होने से पहले मैंने निर्मला को फिर चोदा और उसके गोल और मोटे चूतड़ जो एक मोटे गद्दे के समान थे, मुझको बहुत ही सेक्सी लगते थे और मैं उनको बार बार छूना चाहता था।

नाश्ता करने के बाद मैं और निर्मला दोनों नदी की ओर चल पड़े। नदी के निकट आते ही निर्मला मुझसे आगे चलने लगी और मैं उसके पीछे थोड़ी दूर पर चलने लगा। फिर उसने मुझको इशारा किया और हम एक घनी झड़ी की ओर मुड़ गए। काँटों से बचते हुए हम एक जगह पहुँचे जहाँ हम बिल्कुल छिप गए थे लेकिन नदी की तरफ़ हम साफ़ देख सकते थे।

निर्मला अपने साथ एक चादर लाई थी और हमने वो बिछा ली और हम दोनों आराम से बैठ गए। फिर मैंने जगह का जायज़ा लिया और देखा कि वो तो पूरी तरह से ढकी छुपी थी और हमको कोई देख भी नहीं सकता था।

नदी पर अभी इक्का दुक्का औरतें ही नहा रहीं थीं लेकिन उनमें कोई देखने लायक नहीं थी। तो थोड़ी फुर्सत थी तो मैंने निर्मला को चूमना शुरू कर दिया, उसके ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर उसके गोल उरोजों के साथ खेलना शुरू कर दिया।

फिर एक हाथ उसकी धोती के अंदर डाल दिया और उसकी बालों भरी चूत को मसलने लगा, वो धीरे धीरे गरम होने लगी, उसने मेरी पैंट से मेरे लंड को निकाल लिया, वो उसका हाथ लगते ही एकदम अकड़ गया। वो उसको हाथ से हिलाने लगी, तब तक उसकी चूत भी गर्म हो कर पनिया गई थी।

निर्मला बोली- बैठ कर ही कर लेते हैं। वो कैसे? उसने अपनी टांगें पसार दी और धोती को ऊपर कर दिया और मुझको टाँगों के बीच मैं बैठने के लिए कहने लगी। मैं लंड को निकाल कर टांगों के बीच बैठ गया और तब वो अपने हाथ से मेरा लौड़ा अपनी चूत के मुंह पर रख कर मुझको धक्का मारने के लिए बोलने लगी।

एक ही धक्के में लौड़ा पूरा अंदर चला गया और मैंने अपने हाथ उसकी गर्दन में डाल दिए और ज़ोर से धक्के मारने लगा। वो भी जवाबी धक्के मारती रही। उधर हमने नदी की तरफ देखा तो एक जवान नई दुल्हन नहाने के लिए कपड़े बदल रही थी। गाँव के हिसाब से वो काफी जवान और सुन्दर लग रही थी। उसने ब्लाउज उतार दिया बिना किसी शर्म झिझक के उसके छोटे लेकिन कठोर उरोज बाहर आ गए थे। इधर मैं और निर्मला एक दूसरे से अपने अंगों से जुड़े थे, लेकिन हमारी नज़रें तो नदी किनारे उस नई दुल्हनिया पर अटकी थीं।

उसने सिर्फ ब्लाउज ही उतारा और पेटीकोट के साथ ही नहाने लगी। वो सारे शरीर पर साबुन लगा रही थी और खास तौर पर अपनी चूत पर तो वो 5 मिन्ट साबुन रगड़ती रही। और फिर वो नदी के अंदर चली गई और तैरती हुई थोड़ी दूर चली गई। पानी से गीला उसका बदन चमक रहा था, जब वो नदी की सतह से ऊपर आती थी तो उसके गोल उरोज धूप में चमकते थे। ऐसा लगता था कि सोने की परी नदी में तैर रही हो।

यह सब देख कर मेरे लंड पूरे जोश में आ गया और मैंने अपने हाथ निर्मला की गांड के नीचे रखे और फ़ुल स्पीड से धक्के मारने लगा। ‘ओह्ह्ह ओह्ह…’ करती हुई निर्मला तो झड़ गई लेकिन मैं अभी भी जोश में था, आँखें उस अर्धनग्न स्त्री पर थी जो मुक्त पंछी की तरह नदी में तैर रही थी और जिसका पेटिकोट भी उसके शरीर के साथ चिपक गया था और उस गीले कपड़े में से उसकी गोल जांघें और चूतड़ साफ़ दिख रहे थे, हल्की झलक उसकी काली झांटों की भी मिल रही थी।

मैं बेतहाशा निर्मला को चूमने लगा और उसके चूतड़ जो मेरे हाथों में थे तेज़ी से आगे पीछे करने लगा। और फिर मैंने निर्मला को घोड़ी बना दिया और उसको पीछे से तेज़ तेज़ चोदने लगा। लेकिन मेरी नज़र उस नहाती हुई औरत पर ही थी।

जब निर्मला एक बार और छूटी तो मैं भी उसको छोड़ कर वहाँ बैठ गया, तभी वो औरत जिधर हम बैठे थे उधर आने लगी। उसके हाथ में पेटीकोट और ब्लाउज था। मैंने घबरा के निर्मला को देखा, वो मस्त बैठी थी। मेरा डर समझते हुए उसने अपने होंटों पर ऊँगली रख कर कहा कि चुप रहूँ। मैं हैरानी से उस आती हुई औरत को देखने लगा जो हमारी झाड़ी के निकट आ गई लेकिन 10 फ़ीट पहले रुक गई और इधर उधर देखने के बाद उसने अपना गीला पेटीकोट उतार दिया और धुला हुआ पहनने लगी।

उसी समय उसकी चूत के पूरे दर्शन हो गए। काले चमकीले बालों से घिरी चूत को उसने गीले पेटीकोट से पौंछा। ऐसा करते समय उसकी चूत के अंदर की लाली भी दिख गई, मैं निहाल हो गया।

वो जल्दी से पेटीकोट बदल कर वापस नदी किनारे चली गई लेकिन मेरे लंड का बुरा हाल कर गई। मेरी हालत देख कर निर्मला को तरस आया और उसने अपने मुंह से मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया। उसके ऐसा करते ही मेरा फव्वारा छूटा और निर्मला ने सारा रस अपने मुंह में ले लिया। हम थक कर वहीं पसर गए।

मुझको याद आया कि यह नज़ारा मैंने पहले भी देखा था, कम्मो के साथ जब हमने चम्पा को नहाते हुए देखा था।बिलकुल वही दृश्य था लेकिन चम्पा तब बहुत ही सेक्सी लग रही थी क्यूंकि वो चुदाई का आनन्द काफी समय ले चुकी थी और यह लड़की तो नई नई शादी का आनन्द ले रही थी।

अब नदी किनारे कोई सुन्दर औरत नहीं थी जिसको देखने के लिए हम रुकते तो जल्दी ही वहाँ से चल दिए और कॉटेज में आ गए। जहाँ हमने लेमन पी फिर वहीं लेट गए। मैंने निर्मल को कहा कि वो घर जाये, मैं बाद में आता हूँ। वहीं यह सोचने लगा कि लखनऊ में मुझको चूत कहाँ से मिलेगी। उसका इंतज़ाम तो करना पड़ेगा। मैं चाहता था कि अभी तक मेरे पास गाँव की लड़की की तरह ही होनी चाहिए वरना वहाँ चुदाई का प्रबंध नहीं हो पायेगा।

मैंने सोचा कि यह काम तो चम्पा ही कर सकती है तो मैंने निर्मला को चम्पा को बुलाने का काम सौंपा और वो शाम को मुझको कॉटेज में मिली। तब मैंने उसको सारी बात बताई और कहा कि मेरे मतलब की कोई गाँव वाली लड़की लखनऊ के लिए ढूंढ दे। उसने वायदा किया कि वो जल्दी ही मेरी मर्ज़ी की लड़की ढूंढ देगी। यह कह कर वो चली गई। कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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