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दोनों बहनों ने एक दूसरे को खूब चूमा चाटा और दोनों ने एक दूसरे की चूत में उंगली की और दोनों की दोनों ने अपना अपना पानी छुड़वाया।
मेरा तो मुट्ठ मार मार के लंड भी दुखने लगा था, वैसे भी मैं तीन बार मुट्ठ मार के अपना पानी निकाल चुका था।
अब तो मेरे लिए और बढ़िया हो गया था, अब मैं अक्सर दोनों बहनों का लेस्बीयन सेक्स देखा करता, 4-5 बार करने के बाद तो वो इतना खुल गई के अपना कमरा बंद करने के बाद वो अक्सर लिप किसिंग, एक दूसरे के बोबे दबाना, एक दूसरी की गाँड में उंगली देना जैसी हरकतें करती। फिर मैंने सोचा के इन का तो हो गया, अपना पपलू कैसे फिट करूँ। फिर मैंने एक और स्कीम लगाई। मीनू अक्सर दोपहर को बाहर वाले बाथरूम में जाती थी और कई बार तो काफी देर लगा कर आती थी, मुझे इस बात का आइडिया था के वो हस्तमैथुन करने ही जाती है तो मैं इस बात का खयाल रखने लगा के वो कब कब वहाँ जाती है। एक दिन मैं जानबूझ के बाहर वाले बाथरूम में मीनू के बाथरूम जाने के टाइम से थोड़ा पहले घुस गया और अपनी झांट रेज़र से शेव करके साफ करने लगा।
जब झांट साफ कर चुका तो वैसे ही अपने लंड से खेलने लगा, तो लंड महाशय भी खड़े हो गए, उस वक़्त मैंने सिर्फ बनियान पहनी हुई थी, नीचे से नंगा था। बाथरूम का दरवाजा मैंने लॉक नहीं किया बल्कि थोड़ा सा खुला रखा था ताकि सामने से आने वाले पे नज़र रख सकूँ।
थोड़ी देर में ही मैंने देखा, मीनू सामने से चली आ रही है, मैं उसके स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार था। मैंने यूं ही लंड के आस पास रेज़र फेरना शुरू कर दिया और मुँह दरवाजे की तरफ ही रखा ताकि जो भी बाहर से आए वो सबसे पहले मेरे लंड के ही दर्शन करे।
वही हुआ, जैसे ही मीनू ने आ कर दरवाजा खोला तो उसकी तो आँखें फटी की फटी रह गई, मैंने देखा उसकी नज़र मेरे तने हुए लंड पे ही अटक गई थी।
‘यह क्या कर रहे हो?’ वो बोली।
‘सफाई कर रहा हूँ, मुझे फालतू के बाल बिलकुल पसंद नहीं!’ मैंने थोड़ा बेशर्मी से कहा। ‘तो दरवाजा तो बंद कर लो!’ यह कह कर वो जाने लगी। ‘अरे सुनो, तुमने जाना है तो जाओ, मेरा तो हो गया!’ यह कह कर मैंने झट से अपनी निकर पहनी और बाथरूम से बाहर आ गया। बहाने से मैंने मीनू को अपना लंड दिखा दिया था और मैं अब उसका असर देखना चाहता था।
मीनू काफी देर बाद बाथरूम से निकली। रात को मीनू ने सारी बात चीनू को बताई, मैं खिड़की के बाहर खड़ा सुन तो नहीं सकता था पर समझ ज़रूर गया था कि दोनों बहनों ने उस दिन मेरे लंड के नाम का हस्तमैथुन किया था। मेरे लंड दिखाने का असर यह हुआ कि एक दिन मैं जब रात को उठ कर बाथरूम करने गया, उस वक़्त रात के कोई डेढ़ बज रहे होंगे। मैंने देखा बाथरूम की बत्ती जल रही थी।
मुझे अचरज हुआ कि बाथरूम की बत्ती किसने जलायी। मैं धीरे से बाथरूम के पास गया दरवाजे की दरार से अंदर देखा, अंदर मीनू बैठी पेशाब कर रही थी।
‘ओह माइ गॉड…’ मेरा हाथ तो जभी लंड पे गया। अंदर नंगी लड़की बैठी है और दरवाजा खुला है, मैंने अपना लंड सहलाया और जब लंड तन गया तो मैंने लंड को अपनी निकर से बाहर निकाला उसकी चमड़ी पीछे की और ऐसे बाथरूम में घुसा जैसे बहुत ज़ोर की लगी हो। अंदर घुसते ही मैंने बड़ी हैरानी से पूछा- मीनू तुम, यहाँ, क्या कर रही हो?
अब वो पाजामा उतार के बैठी पेशाब ही कर रही होगी, उसने मेरी तरफ और फिर मेरे लंड की तरफ देख कर वैसे ही बैठे बैठे कहा- बाथरूम आई थी।
‘ओ के, हो गया तो मैं भी कर लूँ…’ मैं अपने लंड को हाथ में पकड़ के हिलाते हुए बोला।
‘हाँ कर लो…’ यह कह कर वो उठी तो उसकी गोल गदराई हुई गाँड मेरी तरफ को थी। शायद एक सेकंड के हजारवें हिस्से में ही मैंने सोच लिया कि अब अगर तूने इस लड़की को पकड़ लिया तो पकड़ लिया वर्ना ते गई हाथ से। बस उसी वक़्त मैंने बिजली की रफ्तार से एकदम से मीनू को पीछे से बाहों में जकड़ लिया, मेरा लंड उसकी गाँड के सुराख पे लगा जिसे उसने वहीं पे भींच लिया। मैंने उसे सीधा खड़ा किया, मेरे दोनों हाथ उसके दोनों बोबे पकड़े हुए थे, मैंने उसकी गर्दन पे किस किया, फिर कान के पास, फिर कान के नीचे जबड़े के पास अपनी जीभ से चाटा। उसने अपने हाथ से मेरे बालों को सहलाया। मैंने अपने दोनों हाथ उसकी टी शर्ट के अंदर डाल कर उसके दोनों बोबे पकड़ लिए और बड़े प्यार से सहला सहला के दबाये। उसकी साँसें तेज़ होने लगी, मैंने उसका मुँह घुमाया और उसके होंठों को अपने होंठों में कैद कर लिया। होंठों के बाद जीभें आपस में उलझ पड़ी। फिर मैंने उसे घुमाया और उसका मुंह अपनी तरफ किया, इस बार हम दोनों ने एक दूसरे को बड़े ज़ोर से गले लगाया जैसे दोनों इसी दिन का इंतज़ार कर रहे हों। मैंने अपना लंड मीनू के हाथ में पकड़ा दिया और उसके दोनों निपल्लों को अपनी उँगलियों से मसला।
उसके मुँह से सिसकारी निकली। ‘अब सब्र नहीं होता, मीनू, प्लीज़ मेरा लंड ले अपने अंदर ले ले!” मैंने कहा तो वो बोली- यहाँ नहीं कोई आ भी सकता है तेरे कमरे में चलते हैं।
मैंने बाथरूम की बत्ती बंद की और चुपके से मीनू को लेकर अपने कमरे में आ गया। कमरे में चीनू सो रही थी, हम दोनों जाकर उसके साथ ही लेट गए। लेट क्या गए बस लेटते ही एक मिनट में अपने अपने कपड़े उतार फेंके। मीनू ने अपनी टाँगें फैला कर मुझे अपने से सटा लिया और अपनी टाँगों का घेरा मेरी कमर के गिर्द कस दिया, फिर से होंठों से होंठ जुड़ गए। मेरा लंड मीनू के पेट से लगा था जिसे मैं उसके पेडू पे ही घिसा रहा था। मीनू ने खुद मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ा और अपनी चूत पे रख लिया।
मैंने जब थोड़ा ज़ोर लगाया तो जैसे ही मेरे लंड का सुपाड़ा उसकी चूत में घुसा उसके मुँह हल्की सी चीख निकल गई ‘हाई माँ…’ जब उसने कहा तो पास में सो रही चीनू भी उठ गई, उसने साइड पे पड़ा टेबल लेंप जलाया तो देखा के हम दोनों बिल्कुल नंगे आपस में गूँथे पड़े थे। वो हैरान हो कर बोली- यह तुम क्या कर रहे हो? मैंने एक बार और ज़ोर लगाया और अपना लंड मीनू की चूत में और अंदर ठेलते हुये कहा- सेक्स… और जैसे ही मैंने दूसरा धक्का मारा मीनू के मुँह से एक और हल्की सी चीख ‘हाय मेरी माँ, मर गई मैं…’ निकल गई।
चीनू बोली- बीनू रहने दे भाई, मीनू को दर्द हो रहा है।मगर मुझसे पहले ही मीनू बोल पड़ी- चुप कर साली, दर्द नहीं मज़ा आ रहा है मज़ा, तू लगा रह यार।
अब तक तो मेरा पूरा लंड मीनू की चूत में घुस चुका था। जब लंड पूरा अंदर चला गया तो मैंने लंड आगे पीछे करके मीनू को चोदने लगा। हम दोनों एक दूसरे के होंठ चूसते, जीभ से जीभ लड़ाते प्यार कर रहे थे और पास लेटी चीनू ये सब देख रही थी।
मैंने देखाचीनू के छोटे छोटे बूब्स जो उसकी टी शर्ट में थे उनके निपल कड़े हो गए थे। मैंने चीनू के आँखों में देखा और अपना हाथ बढ़ा कर मैंने उसका बूब पकड़ लिया। उसने कोई विरोध नहीं किया, शायद वो भी गरम हो चुकी थी।
मीनू ने पूछा- यह क्या कर रहे हो? मैंने कहा- देखो चीनू भी जवान है, उसका भी दिल कर रहा है, क्यों न उसे भी अपने जवानी के खेल में शामिल कर लें।
मीनू ने चीनू की तरफ देखा, दोनों कुछ नहीं बोली तो मैंने चीनू को अपनी तरफ खींच लिया, पास खींच कर मैंने उसके होंठों पे अपने होंठ रख दिये। वाह, क्या किस्मत थी मेरी भी, एक बहन की चूत में मेरा लंड और दूसरी बहन के होंठ मेरे होंठों में।
‘चीनू, तू भी अपने कपड़े उतार दे!’ मैंने कहा तो चीनू ने भी धीरे धीरे से अपने कपड़े उतारने शुरू किए, अब मुझे मीनू में कोई खास इंटरेस्ट नहीं रह गया था, क्योंकि उसे तो मैं चोद चुका था। मैंने खुद हेल्प करके चीनू को नंगी किया और उसके बाद उसे लेटा कर खुद उसके ऊपर लेट गया, उसके कच्चे कुँवारे बदन की महक ही अलग थी। मैंने थोड़ी सी किसिंग की और उसके मासूम से छोटे छोटे स्तन चूसे, स्तन चूसने के बाद मैंने अपने लंड को उसकी चूत पे रखा। मीनू बोली- आराम से, वो छोटी है, अगर दर्द ज़्यादा हुआ तो निकाल लेना और मुझ से कर लेना, मगर इसका ख्याल रखना।
मैंने बड़े आज्ञाकारी की तरह हामी भरी और चीनू के होंठ अपने होंठों में अच्छी तरह से पकड़ने के बाद, यह पक्का करके कि अगर इसके मुँह से चीख निकली तो उसे मैं अपने मुँह में ही समा लूँगा, मैंने लंड पे ज़ोर बढ़ाया। बेशक मैंने आराम से डाला मगर कुँवारी लड़की को तो तकलीफ होती ही है। मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में भींच के रखा और लंड को अंदर धकेल दिया। वो तड़प उठी, मगर मैंने उसे बहुत मजबूती से पकड़ा था, मीनू को भी लगा के चीनू को बहुत दर्द हो रहा था, उसने मुझसे कहा भी- रहने दे बीनू, उसे दर्द हो रहा है।
मगर मैं कुँवारी चूत को फाड़ने का सुख कैसे छोड़ देता। और कुछ नहीं तो ये तो बस मेरी मर्दानगी, मेरे अहंकार की संतुष्टि थी। बिना उसके दर्द की परवाह किए मैंने अपना पूरा लंड उसकी छोटी सी चूत में उतार दिया। उसके मुँह से चीख तो न निकल सकी मगर उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े।
अब तो मीनू भी गुस्सा हो गई- क्या कर रहा है यार, देख उसको कितना दर्द हो रहा, निकाल बाहर। मैंने भी मौके की नज़ाकत को समझते हुये, अपना लंड बाहर निकाल लिया। चीनू ने अपने दोनों हाथों से अपनी चूत पकड़ी और करवट ले कर लेट गई, और रोने लगी, मीनू उसे चुप करवाने लगी।
अब मेरे करने के लिए कुछ नहीं बचा था मैंने मीनू से पूछा के क्या वो मेरे साथ करेगी, तो उसने मुझे बुरी तरह से डांट कर भगा दिया। मैं अपने कपड़े उठा कर अपने कमरे में आ गया।
कमरे में आकर देखा तो मेरे लंड पे थोड़ा सा खून लगा था। आह, क्या सुकून मिला मन को कि मैंने एक कच्ची कली को मसल के फूल बना दिया। इसी खुशी में मैं तो मुट्ठ मार कर सो गया।
उसके बाद दोनों बहनों ने मुझे नहीं बुलाया, करीब 15-20 दिनो तक मनमुटाव चला मगर धीरे धीरे सब ठीक हो गया। उसके बाद तो एक रात मैं फिर से उन दोनों के कमरे में था। और इस बार दोनों बहनों ने मेरा बड़ा हंस कर स्वागत किया, वो खुश थी के उनको लंड मिलने वाला है और मैं खुश था कि मुझे चूत मिलने वाली है, और वो भी दो दो। [email protected]
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