This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
मैं- क्यों जी.. मैदान खाली है क्या? तृषा ने हँसते हुए कहा- ह्म्म्म.. सबको दूसरे शहर भेज दिया है.. मेरी शादी का जोड़ा लाने.. अब तो कल ही आ पायेंगे.. मैं- और आपने अपना हनीमून प्लान कर लिया!
तृषा मुझे रोकते हुए बोली- तुम्हारा हर इलज़ाम कुबूल है मुझे.. पर ये नहीं.. तुमसे प्यार किया है मैंने.. और पहले भी तुमसे कह चुकी हूँ… तुम्हारी थी.. तुम्हारी हूँ और हमेशा तुम्हारी ही रहूँगी।
मैं शायद कुछ ज्यादा ही कह गया था। फिर बात को संभालते हुए मैंने कहा- तो आपको शादी की तैयारी में हेल्प चाहिए थी.. अब बताओ ‘फूट मसाज’ दूँ या ‘फुल बॉडी मसाज’ चाहिए।
तृषा- ह्म्म्म… मौके का फायदा.. जान पहले आराम तो कर लो.. मैं कुछ खाने के लिए लेकर आती हूँ।
यह कहते हुए जैसे ही रसोई में जाने को हुई.. मैंने उसका हाथ पकड़ा और गोद में उठा लिया और उसके बेडरूम में ला कर पटक दिया।
तृषा- बड़े बदमाश हो तुम.. बड़े नादान हो तुम.. हाँ.. मगर ये सच है.. हमारी जान हो तुम.. कहते हुए उसने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए।
वो उसका मुझे देखना.. मुझे पागल किए जा रहा था। कितनी सच्चाई थी इन आँखों में.. मैं डूबता चला गया इन आँखों की गहराईयों में.. अब ना तो मुझे कुछ होश रहा था.. ना मैं होश में आना चाहता था.. बस उसके प्यार में अपने आपको खो देना चाहता था मैं..
मैं भूल बैठा था अपने हर दर्द को.. या यूँ कहूँ कि मैं भूल जाना चाहता था हर उस बात को.. जो इतने दिनों से कांटे की तरह चुभ रही थी। जैसे उसकी हर छुअन मेरे जिस्म में जान डाल रही थी।
मैंने उसे फिर गोद में उठाया और बाथरूम में लेकर आ गया। हम दोनों ने एक-एक कर एक-दूसरे के कपड़े उतारे और उसे बाथरूम में टांग दिए। अभी उसकी आँखें बंद थीं, मैंने शावर को ऑन किया और उसे चूमने लग गया, तृषा ने भी मुझे कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया। अब मेरे हाथ उसके कूल्हों को मसल रहे थे, तृषा मेरे कंधे को चूम रही थी। मैंने पास रखे साबुन को लिया और अपने हाथों में साबुन लगा कर उसके पूरे बदन पर हल्के-हल्के लगाने लगा।
अब उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं। मैंने अपनी उँगलियों से उसके जिस्म को सहला रहा था और जब-जब उसकी साँसें ज्यादा तेज़ होने लगतीं.. उसे दांतों से हौले से काट लेता। इस हरकत से वो और भी बेचैन हुई जा रही थी। उसकी बेचैनी अब उसकी लाल और नशीली आँखें बता रही थीं। मेरे इस वार का बदला लेने के लिए उसने मेरे लिंग को पकड़ कर अपने मुँह में डाल लिया। वो अब अपनी पूरी ताकत से मेरा लिंग को चूस रही थी। मुझे भी अब मज़ा आने लगा था और मैंने भी उसका साथ देना शुरू कर दिया।
हमारे बदन अब इतने गर्म हो चुके थे कि वो ठंडा पानी भी मानो हमारे जिस्म से टकरा कर खुल उठता था।
मैंने उसे खड़ा किया और फिर से अपने पसंदीदा आसन में उसे गोद में उठाया और उसकी टांगों को अपने कंधे पे रख अपने लिंग को उसकी गुदा में अन्दर तक डाल दिया। वो बाथरूम के दीवार से लगी थी और उसने शावर को पकड़ रखा था। मैंने धक्कों की रफ़्तार को बढ़ा दिया। फिर जब मैं झड़ने को हुआ.. तब उसे अपनी गोद से उतार नीचे घुटनों पर बिठाया और अपने लिंग को उसके मुँह में दे दिया।
फिर वैसे ही अन्दर-बाहर करता हुआ उसके मुँह में अपना वीर्य गिरा दिया। थोड़ी देर तक चिपकने के बाद हम बाथरूम से बाहर आए और मैं अपनी पैंट पहन कर बिस्तर पर गिर पड़ा और तृषा को अपने ऊपर लिटा लिया।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
एक बार फिर हमारे होंठ मिल गए। हमारी आँखें थकान की वजह से अब बोझिल हो रही थीं.. पर तृषा की आँखों में नींद कहाँ थी।
उसने कपड़े बदले और मेरे लिए नाश्ता लाने चली गई।
मैंने भी कपड़े पहन लिए.. पर गर्मी थोड़ी अधिक थी.. सो शर्ट नहीं पहनी थी। तृषा कमरे में दाखिल हुई। ‘अब उठ भी जाओ जान..’
तृषा की आवाज़ सुनते ही मैंने दूसरी तरफ अपना चेहरा किया और तकिए को अपने कानों पर रख लिया।
तृषा नाश्ते को प्लेट में सजा कर मेरे पास आ गई- अब उठ भी जाईए.. बाद में आप सो लेना। मैं- मुझे नहीं उठना है बस.. आपके होते हुए मैं अपने हाथ गंदे क्यूँ करूँ? तृषा ने मेरे गले पर चूमते हुए कहा- ठीक है मेरा बाबू! मैं- अरे गुदगुदी होती है.. ऐसे मत करो ना..
मैं झटके से उठ कर बैठ गया। तृषा को तो जैसे मैंने जैकपॉट दिखा दिया हो। अब तो बस उसकी गुदगुदी और हाथ जोड़ कर उससे भागता हुआ मैं.. ‘भगवान के लिए मुझे छोड़ दो..’ मैं चिल्ला रहा था।
तृषा मुझे पकड़ने को लगी थी- जानेमन.. भगवान से तू तब मिलेगा न.. जब मुझसे बचेगा.. उसने फिर से वहीं गुदगुदी करना शुरू कर दी। आखिर में.. मैंने उसके हाथ पकड़ कर मरोड़ दिए.. तब जाकर रुकी।
मैंने उसके हाथ सख्ती से पकड़ रखे थे.. बेचारी हिल भी नहीं सकती थी। अब बदला लेने की बारी मेरी थी, मैं अपने होंठों को उसके कानों के पास ले गया और अपनी जीभ से उसके कानों को कुरेदने लगा।
मैं जानता था कि उसे तो बस यहीं गुदगुदी लगेगी, वो लगभग चिल्ला रही थी- जो कहोगे.. वो करूँगी मैं.. प्लीज मुझे छोड़ दो। मेरा बदला अब पूरा हो चुका था सो मैंने उसे छोड़ दिया।
मैं- खाना तो खिलाओ.. भूख लगी है। वैसे भी बिना खिलाए-पिलाए इतनी मेहनत करवा चुकी हो। तृषा- किसने कहा था मेहनत करने को.. तुम तो खुद ही जोश में आ गए थे..
मैं- मैं तो तुमसे हमेशा कहता हूँ कि अगर मुझे काबू में रखना हो तो मेरे सामने लाल कपड़ों में मत आया करो.. जब खुद ने गलती की हो.. तो भुगतो।
तृषा- अब आप बस बातें ही बनाते रहोगे.. चलो खाना तो खाओ.. लाओ मैं खिला देती हूँ। मैं तो बस उसके चेहरे को ही देखे जा रहा था। जिसे देख मुझे एक ग़ज़ल की कुछ लाइन याद आ रही थी।
‘चौदहवीं की रात थी.. शब भर रहा चर्चा तेरा… सब ने कहा चाँद है.. मैंने कहा चेहरा तेरा..’
मैं तो खोया ही हुआ था कि उसके पहले निवाले ने मेरी तन्द्रा भंग की। मैंने नाश्ते की प्लेट पर नज़र डाली, चावल.. चिकन अफगानी और टमाटर की बनी ग्रेवी थी। मेरा सबसे पसंदीदा खाना.. जो मैं अक्सर तृषा के साथ रेस्टोरेंट में खाया करता था।
तृषा शायद ही कभी अपने घर में कुछ बनाया करती थी। मैं अक्सर उसे ताने देता कि तुम अगर मेरी बीवी बनी.. तब तो बस जली हुई चपातियों से ही काम चलाना होगा। वो हर बार जवाब में मुझसे यही कहती- अभी शादी को बहुत वक़्त है.. तब तक सीख लूँगी न..
मैं- कब सीखा ये बनाना तुमने? तृषा- तुम्हें अपने हाथों से बनाई हुई डिश खिलानी थी.. वर्ना जाने के बाद भी मुझे ताने मारते। अब वैसे भी वक़्त बचा नहीं है.. सो मैंने… मैंने अपने हाथ उसके मुँह पर रख कर उसकी बात यहीं रोक दी। ‘वक़्त की याद दिलाओगी.. तो शायद इस वक़्त को भी मैं जी ना पाऊँ!’
अब हम दोनों चुप थे, ये खामोशियाँ भी चुभन देती हैं.. इस बात का एहसास मुझे उसी वक़्त हुआ।
मैंने खाना ख़त्म किया और अपनी शर्ट पहनने लगा, तृषा को शायद ये लगा कि मैं अब जाने वाला हूँ, वो सब छोड़-छाड़ कर मुझसे लिपट गई।
मैंने कहा- जान हाथ तो धो लो.. मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ..
तृषा- ठीक है.. पर ये शर्ट मेरे पास रहेगा.. मैं तुम्हें ये देने वाली हूँ ही नहीं।
मैं- अरे यार.. तो मैं घर कैसे जाऊँगा।
तृषा- वो सब मैं नहीं जानती.. मैं ये शर्ट नहीं देने वाली हूँ तुम्हें.. बस..
वैसे भी बिना हाथ धोए ही उसने इसे पकड़ लिया था.. सो सफ़ेद शर्ट में दाग भी लग गए थे। मैं इसे ऐसे में घर पहन जा भी नहीं सकता था।
सो मैंने कहा- ठीक है जी.. आपका हुकुम सर आँखों पर..
तृषा रसोई ठीक करने में लग गई और मैंने अपने फ़ोन को स्पीकर से जोड़ा और तेज़-तेज़ गाने बजाने लगा। उस पर भी अजीब से मेरे डांस स्टेप्स।
तृषा के दादा-दादी की बोलचाल की भाषा भोजपुरी थी और जब भी मुझे तृषा को चिढ़ाना होता.. मैं या तो उससे भोजपुरी में बातें करने लगता या फिर ऐसे ही भोजपुरी गाने तेज़ आवाज़ में बजाने लगता। आज भी मैं वही सब कर रहा था।
मैं ऐसे ही डांस करते हुते रसोई में गया और तृषा के दुपट्टे को अपने दांतों में फंसा कर बारात वाले नागिन डांस के स्टेप्स करने लग गया।
तृषा चिढ़ती हुई बाहर आई और उसने गाना बंद कर दिया.. मैंने उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा- का हो करेजा? (क्या हुआ मेरी जान) तृषा- ने अपना मुँह अजीब सा बनाते हुए कहा- अब कहो.. मैं- रउरा के हई डिजाइन देख के मन करतवा कि चापाकल में डूब के जान दे दई.. (तुम्हारे इस फिगर को देख कर ऐसा लग रहा है.. जैसे हैण्ड पंप में कूद के जान दूँ मैं..)
तृषा ने अपना सर पकड़ते हुए कहा- आज तो तुम कूद ही जाओ.. मैं भी देखूँ आखिर कैसे एडजस्ट होते हो तुम उसमें?
मैं हंसने लग गया.. मैंने वाल-डांस की धुन बजाई और तृषा को बांहों में ले स्टेप्स मिलाने लगा। यह डांस तृषा ने ही मुझे सिखाया था। एक-दूसरे की बांहों में बाँहें डाले.. आँखें बस एक-दूसरे को ही देखती हुई।
मैं धीरे से उसके कानों के पास गया और उससे कहा- सच में चली जाओगी मुझे छोड़ के? तृषा ने मुझे कस कर पकड़ते हुए कहा- नहीं.. बस झूटमूट का.. मैं तो हमेशा तुम्हारे पास ही रहूँगी। जब कभी अकेला लगे.. अपनी आँखें बंद करना और मुझे याद करना। अगर तुम्हें गुदगुदी हुई तो समझ लेना मैं तुम्हारे साथ हूँ।
वो फिर से मुझे गुदगुदी करने लग गई और मैं उससे बचता हुआ कमरे में एक जगह से दूसरी जगह भागने लग गया। आखिर में हम दोनों थक कर बैठ गए। मेरे जन्मदिन वाले दिन को जो हुआ था.. उसके बाद शायद ही कभी हंसे थे हम दोनों..
कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं। कहानी जारी है। [email protected]
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000