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लेखक : अमन वर्मा प्रेषिका : टी पी एल अगले दिन सुबह सात बजे जब प्रीति आई तब मैंने उसे कहा- प्रीति मैंने तुम्हारी समस्या और दशा पर रात भर सोच कर निर्णय कर लिया है कि तुम जब भी चाहो मेरे घर में कपड़े धो सकती हो।
प्रीति ने कहा- यह कैसे हो सकता है, जब आप कॉलेज गए हुए होंगे तब मैं घर में कपड़े कैसे धो सकती हूँ।
मैंने तुरंत घर की दूसरी चाबी निकाल कर देते हुए कहा- यह घर की दूसरी चाबी अपने पास रख लो और जब भी चाहो तुम आकर कपड़े धो सकती हो।
मेरी बात सुन कर प्रीति अवाक सी मेरी ओर देखते हुए बोली- मैं यह नहीं करना चाहती हूँ लेकिन मेरी मजबूरी के कारण मुझे आपकी बात मानना पड़ रही है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं आपके इस उपकार को कैसे उतारूँगी।
अनायास ही मेरे मुख से निकल गया- प्रीति, मेरी गैर हाजिरी में तुम मेरे कमरे की सफाई आदि करके अपने पर हुए उपकार को उतार देना। दूसरा अड़ोस पड़ोस और मकान मालिक भी यही समझेंगे कि मैंने तुम्हें कमरे की सफाई के लिए रखा है।
मेरी बात सुन कर प्रीति ने चुपचाप मेरे हाथ से कमरे की चाभी ले ली और मुझे धन्यवाद करके चली गई।
मैं भी तैयार हो कर कॉलेज चला गया और जब शाम को कमरे पर आया तो… उसकी रूप रेखा देख कर हैरान हो गया। मेरा पूरा कमरा बता रहा था कि उसे किसी स्त्री का हाथ लग चुका था क्योंकि हर वस्तु चमकती हुई अपने यथा स्थान पर रखी हुई थी और मेरे धुले एवं प्रेस लिए हुए कपड़े मेरे बिस्तर पर रखे हुए थे।
मैं कपड़े उठा कर अलमारी में रखने लगा तो देखा कि प्रीति ने बाथरूम में टंगे मेरे सभी बनियान और अंडरवियर भी धो डाले थे और जब मैं चाय बनाने लगा तो देखा कि उसने सभी बर्तन भी मांज कर साफ़ कर दिए थे।
अगला दिन शनिवार था और उस दिन कॉलेज सिर्फ आधा दिन ही होता था इसलिए दोपहर के दो बजे लेक्चर समाप्त होने के बाद जब मैं कमरे पर पहुँचा तो दरवाज़ा भिड़ा हुआ पाया।
मैं दरवाजे को धकेलता हुआ कमरे के अंदर गया तो मुझे बाथरूम से पानी के चलने की ध्वनि सुनाई दी।
मेरा अनुमान था कि बाथरूम में प्रीति कपड़े धो रही होगी लेकिन कौतुहलवश जब मैं बाथरूम के द्वार के अंदर झाँका तो वहीं जड़ हो कर खड़ा रह गया क्योंकि प्रीति को मेरे जल्दी वापिस आने की सम्भावना नहीं थी इसलिए कपड़े धोने के बाद वह अपने सभी कपड़े उतार कर पूर्ण नग्न हो कर बाथरूम में नहा रही थी। वह नहाने में इतनी मग्न थी कि उसे न तो मेरे आने की आहट सुनी और ना ही उसने मुझे बाथरूम के दरवाज़े पर खड़ा देखा।
मैं दरवाज़े के ओट से वहीं खड़ा हो कर प्रीति के शरीर की वास्तविक सुन्दरता को निहारने लगा।
उसका रंग हल्का गेहुँवा ज़रूर था लेकिन शरीर के बनावट तो एक अप्सरा जैसी थी। उसका कद पांच फुट छह इंच था और उसके लम्बे बाल काले थे जो उसके नितम्बों तक पहुँच रहे थे। उसका चेहरा अंडाकार था, लाल गाल उठे हुए थे, ठोड़ी नुकीली थी, उसकी हिरनी जैसी बड़ी बड़ी काली आँखे थी, नाक पतली एवं लम्बी थी, और गर्दन सुराहीदार थी। उसके गठे हुए कंधे सीधे थे, 34 इंच के उरोज बहुत कसे हुए थे, उस पर गहरे भूरे रंग की चुचूक एकदम सख्त और खड़े हुए थे।
उसकी पेट सपाट था और उसकी 26 इंच की कमर के बीचों बीच स्थित नाभि एक शृंगार की तरह चमक रही थी। उसके 36 इन्च के उभरे हुए कूल्हे गोल एवं कसे हुए थे और उसकी भरी भरी जांघें मांसल थी। उसकी टांगों की पिंडलियाँ बहुत ही सुडौल थी और बहुत ही आकर्षक और सेक्सी लग रही थी।
सोने पर सुहागा तो उसके छोटे छोटे पैर थे जो निहायत सुन्दर थे और लगता था कि जैसे वे किसी नृत्यांगना के पैर हों।
मैं दरवाज़े की ओट से प्रीति के नग्न शरीर की सुन्दरता का रसपान कर रहा था कि तभी वह नहाना बंद करके उठ कर खड़ी हो गई और अपने साथ लाई एक कपड़े से अपने बदन को सुखाने लगी।
उसके खड़े होते ही मुझे उसके जघन-स्थल के दर्शन हुए जहाँ बहुत ही थोड़े से गहरे भूरे रंग के छोटे छोटे बाल उगे हुए थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! उन बालों के बीच में उसकी योनि की दरार की रेखा दिखते ही मेरा अर्ध चेतना की अवस्था में खड़ा लिंग एकदम से अकड़ गया और बाहर से मेरी जीन्स में उभार की तरह दिखने लगा।
इसके बाद जब वह मेरी ओर पीठ करके झुकी कर अपनी जांघें और टाँगें से पानी सुखाने लगी तब मुझे उसके जाँघों तथा नितम्बों के बीच की दरार में से उसकी छोटी सी योनि के दर्शन भी हो गए।
क्योंकि अब मेरे लिए सहन करना बहुत ही मुश्किल हो गया था इसलिए मैं वहाँ से हट कर अपने बिस्तर के पास जा कर अपने जूते, पैंट और कमीज़ उतारे।
मैं हाथ में लोअर को पकड़े हुए अंडरवियर और बनियान में खड़ा हुआ था जब प्रीति ब्लाउज एवं पेटीकोट पहन कर बाथरूम से बाहर आई और मुझे देखते ही बोली- अरे, अमन जी आप कब आये? मुझे तो आपके आने का पता ही नहीं चला।
मैंने उत्तर दिया- बस अभी आया हूँ।
मैं जब उसकी ओर मुड़ा तो देखा कि वह मेरे उत्तेजित लिंग के कारण मेरे अंडरवियर में हुए उभार को बड़े गौर से देख रही थी।
मैंने तुरंत अपने को सम्भाला और अपना लोअर और टी-शर्ट पहन लिया और उसकी ओर देखा तो वह साड़ी पहन रही थी।
क्योंकि उसने ब्लाउज के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी इसलिए उसके उरोजों एवं चुचुक का उभार उसके ब्लाउज में से बाहर की ओर साफ़ साफ़ दिख रहा था।
उस समय जब मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी तब मेरा दिल कह रहा था कि मैं प्रीति को पकड़ कर उससे प्यार कर लूँ लेकिन उधर दिमाग कह रहा था यह ठीक नहीं होगा।
दिल और दिमाग के इस द्वंद-युद्ध में दिमाग की विजय हुई और मैंने अपनी नज़रें प्रीति से हटा ली और अपने लिंग को शांत करने के लिए बाथरूम में घुस गया।
अपने लिंग को शांत करने के लिए जब मैं हस्तमैथुन करके बाथरूम से बाहर निकला तब देखा की प्रीति बाथरूम के दरवाज़े के पास खड़ी मुस्करा रही थी।
उसकी मुस्कराहट देख कर मैं समझ गया कि उसने मेरे द्वारा बाथरूम के अंदर करी गई हर क्रिया को देख लिया था।
उसके बाद प्रीति ने धुले हुए कपड़ों की गठरी उठाई और अगले दिन आने के लिए कह कर चली गई। कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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