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मेरी कॉलेज लाइफ की शुरुआत कुछ मजेदार नहीं रही. पहले ही दिन से अजीब अजीब घटनाओं के कारण मेरा मन खराब रहा लेकिन वो लड़की मुझे बहुत अच्छी लगी.
हैलो फ्रेंड्स, मैं महेश आपको शायरा से अपने प्रेम की सेक्स कहानी सुना रहा था.
पिछले भाग में अब तक आपने पढ़ा था कि मैं बस से कॉलेज जा रहा था. मेरे साथ एक बहुत ही खूबसूरत लड़की बस में चढ़ गई थी. जिसको मैं देख रहा था.
अब आगे:
अब इस देखा देखी में पता ही नहीं चला कि कब कॉलेज आ गया. वैसे भी मैंने जहां कमरा लिया हुआ था … वहां से कॉलेज ज्यादा दूर नहीं था. बस चार पांच किलोमीटर ही दूर था. जिसके बीच में बस एक ट्रैफिक सिग्नल ही आता है और उसके बाद सीधा कॉलेज का गेट आ जाता है.
बस स्टॉप कॉलेज के गेट के पास ही था.
कॉलेज आने पर मेरे साथ साथ वो भी वहीं उतर गयी … वो क्या लगभग वो पूरी बस ही वहां खाली हो गयी थी. क्योंकि वो सब शायद उसी कॉलेज में पढ़ने वाले थे.
उसको कॉलेज के पास उतरने से मैं तो खुश हो गया. सोचा कि ये भी इसी कॉलेज में पढ़ती होगी, इसलिए अब तो उसे रोज देखा करूंगा और हो सकता है आगे जाकर कभी उससे दोस्ती भी हो जाए.
मगर बस से उतर कर वो लड़की अब कॉलेज जाने की बजाए दूसरी तरफ चली गई. शायद वो कॉलेज नहीं आई थी. उसके वहां उतरने से मैं खुश हो गया था मगर जब उसे दूसरी तरफ जाते देखा, तो दिल फिर से मायूस हो गया.
खैर … बस से उतरकर मैं अब कॉलेज में आ गया और दिन भर कॉलेज में ही रहा.
मैं नया नया था इसलिए कॉलेज में रैगिंग के नाम पर सीनियर लड़कों ने थोड़ा बहुत परेशान तो किया, मगर फिर भी सब कुछ ठीक ही रहा.
कॉलेज में तो सब ठीक रहा.
मगर कॉलेज खत्म होने के बाद जब मैं वापस जाने लगा … तो बस स्टॉप पर वो लड़की फिर से मुझे वहां मिल गयी.
मेरे आते ही बस आ गयी थी, इसलिए बस में चढ़ने की जल्दी में उसने तो शायद मुझे नहीं देखा मगर मैंने उसे देख लिया था.
उस बस में एक भी सीट खाली नहीं थी इसलिए कॉलेज से जितने भी लोग उस बस में चढ़े थे, उनमें से किसी को भी सीट नहीं मिली, वो सब खड़े ही थे.
वैसे तो मैं सबसे आखिर में उस बस में चढ़ा था इसलिए मैं ही सबसे पीछे था.
मगर जैसे ही बस चली, मेरे आगे जो लड़के थे … वो आगे निकलकर बस के दरवाजे के पास जाकर खड़े हो गए और मैं उस लड़की के पीछे आ गया.
तब तक टिकट देने कंडक्टर भी आ गया. मैं सबसे आखिर में खड़ा था इसलिए वो कंडक्टर पीछे मेरे पास तक नहीं आया, बल्कि उस लड़की को टिकट देने के बाद वहीं खड़े खड़े ही मुझसे टिकट के लिए पैसे मांग लिए.
मेरे पास बहाना हो गया था … इसलिए मैंने भी थोड़ा सा आगे होकर उसे अपने पर्स से पैसे निकालकर दे दिए.
उस लड़की की सुन्दरता का मैं तो कायल था ही, उसके पीछे आते ही मेरी सुबह वाली शंका भी फिर से जाग गयी. मैं उस लड़की के पीछे तो था ही, इसलिए थोड़ा सा उसके और नजदीक होकर उसके कंधे से अपने कंधे की तुलना करके देखने लगा कि सही में ही वो मुझसे लम्बी है या ये मेरा ही वहम है.
वो मुझसे लम्बी तो नहीं थी मगर उसकी लम्बाई मुझसे कम भी नहीं थी. उसकी लम्बाई लगभग 5.8 इंच के करीब थी. मैं अब अपने कंधे से उसके कंधे की तुलना कर ही रहा था कि तब तक कंडक्टर ने मुझे टिकट और बाकी के पैसे वापस थमा दिए.
अभी तक मैंने अपने एक हाथ में पर्स पकड़ा हुआ था और दूसरे हाथ से ऊपर बस में जो पकड़ने के लिए पाईप होता है, उसे पकड़ा हुआ था.
मगर जब कंडक्टर ने मुझे टिकट और बाकी के पैसे वापस दिए … तो उनको अपने पर्स में रखने के लिए मैंने ऊपर जो बस का जो पाईप पकड़ा हुआ था, उसे छोड़ दिया और दोनों हाथों से पैसे व टिकट को अपने पर्स में रखने लगा.
मैं पैसे व टिकट को अपने पर्स में रख ही रहा था कि तभी अचानक से ड्राईवर ने बस के ब्रेक लगा दिए. ब्रेक इतने ज्यादा तेज तो नहीं लगे थे, मगर अचानक ब्रेक लगने से मेरा बैलेन्स बिगड़ गया. मेरे हाथ से पर्स व टिकट तो छूटकर गिर ही गए, साथ ही मैं भी अपने आगे खड़ी उस लड़की पर गिर पड़ा.
उस लड़की पर गिरने से मैं नीचे गिरने से तो बच गया मगर वो लड़की मुझ पर बुरी तरह भड़क गयी और तमाशा खड़ा हो गया.
“क्या है … ठीक से खड़े भी नहीं हो सकते क्या?” उसने बुरा सा मुँह बनाकर मुझसे दूर हटते हुए कहा.
वो लड़की थोड़ा सा आगे हुई ही थी कि उसकी साड़ी का पल्लू बस की सीट से एक कील सी निकली हुई थी, उसमें फंस गया. मैंने ये देख लिया था, इसलिए कहीं उसकी साड़ी फट ना जाए … ये सोचकर जल्दी से उसे निकालने की सोची. मगर ‘हाय रे … मेरी किस्मत ..’ मैं जब उसकी साड़ी के पल्लू को निकाल रहा था, तब तो उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा. मगर जैसे ही मैंने उसकी साड़ी के पल्लू को उस कील से निकालकर अलग किया. उसी समय उसका भी पीछे मुड़कर देखना हो गया.
मैंने तो उसके अच्छे के लिए ये किया था मगर स्थिति अब उलट गयी थी, क्योंकि मेरा उसकी साड़ी को कील से निकालना हुआ और उसका पीछे मुड़कर देखना हुआ.
उसे तो शायद यही लगा कि मैंने ही उसकी साड़ी को खींचा है. मैं बुरा फंस गया था. वो पहले ही मुझ पर भड़की हुई थी और अब ये बवाल हो गया था.
मैं अभी कुछ बोलता कि तभी ‘चट्टाक ..’ एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा और उसे चिल्लाना शुरू कर दिया- ये सब क्या है … शर्म नहीं आती तुम्हें? उसने चिल्लाते हुए कहा और झटक कर मेरे हाथ से अपना पल्लू खींच लिया.
बस की सभी सवारियां अब मुझे और उस लड़की को ही देख रही थीं. इतने में किसी ने मेरी वकालत की.
“अरे … ये बेचारा तो तुम्हारी मदद कर रहा था, नहीं तो तेरी साड़ी फट जाती.” पीछे बैठी एक दूसरी औरत ने जब ये कहा, तो मुझे राहत सी मिली … मगर वो तो जैसे कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी.
“नहीं … ये सुबह से ही पीछे पड़ा हुआ है, इसको सबक सिखाना जरूरी था.” उस लड़की ने अब फिर से मुझे घूरते हुए कहा और पता नहीं क्या क्या बड़बड़ाने लगी.
मुझे उस लड़की पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था. जी कर रहा था कि अभी उल्टे हाथ का एक लगा दूँ … मगर गलती भी तो मेरी ही थी.
मैं फिलहाल और हंगामा नहीं करना चाहता था … इसलिए मैं शांत ही रहा. मैं बस चुपचाप एक हाथ से अपना गाल पकड़कर … कभी उस औरत को देखता रहा, तो कभी उस लड़की को. वो अब भी जोर जोर से बड़बड़ा रही थी, मगर मैं शांत रहा.
मेरा उस लड़की पर गिरना, उसके पल्लू का कील में फंसना, मेरा उसे निकलाना और उसका वो मुझे थप्पड़ मारना … ये सब इतनी जल्दी जल्दी हुआ कि मुझे समझने का कोई मौका ही नहीं मिला.
बस वाले ने सिग्नल बन्द होने के कारण वहां ब्रेक लगाया था. इसलिए बस अब भी वहीं रुकी हुई थी. मेरा पर्स और उस कंडक्टर ने मुझे जो टिकट व बाकी के खुले पैसे दिए थे, वो अभी भी नीचे ही पड़े थे.
मैंने ना तो टिकट व पैसों को उठाया … और ना ही अपने पर्स को उठाया. मैं चुपचाप वहीं उस बस से उतर गया और पैदल पैदल चलने लगा.
मैंने जहां कमरा लिया हुआ था, वो जगह वहां से ज्यादा दूर नहीं थी. इसलिए मैं वहां तक पैदल ही चलकर घर आ गया.
मगर घर आकर मैंने जैसे ही दरवाजा खटखटाया, दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं … बल्कि ये तो वो ही लड़की थी.
वो मुझे देखते ही अब आग बबूला सी हो गयी- त..तुम.. यहां क्या करने आए हो? उसने लगभग चिल्लाते हुए कहा.
“कौन है … अरे … ये वो नया लड़का होगा.” ये कहते हुए तब तक मकान मालकिन भी बाहर आ गईं. “अरे तुम … आ जाओ … अन्दर आ जाओ, शायरा … ये ही वो लड़का है, जिसने ऊपर का कमरा लिया है.”
मकान मालकिन ने उसे बताते हुए कहा. वो अब मेरी तरफ ऐसे देखने लगी, जैसे कि मुझे अभी कच्चा खा जाएगी.
‘ओह … तो इस आफत का नाम शायरा है.’ मैंने दिल में ही सोचा.
वो कुछ देर तो ऐसे ही मुझे घूर घूरकर देखती रही, फिर पैर से पटकते हुए ऊपर सीढ़ियां चढ़ गयी. शायद वो बीच वाली मंजिल पर रहती थी.
‘शरीफ बच्ची है, तुम नये हो ना … इसलिए तुम्हें जानती नहीं. अकेली रहती है बेचारी … इसलिए कुछ ज्यादा ही रोक-टोक करती है.’ मकान मालकिन ने उसको देखते हुए कहा.
‘बेचारी … और ये ..! इस बेचारी को तो कभी मौका मिले तो बताऊं … बताऊं नहीं … इसे तो मैं अच्छे से बजाऊं.’ मैंने दिल ही दिल में सोचा और ऊपर अपने कमरे में आ गया.
मेरा दिमाग खराब हो रहा था, इसलिए उस दिन मैं ना तो अपने कमरे से बाहर निकला … और ना ही रात को खाना खाने बाहर गया.
मैं पूरे दिन अपने कमरे में ही पड़ा रहा. इसलिए उस दिन तो मेरा उससे दोबारा सामना नहीं हुआ.
मगर अगले दिन मैं कॉलेज जाने लगा, तो बस स्टॉप पर वो मुझे फिर से वहां मिल गयी. उसने आज कुछ कहा तो नहीं … मगर मुझे देखकर बुरा सा मुँह बना लिया.
उसके साथ साथ कल वाले छह सात लड़के लड़कियां भी बस स्टाप पर खड़े थे, जो कि कल उसी बस में थे, जब उसने मुझे थप्पड़ मारा था.
मेरे वहां जाते ही वो सब मुझे अब घूर घूरकर देखने लगे. मुझे उनके सामने खड़े होने में भी शर्म आ रही थी, इसलिए मैं अब वहां खड़ा नहीं हुआ बल्कि वहां से पैदल ही चलकर कॉलेज आ गया.
मैं कॉलेज पहुंचा, तो मेरा एक और नयी मुसीबत इंतजार कर रही थी.
कॉलेज पहुंचा ही था मैं … कि गेट पर ही एक लड़के ने मेरे पैरों में पैर फंसा दिया, जिससे मैं धड़ाम से वहीं गिर गया. “क्या बे … बड़ी जल्दी में है?” उस लड़के ने कहा.
मुझे गुस्सा तो बहुत आया, पर कर भी क्या सकता था. रैगिंग के नाम पर सभी कॉलेजों में सीनियर लड़के लड़कियां नये छात्र को परेशान करते ही हैं. कल भी कुछ लड़कों ने ऐसा किया था … मगर इतना नहीं.
खैर … मैं चुपचाप रहा और उठकर खड़ा हो गया.
“तुझे सीनियर की इज्जत करने का भी नहीं पता क्या बे?” उस लड़के ने मेरी कॉलर को पकड़ते हुए कहा.
तभी …
“अबे तू … तू तो वही बस वाला ही है ना?” उस लड़के के साथ ही खड़े अब दूसरे लड़के ने मुझसे कहा.
मैं अब भी चुप रहा. गिरने से मेरे हाथ में थोड़ी चोट लग गयी थी, जिसमें से हल्का सा खून निकल आया था. मैं बस अपने हाथ को ही देखता रहा.
“अरे भाई जाने दे इसे … इसकी शुरूआत तो कल अपनी शायरा ने ही कर दी थी … हाहाहा.” उस लड़के ने हंसते हुए कहा. “अच्छा … क्या हुआ था, पूरी बात तो बता?”
पहले वाले लड़के उससे पूछते हुए कहा और मेरी कॉलर छोड़कर मुझे हाथ से इशारा करते हुए बोला- चल बे … तू निकल.
मैं भी चुपचाप वहां से निकलकर कॉलेज में अन्दर आ गया.
मेरे हाथ से खून निकल आया था इसलिए अपना हाथ धोने के लिए मैं सीधा पानी की टंकी की तरफ आ गया.
तभी बीच में ही बैंचों पर बैठी हुई कुछ लड़कियों में से एक ने कहा- ओय … कहां?
उसने शायद मुझे आवाज दी थी, मगर एक तो मेरे हाथ में चोट लगी थी और दूसरा मुझे गुस्सा भी आ रहा था. इसलिए मैंने उन लड़कियों पर ध्यान नहीं दिया … और चुपचाप पानी की टंकी पर जाकर अपना हाथ धुलाई करने लगा.
मैं अपना हाथ धुलाई कर ही रहा था कि तब तक वो लड़कियां भी टंकी के पास ही आ गईं और मेरी रगड़ाई शुरू हो गई.
“ओय्य् … तुझे सुनाई नहीं देता क्या?”
एक लड़की, जो देखने में तो सुन्दर थी … मगर थोड़ी चिड़चिड़ी और नखरीली सी लग रही थी. उसने मुझे घूरते हुए कहा. वो शायद उन सबकी मुखिया थी.
मैंने भी अब एक बार तो उनकी तरफ देखा, फिर चुपचाप अपने हाथ को धुलाई करके पास ही रखे गिलास को उठाकर पानी पीने लग गया.
“अच्छाआआ … सीनियर्स से पानी पीने के लिए पूछा भी नहीं … चल इस गिलास की पहले तो अच्छे से धुलाई कर, फिर हम सब को पानी पिला.” उस लड़की ने फिर से कहा.
“अरे निशा … ये तो वही है. पता है कल बस में इसने, वो बैंक वाली शायरा है ना … उसको को भी छेड़ा था. पर उसने इसे अच्छा सबक सिखा दिया.” ये दूसरी लड़की ने कहा.
“अच्छा … आते ही लड़कियां भी छेड़ने लगा. चल पहले हम सबको पानी पिला … फिर तेरी ठीक से क्लास लगाते हैं.” ये पहली वाली लड़की ने कहा था.
‘बैंक वाली शायरा …’ ये सुनकर मुझे कुछ अजीब सा लगा. लग रहा था कि वो लड़की काफी फेमस है, पर फेमस किस लिए है … उसकी खूबसूरती के लिए या किसी और वजह से है.
वैसे वो है भी इतनी सुन्दर हर कोई उसे देख कर उसकी खूबसूरत जवानी से ही उसे पहचानने लगेगा. मैंने दिल में ही सोचा.
वो लड़के भी उसे जानते थे. पर लड़कों का क्या है … उनको तो कोई भी सुन्दर लड़की दिखी नहीं कि लगे लार टपकाने!
अब ये सब सोचते सोचते मैं पानी पीकर वहां से चुपचाप चल दिया. मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि उन लड़कियों ने मुझसे कुछ कहा भी था.
वो लड़की पहले ही चिढ़ी हुई थी, ऊपर से मेरे ऐसे चल देने से वो अब और भी चिढ़ गयी.
उसने मेरे कंधे में फंसे बैग को जोरों से खींचकर नीचे पटक दिया और चिल्लाई- ओय्य … तुम्हें सुनाई नहीं देता क्या? ये उसने चीखते हुए कहा.
तो मुझे होश आया. मगर इस वक्त मैं गुस्से में था. जैसे ही उस लड़की ने मेरे बैग को नीचे पटका, मेरा पारा और भी चढ़ गया.
मगर मैं कुछ कहता या करता तभी …
“क्या हो रहा है ये सब?” एक कड़क सी आवाज सुनाई दी. “क्क..कुछ नहीं सर.” कहते हुए वो सब लड़कियां वहां से एक तरफ चली गईं.
“तुम क्या कर रहे हो यहां? चलो अपनी क्लास में.” उसने मुझे भी अब डांटते हुए कहा और ऑफिस की तरफ चला गया.
वो कॉलेज का प्रिन्सिपल था, इसलिए मैं भी अब अपनी क्लास में आ गया.
थोड़ी बहुत तू तू मैं मैं के बाद मेरा कॉलेज का वो दिन भी ऐसे ही बीत गया.
मगर कॉलेज खत्म होने के बाद जब मैं बस स्टॉप पर आया तो वो लड़की मुझे फिर से वहां खड़ी मिली.
उसके साथ ही कल वाले ही एक दो लड़के और लड़कियां भी वहां खड़े थे.
मेरे वहां जाते ही सब मुझे घूर घूरकर देखने लगे. मुझे देखते ही उनके बीच कानाफूसी सी शुरू हो गयी थी, इसलिए मैं बस से जाने की बजाये सुबह की तरह ही वहां से पैदल चलकर घर आ गया.
इस सेक्स कहानी का मजा अगले भाग में लिखूंगा. आपके मेल की प्रतीक्षा रहेगी.
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कहानी जारी है.
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