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चाची की बातें सुन कर मैंने हर्ष-उल्हास में उन्हें अपने बाहूपाश में जकड़ कर उनके मुख में चूम चूम कर गीला कर दिया।
तभी मैंने चाची की योनि में थोड़ा सा ढीलापन महसूस किया तो अपने लिंग को उसकी पकड़ से अलग कर के बाहर निकाल लिया और करवट ले कर उनके बगल में लेट गया।
लिंग के बाहर आते ही मेरे और उनके मिश्रित रस से लाबालब भरी उनकी योनि में से सारा रस बह कर बाहर आ गया।
चाची को जब उनकी योनि से निकले रस से अपनी जांघें और बिस्तर की चादर पर गीलापन महसूस हुआ तो वह उठ कर बैठ गई। उनके साथ मैं भी उठ गया और हम दोनों ने मिल कर उस चादर और अपने आप तथा एक दूसरे को साफ़ किया तथा बिस्तर की चादर भी बदल दी।
फिर जब चाची ने घड़ी में छह बजे का समय देखा तो तु्रन्त घर का काम करने के लिए बाहर चली गई और मैं उनके बिस्तर पर लेट गया तथा मुझे नींद आ गई।
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मेरी पिछली रचनाएँ
को पढ़ने और उसे पसंद करने तथा उन पर अपनी प्रतिक्रिया अथवा टिप्पणी भेजने के लिए बहुत धन्यवाद।
जो रचना मैं अब प्रस्तुत कर रहा हूँ वह मेरी अपनी पिछली रचनाओं की शृंखला का ही हिस्सा है और मेरी रचना ‘चाची द्वारा संसर्ग की मनोकामना पूर्ति’ का पूरक भाग है।
यह रचना काफी पहले ही लिख दी थी लेकिन श्रीमती तृष्णा जी के व्यस्त होने के कारण इसके सम्पादन में एवं प्रकाशन में विलम्ब हो गया।
अपनी कहानी की उसी शृंखला को जारी रखते हुए मैं अपनी नई रचना का विवरण शुरू करने से पहले अपनी पिछली रचना ‘चाची द्वारा संसर्ग की मनोकामना पूर्ति’ के अंतिम कुछ वाक्य ऊपर लिखे हैं।
मित्रो, उसके बाद जो हुआ वह कुछ इस प्रकार से है:
सुबह दस बजे मेरी नींद खुली तो देखा कि चारों ओर सुनहरी धूप फैली हुई थी और खुली हुई खिड़कियों में से हल्की हल्की हवा कमरे में आ रही थी।
मैं बिस्तर पर उठ कर बैठा ही था कि बड़ी चाची ने मुझे उठाने के लिए आवाज़ लगाते हुए कमरे में प्रवेश किया।
मुझे जागे हुए तथा बिस्तर पर बैठा देख कर चाची चुप हो गई और बिल्कुल मेरे पास आ कर मेरे गालों तथा होंठों को चूम लिया।
मुझसे रहा नहीं गया और मैंने भी चाची को अपने बाहुपाश में ले लिया तथा उनके गालों और होंठो पर चुम्बनों की बौछार कर दी।
चुम्बनों के बाद जब मैंने चाची के दोनों उरोजों को अपने हाथों से मसलने लगा तब कुछ क्षणों के लिए वह वैसे ही खड़ी रही और मुझे अपने उरोजों को मसलने दिया।
उसके बाद उन्होंने झुक कर मेरे होंठों का एक बार फिर से चुम्बन लिया और मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर अपने उरोजों से अलग कर दिया। मैंने जब उनकी ओर वासना भरी प्यासी आँखों से देखा तो उन्होंने बड़े प्यार से मेरी गालों को थप-थपया और मुझे समझाते हुए कहा- विवेक, यौन क्रिया में अधिक उतावलापन अच्छा नहीं होता। उसकी हर गतिविधि और क्रिया का एक निर्धारित समय होता है। तुम्हें उस समय तक प्रतीक्षा करनी होगी और अपनी वासना पर सयम भी रखना होगा।
जब चाची की बात को समझते हुए मैं उनसे अलग हुआ तब उन्होंने कहा– नाश्ता तैयार है इसलिए तुम शीघ्र ही हाथ मुँह धोकर के नीच भोजनकक्ष में आ जाओ।
दस मिनट में ही मैं शौच एवं हाथ मुँह धोने आदि की क्रिया से निवृत हो कर जब भोजनकक्ष पहुँचा तब चाची को खाने की मेज पर मेरी प्रतीक्षा में बैठी देख कर मैं तुरंत नाश्ता करने बैठ गया।
नाश्ता करते हुए जब मैंने चाची से पूछा- चाची आपने अभी तक नाश्ता क्यों नहीं किया?
तो उन्होंने बताया- दो कारण है जिससे आज घर का काम करते करते मुझे देर हो गई और नाश्ता करने का समय ही नहीं मिला।
मैंने झट से पूछ लिया- चाची, वह दो कारण कौन से है?
तब चाची बोली- एक तो तुम्हारी छोटी चाची बाहर गई हुई है और घर का काम करने वाली मैं अकेली ही हूँ। दूसरा कारण तुम हो जिसकी वजह से मुझे आज सुबह उठने में देर हो गई थी।
मैंने तुरंत विरोध जताया- चाची, देर से आप खुद उठी थी और दोषी मुझे क्यों बना रही हो? क्या मैंने आपको जल्दी उठने से रोका था?
मेरी बात सुन कर चाची ने कहा- मैंने कब कहा कि तुमने रोका था? लेकिन तुम्हारे ही कारण मैं रात को इतना थक गई थी कि सुबह मेरी नींद बहुत देर से खुली और पूरे शरीर में आलस के कारण मुझसे फुर्ती से काम भी नहीं हुआ।
उनकी बात को सुन कर मुझ से रहा नहीं गया और मैंने कहा- चाची, रात को मैंने ऐसा क्या किया था जो आप मुझे अपनी थकावट का कारण बना रही हैं?
मेरी बात सुन कर चाची ने मेरी गाल पर एक प्यार की हल्की सी चपत लगाते हुए कहा- आजकल तुम बहुत घुमा कर बातें बनाने लगे हो। जो मैं कह रही हूँ उसे तुम बखूबी समझ रहे हो लेकिन फिर भी मुझ से पूछ रहे हो कि रात को तुमने मुझे कैसे थकाया था।
उनकी बात सुन कर मैं चुपचाप नाश्ता करता रहा और चाची की खुले गले वाली नाइटी में से उनके दो प्यारे से मौसंबी जैसे गोल, सख्त और कसे हुए उरोजों को देखता रहा।
नाश्ता समाप्त करने के बाद जब चाची मुझे उनके उरोजों को देखने में मग्न पाया तब वह मुस्कराते हुए उठ खड़ी हुई और मुझे जीभ दिखा कर चिढ़ाते हुए मेज़ से बर्तन समेट कर रसोई में चली गई।
मैं वहीं बैठा रहा और मेरी आँखों के सामने थोड़ी देर पहले देखे चाची के उरोजों तथा रात को उसके साथ किये यौन संसर्ग के दृश्य एक चलचित्र की तरह घूमने लगे।
उन दृश्यों के कारण मैं उत्तेजित हो कर चाची के शरीर को मसलने के लिए विचलित हो उठा और मैं मेज़ से उठ कर रसोई में गया।
चाची को रसोई में नहीं देख कर मैंने सारे घर में ढूंढा और अंत में उन्हें दादाजी और दादीजी के कमरे में उनका सामान बांधते हुए पाया।
यह देख मैंने दादाजी से पूछा- यह सामान क्यों बाँध रहे हैं? क्या कहीं बाहर जा रहे हैं?
दादाजी ने उत्तर दिया- हाँ विवेक, बहुत दिनों से तेरी दादी जिद कर रही थी इसलिए आज उसकी इच्छा पूरी करने के लिए हम दोनों तीर्थ यात्रा के लिए जा रहे हैं।
मैंने उनसे पूछा- दादाजी, आप ने इस बारे में पहले तो कोई चर्चा नहीं करी थी। आज अचानक ही यह यात्रा का कार्यक्रम कैसे बन गया?
तब दादाजी ने बताया- हाँ, हमारी यात्रा का यह कार्यक्रम अचानक ही बन गया, आज सुबह जब सैर करने गए तब मुखिया ने बताया कि दोपहर को ही वे परिवार सहित एक छोटी बस में तीर्थ यात्रा के लिए जा रहे हैं। उनके एक सम्बन्धी ने यात्रा पर जाने से मना कर दिया था इसलिए उन्होंने हमें उनके साथ चलने के आग्रह किया है।
तभी चाची उनका सामान बाँध कर खड़ी हुई और मुझे कहा- विवेक, जल्दी से तैयार हो कर दादाजी और दादीजी को मुखिया के घर पर बस में बिठा कर आओ।
फिर चाची दादाजी और दादीजी से बोली- मैंने आप दोनों के कपड़े आदि और हर आवश्यकता का सामान इस अटेची और बैग में रख दिया है। आप एक बार इन्हें देख ले और अगर कुछ रह गया हो तो बता दीजियेगा मैं वह भी रख दूंगी। आप दोनों के बस में पहन कर जाने वाले कपड़े भी निकाल दिए हैं इसलिए अब आप कपड़े भी बदल तैयार हो जाइए। तब तक मैं आपके खाने पीने के सामान बाँधने की व्यवस्था भी कर देती हूँ।
इसके बाद मैं चाची के साथ रसोई में आ गया और जब मैंने उनको बाहुपाश में लेकर उनके होंठों का चुम्बन लेने की कोशिश की तब उन्होंने मुझे रोक दिया और कठोरता से कहा- विवेक, यह समय इस काम के लिए नहीं है। अभी मेरा बहुत काम पड़ा है और मेरे पास समय भी बहुत कम है इसलिए तुम तैयार हो कर दादाजी और दादीजी को छोड़ आओ।
चाची की बात सुन कर मुझे उन पर गुस्सा तो आया लेकिन अपने पर नियंत्रण करके मैं तैयार होने के लिए ऊपर अपने कमरे में चला गया।
पन्द्रह मिनट के बाद जब मैं तैयार हो कर नीचे पहुँचा तो देखा दादाजी तो तैयार ही चुके थे लेकिन दादीजी तैयार हो रही थी।
जब मैं रसोई में गया तो देखा वहाँ चाची खाना बनाने में बहुत व्यस्त थी और मुझे वहाँ देख कर सिर्फ हल्का सा मुस्करा दी और बोली– विवेक, बैठक की अलमारी में जीप की चाबी रखी है। उसे ले कर जीप स्टार्ट कर के मुख्य द्वार पर ले आओ तथा उसमें दादाजी एवं दादीजी का सारा समान रख दो।
मैं चाची के कहे अनुसार जीप को घर के मुख्य द्वार पर खड़ा करके जब उसमें दादाजी एवं दादीजी का सारा सामान रख रहा था तभी दादाजी, दादीजी और चाची भी आ गए।
मैंने दादाजी और दादाजी को जीप में बिठा कर मुखिया जी के घर छोड़ा और उनकी बस के जाने के बाद ही वहाँ से घर वापिस लौटा।
जीप को यथा स्थान पर रख कर मैं मुख्य द्वार पर पहुँचा तो दरवाज़े बंद पाया और पाँच मिनट तक खटखटाने के बाद भी जब किसी ने नहीं खोला तब मैंने उसे जोर से धकेला।
धक्का लगते ही दरवाज़ा तो खुल गया लेकिन चाची को अन्दर न देख कर उन्हें पुकारने जा ही रहा था कि मुझे गुसलखाने में से नल चलने की ध्वनि सुनाई दी।
मैं समझ गया कि चाची रसोई का काम समाप्त करके नहा रही होगी इसलिए मुख्य द्वार को बंद तो कर दिया लेकिन सांकल नहीं लगाई ताकि मैं उसे धकेल कर घर के अंदर आ सकूँ।
मैंने मख्य द्वार को अन्दर से अच्छी तरह बंद करके उसमे सांकल लगा दी और गुसलखाने की ओर बढ़ गया।
जब मैंने गुसलखाने के खुले दरवाज़े में से झाँका तो वहाँ चाची को सिर्फ पैंटी पहने हुए कपड़े धोते हुए पाया।
मुझे देखते ही चाची ने दादाजी और दादीजी के बारे में पूछा तो मैंने बता दिया- मुखिया जी से मिलवा कर उन्हें बस में बिठा दिया था और बस के विदा होने के बाद ही वहाँ से वापिस लौटा हूँ।
चाची के पास मैले कपड़ों का ढेर देख कर मैंने उनसे पूछ लिया- चाची, अभी तो धोने के लिए बहुत कपड़े पड़े हैं, क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ?
चाची हंसते हुए बोली- जा जा अपना काम कर… बड़ा आया कपड़े धोने वाला! क्या तुझे कपड़े धोने आते भी हैं?
मैंने झट से कहा- चाचीजी, अच्छी तरह से तो धोने नहीं आते हैं लेकिन कई बार कपड़ों को पानी में से छिछालने एवं उनमें से पानी निचोड़ने में मैंने मम्मी की सहायता ज़रूर करी है।
मेरी बात सुन कर चाची ने कहा- अच्छा तो एक काम करो, तुम यह पहने हुए कपड़े भी उतार कर धोने के लिए मुझे दे दो और मेरे पीछे जो धुले हुए कपड़े रखे हैं उन्हें साफ़ पानी में से छीछाल कर उनमें से पानी निचोड़ दो और बाहर आँगन में सूखने के लिए डाल दो।’
उनकी बात सुन कर मैंने तुरंत अपनी कमीज़, पेंट और बनियान उतार कर उनको दे दी।
तब उन्होंने मेरी ओर देखते हुए कहा- मैंने तुझे पहने हुए सभी कपड़े उतारने के लिए कहा है। तेरा अंडरवियर भी तो उन सभी कपड़ों में से एक है इसलिए इसे भी उतार कर दे दे।
मैंने अचंभित होने का नाटक करते हुए कहा- क्या। इस भी उतारूँ?
उन्होंने छोटा सा उत्तर दिया- हाँ।
मैंने सिर हिलाते हुए कहा- अच्छा, तो आप खुद तो पूरी फिल्म देखना चाहते हो और मुझे सिर्फ ट्रेलर दिखा कर ही बहलाना चाहते हो।
चाची मेरी बात को समझ गई थी और उठ कर खड़ी हो गई और मेरे पास आ कर मेरी गाल पर एक प्यार की हल्की सी चपत लगाते हुए कहा- आजकल तुम बहुत गहरी बातें कहने लगे हो।
फिर मेरी कमर पर से मेरे अंडरवियर को पकड़ कर नीचे सरका दिया और उसे उतार कर मेरी टांगों में गिरा दिया तथा बिल्कुल मेरे करीब आते हुए बोली- लो, तुम भी पूरी फिल्म देख लो।
उनके बात सुनते ही मैंने फुर्ती से उनकी पैंटी को पकड़ कर नीचे खींच के उतार दी और अपना मुँह उनके जघन-स्थल के जंगल में डाल दिया।
वहाँ काफी घने बाल थे जिनमें से कुछ मेरे नथनों में घुस गए और मुझे जोर की छींक आ गई।
मेरी छींक सुनकर चाची बहुत जोर से हँसते हुए मुझसे अलग हो गई और कहा- जिस काम का सही समय होता है अगर उसे उसी समय करोगे तब सफलता मिलेगी और अगर गलत समय पर करोगे तो मुँह की ही खानी पड़ेगी।
उनकी बात सुन कर मैंने झेंपते हुए कहा- चाची, तुम्हारा जंगल बहुत घना हो गया है। रात को भी मुझे इनसे दिक्कत हुई थी लेकिन उस समय मैंने कुछ कहना ठीक नहीं समझा। आप इन्हें साफ़ क्यों नहीं करती?
चाची ने कहा- मुझे भी दिक्कत होती है लेकिन मैं खुद ठीक तरह साफ़ नहीं कर पाती। बहुत दिनों से तुम्हारे चाचा को कह रही हूँ लेकिन वे मेरी बात को अनसुनी कर देते हैं, तुम ही मेरी सफाई क्यों नहीं कर देते?
मैंने कहा- ठीक है, तो चलिए मैं अभी साफ कर देता हूँ।
मेरी बात सुन कर चाची बोली- इतने उतावले मत हो, पहले जल्दी से कपड़े धो लेते हैं फिर नहाने से पहले तुम इन्हें साफ़ कर देना।
इसके बाद मैंने चाची के होंटों को चूमा और उनके स्तनों को मसल दिया जिससे वह कराह उठी और तब उन्होंने भी मेरे लिंग को पकड़ कर झट से उमेठ दिया।
चाची की इस हरकत के कारण मैं भी कराह उठा, हम दोनों ही उछल कर एक दूसरे से अलग हो गए और इसके बाद हम दोनों नग्न हालत में ही कपड़े धोने लगे।
चाची कपड़ों पर साबुन लगा कर और उन्हें मसल कर धोती जाती, मैं उन कपड़ों के साफ़ पानी में छीछालता तथा उनमें से पानी निचोड़ कर उन्हें आँगन में सूखने डाल देता।
जब भी मैं चाची से कपड़े लेने गुसलखाने में आता तो अपना तना हुआ लिंग उनके आगे कर देता तब वह उसे बड़े प्यार से अपने हाथ में पकड़ लेती और कभी कभी उसका चुम्बन भी ले लेती।
मैं भी उसी समय कभी तो उनके स्तनों को हल्के से मसल देता और कभी उनके होंठों पर चुम्बन कर लेता।
हाँ, एक बार मैंने उनके पीछे से नीचे झुक कर उनकी योनि में उंगली भी कर दी जिस हरकत के लिए मुझे चाची की डांट भी खानी पड़ी। कहानी जारी रहेगी…
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