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सोनम सुनील के नीचे चुद रही थी और प्रीति ने मेरा लण्ड निकाल लिया था और बुरी तरह से मसलना चालू कर दिया था। जबकि साथ ही साथ प्रीति एकटक उन दोनों की धकापेल चुदाई को भी देख रही थी। वो शायद किसी और को अपने सामने चुदता हुआ पहली बार देख रही थी।
इसी बीच प्रीति ने अपने सलवार और चड्डी को नीचे किया और मेरा हाथ ले जाकर अपनी चूत पर रख कर मेरी तरफ कातर दृष्टि से देखा। उसकी चूत इतनी ज्यादा गीली थी कि मुझे लगा कि वो एक बार झड़ चुकी हो। प्रीति मुझे चूमने आगे झुकी ही थी कि मैंने अपनी दो उँगलियाँ प्रीति की चूत में घुसा दीं। प्रीति सिहर उठी..
इससे पहले प्रीति की आह निकलती.. मैंने अपने होंठों से उसके होंठ सिल दिए। लगभग दस मिनट तक हम एक-दूसरे के होंठों को चूसते रहे और प्रीति अपनी चूत में ऊँगली करवाते हुए पानी गिराती रही।
‘आअह्ह.. नहीं.. अब और नहीं.. ना.. आह कोई आ गया तो..’
उसकी इस आवाज़ के साथ मुझे याद आया सोनम अभी भी चुदवा रही है। मेरा ध्यान सोनम की ओर चला गया। प्रीति की चूत इस वक़्त पूरी कामरस से सराबोर हो कर ‘लण्ड.. लण्ड’ चिल्ला रही थी।
मेरी तरफ से कुछ खास पहल होती ना देख प्रीति खुद ही कुतिया बन गई और मैंने प्रीति की खुली चूत में अपना हथियार गाड़ दिया।
मेरा पूरा ध्यान सोनम की चुदाई पर था.. सोनम इस वक़्त सुनील के ऊपर बैठी हुई थी।
उसकी जीन्स एक सीट पर लटक रही थी और हरे रंग का टॉप उसकी चूचियों से नीचे कमर में फँसा हुआ था।
सोनम की चूचियाँ हवा में तनी हुई सुनील के मंजे हुए हाथों से मसली जा रही थीं। सुनील किसी तरह अपना लण्ड उसकी चूत में डालने की कोशिश कर रहा था.. लेकिन बार-बार फिसल रहा था। इससे सोनम की बार-बार सिसकारी निकल जाती थी।
अगले कुछ पलों में मैं भी प्रीति को चोदने में लगा हुआ था।
प्रीति भी हल्की-हल्की सिसकारी लेकर खुद ही कुतिया बनी.. अपनी चूत को मेरे लण्ड पर आगे-पीछे करते हुए मजे ले-ले कर चुद रही थी।
उधर सोनम भी सुनील के लण्ड पर उछलती हुई अपनी चूत का भोसड़ा बनवा रही थी। उस मस्ती में सोनम इतनी पागल हो गई थी कि हर शॉट पर बोल-बोल कर अपनी गाण्ड नीचे लाती.. फिर ऊपर ले जाती।
सोनम- आह्ह्ह.. छुनील.. आह्ह.. जो मजा.. आह्ह आज चुदने में आ लहा है.. जानू.. आह्ह..पहले क्यों नहीं चोदा ऐसे..आअह्ह…
सुनील- सोना.. जान.. और तेज कूद औ.. आह.. र तेज..
सोनम- आह्ह.. छुनील.. आआह्ह्ह्ह्ह्ह्.. ईईह्ह्ह्ह्.. चुद लही हूँ.. यही बहुत है.. हलामी हो आप.. आज क्या खा के.. आअह्ह.. आए हो.. आह्ह्ह.. झल नहीं लहे हो आप…
सुनील- हाँ मेरी तोतली जान.. तुझे ही तो चुदवाना था ना.. रंडियों की तरह.. आह्ह.. हफ़.. आज तेरी चूत ऐसे चुदेगी कि दो दिन तक मूत ना पाएगी तू.. ठीक से..ले..और ले…
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सोनम- आह्ह्ह.. मेरे लाजा जी..औल चोदिए.. ये चूत तो आपकी ही है.. आह्ह्ह.. कित्ता मजा आ लहा है। मैं तो आपकी बीवी हूँ ना.. मनभल के चोदो.. छुनीईईईल.. आःह्ह्ह.. आप..की ही हूँ।
सुनील- मादरचोद.. राण्ड कहाँ से अपनी सील तुड़वा के आई थी.. चली है बीवी बनने.. साली रण्डी छोटी उम्र में तेरे बोबे ऐसे ही 36 के हो गए.. बिना चुदवाए.. रंडी साली और उछल और उछल मादरचोदी…
अब सुनील भी जोश में आकर अपनी गाण्ड उठा-उठा कर सोनम की चूत घायल करने में जुटा था। सोनम भी सुनील की बातों से खुश दिख रही थी.. और ज्यादा उछलने लगी थी।
मैंने सोचा कि इस सोनम हर कोई को जितना सीधा और बुद्धू समझता है.. ये उतनी सीधी है नहीं.. पहले ही अपनी चूत का भोसड़ा बनवा चुकी है।
इधर प्रीति ने अपनी चूत से मेरा लण्ड ‘पक’ की आवाज़ के साथ निकाल दिया.. मैं आश्चर्य से प्रीति को देखने लगा कि वो मेरी गोद में बैठ कर मुझे चूमने लगी।
मैंने भी अब सोनम से ध्यान हटा कर प्रीति के होंठों को अपने होंठों में लिया और कमर से पकड़ कर अपने लण्ड पर बिठा दिया। इस समय मैंरे पैर मेरे घुटनों के नीचे थे और मेरा लण्ड फनफना रहा था। उस पर प्रीति की गीली चूत फिसल रही थी।
मैंने प्रीति की कमर पकड़ी और उसके होंठ चूसते हुए उसे ऊपर-नीचे करने लगा.. इस तरह से चोदने में थोड़ी तकलीफ जरूर थी.. क्योंकि इससे पहले मैंने ऐसे नहीं चोदा था.. लेकिन मुझे पता था कि ऐसे चोदने से मेरा लण्ड फुहार मारने से कुछ देर रुक जाएगा।
मैंने प्रीति का कुरता उतार कर साइड में रखा और उसके होंठ चूसते हुए उसकी चूचियाँ मसलने लगा। प्रीति भी अपनी कमर गोल-गोल घुमाने लगी, उसकी जीभ मेरी जीभ से टकराने लगी। उत्तेजित होकर प्रीति ने अपनी ब्रा नीचे कर ली और मेरा मुँह अपनी चूचियों पर लगा दिया।
मैं भी पूर्ण उत्तेजित था, प्रीति की चूचियों को काटते.. पीते.. हुए दोनों हाथों से बुरी तरह दबाते मसलते हुए.. प्रीति की गाण्ड अपने लण्ड पर उछालने लगा।
मेरे बैठे रहने की पोजीशन की वजह से मेरा लण्ड प्रीति की चूत में अन्दर तक घुस-घुस कर चोट कर रहा था।
प्रीति की गांड बिलकुल ज़मीन तक छू जाती। प्रीति मेरे कानों को काटने लगी थी और लगातार उसके उछाल तेज होते जा रहे थे। कुछ ही पलों में प्रीति ने एक जोरदार फुहार छोड़ी। मेरा लन्ड उससे सराबोर होता हुआ बाहर फिसल आया।
प्रीति मुझ पर ही निढाल हो गई।
मैंने प्रीति को एक नजर देखा.. मेरा पानी निकालने की उसमें ना ताकत बची थी.. ना ही हिम्मत.. प्रीति वही बेसुध सी हो कर लेट गई।
तभी बाहर कुछ खटपट की आवाज़ हुई। मेरा ध्यान उस तरफ गया… सोनम की सिसकारियाँ भी रुक गई थीं। मैंने चुपके से उसकी तरफ देखा तो दोनों ही डर गए थे और लगता था अभी-अभी सुनील के लण्ड ने सोनम की चूत भरी थी, उसकी चूत और जाँघों का गीलापन जबरदस्त चुदाई का गवाह था।
उस खटपट की वजह से दोनों ही जाने को हो रहे थे.. सोनम मादरजात नंगी अपनी चूचियों को छुपा रही थी और सुनील अपनी पैंट चढ़ा रहा था।
सोनम- मैंने आपछे कहा भी था.. जल्दी कलो.. कोई आ जाएगा।
सुनील- प्रवचन मत दो यार.. कपड़े पहनो.. मैं जा रहा हूँ.. तू आ जाना।
सोनम- मुझे इस हाल में छोड़ कल कोई भी समझ जाएगा.. छुनील हमने क्या किया.. लुक जाओ प्लीज़।
सुनील- माँ चुदा अपनी.. साली मादरचोद राण्ड…
और सुनील पीछे की खिड़की खोल कर कूद गया.. मैंने प्रीति को लिटाया और दरवाज़े की ओर देखा एल-4 का वो हॉल बहुत बड़ा था। मेरे लण्ड में अब भी तनाव बाकी था। जब तक लण्ड ना झड़े तो बेकरारी उन्हें समझ आती है.. जो इस तरह फंसे हैं।
इसके आगे क्या हुआ दोस्तो.. सोनम उसी कमरे में क्यों ठहरी रही और उस हालात में मेरे साथ क्या क्या हुआ.. जानने के लिए जरूर पढ़िए.. अगला भाग।
मेरी ईमेल पर आपके विचार सादर आमन्त्रित हैं।
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