एक सुन्दर सत्य -1

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लेखक- स्वीट राज और पिंकी सेन यह कहानी है एक भारत सुन्दरी की, ग्लैमर क्वीन की, जो मॉडलिंग से होते हुए एक सफ़ल फिल्म हीरोइन बनी।

नाम में क्या रखा है, लेकिन कहानी में कुछ तो होना चाहिए तो ठीक है, एक नाम दे देता हूँ, उसका नाम था ज़न्नत खान।

जब ज़न्नत ने हिन्दूस्तान की सबसे खूबसूरत लड़की का खिताब हासिल किया तो कई फिल्म डायरेक्टरों ने उसके हुस्न के जलवे से फ़ायदा कमाने की सोची।

ज़न्नत बला की खूबसूरत थी, जिस्म जैसे संगमरमर से तराशा हुआ कोई बेपनाह हसीन मुज़स्स्मा !

होंठ जैसे गुलाब की कली… चाल ऐसी जैसे मदमस्त अल्हड़ जंगली हिरणी।

जो भी उसे देखे उस पर फ़िदा हो जाये, उसे पाने की लालसा जाग उठे!

ज़न्नत ने भी धड़ाधड़ कई फ़िल्में साइन कर ली।

आखिर उस जमाने के एक बड़े प्रोड्यूसर ताज़ गफ़्फ़ूर ने उसके साथ एक फिल्म बनाने की सोची और वो जा पहुँचा उसके घर।

ज़न्नत खान के सामने फिल्म का प्रस्ताव रखा। ज़न्नत खान अपनी सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ती जा रही थी, इतने नामी गिरामी प्रोड्यूसर को अपने दरवाजे पर खड़ पाकर वो खुशी से झूम उठी और उसने इस प्रस्ताव को पाकर मना नहीं कर पाई, उसने ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लिया।

यह ज़न्नत खान की पहली फिल्म नहीं थी, और इस तरह फिल्म जोर शोर से शुरू हो गई।

इस फिल्म में तब तक के जमाने तक बनी सभी फ़िल्मों से ज्यादा नग्नता थी, बहुत ज्यादा बोल्ड सीन थे पर आखिर यह फिल्म तैयार होकर सेंसर बोर्ड में गई।

सेंसर बोर्ड में फिल्म को देखा गया और सब के सब सदस्य इस फ़िल्म के उन बोल्ड नजारों को देख कर हैरान हो गये।

तब से पहले उन्होंने किसी मशहूर अदाकारा को इस हद तक नग्न नहीं देखा था, सभी को वे सीन उत्तेजित कर रहे थे, लेकिन इस फ़िल्म को पास करने की तो वे लोग सोच भी नहीं सकते थे।

और फिल्म पास नहीं हुई।

प्रोड्यूसर ताज़ गफ़्फ़ूर ने बात की सेंसर बोर्ड में।

सेंसर बोर्ड के सदस्यों ने बताया कि वे किसी हालत में इस फ़िल्म को पास नहीं कर सकते।

फिर ताज़ गफ़्फ़ूर ने सेन्सर बोर्ड के माई बाप यानि मिनिस्ट्री लेवल पर बात करने की सोची।

मन्त्री साहब को फ़िल्म दिखाई गई, मन्त्री महोदय भी जवान थे, उसकी कामलोलुप नजर ज़न्नत के मखमली बदन पर अटक कर रह गई।

लेकिन मन्त्री ने कहा- यह भारत है ताज़ साब, यहाँ इस फ़िल्म को पास कैसे कर सकते हैं?

प्रोड्यूसर ने खूब मिन्नतें की तो मन्त्री महोदय ने ताज़ गफ़्फ़ूर को कुछ दिन बाद आने का कह कर टाल दिया। लेकिन फ़िल्म का प्रिन्ट अपने पास रखवा लिया।

वे अभी ज़न्नत के नंगे बदन का और लुत्फ़ लेना चाह रहे थे।

प्रोड्यूसर के बाद मन्त्री जी ने फिर से फिल्म देखना शुरू किया, उनकी नजरें ज़न्नत के संगमरमरी बदन और बला के हुस्न से हट नहीं रही थी, उसी पल उन्होंने फैसला किया कि चाहे जो भी हो, इसके हुस्न की तपिश को अपने सीने में उतार कर ही रहूँगा।

वो अब सोच रहे थे कि कैसे करूँ? उनके बस में सब कुछ तो नहीं था, उन्हें यह एहसास था कि अगर फिल्म रिलीज हो गई तो हंगामा तो होना ही है, लेकिन ज़न्नत के मखमली बदन की ज़न्नत से वो रूबरू होने का ख्वाब टूटते नहीं देख सकते थे।

उनका दिमाग तेजी से चल रहा था, ज़न्नत के हुस्न का नशा कुछ था ही ऐसा !

उन्होंने फैसला कर लिया अब किसी भी कीमत पर ज़न्नत के बदन की खुशबू अपने सीने में उतारनी है।

मन्त्री साहब ने प्रोडयूसर को फ़ोन किया और बोले- मैंने आपकी फिल्म दोबारा देखी, अब भी मुझे यही लग रहा है कि मेरे लिये संभव नहीं है इसे पास करना।

प्रोडयूसर ताज़ गफ़्फ़ूर गिड़गिड़ाने लगा, बोला- कुछ कीजिये नहीं तो मैं बर्बाद हो जाऊँगा।

मन्त्री जी बोले- मुश्किल है… हंगामा हो जायेगा।

ताज़ गिड़गिड़ाता रहा और फिर मन्त्रीजी बोले- चलो मैं देखता हूँ कि क्या हो सकता है?

प्रोड्यूसर वापस मुंबई चला गया और वहाँ उसने अपनी परेशानी एक दूसरे प्रोडयूसर को बताई, उसने सारी कहानी मन्त्री से मिलने तक की उसे सुना दी।

वो प्रोड्यूसर मन्त्री के बारे में अच्छी तरह से जानता था, वो बोला- मन्त्री साला ठरकी है, उसकी ठरक का इन्तजाम करो! मैं मन्त्री के एक चमचे को जानता हूँ, उससे बात करके देखता हूँ।

‘तो अभी बात करो ना उस चमचे से!’ ताज़ गफ़्फ़ूर ने कहा।

दूसरे प्रोड्यूसर ने फ़ोन घुमाया, फ़ोन लग गया, उन दिनों बम्बई से दिल्ली फ़ोन लग जाना भी बड़ी बात थी।

चमचे ने मन्त्री से बात करने का आश्वासन दे कर फ़ोन बन्द कर दिया।

दो दिन बाद फ़िर ताज़ गफ़्फ़ूर उन प्रोड्यूसर से मिले और फ़िल्म के पास होने की बात कहाँ तक बढ़ी इस बारे में पूछा।

दूसरे प्रोड्यूसर ने बताया- मामला मन्त्री के नहीं सरकार के सुप्रीमो के हाथ का है।

ताज़ गफ़्फ़ूर के पसीने छूटने लगे, वो बोला- सुप्रीमो मतलब?

‘अरे यार… तुम्हें इतना भी नहीं पता कि आजकल किसकी सबसे ज्यादा चलती है? वह एक ही तो हो सकता है…’

‘क्या?’

‘हाँ, सुप्रीमो को ज़न्नत पसन्द आ गई है। अब ज़न्नत अगर सुप्रीमो को खुश कर दे तो बात बन सकती है…’

गफ़्फ़ूर सब मामला समझ गया पर अब वो सोच रहा था कि ज़न्नत को कैसे मनौउँग?

हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन फ़िर भी वो उसी दिन ज़न्नत के घर जा पहुँचा, ज़न्नत को बताया कि फिल्म पास नहीं हो रही है, मामला मन्त्री और उसके भी ऊपर का है।

‘उसके ऊपर कौन?” ज़न्नत ने पूछ।

ताज़ ने उसका नाम सीधे सीशे ना लेकर ज़न्नत को समझा दिया कि वो किसकी बात कर रहा है। ज़न्नत की आँखों में एक चमक सी आई, वो समझ गई कि ताज़ किसकी बात कर रहा है, उसे मालूम था कि सुप्रीमो की नज़र हमेशा ग्लैमर की दुनिया की मलाई पर रहती है, और उसने शादी भी एक ग्लैमर गर्ल से ही की है।

ज़न्नत बोली- तो हमें एक बार सुप्रीमो से मिलना चाहिए।

लेकिन ताज़ ने बताया कि सुप्रीमो से मिलना इतना आसान नहीं है।

ज़न्नत ने पूछा- कोई तो रास्ता होगा?

तो प्रोड्यूसर बोला- मन्त्री साब ही मुलाकात करवा सकते हैं और वो बहुत घटिया आदमी है उसकी नजर तुम्हारे ऊपर है। अगर तुम मन्त्री और सुप्रीमो को किसी तरह मना लो तो…?

यह सुनकर ज़न्नत गुस्से से लाल हो गई, बोली- मना लो तो? क्या मतलब?

‘मतलब अगर… तुम मन्त्री को खुश कर दो एक बार तो…!’

‘मुझे उन दोनों के नीचे आना पड़ेगा? आपकी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने की?’

ताज़ बोला- देख ज़न्नत सच्चाई तू भी जानती है और मैं भी, तू कोई दूध की धुली तो है नहीं, भारत की सुन्दरी का खिताब कईंयों के नीचे बिछे तो मिलता नहीं ! एक बार तू उन दोनों को खुश कर दे तो तेरे साथ साथ मेरे भी वारे न्यारे हो जायेंगे ! फिल्म इंडस्ट्री में रहना है तो ये सब करना ही पड़ेगा, अगर नहीं करेगी तो तेरी आगे आने वाली फ़िल्में भी पास नहीं पायेंगी, सेंसर बोर्ड मन्त्री के हाथ में है। उसके एक इशारे पर तुझे फ़िल्में मिलनी ही बन्द हो जायेंगी।

ज़न्नत सुप्रीमो के नीचे तो खुद ही लेट जाना चाह रही थी लेकिन वो मन्त्री, उसकी क्या औकात की भारत की सबसे सुन्दर लड़की पर बुरी नजर डाले !

ज़न्नत मना करती रही और ताज़ गिड़गिड़ाता रहा, वो बार बार मिन्नतें कर रहा था, बोला- अगर यह फिल्म रिलीज नहीं हुई तो मैं बर्बाद हो जाऊँगा, साथ में तू भी कहीं की नहीं रहेगी।

ताज़ की बात सुनकर ज़न्नत ने भी सोचा कि जहाँ इतने चढ़वा लिये, वहाँ दो और सही !

और आखिर वो दिल्ली आने को राजी हो गई।

ताज़ ने दूसरे प्रोडयूसर से फ़ोन करवा के चमचे को बता दिया कि ताज़ साहब और ज़न्नत मन्त्री जी से एक बार मिलना चाहते हैं।

मन्त्रीजी तो इसी इन्तजार में बैठे थे, तुरन्त मन्त्री ने अगले ही दिन उन दोनों को मिलने का वक्त दे दिया।

अगले दिन ताज़ साहब तबीयत खराब होने का बहाना बना कर दिल्ली नहीं गए और ज़न्नत अकेली दिल्ली पहुँच गई।

मन्त्री जी ने उसके लिए एक बड़े पंचतारा होटल में व्यस्था कर रखी थी।

एक खूबसूरत सुइट बुक था उसके लिए।

मन्त्री जी बेक़रार थे, जैसे ही शाम हुई, वो पहुँच गए होटल! उनका एक कमरा तो हमेशा ही बुक रखते थे होटल वाले, मन्त्री जी सीधे अपने महाराजा स्युइट में पहुँचे।

रिसेप्शन से चमचे ने ज़न्नत को फ़ोन करवाया कि आपसे मिलने मन्त्री जी अपने महाराजा स्युइट में पहुँच चुके हैं।

मन्त्री की एक खूबसूरत निजी सचिव ज़न्नत को लिवाने उसके स्युइट के बाहर खड़ी थी।

ज़न्नत ने दरवाजा खोला, वो खूबसूरत काली साड़ी और ब्लाउज में थी, ब्लाउज का गला काफी गहरा था, उसमें से दूधिया खूबसूरत उरोज नजर आ रहे थे, जो किसी को भी मदमस्त बना दें और साड़ी नाभि से काफ़ी नीचे बन्धी थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! निजी सचिव ने ज़न्नत को नमस्ते करके कहा- आइए मैम..

और ज़न्नत इठलाती बलखाती सचिव के पीछे पीछे चल दी।

मन्त्री की निजी सचिव भी किसी अप्सरा से कम नहीं थी, 5′ 6″ कद, नाजुक कमर, गोरा बदन, बॉब कट बाल, ज़न्नत उसके पीछे उसकी टाईट स्कर्ट में उसके मटकते चूतड़ देख सोचने लगी कि मन्त्री इसकी स्कर्ट रोज ही उतारता होगा।

सचिव ने मन्त्री जी के कमरे का दरवाजा खोला और ज़न्नत से अन्दर जाने को कहा।

ज़न्नत अन्दर गई, उसके पीछे सचिव भी अन्दर आई और उसने दरवाजा बंद कर दिया।

ज़न्नत की साँसें तेज़ हो गई, सामने एक आलीशान किंग साइज़ बेड पर मन्त्री महोदय बैठे मुस्कुरा रहे थे।

मन्त्री- आइए आइए मिस ज़न्नत लाखों दिलों की धड़कन, चमकता हुआ सितारा आज हमारे दर पे आया है… आ जाइए, आ जाइए… मैं भी आपके उन लाखों चाहने वालों में से एक हूँ।

ज़न्नत खड़ी थी और मन्त्री जी उसकी खूबसूरती, अल्हड़ जवानी का अपनी नजरों से रसपान कर रहे थे।

मन्त्री जी ज़न्नत से बोले- खड़ी क्यों हो जानेमन, बैठिये तो।

ज़न्नत धीरे धीरे मन्त्री की तरफ़ बढ़ने लगी, उसने जो काले रंग की साड़ी पहनी हुई थी वो पारदर्शी थी।

उस काली साड़ी में ज़न्नत का गोरा बदन किसी पे भी बिजलियाँ गिराने को काफ़ी था।

उस पे ज़न्नत ने साड़ी नाभि से काफ़ी नीचे बाँधी हुई थी।

इतना कामुक मंज़र देख कर मन्त्री का लौड़ा तो हिचकौले खाने लगा था।

ज़न्नत बैठ गई, अब मन्त्री जी और ज़न्नत एक दूसरे के आमने सामने बैठे थे।

ज़न्नत बस जबरन मुस्कुराने लगी।

मन्त्रीजी ज़न्नत की खूबसूरती का दीदार कर रहे थे, और ज़न्नत की आँखें झुकी थी, वो मन्त्री जी की नज़रों को अपने बदन पर फिसलता महसूस कर रही थी और सिमटती जा रही थी।

मन्त्री जी बोले- ज़न्नत शर्माओ नहीं, मैंने जब से आपकी फिल्म में आपको देखा है, उसी पल से मैं आपका दीवाना हो गया हूँ। मैं कब से इस पल का इन्तजार कर रहा था।

ज़न्नत- मन्त्री जी… व्व व्व वो मेरी फिल्म सेंसर बोर्ड के पास अटकी पड़ी है, उसका कुछ करवा दीजिए ना आप…

मन्त्री तो पक्का ठर्की था, उससे कहाँ बर्दाश्त हो रहा था, वो उठा और उसने ज़न्नत के कंधे पकड़ लिए और उसकी ओर ललचाई निगाहों से देखने लगा।

मन्त्री- अरे… उसी फिल्म का तो यह कमाल है कि आज तुम यहाँ हो… उसको तो पास होना ही है, पहले तुम मेरी प्यास बुझा दो… अपने इन रसीले होंटों से अपना रस पिला दो मुझे…

ज़न्नत कुछ नहीं बोली, बस उसकी आँखें नीचे थी।

अब मन्त्री जी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उनके हाथ की एक ऊँगली उसके गालों को छू रही थी, ज़न्नत सिहर सी गई।

अब मन्त्रीजी की सारी उंगुलियाँ ज़न्नत के चेहरे को टटोल रही थी।

और अपना हाथ ज़न्नत के कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से उसकी ठुढी पकड़ कर ऊपर उठाया, ज़न्नत की नजरें झुकी थी।

मन्त्री जी बोले- मेरी तरफ देखो, शर्माओ नहीं। फिर ज़न्नत ने नजरें ऊपर की।

मन्त्री जी बोले- क्या हसीं आखें हैं, झील सी गहरी, जी करता है इन आँखों में डूब जाऊँ।

मन्त्री जी और ज़न्नत अब आपने सामने बैठे थे, मन्त्री जी ने अपना एक हाथ ज़न्नत के कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से उसके चेहरे को छूने लगे, धीरे धीरे उनके हाथ उसके होठों तक आ गए, वो उसकी नाजुक होठों को महसूस कर रहे थे।

ज़न्नत बेमन से उसका साथ देने लगी।

कहानी जारी रहेगी..

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एक सुन्दर सत्य-2

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