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अगली सुबह रूचि पहले से मेरा इंतज़ार कर रही थी, शायद उसके अन्दर जो कुछ भरा था वो सुनने वाला कोई तो चाहिए था और मुझसे अच्छा कौन था.. जिसको उससे मतलब भी था। हम दोनों ही मतलबी थे और साथी भी थे।
मैं रूचि के बगल में बैठ गया.. आज रूचि भी चिपक कर बैठ गई। मेरी कुहनी उसकी मस्त बड़ी-बड़ी चूचियों को चुभ रही थी और खिड़की से आ रही ठंडी हवा उसके बाल उड़ा रही थी.. जो बार-बार चेहरे पर आ रहे थे।
अपने बालों को बाँधने की बजाय वो मेरे चेहरे से बाल हटाने में शरारतें कर रही थी.. जिसका लुत्फ़ मैं भी उठा रहा था।
रूचि ने बताना चालू किया, ‘आशीष और मैं दोनों ही नंगे खड़े थे.. आशीष का मोटा काला लण्ड खड़ा हो चुका था और मुझे पता था कि अब ये इतनी जल्दी नहीं झड़ेगा.. मैंने भी मन बना चुकी थी कि जिस चूत में रोज ऊँगली कर-कर के संतुष्टि नहीं मिलती.. आज उसको लौड़े का स्वाद चखा ही दो।
मैं बोला- लेकिन तूने बताया नहीं जब तुझे आशीष छिछोरा लगता है तो फिर उससे क्यों चुदवा लिया?
रूचि- चुदवाना तो तुमसे था.. लेकिन तुम्हारा लण्ड दूसरों की चूतों में जो घुसा रहता है।
ये कहकर रूचि हँसने लगी और मेरी शकल देख कर बोली- अरे मजाक कर रही हूँ पागल।
मैं भी फ़्लर्ट करते हुए बोल पड़ा- चुदवा ले.. वैसे भी तेरे जैसे माल को चोद कर बहुत मजा आएगा।
रूचि- कुत्ते.. कमीने हो ना तुम एक नंबर के.. जब से बैठे हो मेरे चूचे दबा रहे हो… ह्म्म।
मैं हँस पड़ा और उसको और उसके चूचों को एक हाथ से जोर से दबा कर बोला- फिर क्यों चुदवाया आशीष से.. मैं था ना।
रूचि अचानक हुए इस हमले से चिहुंक उठी और मुस्कराते हुए बताने लगी।
रूचि- जब से मेरा ब्रेकअप हुआ था मुझे नहीं पता था कि दिल की तड़प से ज्यादा चूत तड़पेगी.. शायद प्यार का सबसे बड़ा साइड इफ़ेक्ट यही होता है.. रोज चुदने की आदत के चलते मेरी चूत बहुत तड़पती थी। ऊपर से अंकिता और आशीष की चुदाई मैं कनखियों से देखा करती.. तो मेरा मन तो करता था कि कपड़े उतार कर आशीष का लण्ड मुँह में ले लूँ.. लेकिन अंकिता की वजह से उससे दूर रहती थी। लेकिन उस दिन उन दोनों को सामने चुदाई करता देख मेरे सब्र का बांध टूट गया।
इसके बाद रूचि कुछ देर के लिए चुप हो गई तो मैंने पूछा- फिर क्या हुआ?
रूचि- आशीष ने मुझे कंधे से पकड़ कर अपनी ओर खींचा मेरे कोमल उरोज उसके मजबूत सीने से टकराए और मेरे होंठ उसके होंठों में भिंच गए.. मेरे दोनों हाथ उसके चेहरे पर थे और वो मेरी पीठ पर अठखेलियां कर रहा था। उसकी जुबान मेरी जुबान से बार-बार लिपट रही थी.. तभी उसका हाथ मेरी चूत पर पहुँचा जो बहुत पहले ही गीली हो चुकी थी। उस गीलेपन को छूकर आशीष का जोश दुगना हो गया। शायद उसे पता चल चुका था कि मेरी चूत को लण्ड की सख्त जरुरत है। वो मेरे होंठों को इस तरह से चूस रहा था जैसे मैं दुबारा मिलूंगी ही नहीं.. और मेरा हाथ कब उसके लौड़े को सहलाने लगा.. मुझे पता ही नहीं लगा।
आशीष ने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया.. अन्दर बाथरूम से अंकिता के नहाने की आवाजें आ रही थीं और आशीष के होंठ मुझे उसकी वासना में नहला रहे थे। मेरी जाँघों को चूमते-काटते हुए आशीष ने अपने होंठ मेरी गरम चूत के लबों पर रख दिए। मेरी तो जैसे जान ही निकल गई और मेरे पैरों ने उसे कस लिया और आशीष की जुबान मेरी चूत में अपना जादू दिखाने लगी।
मेरी चूत तो पहले से गीली थी और अब तो इतना पानी छोड़ रही थी कि आशीष का पूरा मुँह मेरे चूतरस से लबालब होकर टिप-टिप करके बिस्तर पर गिरने लगा। मैं मचल गई और मैंने तुरंत उठ कर आशीष का मोटा लण्ड अपने मुँह में ले लिया। लेकिन आशीष का मन शायद भरा नहीं था.. उसने मुझे पकड़ कर उल्टा कर के मेरी चूत को दुबारा अपने मुँह में भर लिया और मेरी सिसकारी निकल गई। उस पर मेरे होंठ आशीष के लौड़े पर कस गए।
रूचि की जुबानी उसकी चुदाई सुनने में मजा तो बहुत आ रहा था लेकिन तभी कॉलेज पास में आने की वजह से उसकी बात पूरी नहीं हो पाई लेकिन तभी मैंने सोचा आज पूरी कहानी सुन ही लेते हैं और मेरे खुराफाती दिमाग में एक आईडिया आया।
कॉलेज के पास ही चौहान ढाबा था.. जहाँ किराए पर कमरे मिल जाया करते थे। अक्सर हॉस्टल के लड़के-लड़कियाँ चुदाई करने जाया करते थे। वो कमरे कम होते तो झोपड़े ही थे.. लेकिन अंधे को क्या चाहिए.. एक लकड़ी…
हमारे यहाँ आधी से ज्यादा लड़कियाँ चुदने से सिर्फ इसलिए बच जाती हैं क्यों कि ऐन वक़्त पर कमरे नहीं मिलते। बाकी मेरे साथ क्या हुआ.. वो अगले भाग में पूर्ण करूँगा।
आपके विचार आमंत्रित हैँ।
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