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अनुजा- तो चल कमरे में चल कर अपने सारे कपड़े निकाल.. मैं भी नंगी हो जाती हूँ, तभी मज़ा आएगा।
दीपाली- छी.. नहीं दीदी.. मुझे बहुत शर्म आ रही है… मैं आपके सामने बिना कपड़ों के कैसे आऊँगी?
अनुजा- अरे यार तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे मैं कोई लड़का होऊँ? यार.. मैं भी तो नंगी हो रही हूँ ना.. और तेरे पास ऐसा क्या है जो मेरे पास नहीं है.. अब चल।
बेचारी दीपाली क्या बोलती.. चल दी उसके पीछे-पीछे।
कमरे में जाकर अनुजा ने कहा- तू 2 मिनट यहीं बैठ मैं अभी आई।
दीपाली- दीदी सर तो नहीं आ जाएँगे ना और प्लीज़ उनसे कुछ मत बताना.. वर्ना स्कूल में उनके सामने जाने की मेरी हिम्मत ना होगी।
अनुजा- अरे तू पागल है क्या.. ऐसी बातें किसी को बताई नहीं जाती और विकास तो बहुत सीधा आदमी है.. तभी तो तुमको मेरे पास ले आया ताकि मैं तुझे ठीक से समझा सकूँ.. अब चल तू बैठ.. मैं अभी आई।
दोस्तो, कहानी को रोकने के लिए माफी चाहती हूँ मगर एक बात आपको बताना जरूरी है कि उस दिन विकास ने अनुजा से क्या कहा था दीपाली के बारे में?
अब तक आपको लग रहा होगा विकास को कुछ पता नहीं इस बारे में.. आप वो जान लो फिर कहानी में एक नया ट्विस्ट आ जाएगा। उस दिन स्कूल से जब विकास घर आया।
अनुजा- अरे आओ मेरे पतिदेव क्या बात है बड़े थके हुए लग रहे हो।
विकास- नहीं.. ऐसी कोई बात नहीं है.. तुमसे एक बात करनी है बैठो यहाँ।
अनुजा वहीं सोफे पर बैठ जाती है और विकास उसको दीपाली के साथ हुई पूरी बात बता देता है।
अनुजा- हे राम इतनी भी क्या नादान है वो लड़की… जो ये सब नहीं जानती? और तुमने शाम को उसे यहाँ क्यों बुलाया? क्या इरादा है मुझ से मन भर गया क्या.. जो उस कमसिन कली को समझाने के बहाने भोगना चाहते हो?
विकास- अनु तुम भी ना.. बस बिना मतलब की बकवास करने लगती हो.. मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है.. बस वो आए तब उसे तुम समझा देना और कुछ नहीं…
अनुजा- ओह्ह.. ये बात है… अच्छा मान लो अगर वो तुमसे चुदवाना चाहे तो क्या तुम अपना लौड़ा उसकी चूत में डालोगे?
अनुजा की बात सुनकर विकास का बदन ठंडा पड़ गया और दीपाली को चोदने की बात से ही उसका लौड़ा पैन्ट में तन गया जिसे अनुजा ने देख लिया।
विकास- क्या बकवास कर रही हो तुम..? मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा।
अनुजा- ओए होये.. मेरा राजा.. ये नखरे कुछ नहीं करोगे तो ये लंड महाराज क्यों फुंफकार रहा है हाँ?
विकास ने पैन्ट में लौड़े को ठीक करते हुए अनुजा की तरफ़ घूर कर देखा।
अनुजा- अच्छा बाबा ग़लती हो गई बस.. मगर एक बात कहूँ अगर वो खुद चुदवाने को राज़ी हो जाए तो मुझे कोई दिक्कत नहीं यार.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ और जानती हूँ एक कच्ची कली को चोदने का सपना हर मर्द का होता है.. अब मुझसे क्या शर्माना।
विकास- अच्छा ठीक है.. सुनो.. दीपाली बहुत सुन्दर है.. मानता हूँ कि उसको देख कर कोई भी उसको भोगने की चाहत करेगा मगर तुम तो जानती हो मैं कोई गली का गुंडा नहीं जो छिछोरी हरकतें करूँगा.. हाँ अगर वो खुद से राज़ी हो और तुम्हें कोई दिक्कत ना हो तब मैं उसे जरूर चोदना चाहूँगा।
विकास की बात सुनकर अनुजा के होंठों पर एक क़ातिल मुस्कान आ गई।
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अनुजा- ये हुई ना बात.. अब बस तुम अपनी अनु का कमाल देखो.. कैसे मैं उस कच्ची कली को लाइन पर लाती हूँ ताकि वो आराम से तुमसे चुदने को राज़ी हो जाए।
दोस्तो, यह थी उस दिन की बात और दीपाली के सामने विकास बाहर जरूर गया था मगर दूसरे दरवाजे से अन्दर आकर उनकी सारी बातें उसने सुन ली थीं।
अब आज क्या हुआ चलो आपको बता देती हूँ।
अनुजा कमरे से निकल कर दूसरे कमरे में गई जहाँ विकास पहले से ही बैठा था।
अनुजा- काम बन गया.. अब सुनो मैं उसके साथ थोड़ा खेल लेती हूँ… तुम खिड़की से उसके नंगे जिस्म को देख कर मज़ा लो.. ओके.. अब मैं जाती हूँ वरना उसको शक हो जाएगा।
विकास- ओके मेरी जान.. जाओ आज तुमको भी कच्ची चूत का रस पीने को मिल जाएगा हा हा हा हा।
अनुजा- धीरे हँसो.. वो सुन लेगी.. अब मैं जाती हूँ।
दीपाली- ओह दीदी आप कहाँ चली गई थीं।
अनुजा- अरे कुछ नहीं.. अब चल.. हो जा नंगी.. मस्ती का वक्त आ गया है।
दीपाली- आप भी निकालो.. दोनों साथ में निकालते हैं।
अनुजा ने तो नाईटी पहनी हुई थी और अन्दर कुछ नहीं पहना था झट से निकाल कर बगल में रख दी।
दीपाली- हा हा हा दीदी आप भी ना अन्दर कुछ नहीं पहना और आपके मम्मों को तो देखो कितने बड़े हैं।
अनुजा- मेरी जान तेरी उम्र में मेरे भी इतने ही थे.. ये तो विकास ने दबा-दबा कर इतने बड़े कर दिए।
दीपाली- दीदी आप भी ना कुछ भी बोल देती हो.. सर ने क्यों दबाए.. उम्र के साथ बढ़ गए होंगे।
अनुजा- अरे पगली तू उम्र की बात करती है तुम से कम उम्र की लड़की के मम्मों को तुझ से बड़े मैंने देखे हैं अब क्या कहेगी तू?
दीपाली- सच्ची दीदी.. मगर ऐसा क्यों?
अनुजा- अरे पगली तेरे सर ने इनको दबा-दबा कर इनका रस चूसा है। वे कहते थे कि आम का स्वाद आता है।
दीपाली खिलखिला कर हँसने लगती है।
अनुजा- अब हँसना बंद कर और निकाल अपने कपड़े।
दीपाली ने पहले अपनी टी-शर्ट निकाली तब सफेद ब्रा में से उसके नुकीले मम्मे ब्रा को फाड़कर बाहर आने को बेताब दिखने लगे।
विकास खिड़की पर खड़ा ये नजारा देख रहा था।
अनुजा- वाउ यार.. क्या मस्त मम्मे हैं.. अब ज़रा इन्हें आज़ाद भी कर दे।
दीपाली बस मुस्कुरा कर रह गई और उसने पैन्ट का हुक खोल कर नीचे सरकाना शुरू किया.. तब उसकी गोरी जांघें बेपरदा हो गईं और सफेद पैन्टी में उसकी फूली हुई चूत दिखने लगी।
अनुजा बस उसको देखती रही और दीपाली अपने काम में लगी रही। अब उसने ब्रा के हुक खोल दिए और अपने रस से भरे हुए चूचे आज़ाद कर दिए।
विकास का तो हाल से बहाल हो गया और होगा भी क्यों नहीं.. ऐसी मस्त जवानी को.. वो अपने सामने नंगा होते देख रहा था। अब उसने अपनी पैन्टी भी निकाल दी। सुनहरी झाँटों से घिरी गुलाबी चूत अब आज़ाद हो गई थी।
अनुजा तो बस उसके यौवन को देखती ही रह गई.. मगर जब उसकी नज़र झाँटों पर गई। अनुजा- अरे ये क्या… इतनी मस्त चूत पर ये झांटें क्यों..? मेरी जान ऐसी चूत को तो चिकना रखा करो ताकि लौड़ा टच होते ही फिसल जाए। दीपाली सवालिया नजरों से अनुजा की ओर देखती है।
अनुजा- अरे पगली चूत पर जो बाल होते हैं उन्हें झांट कहते हैं। अब इतना भी नहीं पता क्या और कभी इनको साफ नहीं किया क्या तुमने?
दीपाली- दीदी अब आप के साथ रहूँगी तो सब सीख जाऊँगी और इनको साफ कैसे करते हैं? मैंने तो कभी नहीं किया..
अनुजा- ओह्ह.. तभी इतनी बड़ी खेती निकल आई है.. वैसे मानना पड़ेगा गुलाबी चूत पर ये सुनहरी झांटें किसी भी मर्द को रिझाने के लिए काफ़ी हैं लेकिन मुझे तो चूत को चिकना रखना ही पसन्द है। जब पहली बार विकास ने मेरी चूत देखनी चाही थी.. मैंने भी झांटें साफ नहीं की हुई थीं। किसी तरह बहाना बनाकर दूसरे दिन एकदम चकाचक चमकती चूत उसको दिखाई थी। वो तो देखते ही लट्टू हो गया था।
दीपाली- ओह दीदी.. आप भी ना बेचारे सर को अपने जाल में फँसा लिया हा हा हा हा!
अनुजा- अरे पगली सारे मर्दों को चिकनी चूत बहुत पसन्द आती है और खास कर तेरी जैसी कच्ची कली की चूत तो चिकनी ही रहनी चाहिए.. चल सबसे पहले तुझे झांटें साफ करना सिखाती हूँ।
दीपाली- ठीक है दीदी.. कहाँ चलना है अब?
अनुजा- अरे कहाँ का क्या मतलब है.. बाथरूम में… चल तू वहाँ कमोड पर बैठ जाना.. मैं साफ कर दूँगी।
दीपाली- ओह्ह.. दीदी आप कितनी अच्छी हो जो मुझे सब सिखा रही हो।
अनुजा- अच्छा एक बात तो बता.. तू 18 साल की हो गई है तुझे वो तो आती है ना.. मेरा मतलब मासिक धर्म जो हर महीने आता है।
दीपाली- हाँ दीदी इसका मुझे पता है लेकिन जब मैं 13 साल की थी मुझ पेट में बहुत दर्द हुआ.. बुखार भी हो गया.. दो दिन तक ऐसा चला.. तब माँ ने मुझे सब समझाया कि अब तुझे पीरियड शुरू होंगे.. तू खून देख कर डरना मत.. बस उस दिन से सब पता चल गया।
अनुजा- चल कुछ तो पता चला तुझे.. आ बैठ यहाँ.. मैं अभी वीट लगा कर तेरी चूत को चमका देती हूँ।
दीपाली- दीदी बाथरूम का दरवाजा तो बन्द करो.. कोई आ गया तो?
अनुजा- अरे यार घर में सिर्फ़ हम दोनों हैं और कमरे की कुण्डी बन्द है ना.. कोई कैसे आएगा..? अब चुपचाप बैठ जा यहाँ।
दीपाली इसके बाद कुछ नहीं बोली.. 15 मिनट में अनुजा ने उसके चूत के बाल के साथ-साथ उसके हाथ-पाँव के भी बाल उतार दिए। उसको एकदम मक्खन की तरह चिकना बना दिया।
अनुजा- वाउ अब लगी ना… ‘सेक्सी-डॉल’.. चल अब बाहर आजा.. आज तुझे चूत का मज़ा देती हूँ।
इसके आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़ते रहिए और आनन्द लेते रहिए.. मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें। [email protected]
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