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हाय दोस्तो, मैं आपको अपनी सच्ची आत्मकथा इस कहानी के माध्यम से बताने जा रहा हूँ।
इसकी शुरुआत चार हफ्ते पहले हुई थी।
बात यूँ हुई कि मेरी मौसी और उनकी सहेली मेरे घर पर रहने हुई आई हुई थी।
यूँ तो मैं अकसर घर पर अपने माँ–बाप के साथ रहा करता था पर उस दिन मेरे माता–पिता भी एक महीने के लिए बाहर गए हुए थे।
मैं तो बचपन से चूतों को बहुत बड़ा खिलाड़ी रहा हूँ।
मौसी तो मेरी अपनी थी पर उनके साथ आई सहेली की चूत के ख्याल तो अपने शैतानी दिमाग में ला ही सकता था।
मेरी मौसी तो घर के काम सँभालने के लिए आई हुई थी पर उनकी सहेली कुछ नौकरी की तलाश में थी।
मैं भी मौके पर चौका मारते हुए उनकी सहेली को रोज बाहर ले जाता और नौकरी ढूंढने के बहाने उनसे खूब बात करता हुआ काफ़ी अच्छी दोस्ती बढा ली।
धीरे–धीरे अब बात आगे बढ़ाते हुए मैं कभी–कभी उनके हाथ पर हाथ भी रख लेता जिस पर मेरी मौसी की सहेली शिल्पी मेरा विरोध ना करती।
मुझे शिल्पी ने वादा किया था कि अगर उसकी नौकरी पक्की हो जाये तो वो मुझे मेरी मुंह–मांगी चीज़ देंगी।
और मैंने कुछ ही हफ़्तों में अपनी कंपनी में उसकी नौकरी की बात पक्का करवा दी और बारी आई वादे की।
सुबह–सुबह मेरी मौसी डेढ़ घंटे के लिए बाहर जाती थी और दूध लेकर आती थी। उस वक्त मैं और शिल्पी भी जग कर अपने काम में व्यस्त हो जाया करते थे।
अगले दिन सुबह मेरी मौसी के जाते ही मैं शिल्पी के कमरे में गया और उसके पास बैठ इधर–उधर की बातें करते हुए उसके हाथ को सहलाने लगा।
जिस पर शिल्पी ने भी मस्त वाली मुस्कान दी और मेरा हौंसला इतना बढ़ा कि मैंने मुलायम होंठों को अपने होठों के तले दबाने लगा। जिस पर वो भी मेरे होंठों को चूसने लगी पर बीच में उसने एकदम से मुझे हटाते हुए कहा– यह क्या कर रहे हो??
मैं– तुमने मुझसे वादा किया था.. बस मेरे वादे को पूरा कर दो!!
अब मैं शिल्पी के पेट को मलते हुए उसकी कुर्ती के उठाते हुए चूचियों को दबाने लगा।
मैं वक्त की पाबन्दी को समझते हुए उसे चूमते हुए और गर्म करने लगा।
मैंने अब शिल्पी की गुदगुदी चुचियों को पीना शुरू कर दिया और उनके नीचे के पहने हुए सलवार भी खोल फटाक से उसकी पैंटी को उतार दिया।
अब मैंने अपनी बलखाती हुई उँगलियों को उसकी चूत में देनी शुरू कर दी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! लगभग दस मिनट से जबरदस्त ऊँगली करने के बाद अब उसकी चूत गीली हो चुकी थी।
कुछ देर बाद मैंने देखा की शिल्पी मेरे लंड को अपनी चूत में बेतहाशा तरीके से लेने के लिए तड़प रही थी। तभी मैंने उसे बिस्तर पर वहीं अपने नीचे लिटा दिया और अपने लंड का सुपारा उसकी चूत के मुख पर टिका दिया।
जैसे ही मैंने अपने दोनों हाथों से उसके कन्धों को पकड़ एक जोर का धक्का मारा तो उसके मुंह से भारी–भारी सिसकारियाँ चीख सहित निकल पड़ी और उसकी आँख से आँसू निकल रहे थे।
अब जैसे ही हमारी स्थिति सामान्य हुई तो मैं अपने लंड को फिर हल्के–हल्के धक्के मारते हुए उसकी चूत में धकेलने लगा।
जिस पर वो भी अपनी कमर को लहरा कर मेरे लंड को लेने लगी।
मुझे शिल्पी को ज़बरदस्त चोदते हुए बीस मिनट हो गए और आखिर मैं थककर उसके पेट पर झड़ गया।
शिल्पी घिन से अपने तन पर से मेरे मुठ को साफ़ कर रही थी और मैं अपनी मौसी के आने तक उसे और उसके चुचों को लगातार चूसे जा रहा था।
कहानी इस तरह चलती गई, आज हमारी कंपनी में काम करते हुए मैं शिल्पी को शौचालय में अकेले बुलाकर चुम्मा–चाटी कर लेता हूँ।
मुझे मेल जरूर करें।
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