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Antheen Kasak-2 मैं घर चला आया लेकिन मेरा मन बिल्कुल नहीं लगा। घर आने पर मुझे मलेरिया हो गया जिससे मैं 10 दिन तक रुक गया, इस बीच मुझे शमी की बहुत याद आती थी, मुझे लगा कि मैं उससे प्यार करने लगा हूँ, उसका वो गोल प्यारा चेहरा, बड़ी बड़ी आँखे, बार बार याद आते। मैं अकेले में उसके विरह में खूब रोता।
आखिर वो घड़ी आ गई जब मैं ठीक होकर कानपुर पहुँचा, मैंने धड़कते दिल के साथ घण्टी बजाई, मैंने मन ही मन प्रार्थना की कि शमी ही दरवाजा खोले, लेकिन दरवाजा आंटी जी ने खोला।
वे बोली- आओ बेटा, बहुत दिन रुक गए?
मैंने कहा- हाँ आंटी, मलेरिया हो गया था।
मेरी आँखें उस वक्त शमी को ही ढूंढ रहीं थीं लेकिन वो नहीं दिखी। शायद अन्दर ही थी।
उसकी एक झलक का इंतज़ार करते करते शाम हो गई लेकिन मेरी तरसती आँखों को मेरी जान का दीदार नहीं हुआ।
तभी शाम को 6 बजे नीचे से आंटी की आवाज आई- उदित, चाय पियोगे?
मैंने कहा- हाँ आंटी, अभी आता हूँ।
आंटी ने कहा- रुको, वहीं भिजवाती हूँ।
मेरा दिल जोर से धड़कने लगा, मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि ‘हे भगवान… शमी ही आये चाय लेकर, पैरों की आवाज सीढ़ियों पर सुनाई देने लगी, मैं अपना दिल थामे दरवाजे पर खड़ा हो गया।
फिर अगले पल मुझे लगा कि खुदा जैसे मुझ पर मेहरबान है, मेरे सामने चाय का कप लेकर शमी खड़ी थी। हमेशा की ही तरह शांत… उदास…
मैंने कहा- आइये भाभी!
वो बिना कुछ बोले सिर झुकाकर अन्दर आ गई, मैंने उसके हाथ से कप और प्लेट ले लिया, जैसे ही मैंने कप मेज पर रखा, वो फफककर रो पड़ी।
मैं उसकी और दौड़ा, उसे छूकर सान्त्वना देने का साहस मुझमें न था, मैंने पूछा- क्या हुआ? क्यूँ रो रही हैं आप?
वो बोली- तुम कहाँ चले गए थे मुझसे बिना बताये?
मैंने कहा- घर गया था, मलेरिया हो गया था इसलिए ज्यादा दिन रुकना पड़ गया।
वो बोली- तुम ठीक तो हो ना?
मैंने कहा- हाँ, लेकिन आप रो क्यूँ रही हैं?
उसने कहा- बस ऐसे ही!
मैंने कहा- नहीं आपको बताना होगा।
उसने कहा- मुझे जाना है खाना बनाना है अभी।
पता नहीं कहाँ से मेरा साहस बढ़ गया, मैंने उसके झुके हुए चेहरे को ठोढ़ी से पकड़कर ऊपर उठाते हुए कहा- आपको मेरी कसम!
उसने कहा- मैं 11 बजे आऊँगी।
फिर वो चली गई।
यारो, उसके चेहरे का स्पर्श कितना मधुर और सुखद था, मैं तो खाना पीना छोड़ बस उसी के बारे में सोचता रहा और बेसब्री से 11 बजने का इंतज़ार करने लगा।
जैसे तैसे मैंने वो 4-5 घंटे काटे।
11 बज चुके थे, आसमान साफ़ था, पानी बरसकर थम चुका था, हल्की हल्की हवा चल रही थी, मैं बेसब्री से दरवाजा खोले अपने कमरे में चहलकदमी कर रहा था, किसी के कदमों की आहट मुझे सीढ़ियों पर सुनाई देने लगी, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा।
शर्मिष्ठा मेरे सामने आकर खड़ी हो गई, मैं अपलक उसे ही देखता रहा और वो मुझे…
करीब 2 मिनट बाद मैंने चुप्पी तोड़ी- अब बताओ न भाभी, क्यूँ रो रही थी आप?
उसने कहा- अन्दर तो आने दो!
हम दोनों अन्दर आ गए मैंने अन्दर से दरवाजा बंद कर लिया।
उसने कहा- डॉक्टर साहब, पहले मुझे भाभी कहना बंद करो, मैं तुमसे 2-3 साल ही बड़ी हूँ।
मैंने कहा- आप कितने साल की हो? उसने कहा- 23 साल की!
दोस्तो, वो तो 23 से भी कम की लगती थी।
मैंने कहा- अच्छा शमी बताओ, क्यूँ दुखी थी आज तुम?
वो हंसने लगी और बोली- तुम बहुत भोले हो उदित, मुझे बैठने को भी नहीं बोला और सवालों की झड़ी लगा दी?
मैंने कहा- ओह सॉरी! अपनी इस मूर्खता पर खुद मुझे भी हंसी आ गई।
मेरे कमरे में एक कालीन था, मैंने दीवार के सहारे उसे बिछाया और हम दोनों दीवार के सहारे टेक लेकर बैठ गए।
शमी ने कहा- शादी को 4 साल हो गए लेकिन खुल कर कभी हंसने लायक मौक़ा कभी नहीं आया इस घर में, तुमसे मिली तो लगा जैसे किसी अपने से दुबारा मिली हूँ, तुम्हारी सारी बातें मुझे बहुत सुकून देती हैं, फिर उस दिन तुम अचानक चले गए और 10 दिन तक नहीं आये तो मेरे मन में तरह-तरह के बुरे ख्याल आने लगे, और जब तुम आये तो बस ऐसे ही आँखों में आँसू आ गए।
‘मैंने भी तुम्हे बहुत मिस किया शमी!’ मैंने कहा।
फिर हम दोनों चुप हो गए, वो शून्य में देखने लगी।
मैंने कहा- भैया कहाँ है शमी?
उसने कहा- ननद के कॉलेज की फीस जमा करने गाज़ियाबाद गए हैं, परसों आयेंगे।
‘और अंकल-आंटी?’ मैंने सशंकित स्वर में कहा।
‘सो गए हैं।’ उसने कहा।
फिर थोड़ी देर की चुप्पी के बाद उसने कहना आरम्भ किया- उदित मैं एक गरीब घर से हूँ, हम 4 बहने हैं, मैं सबसे बड़ी हूँ, पापा की कपड़े की दुकान थी मलीहाबाद में, उसमें आग लग गई, तब मैं हाई स्कूल में पढ़ती थी, सब कुछ जल गया, उसी के इन्श्योरेन्स के पैसे लेने पापा एक दिन जा रहे थे तो उन्हें जीप ने टक्कर मार दी, जिससे उनका देहांत हो गया। मम्मी ने सिलाई करके और घर किराए पर देकर हम 4 बहनों को पाला, मैंने भी किसी तरह b.sc. में दाखिला लिया। फिर एक दिन एक रिश्तेदार ने मेरी शादी के लिए मम्मी को यह परिवार बताया।
‘फिर?’ मैंने पूछा।
शमी बोली- उन्होंने बताया कि लड़का उम्र में थोड़ा ज्यादा है बाकी सब ठीक ठाक है, नौकरी भी करता है। तब मैं 19 साल की थी और ये 30 के थे, मैंने जब पहले दिन शादी के बाद इन्हें देखा तो बहुत रोई, लगा कि जैसे मेरा सब कुछ छिन गया हो, धीरे-धीरे वक्त गुजरता रहा, विनोद और मेरा स्वभाव एकदम विपरीत निकला, हमेशा मेरे ऊपर शक करना, बात बात पर मुझे टोकना इनकी आदत सी हो गई, हम दोनों में बहुत दूरियाँ हैं, मैंने कभी भी इन्हें दिल से नहीं चाहा।
मैंने उसे टोका- लेकिन भैया की शादी इतनी लेट क्यूँ हुई?
शमी ने कहा- इनको एक एंडोक्राइन बीमारी है, जो कि इन्हें बचपन में सिर पर चोट लगने के कारण हुई थी, इनकी पिट्यूटरी ग्रंथि का फंक्शन खराब है, सारे हर्मोन कम मात्रा में निकलते हैं, इनकी हड्डियाँ तो बढ़ गई हैं लेकिन शारीरिक विकास नहीं हुआ है, इनको ग्रोथ हर्मोन, थाइरोइड हर्मोन तथा टेस्टोस्टेरोन बाहर से दिए जाते रहे हैं, जिसके कारण इनका शारीरिक विकास थोड़ा बहुत हो गया है।
चूंकि मैंने इसके बारे में पढ़ा था इसलिए मुझे तुरंत पता चल गया कि विनोद को secondary hypopituitarism नामक बीमारी है। इसमें आदमी का सेक्सुअल विकास बहुत कम हो जाता है जिसके कारण इरेक्टाइल डिसफंक्शन या लिंग के खड़ा न होने की बीमारी हो जाती है।
‘इसी कारण इनकी शादी नहीं हो रही थी, मैं कोई खिलौना हूँ क्या उदित?’ कह कर शमी सुबकने लगी। उसने मेरे कंधे पर अपना सिर रख लिया, मैं उसका सिर सहलाने लगा।
दोस्तो, वह पल मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत क्षण था, उसके बालों से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी, उसके नर्म मुलायम रेशमी बालों का एहसास मुझे पागल बना रहा था।
करीब आधे घंटे हम दोनों एक दूसरे के पास यूँ ही बैठे रहे, फिर वो चली गई।
अगले दिन फिर वो 11 बजे आई, हमने एक दूसरे के साथ वक्त गुजारा और वो चली गई।
अब तक हमने एक दूसरे से प्यार का इजहार नहीं किया था।
दो दिन बाद विनोद वापस आ गया, अब मिलने में समस्या होने लगी, दो दिन तक हम बातें नहीं कर सके।
एक दिन वो सुबह छत पर आई और बोली- मैं शाम को नहीं आ सकती लेकिन दोपहर को आ सकती हूँ, उस वक्त विनोद ऑफिस में होते हैं और सास ससुर सो रहे होते हैं।
मैंने थोड़ा गुस्से में कहा- आने की जरूरत ही क्या है? मैं हूँ कौन? क्यूँ आती हो मेरे पास?
उसने उदास होकर कहा- तुम नाराज़ मत हो प्लीज!
फिर थोड़ा सा रूककर बोली- मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ उदित, बहुत चाहती हूँ तुम्हें!
इतना कहकर उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे।
मैंने कहा- ठीक है, मैं आज लंच के बाद कॉलेज से वापस आ जाऊँगा, मैं एक बजे आऊँगा।
उसने कहा- नाराज़ तो नहीं हो ना?
मैंने कहा- कैसे नाराज़ हो सकता हूँ अपने प्यार से!
वो खुश होकर नीचे चली गई, मैं एक बजे कॉलेज से आ गया।
करीब एक घंटे के इंतज़ार के बाद वो आई, मैंने गुस्से में कहा- जाओ मुझे कोई बात नहीं करनी !
उसने मुस्कुराते हुए कहा- अरे! मेरा बेबी गुस्सा है?
यह कहकर वो मेरे सीने से लिपट गई, मैंने उसे बेड पर बैठा दिया तथा खुद भी बैठ गया।
मैंने उससे कहा- शमी, मेरी जान मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।
वो अब और मेरे सीने से लिपट गई।
दोस्तो, उसके स्तन मेरे सीने से दबे हुए थे, उसका सिर मेरी ठोढ़ी के नीचे था, उसके बालों से बहुत ही अच्छी खुशबू आ रही थी, करीब 5 मिनट बाद मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और उसका माथा चूम लिया, उसने मेरे गाल चूम लिए, मेरा साहस बढ़ गया, मैंने अपने होंठ उसके निचले होंठों पर रख दिए और चूसने लगा।
वो तो जैसे जन्मो की प्यासी थी, आँखें बंद करके मेरे होंठों को बेतहाशा चूसने लगी, उसकी गरम साँसें मेरे चेहरे से टकराकर मुझे रोमांचित कर रही थी।
मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में ले रखा था।
फिर मैं खड़ा हो गया तथा उसे भी अपने सामने खड़ा कर दिया, वो मेरे गले से लग गई।
मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरना शुरू कर दिया, उसके ब्रा के हुक मेरे हाथों से बार बार टकरा रहे थे, उसके बाल काफी लम्बे थे, उसकी चोटी उसके चूतड़ों तक लम्बी थी, मैंने उसके बालों के साथ-साथ उसके चूतड़ों पर भी हाथ फेरना शुरू कर दिया। पहली बार मैंने किसी औरत के चूतड़ों को छुआ था, उफ़… क्या नरम और गुदाज़ कूल्हे थे उसके !
मैंने उससे धीरे से पूछा- शमी, तुम्हारी सेक्सुअल लाइफ कैसी है?
उसने कहा- मत पूछो, विनोद का इरेक्शन ही नहीं होता, बहुत मुश्किल से कभी-कभी बस थोड़ा सा सेक्स हो पाता है।
‘तो क्या तुम्हारी hymen अभी तक intact है?’ मैंने पूछा। कहानी जारी रहेगी।
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