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‘ठीक है समीर जी, अब तो रोज़ ही मिलना मिलाना लगा रहेगा…’ रेणुका ने मेरे पीछे से एक मादक आवाज़ में कहा, जिसे सुनकर मैंने फिर से उनकी तरफ पलट कर देखा और उन्हें मुस्कुराता हुआ पाया।
मेरा तीर निशाने पर लग रहा था। बस थोड़ी सी तसल्ली और…
मैं बड़े ही अच्छे मूड में ऑफिस पहुचा और फिर रेणुका के ख्यालों के साथ काम में लग गया… लेकिन जब सामने एक मदमस्त गदराया हुआ माल आपको अपनी चूत का स्वाद चखने का इशारा कर रहा हो और आपको भी ऐसा ही करने का मन हो तो किस कमबख्त को काम में मन लगता है…
जैसे तैसे मैंने ऑफिस का सारा काम निपटाया और शाम होते ही घर की तरफ भागा।
घर पहुँचा तो अँधेरा हो चुका था और हमारे घर के बाहर हमारे पड़ोसी यानि अरविन्द भाई साहब अपनी पत्नी रेणुका और बेटी वन्दना के साथ कुर्सियों पे बैठे चाय का मज़ा ले रहे थे।
जैसे ही मैं पहुँचा, अरविन्द जी से नज़रें मिलीं और हमने शिष्टाचार के नाते नमस्कार का आदान-प्रदान किया।
फिर मुझे भी चाय पीने के लिए बुलाया और मैं उनके साथ बैठ कर चाय पीने लगा।
सामने ही रेणुका बैठी थीं लेकिन फिर उसी तरह बिल्कुल सामान्य… मानो जो भी मैं सुबह सोच कर और समझने की कोशिश करके दिन भर अपने ख्याली पुलाव पकाता रहा वो सब बेकार था। या फिर पति के सामने वो ऐसा दिखा रही थीं मानो कुछ है ही नहीं! वन्दना और अरविन्द जी के साथ ढेर सारी बातें हुई और इन बातों में बीच बीच में रेणुका जी ने भी साथ दिया।
मैंने थोड़ा ध्यान दिया तो मेरी आँखों में फिर से चमक उभर आई… क्योंकि रेणुका जी ने दो तीन बार चोर निगाहों से अपनी कनखियों से मेरी तरफ ठीक वैसे ही देखा जैसे वो सुबह देख रही थीं…
अब मेरे चेहरे पर मुस्कान छा गई और मैं थोड़ा सा आश्वस्त हो गया।
काफी देर तक बातें करने के बाद हम अपने अपने घरों में चले गए और फिर रोज़ की तरह खाना वाना खा कर सोने की तैयारी… लेकिन आज की रात मैं थोड़ा ज्यादा ही बेचैन था। पिछले दो दिनों से चल रही सारी घटनाओं ने मुझे बेचैन और बेकरार कर रखा था। मैं कुछ फैसला नहीं कर पा रहा था कि क्या करूँ…
हालात यह कह रहे थे कि रास्ता साफ़ है और मुझे थोड़ी सी हिम्मत दिखा कर कदम आगे बढाने चाहिए.. लेकिन दिल में कहीं न कहीं एक उलझन और झिझक थी कि कहीं मेरा सोचना बिल्कुल उल्टा न पड़ जाए और सारा खेल ख़राब न हो जाए!
अंततः मैंने यही सोचा कि अगर सच मच रेणुका जी के मन में भी कोई चोर छिपा है तो कल सुबह का इंतज़ार करते हैं और जानबूझ कर कल उठ कर भी सोने का नाटक करूँगा। अगर रास्ता सच में साफ़ है तो कल रेणुका जी खुद दूध लेकर आएँगी और फिर मैं कल अपने दिल की मुराद पूरी कर लूँगा… और अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर अगले इशारे का इंतज़ार करूँगा।
इतना सोच कर मैंने अपने लंड महाराज को मुठ मरकर शांत किया और सो गया।
योजना के मुताबिक सुबह मैं उठ कर भी बिस्तर पर लेटा रहा और घड़ी की तरफ देखता रहा।
लगभग साढ़े नौ से पौने दस के बीच दरवाज़े पर दस्तक हुई। मैंने भगवन से प्रार्थना करनी शुरू कर दी कि रेणुका ही हो…
दरवाज़ा खोला तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा… सामने रेणुका जी खड़ी थीं और उनके हाथों में दूध का पतीला था… बाल खुले हुए जैसे कि मैंने उन्हें हमेशा देखा था… होठों पर एक शर्माती हुई मुस्कान… सुबह की ताजगी उनके चेहरे से साफ़ झलक रही थी।
मैं बिना पलकें झपकाए उन्हें देखता ही रहा।
‘अब यहीं खड़े रहेंगे या यह दूध भी लेंगे… लगता है आपने फिर से रात को भूतनी देख ली थी और सो नहीं आप, तभी तो अब तक सो रहे हैं…’ रेणुका जी ने शर्म और शरारत भरे लहजे में कहा।
मेरी तन्द्रा टूटी और मैंने झेंप कर मुस्कुराते हुए दरवाज़ा पूरी तरह खोल दिया और सामने से हट कर उन्हें अन्दर आने का इशारा किया। वो बिना कुछ कहे मुझसे सट कर अन्दर आ गईं और सीधे रसोई की तरफ जाने लगीं।
मैंने अब गौर से उन्हें जाते हुए देख कर महसूस किया की आज भी उन्होंने उस दिन की तरह ही एक गाउन पहन रखा था लेकिन आज वो सिल्क या नायलॉन की तरह रेशमी लग रहा था जो उनके पूरे बदन से चिपका हुआ था।
गौर से देख कर यह पता लगाना मुश्किल नहीं हुआ कि उस गाउन के नीचे कुछ भी नहीं है क्योंकि जब वो चल रही थीं तो उनके विशाल नितम्ब सिल्क के उस गाउन से चिपक कर अपनी दरार की झलक दिखला रहे थे।
मेरे कान गर्म होने लगे और लंड तो वैसे भी अभी अभी नींद से उठने की वजह से पूरी तरह से खड़ा था जैसे हमेशा सुबह उठने के बाद होता है।
मैं भी रसोई की तरफ लपका और जानबूझ कर उनसे टकरा गया। पीछे से टकराने की वजह से मेरे लंड ने उनकी गाण्ड को सलामी दे दी थी।
रेणुका जी एक पल को ठहरी और पीछे मुड़कर मेरी तरफ शर्माते हुए देखने लगीं… फिर वापस मुड़कर कल के अपने पतीले को देखने लगीं जिसमें कल का दूध अब भी पड़ा था।
‘यह क्या… कल का दूध अब भी पड़ा है..आपने तो पिया ही नहीं…?!’ भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए सवालिया चेहरा बनाया।
‘दरअसल मैं कल रात को भूल गया और पेट भर गया था सो खाने की इच्छा ही नहीं हुई।’ मैंने एक सीधे साधे बच्चे की तरह उन्हें सफाई दी। ‘हम्म्म… अब इतने सारे दूध का क्या करेंगे… बेकार ही होगा न !!’ भाभी ने चिंता भरे शब्दों में कहा।
‘नहीं भाभी आप चिंता मत कीजिये, मैं दूध का दीवाना हूँ… चाहे जितना भी दूध हो मैं बर्बाद नहीं होने देता। फिर यहाँ के दूध की तो क्या कहने… जी करता है बस सारा ही पी जाऊँ…!!’ मैंने गर्म होकर फिर से उन पर चांस मारते हुए उनकी चूचियों की तरफ देखा और बोलता चला गया।
रेणुका जी ने मेरी नज़रें भांप लीं और कमाल ही कर दिया… आज उन्होंने जो गाउन पहना था उसका गला पहले वाले गाउन से कुछ ज्यादा बड़ा था और उन्होंने अपनी दोनों बाहों को इस तरह कसा कि उनकी चूचियों की आधी गोरी चमड़ी मेरी आँखों के सामने थीं।
मेरे होंठ सूख गए और मैंने एक बार उनकी तरफ देखा।
आज उनके चेहरे पर शर्म तो थी लेकिन आँखों में चमक थी जो मैंने उनकी बेटी वन्दना की आँखों में देखा था… यानि वासना भरी चमक…
‘फिर तो यह जगह आपके लिए ज़न्नत है समीर बाबू… यहाँ तो दूध की नदियाँ बहती हैं… और दूध भी इतना स्वादिष्ट कि सब कुछ भुला देता है।’ इस बार भाभी ने अपनी आवाज़ में थोड़ी सी मादकता भरते हुए कहा और एक गहरी सांस ली।
‘अब यह तो तभी पता चलेगा न भाभी जब कोई असली दूध का स्वाद चखाए… आजकल तो दूध के नाम पर बस पानी ही मिलता है।’ मैंने भी चालाकी से बातें बढ़ाते हुए कहा और दो अर्थी बातों में उन्हें यह इशारा किया कि जरा अपनी चूचियों से असली दूध पिला दें।
वो बड़े ही कातिल अदा के साथ मुस्कुराईं और इपनी आँखों को नीचे की तरफ ले गईं जहाँ हमेशा की तरह मेरा एक हाथ अपने लंड को सहला रहा था।
वो देखते ही भाभी आँखें फाड़ कर मेरे लंड की तरफ देखने लगीं और फिर दूसरी तरफ मुड़ कर दूध का पतीला रखने लगीं।
‘अब असली दूध के लिए तो थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ेगी…!!’ भाभी ने मुड़े हुए ही दूध रखते हुए दबी आवाज़ में कहा।
मैंने उनकी बात साफ़ सुन ली और धीरे से आगे बढ़ कर उनसे पीछे से सटकर खड़ा हो गया।
ऐसा करते ही मेरे खड़े लंड ने उनकी गाण्ड की दरारों में सिल्क के गाउन के ऊपर से अपना परिचय करवा दिया।
लंड के छूते ही भाभी को एक झटका सा लगा और वो एकदम से तन कर खड़ी हो गईं। उनके ऐसा करने से मेरा लंड उनकी दरार में थोड़ा सा दब गया और एकदम टाइट हो गया।
पता नहीं मुझमें कहाँ से हिम्मत आ गई और मैंने अपने दोनों हाथों को उनके दोनों कंधों पर रख दिए और उनके कानों के पास अपने होंठ ले जाकर धीरे से बोला- हम बहुत मेहनती हैं रेणुका जी… आप कहिये तो सही कि कब और कितनी मेहनत करनी है? रेणुका ने कुछ भी नहीं कहा और अपने बदन को धीरे धीरे ढीला छोड़ दिया। हम दोनों का कद बिल्कुल इतना था कि मेरा लिंग उनकी गाण्ड की दरारों के ठीक ऊपरी हिस्से पर टिका था और उनके गोल गोल नितम्ब मेरी जाँघों से सटे हुए थे।
हम थोड़ी देर तक वैसे ही खड़े रहे और किसी ने कुछ नहीं कहा। मेरे हाथ अब भी उनके कन्धों पर ही थे और अपना दबाव धीरे धीरे बढ़ा रहे थे। हम दोनों ही तेज़ तेज़ साँसें ले रहे थे और मैं रेणुका जी को अपनी तरफ खींच रहा था। वो भी बिना कुछ कहे पीछे से मेरी तरफ सिमट रही थी और जाने अनजाने अपने चूतड़ों को मेरे लंड पर दबाती जा रही थीं। मैंने अपने हाथों को धीरे से आगे की तरफ सरकाया और उनकी मखमली चूचियों के ऊपर ले गया।
जैसे ही मेरे हाथों का स्पर्श उनकी चूचियों पर हुआ, उन्होंने अपनी गर्दन मेरे कंधे पर टिका लीं और अपनी साँसें मेरे गले पर छोड़ने लगीं। उफ्फ… वो मखमली एहसास उन चूचियों का… मानो रेशम की दो गेंदों पर हाथ रख दिया हो।
मैंने धीरे से उनकी दोनों चूचियों को सहलाने के लिए अपने हाथों का दबाव बढ़ाया ही था कि अचानक से किसी के आने की आहट सुनाई दी।
‘माँ… माँ… आप यहाँ हो क्या?’ वन्दना चीखती हुई दरवाज़े के बाहर आ गई। कहानी जारी रहेगी। आप अपने विचार भेज सकते हैं।
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