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अनन्त कुमार प्रिय दोस्तो, मैं इस साईट को बेहद चाहने वालों में से हूँ, पर मैंने देखा है कि हर कहानी में लड़की किसी न किसी रूप से बिस्तर पर आ ही जाती है। तो मैंने सोचा कि क्यों न काम और वासना सहित कुछ नया लिखा जाए। जिसके फलस्वरूप यह है मेरी प्रस्तुति।
यह कहानी, जो स्त्रियों की दशा पर कटाक्ष तो करती ही है, साथ ही उन पुरुषों की मजबूरी का भी उपहास उड़ाती है जो धर्म और संस्कृति को मात्र ढकोसला रूप से ही अपनाए हुए हैं।
वो गुरुवार का दिन था, मैं बिस्तर पर बैठा-बैठा छत को ताक रहा था। देखते-देखते कब दो घंटे बीत गए पता ही नहीं चला। मैं ख्यालों में खोया था और अगर वो फोन न आता तो मैं अपने गहन विचारों से उबर ही नहीं पाता।
मैंने फोन उठाया- हाँ.. जी कौन बोल रहा है? ‘अरे अरविन्द.. मैं हूँ यार।’ ‘हाँ सर, क्या हुआ?’ मेरा मालिक बोला- यार एक जरूरी काम आ गया है, तुम्हें कानपुर जाना होगा। एक ग्राहक है, तुम्हें उससे मिलना होगा, ख्याल रहे कि सौदा पक्का हो जाए।
मेरे पास ‘हाँ’ के सिवाय कोई चारा नहीं था, मैंने ‘हाँ’ कर दी।
‘पर मैं कहाँ ठहरूँगा?’
मुझे आशा थी कि वो मुझे होटल में ठहरने को कहेगा, पर उसने पैसे की दिक्कत बताते हुए कन्नी काट ली।
मैं परेशान हो गया, एक तो महँगाई और ऊपर से फालतू के खर्चे।
कुछ देर बिस्तर पर बैठा-बैठा सोच रहा था। फिर अचानक मुझे मेरा दोस्त ऋतेश याद आया। मुझे याद आया कि वो कानपुर में रहता है।
फिर क्या था, मैं उसका फोन नम्बर ढूँढने में लग गया।
एक धूल भरी डायरी में उसका नम्बर मिला।
दिन अच्छा था, अगर बातचीत सफल रही, तो मैं उसके घर तीन रात तक रुक सकूँगा।
‘हैलो कौन?’ ऋतेश बोला। ‘यार मैं अरविन्द बोल रहा हूँ।’ इधर-उधर की बाते करते हुए मैं मुख्य मुद्दे पर आया और उससे पूछ ही लिया।
उसने ‘हाँ’ कर दी, पर साथ ही यह भी बताया कि वो घर पर नहीं है, दफ्तर के काम से उसे भी बाहर जाना पड़ा है।
मैं कुछ संकोच में पड़ गया।
ऋतेश बोला- कोई बात नहीं.. तू घर पर चले जाना, तेरी भाभी घर पर होगी। मैं उसे तेरे आने की खबर दे दूँगा।
मैं खुश हो गया था, मेरा पैसा जो बचा।
मैंने अगले दिन कानपुर के लिए ट्रेन पकड़ी, कुछ ही देर में मैं ऋतेश के घर पहुँच गया।
मैंने दरवाजा खटखटाया कुछ देर तक कोई उत्तर नहीं मिला।
मुझे डर लगा कि कहीं दूसरे के घर तो नहीं आ गया। अक्सर लोग मेहमान को भगाने के लिये घर से भाग जाते हैं।
मैं मुड़ कर जाने ही वाला था कि सिटकनी खोलने की आवाज आई, मैं रुक गया।
जब दरवाजा खुला तो मैं… सब भूल गया। क्या स्वप्ना थी, मेरी भाभी और ऋतेश की बीवी.. उसके बहुत ही सुन्दर और बड़े स्तन अपनी उठी हुई जवानी का अहसास करा रहे थे। उसका ब्लाउज बहुत ही कसा हुआ था और उसके उरोजों को सम्भालने में असमर्थ था। इसका पता ब्लाउज से ऊपर आ रहे उरोजों से हो रहा था।
मेरी वासना की व्यथा इतनी ही होती तो भी ठीक थी, उसके दोनों स्तनों के चिपकने से बीच में एक अतिकामुक रेखा का निर्माण हो गया था।
उसकी जवानी का रस पूरे बदन से टपक रहा था और मैं तरस रहा था।
खैर मेरी तरस पर वो नहीं तरसी और मेरी टपकती लार भी उससे छिपी नहीं रही। वो भांप गई कि मैं कहाँ देख रहा हूँ।
वो अपना आँचल संमभालते हुए बोली- आप कौन? मैं कुछ देर तो खोया रहा, पर जल्द ही वापस आ गया- जी मैं अरविन्द… ऋतेश का दोस्त, उसने बताया होगा।
उसे याद आया और सहजता से मुझे अन्दर आने को कहा।
मैं अन्दर तो आ गया था, पर उसकी नजर में गिर गया था।
कुछ देर में मुझे पता चला कि वो अकेली नहीं रहती है उसकी बेटी भी है।
रात हुई.. मैंने खाना खाया और सोने चला गया और इस पूरे घटना क्रम में मैं उससे नजर न मिला सका।
कमरा छोटा था, पर सुन्दर था, मैं बिस्तर पर लेट गया। खिड़की से सड़क की रोशनी आ रही थी, बेहद अन्धकार में वह हल्की सी रोशनी आँखों को ठंडा कर रही थी।
मुझे नींद तो आ नहीं रही थी, तो मैं उस हल्के से माहौल का आनन्द लेने लगा।
तभी मेरी नजर सामने की दीवार पर पड़ी, एक छोटा सा रोशनी का बिंदु दिखा, कुछ देर घूरने से उसके स्रोत को जानने की इच्छा हुई। जानने पर पता चला कि वो तो बिन्दु दीवार के पार से आ रही थी।
मनुष्य की जिज्ञासा का कोई अन्त नहीं। मैंने छेद की ओर ध्यान दिया तो मालूम पड़ा कि कभी कोई कील वगैरह गाड़ते समय हो गया होगा।
मैं उत्सुक हुआ कि उस पार क्या है?
जब झांका तो पता चला कि वो रोशनी भाभी जी के बाथरूम से आ रही थी, स्वप्ना मेरी तरफ पीठ करके और शीशे की ओर मुँह करके मंजन कर रही थी।
उसने गहरे हरे रंग की साड़ी पहनी थी, उसका आँचल जमीन पर था, उसकी पीठ को पूरी तरह से ढकने में असमर्थ ब्लाऊज, बेहद पतले कपड़े का था। साफ पता लग रहा था कि उसने काले रंग का ब्लाऊज पहन रखा है।
मैंने सोचा अब और नहीं देखना चाहिए, पर हाथ में आए भोग को त्यागना भी नहीं चाहिए।
फिर क्या था मैंने उसी स्थान पर आसन लगा लिया।
स्वप्ना जी मुँह धो चुकी थीं, अब वह नहाने की तैयारी करने लगीं।
उसने साड़ी अपने कमर पर से उतारनी शुरु की, कुछ ही देर में वो पेटीकोट में थी।
अभी भी मुझे उसकी पीठ ही दिख रही थी। मैं उसके स्तनों को देखने की चाह में मतवाला होने लगा।
अब उसने अपना हाथ पीछे किया और ब्लाऊज के हुक को खोलने लगी। मुझे उसकी काली ब्रा का दर्शन होने लगा था।
अपने नंगे होते बदन को आइने में देख कर उसे भी मजा आने लगा था। तभी तो वो अपने दोनों उरोजों को दोनों हाथों से मलने लगी। वह बेहद जोर से अपने स्तन दबा रही थी।
इसका अन्दाजा इसकी स्तनों में अन्दर तक घुसती उँगलियों से लगाया जा सकता था।
उसका ब्लाऊज खुल जाने की वजह से ढीला हो गया था। जब वह अपने उरोजों को मसल रही थी तो उसकी पीठ पर ब्लाऊज के दोनों हिस्से झूलते हुए उस की ब्रा को छिपाते और ओझल कर रहे थे।
अब वह गरम हो रही थी, क्योंकि वह सिसकारियाँ भरने लगी थी। अब उसने ब्लाऊज को अपने तन से अलग किया और ब्रा खोल कर ऊपर से पूर्ण नग्न हो गई। एक बार ठहर कर आइने में दोनों स्तनों का निरीक्षण करने लगी, उसके दोनों उरोजों का रंग लाल हो गया था।
उसका गोरा बदन उस लाली को छिपाने के बजाए और दिखा रहे थे।
अब वह पुनः दोनों उरोजों को सहलाने लगी और सहलाते-सहलाते अपने निप्प्ल तक पहुँच गई। अब वह दोनों स्तनों के निप्पल की नोक को दो उँगलियों से भरपूर रगड़ने लगी।
इस बार उसकी सिसकारियाँ पहले से ज्यादा कामुक थीं। अब वह कभी निप्पल को रगड़ती और कभी दोनों उरोजों को एक बार में ही दबा देती।
मैंने तो कभी नंगी स्त्री देखी ही नहीं थी और वो भी इस अवस्था में.. ऐसा लग रहा था कि जैसे अन्धे को आँख मिल गई हो।
वो लम्बी-लम्बी साँस ले रही थी। उसकी योनि पानी छोड़ने लग गई, वह पानी उसकी जाँघों के सहारे नीचे उतर रहा था। उसकी योनि गीली होने कि वजह से चमचमा रही थी। उसके स्तन बेहद लाल हो गए थे। अब शायद वह आग उसके बस के बाहर हो गई थी, तभी वो अपनी उँगलियों को योनि में डाल कर योनि से खेलने लगी।
स्वप्ना का पूरा शरीर लाल हो गया था, खास तौर पर दोनों स्तन और योनि के आस-पास का भाग। समय के साथ स्वप्ना अपने हाथ को जोर-जोर से हिलाने लगी, शायद वो कगार पर पहुँच गई थी।
मेरी आशंका सही थी, वह योनि से तेज से पानी की धारा निकाल कर ठंडी हो गई।
स्वप्ना का पूरा शरीर पसीने से भीग गया था, जैसे-जैसे उसके शरीर की लाली जा रही थी, उसका शरीर पसीना छोड़े जा रहा था।
वह पल मेरे लिए जन्नत सा प्रतीत हुआ।
मैं तीन रातों तक उसका यह स्पेशल प्रोग्राम देखता रहा था। जब जाने लगा तो मैंने मुस्कराते हुए कहा- मैं आपको बहुत ‘मिस’ करुँगा।
जवाब मिला, ‘मैं भी आप को ‘मिस’ करुँगी।”
मैं भौचक्का था कि ये मुझे क्यों ‘मिस’ करेंगी।
खैर मैं मुंडी हिलाते हुए अपनी वासनाओं को वहीं छोड़ कर उसके घर से आगे निकल पड़ा।
तभी स्वप्ना भाभी की आवाज आई- अरे सुनिए..!
मैं मुड़ा तो भाभी जी ही थीं।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तब वो थोड़ी गुस्से से और निराशा से बोली- तुम से बड़ा फिसड्डी नहीं देखा.. धन्य हो तुम..
यह कह कर वह चूतड़ हिलाती हुई घर के अन्दर चली गई और जोर से दरवाजे को बंद कर दिया।
जीवन में पहली बार मुझे किसी का कहा समझ नहीं आया।
सत्य है औरतों के मन की बात ब्रह्मा भी न समझ पाए।
त्रिया चरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम्.. देवो न जानयति.. कुतो मनुष्य:
मुझे आशा ही पूर्ण विश्वास भी कि आप भी मेरे इस दुर्भाग्य पर अपने पत्र जरूर लिखेंगे।
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