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अन्तर्वासना की कहानी में पढ़ें कि कैसे सुबह सवेरे उस गाँव की लड़की ने मुझे अपने घर बुला कर मुझे चूमना शुरू कर दिया. मैंने भी उसे पूरी नंगी कर लिया और …
हैलो साथियो, आपने मेरी इस रॉंग नम्बर वाली लौंडिया की चुदाई की अन्तर्वासना की कहानी में अब तक पढ़ा कि उसने मुझे मिलने के लिए बुलाया और मेरा लंड चूस कर मुझे गरम करके वापस भेज दिया. मैं अपने भाई की ससुराल में वापस आकर लेटा लेटा उसी के बारे में सोच रहा था कि कब उसकी चुत चुदाई का अवसर मिलेगा.
अब आगे की अन्तर्वासना की कहानी:
मैं अभी सोच ही रहा था, तब तक फोन वाईब्रेट होने लगा. देखा तो उसी का फोन था.
उसने कहा- हैलो! मैंने कहा- हां बोलो! वो- क्या कर रहे हो मेरे राजा जी? मैं- लेटा हूँ और तुम्हारी चुत और चूचियों के बारे में सोच रहा हूँ. वो- चुप रहो … तुमने तो आज … मैं- क्या क्या … आज क्या? वो- कुछ नहीं … और बताओ?
मैं- तुम बताओ? वो- तुम्हें पता है … तुम्हारे जाने के बाद जब मैं घर में जा रही थी, तो मेरे हाथ पैर कांप रहे थे. मैं- वो किस लिए? वो- इतनी देर जो हो गयी थी. मैंने बहन को बोला था कि 2-3 मिनट में आ जाऊंगी. मगर तुम तो छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे.
मैं- क्या कहा तुमने … तुम्हारी बहन को सब पता है? वो- हां उसे मैंने बताया है. मैं- वो कुछ बोली नहीं? वो- उसको ये थोड़े ही पता था कि हम क्या कर रहे थे. उसको तो मैंने बोला था बस बात करके आ जाऊंगी. मैं- फिर भी उसने पूछा तो होगा कि कौन है … कैसे क्या? वो- उसको सब पता है.
मैं- अच्छा … खैर छोड़ो, ये बताओ मेरे लंड को उसकी मंज़िल तक कब पहुंचा रही हो? वो- क्या बताऊं … तुमने आज मेरी हालत खराब कर दी थी. मैं- लंड तो तुम्हारी बुर से मिला भी नहीं है, फिर हालत कैसे खराब हो गयी?
वो- वो नहीं … जो तुम कर रहे थे पागलों की तरह से तुम मुझपे टूट पड़े थे. मैं तो यही सोच रही थी कि बस … मगर 10-11 मिनट में तुमने क्या क्या कर दिया … पूछो ही मत! मैं- क्यों? वो- क्यों क्या … घर आने के बाद में 10 मिनट तक बैठ कर यही सोच रही थी कि तुम कहां कहां क्या क्या कर रहे थे … मेरे गले पर सीने पर … और तुमने वहां भी हाथ लगा दिया था. मैं- कहां पर? वो- बुर में. मैं- तो क्या हुआ?
वो- क्या हुआ! तुम जो भी किए … चलो किए … जब तुमने वहां हाथ लगाया तो जैसे मुझमें बिजली सी दौड़ पड़ी थी. मेरे पूरे बदन में कंपकंपी सी होने लगी थी. तभी तुमने इतनी ज़ोर से पकड़ कर मेरा हाथ खींच लिया था. मेरी कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था. मैं ये सब नहीं होने देना चाह रही थी. मैं- लेकिन क्यों? वो- क्योंकि टाइम नहीं था. जब तुमने वहां हाथ लगाया, तो मुझे लगा बस तुम मुझमें समा जाओ. मैं- तो हो जाने दिया होता … रोका क्यों? वो- मजबूरी थी. मैं- और जो मेरे लंड को तरसा के गयी हो … वो!
उसने हंस कर बोला- उफ़ कितना मोटा है वो.. मैं- कौन? वो- तुम्हारा वही … लंड.. मैं- तुम्हें अच्छा लगा? वो- चुप रहो … कितना मोटा है मेरे मुँह में तो आ ही नहीं रहा था … पूरा मुँह खोलने पर भी नहीं आया … इतना तो पानी पूरी खाने के लिए भी मुँह नहीं खोलना पड़ता. मैं- फिर भी गया तो! वो- कितनी मुश्किल से.
मैं- मुँह में मुश्किल भले ही हुई हो, पर चुत में नहीं होगी. वो- ना बाबा! मैं- क्यों? वो- कैसे जाएगा … वो इतना मोटा है. मैं- चला जाएगा. वो- मेरी तो उसकी सोच कर ही पसीने छूट रहे हैं. मैं- पसीने छूट रहे हैं या बुर गीली हो रही है? वो- चुप रहो.
मैं- जब मैंने तुम्हारी बुर में हाथ लगाया था, तो देखा वो कितनी गीली थी. वो- चुप … सब तुम्हारी वजह से हुआ था. मैं- मेरी वजह से क्यों? वो- और नहीं तो क्या! बस तुम तो चूमे जा रहे थे … मेरी चूचियों को कैसे चूस रहे थे तुम! मैं- अच्छा नहीं लगा क्या? वो- अच्छा तो बहुत लगा.
मैं- तो फिर कब चुसवा रही हो? वो- जल्द ही … अब सो जाओ रात बहुत हो गयी है … कल की सुबह तुम्हारे लिए स्पेशल होगी. मैं- क्या स्पेशल होगा? वो- वो तो सुबह ही पता चलेगा. अभी सो जाओ … गुड नाइट बाइ. मैं- अरे मेरी बात…. वो- बाइ … गुड नाइट उम्मउम्म … आह.
बस उसने फोन रख दिया. मैंने भी वापस लगाने की नहीं सोची. अब मैं ये सोचने लगा कि सुबह क्या स्पेशल हो सकता है. फिर कब नींद आ गयी, पता ही नहीं चला.
सुबह करीब 4:45 बज रहा था. मेरी आंख खुली … तो मेरा फोन वाईब्रेट हो रहा था. मैंने देखा कि गुड़िया का फोन था.
तो मैं सोचने लगा कि ये इतनी सुबह फोन क्यों कर रही है. मैंने फोन उठाया.
उसने बोला- हैलो! मैंने कहा- ह्म्म्म्म.. वो- हम्म मत करो … कब से फोन कर रही हूँ … उठाते क्यों नहीं? वो मुझ पर भड़क रही थी.
मैं- यार मैं सो रहा था. वो- ऐसे सोते हो! कितना फोन किया मैंने, पता भी है! मैं- हां बोलो क्या हुआ? वो- क्या हुआ! जल्दी उठो और आ जाओ. मैं- क..क..क्या आ जाओ मतलब?
इसके साथ ही मेरी नींद एकदम भाग गयी वरना अब तक मैं नींद में ही था. वैसे जवानी की नींद होती ही है निकम्मी.
वो- आ जाओ … मतलब आ जाओ. मैं- कहा आ जाऊं? वो- मेरे पास. मैं- अभी? वो- हां सुबह स्पेशल बनानी है, तो आ जाओ. मैं- ऊऊ..ह … तो ये बात है. वो- हां जल्दी आओ वरना उजाला हो जाएगा. मैं- आना कहां है?
इतना बोलते हुए मैं बिस्तर से निकल कर जैकेट पहनने लगा.
वो- मेरे घर में. ये सुनकर मैं चौंक गया- क्या? तुम्हारे घर में? वो- हां. मैं- तुम पागल हो क्या … किसी ने देख लिया तो? वो- तुम फिक्र मत करो, मैंने सब सैटिंग कर रखी है … बस तुम जल्दी से आ जाओ … वरना सब किए धरे पर पानी फिर जाएगा. मैं- ओके लेकिन मुझे ये सही नहीं लग रहा है. वो- नाटक मत करो … चुपचाप आ जाओ. मैं- ठीक है!
मैं निकल पड़ा … बाहर अभी भी अंधेरा था. ठंडी की वजह से काफ़ी सुनसान लग रहा था. सुबह ठंडी भी ज़्यादा थी. मेरे कदम तेज़ी से बढ़ रहे थे. फोन भी चालू ही था, उससे बात करते करते मैं उसके घर के पास पहुंच गया.
चालू फोन पर उसने बोला- तुम सीधा चलते रहो … मैं दरवाज़ा खोल रही हूँ … तुम सीधा अन्दर आ जाना.
मैंने देखा कि उसका दरवाजा बंद ही था. पर मैं चलते जा रहा था. एकदम पास पहुंच गया, तो मैंने फोन पर कहा- दरवाज़ा खोलो.
बस दरवाज़ा खुल गया. वो सामने चेहरे पर मुस्कान लेकर खड़ी थी. मैं सीधा घर में घुस गया. उसने फ़ौरन दरवाज़ा बंद किया और मुझे गले से लगा लिया.
उसने गले लगाया, तो मैंने उसकी कमर पकड़ कर एकदम से उससे चिपक गया. वो मुझे देखने लगी.
मैंने कहा- चलो. वो- कहां? बस यहीं.
मैंने देखा कि हम दोनों एक कमरे में थे … जिसमें दो दरवाजे थे. एक वो जिससे मैं अन्दर आया था, दूसरे दरवाजे से एक दूसरे कमरे में एंट्री थी. फिर आगे कैसे क्या था … मुझे क्या मालूम.
वो मेरे गले में हाथ डाल कर पूछने लगी- क्या हुआ? मैंने- कुछ नहीं! कोई गड़बड़ी तो नहीं होगी? वो- जानू तुम कुछ मत सोचो … मैं तुम्हारे पास हूँ … बस इस पर ध्यान दो.
अब मैं मुस्कुरा दिया और उसके होंठों के करीब अपने होंठ ले जाकर रुक गया.
फिर उसने बड़े प्यार से अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मैंने अपने होंठों को खोला और उसके नरम होंठों को हल्के से दबाते हुए चूस लिए. उसने फिर से मेरे होंठों को उसी तरीके से चूसा और नज़रें नीचे करके मुस्कुराने लगी.
मैंने अपने सर को उसके सर पर टिका दिया. उसने अपना सर उठाया और अपने होंठों को मेरे होंठों से जोड़ दिया. फिर घमासान होंठों की चुसाई होने लगी. अब हम इस तरह एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे कि बता पाना मुश्किल है कि कौन किसके होंठ चूस रहा था.
कुछ देर होंठों की चुसाई के बाद अब मैं उसकी गर्दन पर आ गया और उसने मेरे सर को पीछे से पकड़ कर अपनी उंगलियां मेरे बालों में डाल दीं.
मैं गर्दन से फिसलते हुए सीने पर आ गया. एक हाथ से उसकी चुचि दबाने लगा, दूसरा हाथ को कुर्ती के अन्दर घुसा कर उसकी कमर से पीठ तक सहला रहा था. मैं अपने मुँह से उसकी एक चूची कपड़े के ऊपर से चूसे जा रहा था.
फिर मैंने उसकी कुर्ती को उठाया. उसने भी मेरा साथ दिया और उतार कर मैंने साइड में फेंक दिया. वो मेरे सामने ऊपर ब्रा नीचे सलवार में खड़ी थी.
उसे पकड़ कर मैंने घुमा दिया. उसकी पीठ मेरी तरफ हो गयी. एक हाथ उसके पेट पर और मुँह से उसके कंधे और गर्दन को चूमते हुए मैंने उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी ब्रा को भी उतार फेंका. मैं उसे अपनी तरफ घुमा लिया. उसने दोनों हाथों से अपनी चुचियां ढक लीं.
मैंने उसके हाथ पकड़े और उसकी चूचियों को नंगी कर दिया.
बाप रे क्या चुचे थे … उस रात में तो मैंने देखा ही नहीं था. उसके चूचे मीडियम से थोड़े बड़े … एकदम गोरी चुचियां और उन पर मटर के दाने जैसे भूरे कड़क निप्पल … आह … मज़ा आ गया.
अब मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी चूचियों को मसला, फिर एक चूची मुँह भर चूसना शुरू कर दिया. जैसे ही उसकी चूची चूसना शुरू किया, उसके हाथ मेरे सर पर आ गए. मैं मुँह में भर भर कर उसकी चूचियों को चूसने लगा. निप्पल तो मैं ऐसे चूस रहा था कि अगर उसमें दूध होता, तो मेरे मुँह में भर जाता.
वो भी मज़े से अपनी चुचियां चुसवा रही थी.
कुछ देर चुचियों को चूसने के बाद मैंने उसकी सलवार की डोरी पकड़ी और खींचने को हुआ. उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक दिया. अब भी मैं उसकी एक चूची को चूस रहा था. मैंने जिस डोरी को पकड़ा था, वो मेरे हाथ में ही थी.
उसने दूसरी तरफ की डोरी पकड़ी और अपनी सलवार को खोल दिया. उसके नाड़ा खोलते ही उसकी आधी सलवार सरक के नीचे आ गयी. आधी मेरे हाथ में डोर होने की वजह से रुक गयी. मगर उसकी चुत मुझे दिख गयी. उसने अन्दर पैंटी नहीं पहनी थी. चुत पर एक भी बाल नहीं था. क्लीन चुत थी, जैसे आज ही झांटों को साफ़ कर दिया हो.
अब मैं जो झुक कर चूची चूस रहा था, तो सीधा खड़ा हो गया. उसके सर को पकड़ा और होंठ उसके होंठ पर पर रख कर अपना हाथ उसकी चुत पर ले गया. उसकी चुत पर हाथ रखते उसने मुँह खोल दिया. मैंने जीभ अन्दर डाल दी. उसने होंठों से मेरी जीभ को अन्दर खींच लिया. मैं उसकी चुत को अब सहलाने लगा और वो मेरे कंधे पर सर रख कर मेरी पीठ पर अपने नाख़ून चुभाने लगी.
मैंने उसके बाल पकड़े, सर को कंधे से हटाया और घुटनों पर बैठ कर अपनी जीभ निकाली और नुकीली करके उसकी नाभि में लगा दी. उसने अपनी सांस खींच कर पेट अन्दर कर लिया.
मैं हाथों को उसकी जांघ पर सहलाने लगा. उसकी नाभि से चूमते हुए मैं उसकी चुत पर पहुंच गया. चुत पर किस करते ही उसने टांगें फैला दीं और दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ लिया.
मैंने अपनी जीभ निकाली और उसकी चुत पर नीचे लगाते हुए चुत चाट ली. फिर चुत को नीचे से ऊपर तक चाटता चला आया. वो तो जैसे पूरी तरह से हिल गयी और उसने अपनी टांगों को और फैला दिया.
अब मैं उसकी चुत चाटने लगा उसकी चुत की फांकों को होंठों से दबा दबा कर चूसने लगा. वो भी मचलते हुए अपनी चुत को मेरे मुँह में दबाने लगी. मैं भी कुत्ते के जैसे उसकी चुत को चाटने चूसने लगा. उसकी चुत इतना पानी छोड़ रही थी कि मेरे मुँह में उसकी चुत का पानी कुछ इस तरह लग गया था, जैसे बाल्टी में मलाई भर कर उसमें मुँह डाल कर खा रहा हूँ.
कुछ देर इसी तरह उसकी चुत चाटने के बाद मैं खड़ा हो गया. मेरे उठते ही वो मुझसे चिपक गयी और मेरे होंठों को चूसने लगी. उसने अपनी जीभ से चाट कर मेरे मुँह पर लगा खुद की चुत का रस साफ करने लगी.
वो ऐसे चाट रही थी जैसे गाय अपने बछड़े को चाट रही हो.
उसी के साथ उसने मेरे फड़फड़ाते हुए लंड पर हाथ रख दिया और पैंट के ऊपर से ही दबाने लगी.
मेरा लंड तो इस तरह से अकड़ रहा था जैसे कि पैंट के अन्दर उसका दम घुट रहा हो.
मैंने बेल्ट खोली, चैन को खोला और पैंट नीचे सरका दिया. इतने में उसने मेरे अंडरवियर में हाथ डाल कर लंड अपनी मुट्ठी में भर लिया. मैंने उसका हाथ लंड से हटाया और पैंट और अंडरवियर उतार कर खड़ा हो गया. वो फिर से लंड को सहलाने लगी.
मैंने उसके बाल पकड़े और उसको लंड की तरफ झुकाने लगा.
उसने कहा- सुनो ये नहीं … पहले तुम वो करो. मैंने कहा- क्या?
वो मुझसे चिपक कर लंड अपनी चुत पर रगड़ने लगी. ‘पहले इसे अन्दर करो..!’
मैं कुछ और बोल पाता कि उसने अपने होंठ मेरे मुँह पर लगा दिए.
उसने कहा- प्लीज़ पहले ये करो … कल से ही मेरी बुर गीली है … पहले इसको शांत करो. मैंने कहा- कल से? वो- हां कल जब तुम मिल कर गए हो, तब से इसका बहुत बुरा हाल है प्लीज़.
अब मैं उसके होंठों को चूसते हुए उसे धकेला और दीवार से सटा दिया. उसकी एक टांग उठाकर हाथ में ले ली और लंड को उसकी चुत पर ज़ोर से रगड़ने लगा
उसके मुँह से ‘इससस्स … आह..’ की आवाज़ निकली और वो कमर हिलाकर चुत को लंड पर धकेलने लगी.
लेकिन मैं अभी उसको और तड़पाना चाह रहा था, तो लंड को उसकी चुत में डालने के बजाए बस चुत पर रगड़ रहा था. उसके छेद पर लगा कर हटा लेता और लंड को उसकी चुत के दाने पर रगड़ देता.
वो आंखें बंद कर होंठों को भींचने लगी … अपने ही दांतों से अपने होंठ काटने लगी. वो 20 साल की लौंडिया अब लंड के लिए मचल रही थी. मैं बस मज़े ले रहा था.
अब उसके बर्दाश्त की हद हो गयी थी. मैं उसे तड़फाने का मजा लेते हुए सोच रहा था कि इसकी चुत चुदाई करने में मजा आ जाएगा.
ऐसा नहीं है कि मैं उस रॉंग नम्बर वाली लौंडिया की चुत में लंड घुसाऊंगा और खुद मजा लेकर आ जाऊंगा. उसकी चुत चुदाई का मजा आपको भी पढ़ने को मिलेगा. बस अगली बार उसकी अन्तर्वासना की कहानी लिख कर आपके लंड चुत को भी पानी पानी कर दूंगा.
आप मुझे मेल कीजिएगा. [email protected]
अन्तर्वासना की कहानी जारी है.
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