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यह महज एक कहानी या सच्ची घटना नहीं है ये मेरे दिल की यादें हैं, मेरे साथ हुआ अन्याय है, दुआ कीजिएगा कि ऐसा किसी और के साथ ना हो। मैंने अपने दोस्तों से सुना था कि जिसे चूत मिलने लगती है, अगर वो चाहे तो उसे मिलती ही जाती है और जिसको नहीं मिलती उसका तो पहली चूत मारना भी पहाड़ उठाने समान होता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
सुना था कि जब भगवान देता है तो छप्पर फाड़ के देता है। लेकिन ये नहीं कहा गया था कि जब लेता है तो गाण्ड फाड़ के लेता है। जब दुनिया देखी तब हक़ीकत का पता चला।
इससे पहले कहानी शुरू हो, मैं अपने बारे में बता दूँ, मैं सावन दुबे लखनऊ के एक बहुत ही प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज के तृतीय वर्ष का छात्र हूँ। दिखने में सामान्य कद-काठी, थोड़ा सा गोरा और आकर्षक हूँ। शायद आपको यह कहानी पसंद ना आए क्योंकि इसमे मैं गंदे शब्द बहुत कम प्रयोग करूँगा। मुझे प्यार वाले सेक्स की बजाय, चुदाई वाला प्यार जरा कम पसंद है। किशोरावस्था में मैं बहुत ही शर्मीला था, इसके कारण मेरे हाथ से दो लड़कियां निकल गईं, जिसमें एक का नाम था नेहा। वो मुझे बहुत प्यार करती थी और मैं भी उतना ही उसे चाहता था।
कौन कहता है कि गोरी लड़कियां सुंदर होती हैं। मेरे ख्याल से तो सेक्स के लिए तो फिगर मस्त होना ज़रूरी होता है, जो उसको कामिनी देवी (सेक्स की देवी) ने बखूबी दिया था। उसकी 5’5′ की लंबाई, गेहुँआ रंग, 34-28-32 की फिगर, अब और क्या चाहिए किसी के लण्ड को खड़ा करने के लिए…! खास कर मुझको..!
बात उन दिनों की है, जब मैं 11वीं में पढ़ता था और इत्तेफ़ाक़न वो भी 11वीं में ही पढ़ती थी लेकिन अफ़सोस मेरे साथ नहीं..!
वो मेरे गाँव के पश्चिम में पढ़ती थी और मैं पूरब में।
लेकिन संयोग ये कि वो मेरे दोस्त की बहन थी या ये कह लीजिए कि मैंने उसके भाई से दोस्ती की थी और इसी कारण मैं उसके घर में रोज 3 से 4 घंटे बिताता था। 11वीं की परीक्षा के बाद मेरी कोचिंग की पढ़ाई भी चल रही थी और उसकी छुट्टियाँ चल रही थीं, क्योंकि वो कला वर्ग से थी और मैं विज्ञान वर्ग से पढ़ रहा था।
बात जून महीने की है, उसके घर के बगल में एक लड़के की शादी हुई, इन दोनों के घर के बीच में एक मंदिर था, जहाँ हम मिला करते थे।
एक दिन कोचिंग से लौटने के बाद हम दोनों मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे थे, वो मेरे दाईं ओर थी और मैं उसके तथा दीवार के बीच में था। उसकी चूचियाँ मेरे दाएँ हाथ से सटी हुई थीं। वो कुछ ज़्यादा ही चुदासी हो रही थी। ‘सावन, लोग शादी के बाद क्या करते हैं..?’ उसने पूछा। ‘सुहागरात..’ मैंने कहा। ‘इसीलिए तो ये अभी-अभी जिसकी शादी हुई थी, वो.. दिन-रात घर में ही रहता है, ये तो लगता है कि सुहागदिन भी मना रहा है।’ थोड़ी देर चुप्पी रहने के बाद… नेहा- चलो हम लोग भी करते हैं, जो शादी के बाद किया जाता है। ‘कहाँ करेंगे..? जगह नहीं है.. ना ही तेरे घर में ना ही मेरे घर में…!’ मैंने कहा। थोड़ी देर सोचने के बाद उसने कहा- चलो मेरे तालाब के किनारे जो झाड़ी उगी है, उसमे छिप कर करते हैं। मैं- हम्म.. ठीक है, लेकिन साथ में जाएँगे तो लोग शक़ करेंगे। ‘तू पहले जा और मैं बाद में आती हूँ..!’ उसने कहा। मैं तालाब के किनारे आकर बैठ गया। मुझे इतना तो पता था कि पहली बार चोदने पर लड़के पहले झड़ जाते हैं और लड़की देर से झड़ती है।
इसके ठीक अगली बार में यह उल्टा होने लगता है।
मतलब कि लड़की जल्दी झड़ती है और लड़का देर तक लगा रहता है।
चूंकि मैं पहले झड़ना नहीं चाहता था तथा तालाब तक आते-आते मेरा मन भी वासना से भर गया था इसलिए मैंने मूठ मार ली ताकि नेहा की चुदाई अच्छे से कर सकूँ। पर दिल है की मानता नहीं, पहली चुदाई का जो जोश होता है, वो तो जिसने किया होगा उसे ही पता होगा। मैं तो केवल उन पाठकों के लिए लिख रहा हूँ जो आज तक चुदाई का आनन्द नहीं प्राप्त कर सके। अभी आधे घंटे भी नहीं बीते थे कि मेरा लण्ड केवल ये सोचकर खड़ा हो गया कि आज जिंदगी मे पहली बार चुदाई करूँगा। आधे घंटे किसी तरह इंतजार किया, मेरा लण्ड फूल कर फटा जा रहा था, मैंने एक बार और मूठ मार ली। आहह…! अब जाकर कुछ आराम मिला, लेकिन जो आनन्द की प्राप्ति चूत चोदने में मिलती है, वो इन हाथों से कहाँ मिलेगी..? चूत के साथ-साथ, चुंबन करने के लिए गुलाबी होंठ, नरमदार बड़े-बड़े चूचे और उन पर गुलाबी चूचुक, इन सबका रसपान का आनन्द मूठ मारने में कहाँ मिलेगा..! इंतज़ार की भी एक हद होती है, चूत का इंतज़ार जो मुझे मूठ मारने पर विवश कर रहा था और नेहा के आने का इंतज़ार जो मुझे मूठ मारने से रोक रही थी, धिक्काऱ रही थी कि तुझे इतना भी कंट्रोल नहीं है कि थोड़ी देर और इंतज़ार कर ले..! अंत मैं मैंने अब मूठ ना मारने का निर्णय किया और अपने घड़ी में समय देखा। अब डेढ़ घंटे बीत चुके थे, शायद उसे आना ना था, कामदेव को कुछ और ही मंज़ूर था। उसके ना आने से मन थोड़ा उदास था, मगर खुशी भी थी, इसलिए कि ऐसे रोमान्टिक तरीके से मूठ मैंने पहली बार मारा था। मैं सीधे उसके घर गया और उसको छोड़कर सबसे बातें की। मेरी नाराज़गी उसे पता चल गई, घर से आते वक़्त उसने पूछा- नाराज़ हो? मैं- हाँ..! ‘परसों गुड़िया (बगल के घर की एक लड़की) की शादी है, मैं और मेरे घर वाले शादी में वहीं रहेंगे..!’ उसने कहा। ‘तो..?’ मैंने कहा। नेहा- मैं माहवारी के दर्द का बहाना बना कर अपने घर आ जाऊँगी और फिर चुदाई करेंगे।
अब हम लोग इतना खुल गए थे कि चुदाई जैसे शब्द का प्रयोग कर सकें। मैं- ठीक है..! एक ना एक दिन तो चुदना ही था।
आज दिन भी तय हो गया।
मेरा दिल फिर से हिलोरें खाने लगा, लेकिन मैंने अपने आप पर नियंत्रण किया। समय से पहले खुशी का इंतज़ार ठीक नहीं है, कहीं इस बार भी मूठ ही ना मारना पड़ जाए। शादी का दिन आ गया, शादी वाले घर में मैं भी था और वो भी थी। मैं भी बहुत खुश था वो भी बहुत खुश थी। शादी किसी और की होने वाली थी, लेकिन सुहागरात हम लोग मनाने वाले थे। मैंने मन ही मन कामदेव को धन्यवाद दिया कि इन्होंने मेरे लिए इतना अच्छा इंतजाम किया था।
शायद इसीलिए उन्होंने मेरा तालाब वाला प्रोग्राम कैंसिल किया था। बीच में मैंने मौका निकाल कर पूछ लिया, ‘मैं तेरे घर कब पहुँचूँ..!’ ‘ठीक 2 बजे..!’ उसने बताया। अभी 11 बज रहे हैं, मैं ज़्यादा थक भी गया हूँ, क्यों ना 2-3 घंटे सो लूँ। रात भर जागना जो है..! ये सोच कर मैं अपने घर सोने चला गया। ये नींद भी ना, आज आ क्यूँ नहीं रही…! अरे आएगी कहाँ से..! आज अपनी सुहागरात जो मनानी है। अच्छा चलो सोचते हैं कि शुरू कहाँ से करेंगे..! वो अक्सर मेरे होंठों को कहती है कि बहुत गुलाबी है। मेरी जान आज से ये होंठ तुम्हारे हो गए जब चाहे तब पी लेना इनका रस, लेकिन इनको भी तुम्हारे दूध पीने हैं, तुम्हारी चूचियों ने इनको बहुत तड़पाया है। आज तो मैं तुम्हारा पूरा दूध खाली कर दूँगा। नहीं पहले चूची नहीं पियूँगा, पहले होंठ चुसूंगा फिर होंठ चूसते हुए ही कपड़े निकालूँगा, फिर ब्रा निकालूँगा उसके बाद अपने इन हाथों से चूचियों को मसलूँगा, फिर दूध पियूँगा। अरे तुम कब आईं..? मैं तो तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था। ‘तुम नहीं आए तो मैं चली आई… सावन, तुम्हारे होंठ बहुत गुलाबी हैं..!’ मैं- हम्म और तुम्हारे भी..! नेहा- धत्त्त.. मेरे तुम्हारे जितना नहीं है। मैं- आओ देखते हैं.. किसके ज़्यादा गुलाबी हैं। नेहा- कैसे..? मैं- दोनों के होंठ एक पास करके आईने में देखते हैं। नेहा- ठीक है। ‘देखो तुम्हारे ज़्यादा गुलाबी हैं..!’ आईने में देखते हुए उसने बोला। मैं- हाँ.. वो तो है, तुम्हें भी अपने गुलाबी करवाने हैं..? यही होता है एक परिपक्व और मंजे हुए खिलाड़ी और नौसिखिए में अंतर…! हम दोनों को पता था कि चुदाई करनी है, मिले भी थे इसीलिए लेकिन फिर भी एक झिझक थी, एक अनुभव हीनता थी। वो रातें सोच कर मैं आज भी रोमांचित हो जाता हूँ। उसने बोला- कैसे? ‘आँखे मूंदो..!’ मैंने आईना नीचे रख दिया, अब होंठ उसके भी काँप रहे थे और मेरे भी। हिम्मत करके होंठों को होंठों से मिलाया और हाथ को हल्के से उसकी कमर में डाला। शायद वो भी मेरे होंठ का इंतज़ार कर रही थी। हम दोनों की जीभ कब आपस में अठखेलियाँ करने लगीं कुछ पता ही नहीं चला। कहानी जारी रहेगी। आपके विचारों का स्वागत है। [email protected]
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